tag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post3050411275862132244..comments2024-01-26T14:19:58.834+05:30Comments on मेरे अनुभव (Mere Anubhav): गो सोलो (GO SOLO)Pallavi saxenahttp://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-82578880802941171472015-03-25T17:22:02.000+05:302015-03-25T17:22:02.000+05:30एकदम सहमत हूँ आपकी बात से. देखिये न, मेरे घर में म...एकदम सहमत हूँ आपकी बात से. देखिये न, मेरे घर में माँ शाम को सिरिअल देखती है, पापा भी साथ देख लेते हैं. मुझे ज़रा भी इंटरेस्ट नहीं सिरिअल में, लेकिन फिर भी बैठकर उन्हीं के साथ देखता हूँ. घर में दूसरा टीवी अलग कमरे में भी है. चाहूँ तो वहाँ अकेले बैठकर अपने मनपसंद कार्यक्रम या फ़िल्में देख सकता हूँ...लेकिन फिर भी वहीँ घरवालों के साथ बैठना प्रेफर करता हूँ. आपकी बाकी बातों से भी पूरी सहमती है!Abhishekhttp://abhi-cselife.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-84052349343316009592015-03-25T18:30:12.000+05:302015-03-25T18:30:12.000+05:30आपके विश्लेषण से सहमत हूँ. यह भी देखिए कि यह Go So...आपके विश्लेषण से सहमत हूँ. यह भी देखिए कि यह Go Solo "एकला चलो रे" से किसी तरह से भिन्न भी है क्या? या उससे अधिक खतरनाक है.भारत भूषणhttp://www.meghnet.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-37617837558688507752015-03-25T19:29:50.000+05:302015-03-25T19:29:50.000+05:30बहुत बढ़िया लेख | ऐसे ही लिखते रहिये |बहुत बढ़िया लेख | ऐसे ही लिखते रहिये |Nimish Gournoreply@blogger.com