जैसा कि मैं आप सभी को अपने पहले लेख से अब तक के लेख तक यह बता चुकी हूँ कि मैं जो भी लिखती हूँ वो मेरे अनुभव हैं यह भी एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है बात करने का, मैंने एक बहुत बड़ा अंतर महसूस किया, यहाँ की शिक्षा और अपने यहाँ यानि (भारत) की शिक्षा प्रणाली में और यहाँ में यह भी बताना चाहूंगी कि यह अंतर मुझे महसूस हूआ, यहाँ आने के करीब ढाई साल बाद जब मेरा बेटा (मन्नू) year 1 में पढने लगा. Year one मतलब भारत के हिसाब से class 1st . वरना उसके पहले तो मुझे लगता था कि यहाँ रहकर मेरा बेटा कुछ नहीं सीखेगा और भारत के बच्चों के मुकाबले सब से पीछे रहेगा और सही कहूँ तो आज भी मुझे कभी-कभी यही लगता है, क्यूंकि यहाँ कि जो शिक्षा प्रणाली है वो हमारे यहाँ से बहुत अलग है. हमारे यहाँ पढाई पर जितना जोर दिया जाता है उतना यहाँ नहीं दिया जाता या यूँ कहो के उसके मुकाबले में तो यहाँ दिया ही नहीं जाता है. यहाँ बच्चों पर पढाई का ज़रा भी दबाब नहीं है, यहाँ के स्कूल शिक्षिका का कहना है कि जितना आप के बच्चे ने स्कूल में पढ़ लिया उतना काफी है. उसे अलग से घर पर सिर्फ किताब पढ़ने में मदद करें और बहुत ज्यादा ध्यान देने की ज़रूर नहीं है, मगर हमारे यहाँ उल्टा होता है वहां के शिक्षक बोलते हैं सिर्फ स्कूल की पढाई काफी नहीं है आप को घर में भी बच्चे को पढ़ाना चाहिए, और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पढ़ाने के तरीके में भी बहुत बड़ा अंतर है. जो मुझे महसूस हुआ यहाँ पढाई को creativity के आधार पर पढाया जाता है और हमारे यहाँ रट वाया जाता है
जैसे एक उदहारण के तौर पर में आप को बताऊँ यहाँ भूगोल (geography ) ऐसे नहीं पढाई जाती कि बस हाथ में नक्शा (map) थमा दिया और बोल दिया कि रट लो कितने पहाड़ और कितनी नदियाँ है या फिर कितने राज्य हैं या ऐसा कुछ. बल्कि यहाँ बच्चों को उनकी कक्षा अध्यापिका खुद स्कूल से किसी एक जगह पर ले जाती है और बच्चों से यह कहा जाता है कि आप लोग ध्यान से देखो की यहाँ से वहां तक के रास्ते में आपने क्या-क्या देखा और क्या आप यहाँ अकेले आ सकते हो या उस Map में बता सकते हो, कि हम कहाँ से चले थे और किस रास्ते से यहाँ तक पहुंचे हैं, ऐसा करने से बच्चों को भी मज़ा आता है क्यूंकि उनको अपनी अध्यापिका के साथ अपनी कक्षा से बाहर जाने को मिलता है, साथ ही अपने दोस्तों के साथ कुछ नया और रोचक तरीके से सीखने को मिलता है. यह तो सिर्फ एक विषय भूगोल (geography ) के बारे में उदहारण था आप के लिए...
किन्तु मेरे कहने का तात्पर्य यह था की यहाँ बच्चो को पढाई में मज़ा आये उस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, बनिस्बत इस के कि वो कितना पढ़ते हैं ज्यादा या कम वो उतना मायने नहीं रखता. वो पढाई को कितना enjoy करते है वो देखा जाता है यहाँ, किन्तु में यहाँ यह भी कहना चाहूंगी कि यह तरीका सही है. मगर तब तक, जब तक आप यहाँ है. यदि आप को UK छोड़ कर वापस भारत लौटना है तो यहाँ की शिक्षा पद्धति की यह तारिफ शायद आप के बच्चे के लिए उपयुत नहीं, क्यूंकि पढाई का बच्चे पर यहाँ तो जरा भी दवाब नहीं, मगर भारत में दुगना है जिस के कारण आप का बच्चा शायद वहां के माहौल में तालमेल बिठाने में खुद को कमज़ोर महसूस कर सकता है. यही नहीं पढाई को और भी ज्यादा रोचक बनाने के लिए यहाँ हर कक्षा में बच्चों से खाने पीने की चीज़ें भी बन वाई जाती है जैसे cookies,biscuit ,pan cakes इत्यादि. यहाँ भी वो सारे विषय होते हैं जो इंडिया में पहली कक्षा के छात्र के होते है वही english , maths , science geography etc etc ....मगर बस यहाँ पढ़ाने का ढंग बहुत अलग है जिस के कारण यहाँ बच्चा पढाई से ऊबता नहीं है और ना ही पढाई का दवाब महसूस करता है, मगर हमारे यहाँ की शिक्षा प्रणाली ठीक उल्टी है. माना की हमारे यहाँ के बच्चे पूरी दुनिया में पढाई के मामले में सब से आगे हैं....मगर इसका मतलब यह नहीं कि उन नन्हे -नन्हे बच्चों को पढाई के बोज़ तले इतना दवाब डाला जाये की वो अपना बचपन ही भूल जाएँ और यही होता है आज कल इंडिया में छोटे-छोटे मासूम बच्चों के बसते का भार उनकी उम्र से ज्यादा होता है. हमेशा किसी न किसी परीक्षा कि तैयारी में लगे बच्चे अपने बचपन को वैसे enjoy कर ही नहीं पाते जैसे करना उनका हक बनता है. हर महीने test फिर 3rd monthly फिर 6th Monthly फिर pre -board और फिर Final exams और इतना ही नहीं इस सब के आलावा गर्मियों की एक महीने की छुटी के बाद फिर स्कूल खुल जाना और पढाई शुरू हो जाना. यहाँ तक कि छुटियाँ भी सिर्फ home work में बिताना होती है तो ऐसे में बच्चा अपना बचपन जीये कब, बचपन से लेकर जवानी तक हमारे यहाँ बच्चों को बचपन जीने का अवसर ही नहीं मिलता और ऐसा सिर्फ मेरा ही मानना नहीं है बल्कि यहाँ रहने वाले सभी भारतीयों का भी कहना यही है, कि भारत की शिक्षा प्रणाली ने भारत के बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है और बहुत हद तक यह बात एक दम सच है ...
इस का मतलब यह नहीं है कि मैं वहां कि पढाई के खिलाफ हूँ या मुझे पसंद नहीं है मैं तो खुद चाहती हूँ कि मेरे बच्चे की बची हुई पढाई अब भारत मैंने हो इसलिए नहीं कि वहां कि पढाई तेज़ है और यहाँ के धीमी बल्कि इसलिए क्यूंकि मेरा मानना यह है कि पढाई जहाँ कि भी हो बस वहीँ की पूरी हो, यह नहीं कि आधी यहाँ की और आधी वहां की. ऐसे में बच्चा और भी ज्यादा पिस जाता है और खुद को adjust नहीं कर पाता, उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है नयी शिक्षा प्रणाली के हिसाब से खुद को ढालना. यहाँ रहकर जा चुके लोगों से भी हमने बात की है तो उनका कहना भी यही है कि यदि हमको भारत वापस लौटना है तो हमको मन्नू कि पढाई को लेकर सोचना होगा ज्यादा से ज्यादा मन्नू सात (७) वर्ष का होने तक हम यहाँ रहने का सोच सकते हैं उसके बाद नहीं, क्यूंकि यदि हमने उसके बाद देर की तो मन्नू के लिए वहां के स्कूल की शिक्षा पद्धति में खुद को ढालना कठिन हो जायेगा. मतलब यह कि उस स्तर कि पढाई के हिसाब से खुद को adjust करना उसके लिए बहुत कठिन हो जायेगा. सोच तो हम भी रहे ही हैं कि उसके सात वर्ष पूरे होने तक वापस अपने देश भारत लौट जाएँ अब देखिये आगे क्या होता है. यहाँ मैंने play group और school के बारे में अनुभवों को लिखा है.
1 Play group
Play group और nursery के लिए सरकारी और प्राइवेट दोनों ही प्रकार के स्कूल हैं, कुछ प्राइवेट स्कूल क्रेच जैसा भी काम करते हैं हांलांकि उनकी फीस ज्यादा होती है और तीन साल से बड़े बच्चों के लिए सरकार ढाई घंटे की शिक्षा का खर्चा सरकार उठाती है. सामान्यतः सभी प्राइवेट स्कूल में पांच-पांच घंटे के दो session होते हैं और एक session कि fees 18 से 30 pound के बीच होती है वो अलग-अलग स्कूल की सुविधाओं पर निभर करता है. यहाँ पर मैं आप को एक बात और बताना चाहूंगी कि यहाँ के प्राइवेट स्कूल में छोटे बच्चों को टेबल मैनर्स से लेकर साधारण चाल चलन तक के सभी तरीके सिखाये जाते हैं. कि कैसे कांटे और छुरी से खाया जाता है कैसे नैपकिन का उपयोग किया जाता है यहाँ तक कि बच्चे का खाना भी स्कूल वाले खुद ही बना कर परोसते हैं.
हाँ यह बात अलग है कि यदि आपके बच्चे को वहां का खाना पीना पसंद न आये तो आप उसको घर से भी टिफिन दे सकते हैं. यह मैं यहाँ इसलिए बता रही हूँ क्यूंकि साधारण तौर पर भारतीय बच्चे को यहाँ का खाना पीना उस दौरान पसंद नहीं आता है और यही नहीं पांच साल तक के सभी बच्चों को 250ML Milk भी मुफ्त दिया जाता है. कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि यहाँ pre-school या यूँ कहिये कि play group दोनों के लिए ही सरकार किसी भी तरह का कोई दवाब नहीं डालती है. यदि आप भेजते हो अपने बच्चे को तो बहुत अच्छी बात है उल्टा सरकार उसके लिए शिक्षा संबंधी खर्चा भी उठाती है. तो यह तो थी प्राइवेट स्कूलों या play -group की बात, अब बात आती है proper स्कूल की, जो कि शुरू होता है reception class से यहाँ KG1 एवं KG2 को एक साथ जोड़ कर, एक ही साल का करके उससे reception का नाम दिया गया है इसके बाद ही शुरू होता है Year 1 जिसको अपने यहाँ यानि भारत में पहली कक्षा बोलते हैं.
स्कूल ( school )
यहाँ पर ज्यादातर सरकारी स्कूल ही हैं और क्यूंकि पढाई का स्तर एक जैसा ही है तो लोग इस Race में नहीं रहते कि उन्हें किसी ख़ास स्कूल में admission करवाना है अपने बच्चे का चाहे वो पंद्रह किलोमीटर दूर ही क्यूँ ना हो हालाकि admission के टाइम पर आप तीन स्कूलों के नाम दे सकते हैं और admission प्रोसेस के दोरान आप के द्वारा चुने गए तीनो स्कूल, बच्चे के माता पिता को स्कूल को देखने के लिए आमंत्रित करते हैं ताकि आप को स्कूल चुनने में आसानी रहे और आप को स्कूल सम्बन्धी जानकारी पूर्ण रूप से प्राप्त हो सके कि कितना बड़ा स्कूल है, कैसा है, कितनी दूर है इत्यादी ...
बाकी तो यहाँ पढाई का स्तर क्या है और कैसा है वह मैं आप को उसका पूर्ण विवरण पहले ही दे चुकी हूँ. इससे आप को समझ में आ ही गया होगा कि क्या फर्क है हमारे यहाँ कि शिक्षा प्रणाली और यहाँ कि शिक्षा प्रणाली में यह सब देख कर ख्याल आता है कि क्यूँ हमारे यहाँ के सरकारी स्कूल यहाँ के जैसे सरकारी स्कूलों की तरह नहीं हो सकते हैं. तो बस दो ही चीज़ें जहन में आती हैं वो यह कि एक तो सबसे बड़ा और एकमात्र कारण है पैसा, अर्थात हमारे यहाँ के सभी अविभावक अपने बच्चों को केवल प्राइवेट स्कूल में ही भेजना चाहते है क्यूंकि एक तो पडोसी के बच्चे से तुलना और हमारे यहाँ प्राइवेट स्कूल का स्तर इतना उठा दिया गया है कि लोग सरकारी स्कूल को निम्न द्रष्टि से देखने लगे हैं. फिर भले ही प्राइवेट स्कूल की फीस देने में अभिभावकों कि पूरी तनख्वा ही क्यूँ ना चली जाये. वो अपने बच्चे को अच्छे-से-अच्छे नामी गिरामी स्कूल में ही भेजना पसंद करते हैं क्यूंकि सरकारी स्कूल को लेकर भारत में हमारी मानसकिता ही ऐसी बन गयी है कि उसका स्तर अच्छा नहीं होता क्यूंकि वहां के शिक्षकों की आये दिन duty कभी चुनाव में लगती रहती है या फिर किसी न किसी शिविर में लगी होती है ऐसे में उनके पास समय ही कहाँ कि वो अपनी कक्षा के विद्यार्थियों पर ध्यान दे सकें, दूसरा सरकारी स्कूल कि फीस बहुत ही कम होती है इसलिए वहां हर तबके के लोग अपने बच्चे को दाखिला दिला देते हैं जिस के कारण हम जैसे मध्यम वर्गीय परिवार को लगता है कि उन बच्चों के साथ रहने से हमारा बच्चा भी बिगड़ जायेगा या यूँ कहिये कि उनके तौर तरीके सीख जायेगा, जिसको आम तौर पर हम अच्छा नहीं मानते. जबकि यह बात पूर्ण रूप से सच नहीं है ऐसा प्राइवेट स्कूल में भी होता है मगर हमारी मानसिकता ही ऐसी बन गयी है कि मैं खुद अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजना पसंद नहीं करुँगी हालाकि मैंने खुद भी दो साल वहां पढ़ा है और मुझे ऐसा कोई ख़राब अनुभव भी नहीं हुआ. यहाँ पढने वाले सभी बच्चे एक से होते हैं मगर तब भी मुझे नहीं लगता कि मैं खुद कभी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेज पाऊँगी क्यूँकि मानसिकता तो मेरी भी वही है ना. यहाँ मुझे वो कहावत याद आती है जो काफी हद तक सही भी है कि ''एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है''
बस इतना ही कहना चाहूंगी कि आप अपने बच्चों को ज़रूर पढ़ाइये और हो सके तो, किसी एक व्यक्ति को साक्षर बनाने का प्रयत्न भी ज़रूर कीजिये क्यूंकि साक्षरता ही एक ऐसा हथियार है जो हमारे देश को काफी हद तक गरीबी को कम कर सकता है. यहाँ मुझे एक साक्षरता पर आधारित विज्ञापन याद आरहा है जिसकी पंक्ति कुछ इस तरह थी
पढ़ना लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों
पढ़ना लिखना सीखो ओ भूख से लड़ने वालों
क, ख, ग, को पहचानो, अलिब को पढ़ना सीखो
अ, आ, इ, ई को हथियार बना कर लड़ना सीखो