Sunday, 24 February 2013

एक अजनबी से एक मुलाकात...


कुछ भी कहने से पहले एक बात ज़रूर कहना चाहूंगी यह आलेख से किसी की भी भावनाओं को आहत करने या ठेस पहुँचाने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है यह आलेख महज़ एक मुलाक़ात के अनुभव पर आधारित एक पोस्ट है इसलिए कृपया इसे अन्यथा ना ले। क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है कि सभी धर्म अपने आप में बेहद पवित्र एवं महान है हर धर्म इंसान को नेकी की राह पर चलने का ही ज्ञान देता है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि किसी एक धर्म को मनाने वाला कोई इंसान किसी दूसरे धर्म को मनाने वाले दूसरे इंसान को बहला फुसलाकर अपने धर्म को मानने के लिए बाध्य करने लगे और जो लोग ऐसा करते हैं, या करने का प्रयास करते हैं। वह मुझे ज़रा भी पसंद नहीं आते, मैं नहीं कहती कि कोई धर्म बुरा है मगर मैं यह भी नहीं सुन सकती कि मेरे धर्म में कोई कमी है। क्यूंकि मेरी नज़र में सभी धर्म समान है तो कोई भी धर्म छोटा बड़ा कैसे हो सकता है या फिर अच्छा या बुरा कैसे हो सकता है। किन्तु हाँ फिर भी मुझे गर्व है कि मैं हिन्दू हूँ और उसके साथ-साथ एक आम इंसान भी जिसे किसी और धर्म से कोई बैर नहीं अर्थात न मैं कोई और धर्म अपनाना चाहती हूँ और ना ही किसी को अपने धर्म को अपनाने के लिए बाध्य करने में मेरी कोई रुचि है।

आज एक महिला घर आयी जो देखने में चीनी जैसे लग रही थी मगर खुद को गुजराती बता रही थी और तारीफ़ बाइबिल की कर रही थी। काफी देर तक उसके साथ बात करने पर ऐसा लगा जैसे वो मुझे धर्म परिवर्तन करने के लिए माना रही है लेकिन हर बात के बाद वो यह भी कहती जा रही थी कि मेरी बातों को आप अन्यथा न लें मैं आपका धर्म परिवर्तन करवाना नहीं चाहती हूँ, मैं तो केवल आपको हिन्दी में बाइबल पढ़वाना चाहती हूँ क्यूंकि बाइबल जो कहती है वो अन्य कोई दुसरा धर्म ग्रंथ नहीं कहता इस बात पर मेरा उसके साथ उसकी द्वारा कही हुई कई बातों को लेकर तर्क वितर्क हुआ जैसे मुझे आदम और हउआ की जो कहानी पता थी उसके अनुसार वो फल खाने का परिणाम है हम सब, मगर मुझे यह नहीं पता था कि उसी एक फल को खाये जाने के कारण मरते हैं हम सब, यदि ईश्वर के कहे को मानकर आदम और हउआ ने वह फल नहीं खाया होता तो हम में से कभी कोई नहीं मरता। यह कहानी मुझे पहले नहीं पता थी।

इस प्रकार उनसे न जाने ऐसी कितनी बेसर पैर की बातें होती रही और जाते जाते उन्होने कहा मैं फिर आऊँगी पल्लवी, मुझे तुमसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और हो सकता है तुम्हें भी मुझसे बहुत कुछ सीखने को मिले। जब तक तुम कुछ प्रश्नों के विषय में सोचना जैसे मरने के बाद हमारा क्या होता है ? हम दुखी क्यूँ होते है खुश क्यूँ होते है ? और भी न जाने क्या-क्या, मुझे अब ठीक से याद भी नहीं। वैसे धर्म के मामले मैं निजी तौर पर उन लोगों में से हूँ जो किसी भी धर्म से कोई बैर नहीं रखते, जो वक्त आने पर दिवाली भी मानते है और ईद भी अर्थात जब जैसा मौका हो तब वैसे ही रंग में ढलने का प्रयास करते हैं। क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है कि ज़िंदगी महज़ चार दिन की है उसमें हमें बहुत कुछ करना है तो भला उसे यह धर्म अधर्म के नाम पर क्यूँ खर्च किया जाये जैसे वो कहते हैं न

"और भी ग़म है ज़माने में मोहब्बत के सिवा"  

बस कुछ वैसी ही बात है लेकिन जब इस तरह के लोगों से मुलाक़ात हो जाती है तो अंदर ही अंदर कहीं एक द्व्न्द सा होने लगता है जाने कब इंसान यह धर्म अधर्म के फेर से परे होकर कुछ और सोचेगा जिसे न केवल एक जाति या धर्म का कल्याण हो बल्कि सम्पूर्ण मनाव जाति का कल्याण हो सके। न जाने कब तक इन धर्मों के नाम पर मासूम लोगों को, उनकी भावनाओं को, ठगा जाता रहेगा। न जाने कब तक धर्म के नाम पर फैलाया गया अंधविश्वास का कारोबार फलता फूलता रहेगा। न जाने कब एक इंसान दूसरे को सिर्फ उसके इंसान होने के नज़रिये से पहचान पाएगा, न कि उसकी जाती या धर्म के नाम से, यह सब कुछ लगभग उस फिल्म के शीर्षक की तरह है "इस रात की सुबह नहीं"

मेरा मानना तो यह है की कोई भी धर्म बुराई की ओर जाने का संदेश कभी नहीं देता। बल्कि हर धर्म केवल एक ही बात सिखाता है कि "नेकी कर और दरिया में डाल" अर्थात "कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर" लेकिन फिर भी लोग अपने अपने धर्म को ज्यादा महान दिखाने के चक्कर में दूसरे के धर्म पर उंगली उठाते रहते हैं अब भला आप ही बताइये मरने के बाद किसने देखा कौन कहाँ जाता है, लेकिन नहीं बाइबल को जबर्दस्ती मनवाने वाले लोग कहते हैं कि बाइबल के अनुसार मरते केवल बुरे लोग हैं अच्छे लोग तो पुनः जीवित हो जाते है ईसा मसीह की तरह, तो मैंने उनसे कहा यदि ऐसा ही है तो प्राकृतिक विपदा में तो हजारों और लाखों की संख्या में मासूम लोगों की जाने चाली जाती है उनका क्या...तो मुझे जवाब मिला उसमें भगवान की कोई गलती नहीं है। आप यदि घर से बाहर निकलो और अचानक सड़क दुर्घटना में आपकी मृत्यु हो जाये तो उसमें भगवान की क्या गलती, अब भला यह भी कोई तर्क हुआ?? यह तो वही बात हुई कि मौत आनी थी सो आ गई और बच गए तो "जको रखे साइयाँ मार सके न कोय", इशू ने नर्क के नाम पर कब्र बनाई है और स्वर्ग के नाम पर आकाश, जो बुरे लोग हैं वो नर्क में जाते हैं अर्थात कब्र में जाते है और जो अच्छे लोग हैं वो ऊपर स्वर्ग यानी आसमान में जाते हैं। 

उन्हें इस बात को कुछ ऐसे समझाने का प्रयास भी किया था कि आपने अपना घर बड़ी खूबसूरती से सजाया संवारा है इसमें कुछ बुरे लोग आकर सब तहस नहस कर दें तो आपको कैसा लगेगा और आप उनके साथ क्या करेंगी, मैंने कहा ऐसे लोगों को मैं घर से बाहर कर दूँगी और क्या, तो वह बोली बिलकुल ठीक वैसे ही ईश्वर ने यह दुनिया बड़े प्यार और मेहनत से सजाई और बनाई है जिसे कुछ बुरे लोग बर्बाद करना चाहते हैं तो ईश्वर उन्हें मार डालते हैं और नर्क में भेज देते है फिर कभी न वापस आने के लिए।   

अब यह भी कोई बात हुई भला, अरे भाई यदि ऐसा ही है तो फिर आपके धर्म में सभी लोगों को आप जान बूझ कर नर्क में क्यूँ डाल देते हो, है कि नहीं.....मगर नहीं मानेगे नहीं चाहे कुछ कर लो, इंसान मिट्टी से बना है इसलिए उसे मिट्टी में ही जाना है। मैंने भी कहा हाँ बिलकुल ठीक बात है हमारे यहाँ इसी बात को पाँच तत्वों से जोड़कर कहा गया है और कौन कहाँ जाएगा यह उसके कर्मों पर आधारित है और उसका फैसला ईश्वर के हाथों में है। हमारे हाथ में नहीं हमारे हाथ में यदि कुछ है, तो वह केवल इतना है कि हम जानबूझ कर किसी को ठेस न पहुंचाए, किसी के साथ बुरा न करें,अर्थात जहां तक संभव हो सके अपने आपको "सादा जीवन उच्च विचार" कि तर्ज पर चलायमान रखें। ताकि यदि कहीं कोई अगला पिछला जन्म होता हो तो आसानी से कट जाये। 

बस फिर क्या था इसी बात पर उन्होने हमें धर लिया और शुरू हो गईं कि अरे आपके धर्म में अगला जन्म होता है क्या बाइबल के अनुसार तो एक ही जन्म होता है और मरने के बाद सब ख़त्म, उसके बाद कुछ नहीं होता जो बुरा है वो (हैल) नरक में जाएगा और जो अच्छा है वो ऊपर (हैवन) स्वर्ग में, मैंने कहा देखिये मुझे भी नहीं पता कि अगला पिछला जन्म होता है या नहीं, मैं तो यह मानती हूँ कि जो आज है उसे ही ढंग से जी लो वही बहुत है कल किसने देखा मगर दादी नानी से जो किसे कहानियां सुनी पढ़ी है उनके आधार पर मैंने यह कथन कह दिया। क्यूंकि हो सकता है कोई कारण होता हो जिसके लिए हम पुण्य और पाप मानते हैं और उसी के आधार पर कर्म करते हैं।

कुल मिलाकर वह अपनी ही कही बातों पर स्वयं ही ठीक से तर्क नहीं दे पा रही थी इसलिए शायद उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें दुबारा मुझसे मिलना होगा अब शायद अगली बार वो और भी तैयारी के साथ मेरे घर आएंगी ताकि अपने तर्कों और बातों के आधार पर मुझे बाइबल पढ़ने एवं उसमें लिखी बातों को मानने के लिए मुझे माना सकें देखते हैं आगे क्या होता है।

Monday, 11 February 2013

परीक्षा का बुखार


दोस्तों परीक्षा का मौसम शुरू हो चुका है जिसके चलते अधिकतर विद्यार्थी परीक्षा के बुखार की चपेट में आ रहे हैं अनुभवी छात्रों का कहना है कि इस तरह का बुखार अक्सर हर साल ही हमारे देश से होकर गुज़रता है। यूं तो यह बुख़ार अब हर महीने ही आता है लेकिन अपनी चरम सीमा पर आने का इसका सही समय यही फरवरी और मार्च का महीना होता है जब यह बुख़ार सभी छोटे बड़े विद्यार्थियों के सर चढ़कर बोलता है। किन्तु यह ज़रूरी नहीं कि अन्य देशों में भी यह बुखार इन्हीं दो महीनों में आये। लेकिन फिर भी हम इस मौसम के आने से  पहले सब कुछ जानते हुए भी कभी हम इस रोग की चपेट में आने से बच नहीं पाते और पलक झपकते ही साल निकल जाता है। किन्तु विद्यार्थी वर्ग उदास एवं हताश ना हों इसका भी इलाज़ संभव है। इसलिए इस बुखार से पीड़ित सभी छात्रों के लिए कुछ अनुभवी और टोपर किस्म के विद्यार्थीयों ने एक दवा इजाद की है और केवल वही दवा आपको इस भयानक रोग से मुक्ति दिलवा सकती है।

जानना चाहेंगे उस दवा का नाम :) उसका दवा का नाम है "पूरी ईमानदारी के साथ ध्यान लगाकर पढ़ना" इसे इस दौरान पढ़ाई में मेहनत के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस दवा की सबसे अहम और अच्छी बात यह है कि बाकी दवा की तरह इसके सेवन का तरीका बिलकुल उल्टा है अर्थात जो इस दवा का जितना ज्यादा सेवन करेगा उस पर इस बुखार का असर उतना ही कम होगा। इसलिए देर न करें, अभी भी वक्त है। जितनी जल्दी हो सके इस दवा का सेवन आरंभ करें। यह दवा लगभग हर घर में उपलब्ध है बस इसके इस्तेमाल के दौरान कुछ खास चीजों से परहेज बहुत आवश्यक है। याद रहे परहेज जितना तगड़ा होगा, दवा का परिणाम उतना ही अच्छा आयेगा। तो आइये इसी सिलसिले से जुड़े कुछ परहेज़ों पर एक नज़र डालते है :)

परहेज नंबर एक :- कृपया जब तक आप इस परीक्षा नामक बुखार की चपेट में है, तब तक के लिए टीवी, मोबाइल, इंटरनेट जैसी चीजों से दूर रहिए। यह सब चीज़ें परीक्षा के बुखार से पीड़ित विद्यार्थियों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है एवं यह चीज़ें रोग को इस हद तक बढ़ा सकती है कि दवा के असर को लगभग ख़त्म कर देंगी। 

परहेज नंबर दो :- जहां तक हो सके इन दिनों हल्का भोजन ग्रहण करें, ताकि ज्यादा नींद न आए,चाय एवं कॉफी का सेवन रोज़ की तुलना में थोड़ा बढ़ा दें, या दूध भी ले सकते हैं।  

परहेज नंबर तीन :- जहां तक हो सके पढ़ाई के दौरान कुछ खाते पीते न रहे। यह मेरा अनुभव है किन्तु यदि आप इसके आदी है तो कोई बात नहीं, कुछ हल्का फुल्का खाया जा सकता है जैसे कच्चे या भुने बादाम या भुनी मूँगफली इत्यादि।   

परहेज नंबर चार :- रज़ाई ,कंबल जैसी चीजों से तब तक दूर रहे, जब तक आप सोने का अर्थात नींद लेने का प्रोग्राम न बना लें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ठंड का शिकार होते हुए बीमार ही पड़ जाये। रज़ाई और कंबल की अपेक्षा आप शॉल, स्वेटर और मोजों का इस्तेमाल कर सकते है या फिर कुछ गरम पेय का भी जैसा मैंने उपरोक्त कथन में कहा चाय, कॉफी या गरम दूध, जो आपका मन करे लिया जा सकता है। किन्तु दूध में बौर्नविटा, बूस्ट या होरलिक्स डालना ज़रा भी ना भूलें।

बस इतना ही :) अब आप सोच रहे होंगे सब कुछ तो बंद करवा दिया कोई "जीयें तो भला जीयें कैसे" तो जनाब यदि कुछ पाना है तो कुछ तो खोना ही पड़ेगा ना .... फिर भी चलो एक छूट ले सकते हैं आप, लेकिन वो भी सीमित समय के लिए वह यह कि जब आपका मन ऊब जाये और दवा लेने का मन ना करे, तो थोड़ी देर के लिए वह कार्य कर लें जो करना आपको सबसे ज्यादा अच्छा लगता है जैसे दोस्तों से फोन पर गप्पे मार लें या फिर थोड़ा सा इंटरनेट पर भी जा सकते है। लेकिन परहेज़ को ध्यान में रखते हुए घर के किसी बड़े सदस्य को खुद ही यह ज़िम्मेदारी सौंप दें कि यदि आप समय सीमा से बाहर जा रहे हों, तो वह आपको सख़्ती के साथ दवा लेने की हिदायत दे सकें, फिर देखिये कैसे झट से दूर होता है परीक्षा का बुखार वो भी पूरे एक साल के लिए :) अरे हाँ चलते-चलते मैं एक बात कहना तो भूल ही गयी, सभी विद्यार्थियों को मेरी और से परीक्षा हेतु अनेक अनेक शुभकामनायें जिस-जिस का परिणाम अच्छा आए कृपया वह मिठाई खिलना ना भूलें :)