tag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post3230450145090154753..comments2024-01-26T14:19:58.834+05:30Comments on मेरे अनुभव (Mere Anubhav): निर्णयPallavi saxenahttp://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-84279080212874389352012-09-24T07:03:10.000+05:302012-09-24T07:03:10.000+05:30बहुत ही उम्दा पोस्ट पल्लवी जी आभार |www.sunaharika...बहुत ही उम्दा पोस्ट पल्लवी जी आभार |<br>www.sunaharikalamse.blogspot.comजयकृष्ण राय तुषारhttp://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-36679680342106994702012-09-24T08:15:42.000+05:302012-09-24T08:15:42.000+05:30लेकिन यह आज की कहानी है, आज की बात है क्यूंकि आज त...लेकिन यह आज की कहानी है, आज की बात है क्यूंकि आज तो एक ही संतान को अच्छे से पढ़ा लिखाकर एक सभ्य इंसान बनाना ही किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है <br>..............aapki baton se sehmat haiसंजय भास्करhttp://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-25696314969911186662012-09-24T08:34:46.000+05:302012-09-24T08:34:46.000+05:30बहुत चीजों पर निर्भर करता है इसका उत्तर। बच्चे उतन...बहुत चीजों पर निर्भर करता है इसका उत्तर। बच्चे उतने ही होने चाहिये जिन पर समुचित ध्यान दिया जा सके।प्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-91178107181527616272012-09-24T10:22:00.000+05:302012-09-24T10:22:00.000+05:30बहुत से बातें हालातों पर निर्भर करती है ....और हाल...बहुत से बातें हालातों पर निर्भर करती है ....और हालात बदलते रहतें हैं ...<br>हर माँ-बाप अपनी सन्तान का सुख चाहता है ,,इसमें कोई शक नही !<br>आप की अच्छी सोच के लिये ..<br>शुभकामनायें!यादें....ashok saluja .http://www.blogger.com/profile/17024308581575034257noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-1190692686838155232012-09-24T10:45:24.000+05:302012-09-24T10:45:24.000+05:30nice story.nice story.<br>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/04030809631254208656noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-75860011158152939272012-09-24T11:53:44.000+05:302012-09-24T11:53:44.000+05:30हर माँ बाप अपने सन्तान को सुखी देखना चाहता है,,,,ल...हर माँ बाप अपने सन्तान को सुखी देखना चाहता है,,,,लेकिन परिस्थितियों के आगे बेबस हो जाता है,,,<br>आपके अच्छे विचार प्रसंसनीय है,,,<br><br>RECENT POST <a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2012/09/blog-post_4073.html#links" rel="nofollow"> समय ठहर उस क्षण,है जाता </a>dheerendrahttp://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-7473340360988842432012-09-24T14:06:48.000+05:302012-09-24T14:06:48.000+05:30कोई भी फैसला एक नहीं बहुत सी बातों पर निर्भर होता ...कोई भी फैसला एक नहीं बहुत सी बातों पर निर्भर होता है, हालातों पर निर्भर होता है.ऐसा कोई नहीं कहता कि आँख कान बंद करके माता पिता की बात मानो.बल्कि कहा जाता है बच्चा जितनी जल्दी अपने फैसले लेने काबिल हो जाये अच्छा है.हाँ खुले दिमाग और दिल से बड़ों की बात सुननी जरुर चाहिए.shikha varshneyhttp://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-36921077190131637772012-09-24T15:03:43.000+05:302012-09-24T15:03:43.000+05:30This comment has been removed by the author.This comment has been removed by the author.ashishhttp://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-48066165357594408072012-09-24T15:06:18.000+05:302012-09-24T15:06:18.000+05:30नितांत व्यैक्तिक निर्णयों में किसी बड़े बुजुर्ग की...नितांत व्यैक्तिक निर्णयों में किसी बड़े बुजुर्ग की सलाह लेना तो ठीक लेकिन बाद में उनको इस निर्णय के लिए उत्तरदाई ठहराना उचित प्रतीत नहीं होता . संतानोत्पति का निर्णय बुजुर्ग से ज्यादा दंपत्ति का कार्यक्षेत्र है . वैसे भी अगर दंपत्ति का स्वास्थ्य और और अन्य कारक सामान्य हो तो पछतावा दूर किया जा सकता है .ashishhttp://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-67002363465645569222012-09-24T15:07:18.000+05:302012-09-24T15:07:18.000+05:30:-))).....अगर आप समझ जाये तो ये मुस्कान सब बता देग...:-))).....अगर आप समझ जाये तो ये मुस्कान सब बता देगी :-)इमरान अंसारीhttp://www.blogger.com/profile/06972878299091380127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-59386051406914629462012-09-24T15:41:41.000+05:302012-09-24T15:41:41.000+05:30बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन ह...बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको <br>और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.<br>Madan Mohan Saxenahttp://www.blogger.com/profile/02335093546654008236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-59071010924198008602012-09-24T16:04:46.000+05:302012-09-24T16:04:46.000+05:30मुझे कुछ विसंगतियां लग रही हैं। शादी के बाद भूल का...मुझे कुछ विसंगतियां लग रही हैं। शादी के बाद भूल का नतीज़ा समझ में नहीं। शादी के बाद जो होता है वह वैध है। उसकी पहली संतान है तो दूसरी में कम उम्र की बात भी आड़े नहीं आती। इसलिए मां के सुझाव देने का प्रश्न ही नहीं होना चाहिए। अगर उसे कोई मेडिकल प्रॉबलम थी, तो यह सुझाव डॉक्टर का होना चाहिए। इसलिए जिस आधार पर यह समस्या टिकी है तर्क संगत नहीं लगता।<br><br>रही बात बच्चे को अकेले होने की, तो उसे परेण्ट्स को समझाना चाहिए। ऐसे कई मां-बाप हैं जो सिर्फ़ एक संतान का लक्ष्य रखते हैं। बच्चे को संगति देने के लिए घर परिवार के किसी बच्चे को लाया जा सकता है। कोई बच्चा गोद लिया जा सकता है। किसी मनोविज्ञानी से बच्चे की काउंसलिंग कराई जा सकती है।<br><br>अब आपके मूल प्रश्न पर आऊं -- तो निर्णय लेने का अधिकार सबको बचपन से ही मिलना चाहिए, ताकि एक स्वतंत्र व्यक्तित्व का विकास हो। हां माता-पिता, समय-समय पर उचित सलाह अपने अनुभव के आधार पर देते रहें।<br>और अंत में ... वही जो आशीष जी ने लिखा है ... मेरी टिप्पणी का एक्सटेन्शन समझें।मनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-42343910370405323112012-09-24T16:17:35.000+05:302012-09-24T16:17:35.000+05:30आपकी बात से बिल्कुल सहमत है ... सार्थकता लिए सशक्...आपकी बात से बिल्कुल सहमत है ... सार्थकता लिए सशक्त लेखनसदाhttp://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-21638859942178557892012-09-24T16:35:27.000+05:302012-09-24T16:35:27.000+05:30मुझे एक ही बेटा है और उसे कभी अकेलापन महसूस ना हो ...मुझे एक ही बेटा है और उसे कभी अकेलापन महसूस ना हो ....... मैं हमेशा उसके साथ साए कि तरह लगी रही ... जब वो घर में अकेला होता था ........... मेरे साथ वो सब बात शेयर करे इसके लिए ,उसे हमेशा प्रोत्साहित करती थी .... 12th तक ही संभालना होता है ........ कल क्या हो गया ,इस पर तो अभी कुछ नहीं किया जा सकता ...... <br><br>आप को एक राज की बात बताउं..... मेरा बेटा जब भी exam देकर आता ... मैं उससे कभी भी ये नहीं पूछती की पेपर कैसे हुए .... हमेशा यही बोली ,कल के पेपर की तैयारी करो .....<br>*बीती ताहि बिसार के ले आगे की सुध & keep patience,cool mind* उसके लिए मेरा मूलमंत्र था ........ <br>Vibha Rani Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-20193005383282480102012-09-24T20:06:02.000+05:302012-09-24T20:06:02.000+05:30आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंग...आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत हैRajesh Kumarihttp://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-64264679512655870442012-09-25T00:08:44.000+05:302012-09-25T00:08:44.000+05:30पल्लवी , आपकी आज की पोस्ट निर्णय यानि कि किसी ...पल्लवी , <br><br>आपकी आज की पोस्ट निर्णय यानि कि किसी बात पर फैसला लेने पर आधारित है ... और वो भी किसी लड़की के द्वारा ... <br>लड़की की ज़िंदगी भी दो भागों में बंटी हुई होती है ... शादी से पहले और शादी के बाद ..... विवाह से पहले ज़्यादातर जीवन से जुड़े फैसले माँ - बाप करते हैं , लेकिन ऐसा भी नहीं कि बच्चे आँख कान बंद कर सब फैसले मान ही लें ... बच्चों की इच्छा को महत्त्व देते हुये माता - पिता को उचित सलाह देनी चाहिए .... हाँ यदि यह लगे कि बच्चा निश्चित तौर पर गलत है तो उसे समझाना चाहिए ..... मैं नहीं समझती हूँ कि आज के जमाने में कोई भी लड़की या लड़का चुपचाप बिना अपनी बात रखे हर बात मान ले .... हांलाकि हर माँ - बाप अपने बच्चे की भलाई के लिए ही सोचेंगे इसमें दो राय नहीं है । <br><br> विवाह के बाद की ज़िंदगी के फैसले ..... जैसा कि आपने कहानी के माध्यम से कहा ...विवाह के बाद की ज़िंदगी के फैसले पति - पत्नी को मिल कर करने चाहिए ....<br><br>लेकिन एक संतान के बाद उसकी ज़िंदगी में दो और संतानों का मौका आया मगर वह दोनों ही संताने उसके जीवन में आ ना सकी। क्यूंकि दोनों ही बिना सोचे समझे हो जाने वाली भूल का नतीजा थी। <br><br>यहाँ शायद आप प्लानिंग की भूल की बात करना चाह रही हैं ...विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि आप सब कुछ प्लान कर सकती हैं .... पर फिर भी कहीं न कहीं प्लानिंग भी धोखा दे जाती है .... इस स्थिति में माँ के कहने पर गर्भपात कराना मेरी समझ से बाहर कि बात है .... इस विषय पर पति और पत्नी के बीच ही निर्णय लिया जाना चाहिए .... स्वास्थ संबंधी यदि कोई कष्ट है तो उसके लिए डॉक्टर ही पति - पत्नी को कंविन्स करेगा .... न कि माँ । यहाँ मैं उस लड़की से सहमत नहीं हूँ कि माँ ने निर्णय लिया और उसने मान लिया .... यह उसका और उसके पति का निजी निर्णय होना चाहिए था ..... वैसे आज के जमाने में लड़कियां इतनी सक्षम हैं कि अपने निर्णय स्वयं ले सकें .....आपको भले ही लड़की की गलती नहीं लग रही पर मुझे लगता है कि उसमें ही आत्मविश्वास की कमी थी ... और होती भी क्यों नहीं जब ज़िंदगी में कभी भी कोई फैसला खुद लिया ही नहीं । <br><br>वैसे इस पोस्ट से आप क्या संदेश देना चाह रही हैं ? <br>संगीता स्वरुप ( गीत )http://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-32958852722611010002012-09-25T09:03:29.000+05:302012-09-25T09:03:29.000+05:30बहुत उलझे हुए विचार हैं। बड़ों का कहना मानना या नह...बहुत उलझे हुए विचार हैं। बड़ों का कहना मानना या नहीं मानना, इस कहानी के संदर्भ में ठीक नहीं है। कुछ बेटियां अपनी माँ के विचारों को आजीवन अपनाती हैं यह सत्य है लेकिन इसमें बड़ों की बात मानने या नही मानने के संस्कार की बात कहीं नहीं आती है। एक संतान होना या नहीं होना, आज के समाज का बहुत बड़ा विषय नहीं है। मेरे बच्चों की भी एक-एक ही संतान है, वे खुश हैं।smt. Ajit Guptahttp://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-18671219723281556912012-09-25T13:27:19.000+05:302012-09-25T13:27:19.000+05:30बिलकुल आपकी बात से सहमत हूँ मगर पूर्णतः नहीं क्यूं...बिलकुल आपकी बात से सहमत हूँ मगर पूर्णतः नहीं क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है कि 12th के बाद बच्चा भले ही खुद को अकेला महसूस ना करे मगर teen age आने तक उसे अकेलापन महसूस होता ही है क्यूंकि आप लाख अपने बच्चे के साथ समय बितालें मगर उसके भाई बहनों की जगह या पक्के दोस्त की जगह आप कभी नहीं ले सकते जिसके साथ वह अपने मन की हर एक छोटी बड़ी बात share कर सके यह एक आमतौर पर देखा जाने वाला सत्य है। उसी आधार पर मैंने यह पोस्ट लिखी थी।Pallavi saxenahttp://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-91293618198482458292012-09-25T13:47:45.000+05:302012-09-25T13:47:45.000+05:30आपकी बात भी एकदम ठीक है आंटी आज के ज़माने में ऐसे ...आपकी बात भी एकदम ठीक है आंटी आज के ज़माने में ऐसे बच्चे शायद ही कहीं देखने को मिले जो अपने माता-पिता की हर बात मानते हों वो भी अपना मत रखे बिना। मगर यदि मैं इस कहानी की बात करूँ तो आज भी कुछ परिवार ऐसे हैं जहां केवल माता या पिता किसी एक की ही ज्यादा चलती है जिसके कारण बच्चे बचपन से ही उनकी बातें आँख बंद करके सुनते चले आते है और ऐसे माहौल में उन्हें कभी अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद करने का मौका ही नहीं मिल पाता नतीजा उनकी ज़िंदगी के सभी फैसले उनके माता-पिता ही लिया करते हैं। इस कहानी में भी वही हुआ लेकिन सोचने वाली बात यह थी कि ऐसा नहीं था की उस लड़की ने केवल माँ के कहने पर आँख बंद करके अकेले ही यह फैसला ले लिया था बल्कि उसने अपने पति से भी पूछा था मगर उसका पति भी आगे नहीं आया तो उसे उसकी माँ की बात ही सही लगी। इसलिए मुझे ऐसा लगा कि इस पूरी कहानी में केवल लड़की को ही इस बात का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। <br>रही बात संदेश की तो मैंने केवल यही संदेश देना चाह है कि शादी के बाद संतान से संबन्धित फैसला लेने का अधिकार केवल पति पत्नी को है उनके मामले में न तो किसी और को बोलना चाहिए और ना ही उन दंपत्ति को किसी और की बात सुननी चाहिए यह उनका निजी मामला है इसका "निर्णय" केवल उन्हें ही लेना चाहिए।<br><br>हालांकि आज कल की लड़कियाँ इतनी मॉडर्न और बोल्ड हो चुकी हैं कि वो ना तो अपनी माँ की और ना ही अपने पति की बात को तवज्जो देतीं हैं। वो अपने फैसले खुद ही लेती हैं चाहे वो सही हों या फिर गलत।Pallavi saxenahttp://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-17937787715415877352012-09-25T14:00:10.000+05:302012-09-25T14:00:10.000+05:30विचारों को अपनाया जाना भी तो एक तरह से बात मनाने ज...विचारों को अपनाया जाना भी तो एक तरह से बात मनाने जैसी ही बात है ना कुछ तो ऐसे भी लोग होते हैं जो आँख बंद करके वही करते हैं जो उनकी माँ करती या कहती चली आरही है फिर चाहे वो गलत हो या सही रही बात एक संतान के होने की तो आपकी बात बिलकुल ठीक है कि एक ही संतान होने से माता-पिता को कोई फर्क नहीं पड़ता वह सदा ही खुश रहते हैं मेरा भी एक ही बेटा है मगर यहाँ मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि एक ही संतान होने से माता पिता को फर्क नहीं पड़ता बल्कि उस बच्चे को फर्क पड़ता है जो अकेला है। हाँ ऐसा ज़रूर हो सकता है कि एक सीमित आयु तक बच्चे को अकेलापन महसूस हो और आगे जाकर जब वो समझदार हो जाये तब उसे ऐसा ना लगे मगर बचपन में उसे अपने भाई या बहन की थोड़ी बहुत कमी तो महसूस होती ही है। भले ही चाहे वह अपनी इस भावना को पूरी तरह या ठीक तरह से व्यक्त ना कर पाये मगर कभी-कभी यदि ध्यान दिया जाये तो आप उसके व्यवहार में यह कमी महसूस होने वाली बात देख सकते हैं।Pallavi saxenahttp://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-32107657279559572372012-09-25T14:52:09.000+05:302012-09-25T14:52:09.000+05:30सुलझे और उलझे भावों की मिली जुली पोस्ट ...विचार अप...सुलझे और उलझे भावों की मिली जुली पोस्ट ...विचार अपने अपने है ...और अनुभव भी ||Anju (Anu) Chaudharyhttp://www.blogger.com/profile/01082866815160186295noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-78737937048783300202012-09-26T09:33:26.000+05:302012-09-26T09:33:26.000+05:30जिन संतानों की हत्या की गई उनके प्रति अपराधबोध अचे...जिन संतानों की हत्या की गई उनके प्रति अपराधबोध अचेतन मन में कार्य करता है और जीवन को प्रभावित करता है. तीन संतानें हो कर बाद में दो किसी अन्य कारण से कम हो जातीं तो दंपति क्या कर लेते. अब उनकी एक मात्र संतान को कई अभाव खलते हैं. अभाव तो रहते हैं. उनका नाम बदल जाता है. वैसे भी अब भारत में एक संतान पैदा करने की परंपरा बनती जा रही है. बेहतर होगा कि अब बच्चे के अभावों के प्रति उसकी संवेदनशीलता को सलीके से टैकल किया जाए क्योंकि बीती बातों पर अपने मन को ठहरा देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है. <br>वाँछित संतान की परिभाषा इस प्रकार करना चाहता हूँ कि संतान वही है जिसे संतान प्राप्ति के भाव से उत्पन्न किया जाए. इसके अतिरिक्त अन्य संतानों पर अनचाही होने का संकट बना रहता है.Bharat Bhushanhttp://www.blogger.com/profile/10407764714563263985noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-45820132078000964282012-09-26T22:01:49.000+05:302012-09-26T22:01:49.000+05:30सार्थकता लिए सशक्त लेखन....सार्थकता लिए सशक्त लेखन....Maheshwari kanerihttp://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-87306273423980989962012-09-27T16:22:33.000+05:302012-09-27T16:22:33.000+05:30किसी भी बात को कभी भी सर्वथा सही अथवा गलत नहीं कहा...किसी भी बात को कभी भी सर्वथा सही अथवा गलत नहीं कहा जा सकता . ये तो पूरी तरह से परिस्थितियों पर निर्भर होता है . पर हाँ बच्चों में इतनी समझ तो विकसित करनी ही चाहिए कि वो सार्थक आकलन कर सकें .....निवेदिता श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7390077179800546777.post-86247069772752007612012-09-28T20:46:15.000+05:302012-09-28T20:46:15.000+05:30एक सीमा तक बड़ों की बात मानना ठीक है...पर व्यस्क ह...एक सीमा तक बड़ों की बात मानना ठीक है...पर व्यस्क होने के बाद भी सही-गलत का फैसला ना कर सके...अपने मन के अनुसार निर्णय ना ले सके..यह ठीक नहीं.<br>फिर उसके व्यक्तित्व का विकास ही नहीं हुआ . व्यस्क होने के बाद किसी भी निर्णय की जिम्मेअदारी खुद लेनी चाहिए और अपने बड़ों से असहमति हो तो उन्हें नम्रता से अपने पक्ष से अवगत करवाना चाहिए.rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.com