Tuesday, 26 October 2010

Education

Education अर्थात शिक्षा जिसका अर्थ होता है साक्षरता. जिसके माध्यम से हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि क्या सही है और क्या ग़लत. जिसके आधार पर हमको अपनी ज़िन्दगी की कठिन अवसरो में फैसला करने में आसानी होती है. शिक्षा हमारे जीवन का एक ऐसा अनिवार्य पहलू है जिसके बारे में जितना कहा जाये उतना ही कम होगा और इसलिए मैं समझती हूँ कि हर व्यक्ति का साक्षर होना बहुत ज़रूरी है, क्यूंकि शिक्षा  ना  केवल आप को अपनी जीवन के सही फैसले करने में सक्षम बनाती है बल्कि आप को ज़िन्दगी में कामयाबी भी दिलाती है इसलिए आज कल हमारे देश में भी साक्षरता पर ध्यान दिया जा रहा है और सरकार  भी लोगों को साक्षर होने के लिए प्रोत्साहित कर रही है जिसके चलते सरकारी स्कूल में किताबें और शिक्षा सम्बन्धी हर चीज़ मोहैया कराई जाती है और जिन लोगों के पास खाना नहीं है पढाई के लिए पैसे नहीं है उन सभी बच्चों को स्कूल में ही भोजन भी उबलब्ध कराया जाता है और मैं भी यह मानती हूँ कि एक प्रगतिशील देश की रफ़्तार को और बढाने के लिए जितने ज्यादा से ज्यादा लोग साक्षर होंगे उतने ही तेजी के साथ हमारा देश आगे बढेगा.

जैसा कि मैं आप सभी को अपने पहले लेख से अब तक के लेख तक यह बता चुकी हूँ कि मैं जो भी लिखती हूँ वो मेरे अनुभव हैं यह भी एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है बात करने का, मैंने एक बहुत बड़ा अंतर महसूस किया, यहाँ की शिक्षा और अपने यहाँ यानि (भारत) की शिक्षा प्रणाली में और यहाँ में यह भी बताना चाहूंगी कि यह अंतर मुझे महसूस हूआ, यहाँ आने के करीब ढाई साल बाद जब मेरा बेटा (मन्नू) year 1 में पढने लगा. Year one मतलब भारत  के हिसाब से class 1st . वरना उसके पहले तो मुझे लगता था कि यहाँ रहकर मेरा बेटा कुछ नहीं सीखेगा और भारत के बच्चों के मुकाबले सब से पीछे रहेगा और सही कहूँ तो आज भी मुझे कभी-कभी यही लगता है, क्यूंकि यहाँ कि जो शिक्षा प्रणाली है वो हमारे यहाँ से बहुत अलग है. हमारे यहाँ पढाई पर जितना जोर दिया जाता है उतना यहाँ नहीं दिया जाता या यूँ कहो के उसके  मुकाबले में तो यहाँ दिया ही नहीं जाता है. यहाँ बच्चों पर पढाई का ज़रा भी दबाब नहीं है, यहाँ के स्कूल शिक्षिका का कहना है कि जितना आप के बच्चे ने स्कूल में पढ़ लिया उतना काफी  है. उसे अलग से घर पर सिर्फ किताब पढ़ने में मदद करें और बहुत ज्यादा ध्यान देने की ज़रूर नहीं है, मगर हमारे यहाँ उल्टा होता है वहां के शिक्षक बोलते हैं सिर्फ स्कूल की पढाई काफी नहीं है आप को घर में भी बच्चे को पढ़ाना चाहिए, और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पढ़ाने के तरीके में भी बहुत बड़ा अंतर है. जो मुझे महसूस हुआ यहाँ पढाई को creativity के आधार  पर पढाया जाता है और हमारे यहाँ रट वाया जाता है

जैसे एक उदहारण के तौर पर में आप को बताऊँ यहाँ भूगोल (geography ) ऐसे नहीं पढाई जाती  कि बस हाथ में नक्शा  (map) थमा दिया और बोल दिया कि रट लो कितने पहाड़ और कितनी नदियाँ है या फिर कितने राज्य हैं या ऐसा कुछ. बल्कि यहाँ बच्चों को उनकी कक्षा अध्यापिका खुद स्कूल से किसी एक जगह पर ले जाती है और बच्चों से यह कहा जाता है कि आप लोग ध्यान से देखो की यहाँ से वहां तक के रास्ते  में आपने क्या-क्या देखा और क्या आप यहाँ अकेले आ सकते हो या उस Map  में बता सकते हो, कि हम कहाँ  से चले थे और किस रास्ते से यहाँ तक पहुंचे हैं, ऐसा करने से बच्चों को भी मज़ा आता है क्यूंकि उनको अपनी अध्यापिका के साथ अपनी कक्षा से बाहर जाने को मिलता है, साथ ही अपने दोस्तों के साथ कुछ नया और रोचक तरीके से सीखने को मिलता है.  यह तो सिर्फ एक विषय भूगोल (geography ) के बारे में उदहारण था आप के लिए...

किन्तु मेरे कहने का तात्पर्य यह था की यहाँ बच्चो को पढाई में मज़ा आये उस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, बनिस्बत इस के कि वो कितना पढ़ते हैं ज्यादा या कम वो उतना मायने नहीं रखता. वो पढाई को कितना enjoy करते है वो देखा जाता है यहाँ, किन्तु में यहाँ यह भी कहना चाहूंगी कि यह तरीका सही है. मगर तब तक, जब तक आप यहाँ है. यदि आप को UK छोड़ कर वापस भारत लौटना है तो यहाँ की शिक्षा पद्धति की यह तारिफ शायद आप के बच्चे के लिए उपयुत नहीं, क्यूंकि पढाई का बच्चे पर यहाँ तो जरा भी दवाब नहीं, मगर भारत में दुगना है जिस के कारण आप का बच्चा शायद वहां के माहौल में तालमेल बिठाने में खुद को कमज़ोर महसूस कर सकता है. यही नहीं पढाई को और भी ज्यादा रोचक बनाने के लिए यहाँ हर कक्षा में बच्चों से खाने पीने की चीज़ें भी बन वाई जाती है जैसे cookies,biscuit ,pan cakes इत्यादि. यहाँ भी वो सारे विषय होते  हैं जो इंडिया में  पहली कक्षा के छात्र के होते है वही english , maths , science geography etc etc ....मगर बस यहाँ पढ़ाने का ढंग बहुत अलग है जिस के कारण यहाँ बच्चा पढाई से ऊबता नहीं है और ना ही पढाई का दवाब महसूस करता है, मगर हमारे यहाँ की शिक्षा प्रणाली ठीक उल्टी है. माना की हमारे यहाँ के बच्चे पूरी दुनिया में पढाई के  मामले में सब से आगे हैं....मगर इसका मतलब यह नहीं कि उन नन्हे -नन्हे बच्चों को पढाई के बोज़ तले  इतना दवाब डाला जाये की वो अपना बचपन ही भूल जाएँ और यही होता है आज कल इंडिया में छोटे-छोटे मासूम बच्चों के बसते का भार उनकी उम्र से ज्यादा होता है. हमेशा किसी न किसी परीक्षा कि तैयारी में लगे बच्चे अपने बचपन को वैसे enjoy कर ही नहीं पाते जैसे करना उनका हक बनता है. हर महीने test फिर 3rd monthly फिर 6th Monthly फिर pre -board और फिर Final exams और इतना ही नहीं इस सब के आलावा गर्मियों की एक महीने की छुटी के बाद फिर स्कूल खुल जाना और पढाई शुरू हो जाना. यहाँ तक कि छुटियाँ भी सिर्फ home work में बिताना होती है तो ऐसे में बच्चा अपना बचपन जीये  कब, बचपन से लेकर जवानी तक हमारे यहाँ बच्चों को बचपन जीने का अवसर ही नहीं मिलता और ऐसा सिर्फ मेरा ही मानना नहीं है बल्कि यहाँ रहने वाले सभी भारतीयों का भी कहना यही है, कि भारत की शिक्षा प्रणाली ने भारत के बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है और बहुत हद तक यह बात एक दम सच है ...

इस का मतलब यह नहीं है कि मैं वहां कि पढाई के खिलाफ हूँ या मुझे पसंद नहीं है मैं तो खुद चाहती हूँ कि मेरे बच्चे की बची हुई पढाई अब भारत मैंने हो इसलिए नहीं कि वहां कि पढाई तेज़ है और यहाँ के धीमी बल्कि इसलिए क्यूंकि मेरा मानना यह है कि पढाई जहाँ कि भी हो बस वहीँ की पूरी हो, यह नहीं कि आधी यहाँ की और आधी वहां की. ऐसे में बच्चा और भी ज्यादा पिस जाता है और खुद को adjust नहीं कर पाता, उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है नयी शिक्षा प्रणाली के हिसाब से खुद को ढालना. यहाँ रहकर जा चुके लोगों से भी हमने बात की है तो उनका कहना भी यही है कि यदि हमको भारत वापस लौटना है तो हमको मन्नू कि पढाई को लेकर सोचना होगा ज्यादा से ज्यादा मन्नू सात (७) वर्ष का होने तक हम यहाँ रहने का सोच सकते हैं उसके बाद नहीं, क्यूंकि यदि हमने उसके बाद देर की तो मन्नू के लिए वहां के स्कूल की शिक्षा पद्धति में खुद को ढालना कठिन हो जायेगा. मतलब यह कि उस स्तर कि पढाई के हिसाब से खुद को adjust करना उसके लिए बहुत कठिन हो जायेगा. सोच तो हम भी रहे ही हैं कि उसके सात वर्ष पूरे होने तक वापस अपने देश भारत लौट जाएँ अब देखिये आगे क्या होता है. यहाँ मैंने play group और school के बारे में अनुभवों को लिखा है.


1 Play group
Play group और nursery के लिए सरकारी और प्राइवेट दोनों ही प्रकार के स्कूल हैं, कुछ प्राइवेट स्कूल क्रेच जैसा भी काम करते हैं हांलांकि उनकी फीस ज्यादा होती है और तीन साल से बड़े बच्चों के लिए सरकार ढाई घंटे की शिक्षा का खर्चा सरकार उठाती है. सामान्यतः सभी प्राइवेट स्कूल में पांच-पांच घंटे के दो session होते हैं और एक session कि fees 18 से 30 pound के बीच होती है वो अलग-अलग स्कूल की सुविधाओं पर निभर करता है. यहाँ पर मैं आप को एक बात और बताना चाहूंगी कि यहाँ के प्राइवेट स्कूल में छोटे बच्चों को टेबल मैनर्स से लेकर साधारण चाल चलन तक के सभी तरीके सिखाये जाते हैं. कि कैसे कांटे और छुरी से खाया जाता है कैसे नैपकिन का उपयोग किया जाता है यहाँ तक कि बच्चे का खाना भी स्कूल वाले खुद ही बना कर परोसते हैं.
हाँ यह बात अलग है कि यदि आपके बच्चे को वहां का खाना पीना पसंद न आये तो आप उसको घर से भी टिफिन दे सकते हैं. यह मैं यहाँ इसलिए बता रही हूँ क्यूंकि साधारण तौर पर भारतीय बच्चे को यहाँ का खाना पीना उस दौरान पसंद नहीं आता है और यही नहीं पांच साल तक के सभी बच्चों को 250ML Milk भी मुफ्त दिया जाता है. कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि यहाँ pre-school या यूँ कहिये कि play group दोनों के लिए ही सरकार किसी भी तरह का कोई दवाब नहीं डालती है. यदि आप भेजते हो अपने बच्चे को तो बहुत अच्छी बात है उल्टा सरकार उसके लिए शिक्षा संबंधी खर्चा भी उठाती है. तो यह तो थी प्राइवेट स्कूलों या play -group की बात, अब बात आती है proper स्कूल की, जो कि शुरू होता है reception class से यहाँ KG1 एवं KG2 को एक साथ जोड़ कर, एक ही साल का करके उससे reception का नाम दिया गया है इसके बाद ही शुरू होता है Year 1 जिसको अपने यहाँ यानि भारत में पहली कक्षा बोलते हैं.


स्कूल ( school )
यहाँ पर ज्यादातर सरकारी स्कूल ही हैं और क्यूंकि पढाई का स्तर एक जैसा ही है तो लोग इस Race में नहीं रहते कि उन्हें किसी ख़ास स्कूल में admission करवाना है अपने बच्चे का चाहे वो पंद्रह किलोमीटर दूर ही क्यूँ ना हो हालाकि admission के टाइम पर आप तीन स्कूलों के नाम दे सकते हैं और admission प्रोसेस के दोरान आप के द्वारा चुने गए तीनो स्कूल, बच्चे के माता पिता को स्कूल को देखने के लिए आमंत्रित करते हैं ताकि आप को स्कूल चुनने में आसानी रहे और आप को स्कूल सम्बन्धी जानकारी पूर्ण रूप से प्राप्त हो सके कि कितना बड़ा स्कूल है, कैसा है, कितनी दूर है इत्यादी ...
बाकी तो यहाँ पढाई का स्तर क्या है और कैसा है वह मैं आप को उसका पूर्ण विवरण पहले ही दे चुकी हूँ. इससे आप को समझ में आ ही गया होगा कि क्या फर्क है हमारे यहाँ कि शिक्षा प्रणाली और यहाँ कि शिक्षा प्रणाली में यह सब देख कर ख्याल आता है कि क्यूँ हमारे यहाँ के सरकारी स्कूल यहाँ के जैसे सरकारी स्कूलों की तरह नहीं हो सकते हैं. तो बस दो ही चीज़ें जहन में आती हैं वो यह कि एक तो सबसे बड़ा और एकमात्र  कारण है पैसा, अर्थात हमारे यहाँ के सभी अविभावक अपने बच्चों को केवल प्राइवेट स्कूल में ही भेजना चाहते है क्यूंकि एक तो पडोसी के बच्चे से तुलना और हमारे यहाँ प्राइवेट स्कूल का स्तर इतना उठा दिया गया है कि लोग सरकारी स्कूल को निम्न द्रष्टि से देखने लगे हैं. फिर भले ही प्राइवेट स्कूल की फीस देने में अभिभावकों कि पूरी तनख्वा ही क्यूँ ना चली जाये. वो अपने बच्चे को अच्छे-से-अच्छे नामी गिरामी स्कूल में ही भेजना पसंद करते हैं क्यूंकि सरकारी स्कूल को लेकर भारत में हमारी मानसकिता ही ऐसी बन गयी है कि उसका स्तर अच्छा नहीं होता क्यूंकि वहां के शिक्षकों की आये दिन duty कभी चुनाव में लगती रहती है या फिर किसी न किसी शिविर में लगी होती है ऐसे में उनके पास समय ही कहाँ कि वो अपनी कक्षा के विद्यार्थियों पर ध्यान दे सकें, दूसरा सरकारी स्कूल कि फीस बहुत ही कम होती है इसलिए वहां हर तबके के लोग अपने बच्चे को दाखिला दिला देते हैं जिस के कारण हम जैसे मध्यम वर्गीय परिवार को लगता है कि उन बच्चों के साथ रहने से हमारा बच्चा भी बिगड़ जायेगा या यूँ कहिये कि उनके तौर तरीके सीख जायेगा, जिसको आम तौर पर हम अच्छा नहीं मानते. जबकि यह बात पूर्ण रूप से सच नहीं है ऐसा प्राइवेट स्कूल में भी होता है मगर हमारी मानसिकता ही ऐसी बन गयी है कि मैं खुद अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजना पसंद नहीं करुँगी हालाकि मैंने खुद भी दो साल वहां पढ़ा है और मुझे ऐसा कोई ख़राब अनुभव भी नहीं हुआ. यहाँ पढने वाले सभी बच्चे एक से होते हैं मगर तब भी मुझे नहीं लगता कि मैं खुद कभी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेज पाऊँगी क्यूँकि मानसिकता तो मेरी भी वही है ना. यहाँ मुझे वो कहावत याद आती है जो काफी हद तक सही भी है  कि ''एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती  है''

बस इतना ही कहना चाहूंगी कि आप अपने बच्चों को ज़रूर पढ़ाइये और हो सके तो, किसी एक व्यक्ति को साक्षर बनाने का प्रयत्न  भी ज़रूर कीजिये क्यूंकि साक्षरता ही एक ऐसा हथियार है जो हमारे देश को काफी हद तक गरीबी को कम कर सकता है. यहाँ मुझे एक साक्षरता पर आधारित विज्ञापन याद आरहा है जिसकी पंक्ति कुछ इस तरह थी
पढ़ना लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों 
पढ़ना लिखना सीखो ओ भूख से लड़ने वालों 
क, ख, ग, को पहचानो,  अलिब को पढ़ना सीखो 
अ, आ, इ, ई को हथियार बना कर लड़ना सीखो

Saturday, 16 October 2010

दोस्तों शायद ज़िन्दगी बदल रही है

यूँ तो यह विषय भी अब बहुत पुराना हो चुका है और बहुत से लेखक इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं लेकिन फिर भी में एक बार फिर इस विषय पर अपने विचारों से थोड़ी सी  रौशनी और डालना चाहूंगी. आज कल कि भाग दौड़ वाली ज़िन्दगी में सचमुच ऐसा ही लगता है कि शायद ज़िन्दगी बदल रही है अगर इस बात पर गहनता से सोचो तो लगता है कि सच में हम कल क्या थे और आज क्या हो गये हैं यह वक़्त का तकाजा है या हमारी अपनी करनी, यह कहना तो कठिन है. मगर जरा आप अपनी ज़िन्दगी में पीछे मुड़ कर देखिये तो शायद आप को एहसास होगा कि कल से लेकर आज तक हमारी ज़िन्दगी कितनी बदल गयी है. इस बात को यदि आप लोगों के समक्ष रख कर बात करेंगे तो हर कोई यही कहेगा कि यह वक़्त का तकाजा है वक़्त बदलता है तो हमें भी उसके साथ बदलना ही पड़ता है. वरना वक़्त हमें कहीं का नहीं छोड़ता इस बात पर मुझे एक हिन्दी फिल्म का संवाद याद आ रहा है कि ''वक़्त कभी नहीं बदलता सिर्फ गुज़रता है अगर कुछ बदलता है तो वह है इन्सान'' और यदि इस बात पर गहनता से विचार किया  जाये तो यह बात अपने आप में एक बहुत गहरे अर्थ को छुपाये  हुये है में इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ सच में वक़्त नहीं बदलता, अगर कुछ बदलता है तो वो है इन्सान. आप खुद ही देखलो कि जब हम स्कूल जाया करते थे तब दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी. मुझे आज भी याद है वो मेरे घर से मेरे स्कूल का रास्ता, वहाँ क्या-क्या नहीं था,  चाट की दुकाने, बर्फ के गोले, क्या नहीं था वहाँ. मगर आज देखो तो क्या है वहाँ मोबाइल शॉप, वीडियो पार्लर, साइबर कैफे. फिर भी सब सूना है. शायद दुनिया सिमट रही है. इसी तरह जब हम छोटे थे तो शाम बहुत लम्बी हुआ करती थी हम घंटो स्कूल से आने के बाद भी अपने उन्ही दोस्तों के साथ समय बिताया करते थे, वो बचपन के खेल, वो खेलने जाने का उतवाला पन,  वो शाम होते ही दोस्तों का इंतज़ार, कि कब कोई आकर पुकारे और हम खेलने के लिये दौड़ जाएँ. वो शाम को खेल कर थक कर चूर हो जाना. मगर अब शायद शाम ही नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाया करती है'' शायद वक़्त सिमट रहा है'' .....

जब हम छोटे थे तब शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी, दिन भर दोस्तों के साथ खेलना वो दोस्तों के घर का खाना और घर वापस आकार मम्मी कि डांट खाना. वो लड़कों कि बातें, वो साथ हँसना हँसाना और कभी-कभी साथ में रोना भी, वैसे तो अब भी मेरे कई दोस्त है मगर दोस्ती का तरीका ही बदल गया है. कभी रास्ते में मिल जाते है तो बस hello hi हो जाती है और सब अपने-अपने रास्ते निकल जाते है. होली दीवाली, जन्मदिन या नए साल पर SMS आजाते है शायद रिश्ते बदल रहे है..... यह सारी बातें अपने आप में कितनी सच मालूम होती है आज यही तो है हमारी ज़िन्दगी, जिसमें न हमारे पास अपने खुद के लिये समय है और न ही हमारे अपनों के लिये कोई वक़्त, मगर फिर भी हम यही कहते हैं कि वक़्त बदल गया है. माना कि बचपन गुजर गया है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपने उन दोस्तों को ही भूल जाएँ जिनके साथ हमने कभी दोस्ती की कभी न टूटने वाली कसमे खाई थी. अपना उस वक़्त का हर सुख दुःख बांटा था, उसे ही भूल जाये. आज कहाँ गया वो सब जिसे बस अब हम केवल याद किया करते हैं.

जब हम छोटे थे तब शायद खेल भी अजीब हुआ करते थे जो हकीकत से बहुत अनजान और मासूम हुआ करते थे वो घर-घर खेलना, वो मम्मी पापा बनना, लंगडी  खेलना, वो पोशम्पा भाई पोशम्पा खेलना, वो लुका छुपी.  मगर अब तो इन खेलों का स्थान  भी बदल गया है अब इन खेलों कि जगह इन्टरनेट और विडियो गेम्स ने लेली है. बच्चों की ज़िन्दगी में अब इन खेलों ने जहाँ अपना स्थान बना लिया है, वहीँ हम बड़ों को अपने ऑफिस से फुर्सत ही नहीं मिलती, कि हम अपने ज़माने के इन खेलों के बारे में उनसे बात भी कर सके, खेलना तो दूर की बात है. जब में इन बातों को गहराई से सोचती हूँ तो ना जाने कितने अनगिनत सवाल मेरे मन में उठते है, जिनका जवाब मुझे कभी मिला ही नहीं या यूँ कहना ज्यादा ठीक होगा शायद जवाब मिला तो मगर वो सही है या नहीं. उस का फैसला में आज तक नहीं कर सकी क्यूँ हम लोग आज अपनी ज़िन्दगी में इतना सिकुड़ कर रहे गये हैं ? क्यूँ हर वक़्त हम अपनी personal Life का राग अलापा करते है, कहाँ गयी वो सारी बातें जो हम अपने दोस्तों से घंटों किया करते थे, कहाँ गया वो जज्बा जब कोई अच्छे बुरे, ऊंच नीच, झूठे मीठे  का कोई भेद नहीं होता था हमारे मन में होती थी तो बस दोस्ती कि भावना. तब तो हम सब दोस्तों के हाथों छुड़ा-छुड़ा कर खा लिया करते थे और अब hygiene - hygiene गाया करते है. पहले तो हारे थके खेलने के बाद कहीं भी रोड पर पानी मिल जाये तो पी लिया करते थे और अब mineral water का गाना गाते है. हर कोई अपनी निजी ज़िन्दगी का  गाना गाते हैं, अब हमारी अपनी ज़िन्दगी इतनी सिकुड़ गयी है कि अब उसमें हमारे दोस्तों के लिये जगह नहीं बची है. अब एक छोटे से खेल लूडो को ही ले लीजिये, हमारे ज़माने के खेल अष्ट चंगा पै...कि जगह लूडो ने लेली है सारे वही नियम, बस स्वरुप बदल गया है. ज़रा सोचिये क्या हमने खुद कभी अपने बच्चो को बताया है कि इस खेल का स्वरुप पहले क्या हुआ करता था और आज क्या है. खेल वही है लेकिन स्वरुप और खेलने वाले दोनों ही बदल गये. क्या इसे भी आप वक़्त का तकाजा कहेगे शायद ज़िन्दगी बदल रही है..... आज की ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का लम्हा बहुत छोटा सा है, आने वाले कल की कोई बुनियाद नहीं है आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है और हम ...अपनी इन तमन्नाओं से भरी इस ज़िन्दगी में बस भागे चले जा रहे हैं. जबकि आज हमें खुद क्या चाहिये शायद हम खुद भी नहीं जानते कहते है. एक सफल ज़िन्दगी का अर्थ होता है घर, गाड़ी, नौकर-चाकर और इसे हम खुशहाल ज़िन्दगी का नाम देते है. क्या बस यही है एक सफल ज़िन्दगी की परिभाषा है. क्या हमको इस से ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए  और अगर यही सच है तो फिर हम किस दौड़ में शामिल है और कहाँ भाग रहे है  और क्या है हमारी मंजिल.

क्यूँकि आज के इस आधुनिक युग में घर, गाड़ी और एक सामान्य ज़िन्दगी गुजारने के लायक पैसा तो हर कोई कमा  ही लेता है, किन्तु तब भी आज किसी की ज़िन्दगी में न वक़्त है, न सुख है, न चैन है और ना ही कोई अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट है. आखिर क्यूँ हम ज़िन्दगी जी रहे हैं क्या सच में हम ज़िन्दगी जी रहे हैं ? या काट रहे हैं? यहाँ मुझे वो बात याद आती है जो कि शायद ज़िन्दगी का सब से बड़ा सच है जो कि अकसर कब्रिस्तान के बाहर लिखा होता है ''कि मंजिल तो यही थी मगर ज़िन्दगी गुज़र गयी मेरे यहाँ आते-आते''.

अंत में बस इस विषय में आप सभी से केवल इतना ही कहना चाहूगी की दोस्तों ज़िन्दगी शायद नहीं, यक़ीनन बदल गयी है इस लिये मेरा आप सब भी से अनुरोध है कि जिंदगी को जियो, काटो नहीं....और अपने आने वाली नई पीढ़ी को भी जीवन जीना सीखाईये, काटना नहीं. क्यूंकि जीना इसका नाम है यहाँ मुझे एक पुरानी हिन्दी फिल्म के एक गीत कि कुछ पंक्तियाँ याद आरही है कि ''किसी कि मुस्कुराहटों पे हो फ़िदा, किसी का दर्द मिल सके तो ले उठा ,किसी  के  वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है '' जय हिंद ....

Saturday, 9 October 2010

Common Wealth Games (CWG) and Media

News channels और आप या हम वैसे देखा जाये तो यह विषय बहुत पुराना हो चुका है हजारों लाखों लोग इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं और मैं अपने विचार व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ वैसे इस बारे में  मेरा अपना कोई निजी अनुभव नहीं है किन्तु फिर भी मुझे लगा कि शायद में इस विषय पर लिख सकती हूँ इस सिलसिले में आप को यहाँ बताना चाहूंगी कि इस विषय पर आधारित फिल्म (रण) मुझे बेहद पसंद आयी थी उस में जो भी कुछ दिखाने कि कोशिश की गयी थी उस से मैं काफी हद तक सहमत हूँ, मगर इस सब के बावजूद में यह मानती हूँ कि मीडिया ही एक ऐसा जरिया है आज कल जो हमारे देश को और अन्य देशों कि नज़रों में बहुत बढ़ा भी सकता है और बहुत हद तक गिरा भी सकता है. या यूँ कहा जाये की मीडिया देश का आईना है तो गलत नहीं होगा.

मगर में यहाँ थोड़ी रोशिनी डालना चाहूंगी आज कल चल रहे ताज़ा topic CWG के उपर,  आज कल हर  न्यूज़ चैनल लगा है इसी विषय को लेकर अपनी-अपनी राय देने और अपने-अपने news channel के जरिये एक ही बात को  घुमा फिराकर एक अलग ढंग से पेश करने.  मगर मेरा प्रश्न यह है कि किसी भी news channel का असली काम क्या है मेरे हिसाब से इस बात का उतर यह होना चाहिये कि हम तक किसी भी समाचार को सही ढंग से पहुँचाना  अर्थात न कि उसको बढ़ा चढ़ा कर एक मसालेदार समाचार बना कर पेश करना. जैसा कि आज कल CWG के विषय को लेकर हो रहा है और उस बारे में जान कर सुन कर पढ़ कर मुझे बेहद अफसोस के साथ कहना पढ़ रहा है कि हमारे यहाँ के सभी न्यूज़ चैनल बर्बाद हैं. यहाँ में किसी तरह कि कोई तुलना नहीं कर रही हूँ कि यहाँ के अच्छे है या वहां के ख़राब मगर इतना तब भी यह ज़रूर कहूँगी कि हमारे यहाँ के सभी न्यूज़ चैनल बर्बाद है.
जो खुद अपने ही हाथों से अपने देश कि इज्जत डुबोने में लगे हुये हैं. मैं यह नहीं कहती कि वो सिर्फ हमेशा दूसरे देशों की ख़बरों को ही उजागर करे और अपने देशों कि ख़बरों को नहीं मगर मेरा मानना यह है कि न्यूज़ चैनल आज के दौर में हर एक देश के आईने कि तरह काम करते हैं  और उस आईने में वो खुद के देश की छवि को ही ख़राब ढंग से दिखाना शुरू कर देंगे तो अन्य देश के लोगों को तो खुलेआम ऊँगली उठाने का परिहास करने का मौका मिलेगा ही ना.

माना कि सभी समाचार पत्रों का और news channels का काम ही यही है कि समाचार चाहे जहाँ का भी उस के अंतर्गत सच पूर्ण रूप से सामने लाने का प्रयास होना चाहीये. वह भी बिना किसी भेद भाव के, मगर ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है आज कल यहाँ (UK) के अख़बारों में CWG से जुडी सभी खबरे नकारात्मक रूप से छापी जा रही है जिसके कारण हमारे देश कि बहुत छवि ख़राब हो रही है और इस वजह से जो लोग CWG  खेलों के प्रति उत्सुकता या जोश रखते भी हैं उस विषय में जानने  के लिये ,पढने के लिये, उनका उत्साह भी कम हो जाता है. ऐसे में ख्याल आता है एक यही मीडिया ही है जो हमारे देश की नाक बचा सकता है और यहाँ के लोगों में जो उत्साह football world cup के दौरान हुआ करता है उस जोश को जगा सकता है. मगर हो उलटता ही रहा है यही मीडिया आज हमारे देश कि इज्जत बचाने के बदले खुद अपने हाथों हमारे देश कि इज्जत लुटाने  में लगा है वहां की अव्यवस्था  को लेकर यहाँ के अख़बारों में रोज़ ही फोटो समेत आलोचनाएँ छप रही हैं जिसके चलते आम लोगों के नज़रों में  भारत की छवि बहुत बिगड़ रही है जो कि हम भारतीय लोग के लिये बहुत ही शर्मनाक बात है

मेरा ऐसा मानना है कि यहाँ हमारे यहाँ के सभी news channels को मुख्य भूमिका निभाते हुए CWG खेलों के प्रति लोगों को वहां कि अव्यवस्था के साथ जो भी अच्छे इंतजाम हैं, उन पहलूओं को भी उजागर करना चाहिये जिससे की  लोगों को वहां के नकारात्मक बिन्दुओ के अलावा वहां होने वाले कुछ सकारात्मक बिंदु भी दिखाई दें सकें जैसे इतने सालों बाद हमारे देश में इतने बड़े स्तर पर CWG खेलों का होना ही अपने आप में एक बहुत बड़ी एवं महत्वपूर्ण बात है और उससे जुडी कुछ अच्छी तस्वीरें जैसे stadiums का फोटो या और उस से जुडी अन्य और  तस्वीरें ताकि विदेशी खेल प्रेमियौं  का इस हद तक उत्साहवर्धन हो सके कि वो इन खेलों को देखने भारत जाने के लिये आतुर हो जाएँ. वैसे  मै यहाँ यह भी कहना चाहूगी कि जैसा यहाँ football world cup के दौरान हुआ था कि जब तक विश्व कप शुरू नहीं हुआ था उसके पहले वहां के अर्थार्थ Africa के stadium के बारे में मीडिया ने कहीं कोई किसी तरह कि जानकारी नहीं दी थी कि वहाँ किस तरह कि तैयारियों हो रही हैं या बाकि है या चल रही हैं. सीधा खेल का प्रसारण ही किया गया था या जब कभी इस विषय में कोई समाचार पढने या सुने को मिलता भी था. तो वो पूरी तरह से अच्छा हुआ करता था न कि हमारे यहाँ कि तरह सिर्फ बुराईयाँ ही दिखाई जाती थी जैसे आज कल दिखाई जा रही हैं और छापी जा रही हैं कहने का मतलब यह कि जब उन लोगो ने पहले से नहीं गाया तो हमारे यहाँ वाले क्यूँ खुद गागा कर सबको अपनी कमज़ोरियाँ खुद ही बता रहे हैं और अगर मामला प्रचार का है तो अच्छी बातों के ज़रिये भी तो प्रचार किया जा सकता है फिर क्यूँ यह सभी news  chennels  अपने देश की बदनामी आप करने में लगे हुए हैं.

लेकिन CWG के भव्य उदघाटन ने होने वाली सभी आलोचनाओ को ग़लत साबित कर दिया और यह सभी News channels ने भी उसे बहुत सराहा कि जितनी वहाँ की बद इन्तजामी को लेकर पहले बुराईयाँ की गयी थी वो सभी लगभग निर्थक साबित हुई और यहाँ के लोगों ने भी उसे बहुत सराहा और पसंद किया. लोगों को जानने का मौका मिला कि जो तस्वीर उनके सामने पहले पेश की गयी थी वो पूर्ण रूप से सही नहीं थी. जैसा मैंने पहले कहा कि उस छवि को बदलने में भी मीडिया का ही हाथ है.
लेकिन सवाल है यही चीज़ पहले भी दिखाना चाहिये था कि ज्यादातर इंतज़ाम बहुत अच्छे हैं और कुछ इंतज़ाम में ये कमियाँ हैं. लेकिन मीडिया का सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ TRP पर है और कोई भी छोटी सी छोटी खबर को मसालेदार बना कर पेश करना ही मुख्य उद्देश्य बन गया है. जबकि उनको ये भी समझने कि जरूरत है उनकी किस खबर से क्या असर होगा.

अंत इतना ही कहना चाहूंगी इन सभी मीडिया वालों से सही ख़बरों के दोनों पहलूओं को पूर्ण रूप से जनता के सामने प्रसारित करें ताकि आम जनता के मन में उस समाचार के प्रति सिर्फ एक ही सोच न बने बल्कि वो उन दोनों पहलूओं पर विचार करके अपना मत रख सकें और जान सकें कि क्या सही है और क्या ग़लत या फिर ऐसा कहना ज्यादा ठीक होगा कि क्या सच है और क्या झूठ.... जय हिंद






Friday, 1 October 2010

Festivals (त्योहार)

त्योहार जो अपने आप में ही एक ऐसा अर्थ छुपाये होते है जिसका मतलब होता है ख़ुशी, क्यूंकि त्योहार का मकसद ही तभी पूरा होता है जब आप के दिल में ख़ुशी हो, उत्साह हो, फिर चाहे उस दिन या उस वक़्त कोई त्योहार हो या ना हो. मगर जब आप किसी भी कारण से बहुत खुश होते हो, तो आप को अपने आप में ही इतना अच्छा लगता है कि आप उस दिन को खुद-ब-खुद त्योहार के जैसा महसूस करने लगते हो...ये तो रही मेरे हिसाब से त्यौहार की परिभाषा  और यदि मैं बात करूँ साधारण शब्दों में त्योहार के मतलब की, तो वो तो आप सब जानते ही हैं कि हर  एक प्रांत में अलग-अलग धर्म  में अपने-अपने धर्म और सभ्यता के हिसाब से त्योहार मनाये जाते हैं जैसे हिन्दू दीपावली, दशहरा, होली, राखी  इत्यादि, मुसलमानों में रमजान, ईद, मुहर्रम इत्यादि, वैसे ही सिखों में गुरुनानक जयंती, लोहड़ी, बैसाखी इत्यादि और इसाईयौं में क्रिसमस, ईस्टर , गुड फ्रायडे इत्यादि.

 यहाँ(UK) आने से पहले मुझे नहीं पता था कि इसाईयौं का एक त्योहार और भी होता है, वो है Halloween जिसके अंतरगत यह लोग कद्दू(Pumpkin) को मुखोटे के रूप में काट कर उसके अन्दर बल्ब लगा कर डरावना बनाते है और भी अलग-अलग ढंग से डरावनी वेश भूषा में घूमते फिरते हैं. वैसे अगर में बात करूँ त्योहार मनाने के अलग-अलग ढंग को लेकर तो यहाँ का मुख्य आकर्षण है शोपिंग.त्योहार चाहे जो भी हो ये लोग खरीदारी बहुत करते हैं,

यहाँ तक की Haloween जैसे त्योहार पर भी बाज़ार तरह-तरह की डरावनी वेशभूषा  से भरा होता है वैसे ही कपडे, उसी रूप में साज सज्जा का सामान और खाने पीने की भी अधिकतम सामग्री भूत प्रेत से प्रेरित होकर बनाई जाती है जैसे :- ग्लास रखने का स्टैंड कंकाल के हाथ के रूप में होगा.... रबर के कटे हुए हाथ पैर तरह-तरह की डरावनी आवाज़ वाले म्यूजिक सिस्टम इत्यादि....ठीक वैसे ही ईस्टर पर हर चीज़ अंडे के रूप में बिकती है खास कर Choclates और खरगोश के रूप में भी. छोटी-छोटी Choclates अंडे के रूप की जो बाहर से देखने में भी अंडे जैसी और अंदर से भी उनमे क्रीम भरा होता है.  कच्चे अंडे के समान और इतनी मीठी की मिठास की भी हद हो जाये. Halloween और Easter वाले दिन सभी बच्चों को स्कूल में भी रंग बिरंगे कपड़ों में बुलाया जाता है जैसे  halloween वाले दिन भूत बनकर या कोई भी डरावना पात्र बनकर जाना होता है जिसको बच्चे बहुत Enjoy  करते हैं और Easter पर खरगोश बनकर उस दिन भी बच्चों को बड़ा मज़ा आता है. इन दो त्योहारों पर विशेष कर स्कूल में Fancy Dress प्रतियोगिता भी रखी जाती है.

मगर इस सब के बावजूद भी मैं यहाँ इतना ज़रूर कहना चाहूंगी कि त्योहार का जो मज़ा हमारे भारत में आता है वो कही और नहीं, उसका एकमात्र कारण यह है की यहाँ सामाजिक जीवन(Social life ) सिर्फ Bar  और Parties तक ही सीमित है. त्यौहार चाहे जो भी हो ना कोई किसी के घर आता है, ना जाता है और हमारे यहाँ कितना भी छोटा से छोटा त्यौहार क्यूँ ना हो, चार पांच दिन पहले से ही उस त्यौहार से समन्धित चहल-पहल दिखाई देना शुरू हो जाती है. भारत में त्यौहार कोई भी हो कैसे मनाया जाता है यह तो आप सब को पहले ही पता है इसलिए मैं उस विषये मैं कुछ नहीं कहूगी मैं बात करुँगी यहाँ सिर्फ और सिर्फ क्रिसमस कि हमारे यहाँ मनाया जाने वाला क्रिसमस और यहाँ मनाया जाने वाला क्रिसमस.

हर एक धर्म वाला पूरी दुनिया में कहीं भी हो, वो अपना त्योहार मनाता ही है..... मगर यहाँ(UK)  त्योहार मानने का तरीका बहुत अलग है , यहाँ तो त्यौहार कोई सा भी हो हिन्दुस्तानियौं का या अग्रेजों का, पता ही नहीं चलता है कि कब आया और कब चला गया, बस कुछ दिन बाज़ारों में रोनक  दिखती है फिर सब गायब हो जाता है. हमारे यहाँ भी काफी हद तक ऐसा ही होता है किन्तु हमारे यहाँ धार्मिक प्रवर्ती शायद कुछ ज्यादा ही है जिसके कारण घरों में भी उस त्योहार से सम्बंधित तैयारियां शरू हो जाती है जिनके कारण गली मौहल्ले में भी उस त्यौहार का आभास होने लगता है जैसे होली के लिए रंग एवं पिचकारियाँ  तो बाज़ार में कुछ दिन पहले ही आना शुरू होते हें मगर घरों में तरह तरह के पकवान बनना शुरु हो जाते हैं जैसे गुजिया, पपडिया, मिठाईयाँ. . मगर यहाँ इन के यहाँ ऐसा नहीं होता यहाँ बस बाज़ारों में ही आप को पता चलता है कि कौन सा त्योहार आने वाला है घरों में उस त्योहार से सम्बंधित कोई तैयारी देखने को नहीं मिलती.  उसका भी एक और महत्वपूर्ण कारण है छोटे बाज़ार जो यहाँ नहीं होते या यूँ कहना ज्यादा ठीक होगा कि बहुत कम होते हें ज्यादातर बड़ी दुकाने या shoping mall ही होते हें इस वजह से भी यहाँ त्योहार का वो महौल नहीं बन पाता जो अपने भारत में बहुत आसानी से बन जाता है. अब बात आती है भारत में मनाये जाने वाले क्रिसमस कि वहां भी क्रिसमस के दिन लोग घरों में केक बनाते है, दिवाली के दिन की तरह नई चीज़े खरीदते है. मगर मुझे जो फर्क महसूस हुआ वो यह कि वहां सभी लोग चाहे वो खुद christian  हो या न हो, क्रिसमस के दिन अपने सभी christian दोस्तों से मिलने जाया करते हैं और सभी एक साथ मिलकर मानते है, ऐसा कम ही देखने को मिलता है वह लोग केवल अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर मना रहे हो और इतना ही नहीं वह लोग अगले दिन अपने आस पड़ोस में केक प्रसाद के रूप में देकर भी अपने त्यौहार कि खुशियौं को सब के साथ बाँट कर मनाया करते है. मगर यहाँ ऐसा नहीं होता  और तो और यहाँ क्रिसमस तक का पता नहीं चलता बाज़ार ज़रूर भरे होते है, तरह-तरह की खाने पीने की सामग्री से, कपड़ों से, Gift items से, मगर क्रिसमस वाले दिन मौहल्ले तक की सड़कें खाली सुनसान और वीरान दिखाई पड़ती हैं. एक परिंदा भी दिखाई  नहीं देता.

और जैसा कि मैंने आप को पहले कहा  है कि मैं बात करुँगी यहाँ सिर्फ क्रिसमस कि क्यूंकि इन के यहाँ सामूहिक परिवार का चलन ना होने के कारण यह लोग क्रिसमस पर सामूहिक/पारिवारिक dinner  करना ही त्योहार मानने जैसा मानते हें. सुबह सब चर्च चले जाते है और शाम को अपने दोस्तों और परिवार के साथ,  केक काटते हैं. वह क्रिसमस केक ही इनके यहाँ की मुख्य  मिठाई या यूँ कहीं कि भोग की तरह होता है उसके बिना क्रिसमस मनाना जैसे हमारे यहाँ बिना भोग के पूजा करने जैसा है इस के अलावा दो और महत्वपूर्ण चीज़ें और भी हैं जिनके बिना क्रिसमस अधूरा सा माना जाता है यहाँ और वह है पीने में Wine और खाने में टर्की (Turkey) अवश्य होना चाहिये. क्रिसमस वाले दिन लगभग सभी घरों में यह तीन चीज़े मुख्य रूप से होती हैं और टर्की का होना तो इतना अनिवार्य है कि उससे यह पता लगता है कि कौन कितना अमीर है. जिसके घर में जितने बड़ा (ज्यादा किलो) का टर्की बनेगा वह परिवार उतना ही ज्यादा समृद्ध होगा. 
उन दिनों यहाँ बाज़ारों में टर्की इतना ज्यादा बिकता है, कि कई बार तो उसकी कमी हो जाती है.  यह लोग अपने लोगों के आलावा और दूसरे घर्म के लोगों से मिलने जुलने में भी ज्यादा विश्वास नहीं रखते, ना ही ज्यादा मिलना जुलना पसंद करते हैं. अपने यहाँ जैसा नहीं कि जो मिला आपने उसको शुभकामनाएं देकर wish कर दिया, बिना ये सोचे समझे कि वो हिन्दू है या मुसलमान या फिर कोई और धर्म को मानने वाला. जैसे अपने यहाँ जब ईद होती है तो हर कोई एक दुसरे को ईद मुबारक बोलता है चाहे फिर वो कोई भी संप्रदाय का ही क्यूँ  ना हो, मगर इनके  यहाँ ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है यह लोग बस अपनी Comunnity में ही रहना ज्यादा पसंद करते हैं.

अगले दिन पूरा बाज़ार ऐसा बंद होता है मानो करफ्यू लगा हो यहाँ में एक बात और बताना चाहूंगी कि हमारे यहाँ भी दिवाली के बाद ऐसा ही होता है, यदि आप दिवाली के अगले दिन बाज़ार जाओ तो आप को वहां भी सब बंद ही मिलगा. किन्तु फिर भी लोगों की बहुत चहल पहले दिखाई पड़ती है मगर यहाँ तो करफ्यू सा जान पड़ता है. सब मिलाकार  बस यह कहा जा सकता है कि यहाँ त्यौहार मानाने का मुख्य आकर्षण या यूँ कहो की तरीका बस एकमात्र shopping ही है, हर एक त्यौहार पर बस खरीद  फ़रोख्त करके ही  यह लोग यह मान लेते हैं कि उन्होंने त्यौहार मना लिया. खास कर क्रिसमस के बाद जो boxing day के नाम से प्रचलित दिन है यहाँ उस दिन बाज़ार के सभी दुकानों में Sale लगती है और हर एक तरह का सामान मिलता है जिसके लिए लोग रात-रात भर कतार में खड़े रह कर खरीदा फरोखी करते है क्यूँ उन दिन यहाँ भी हमारे यहाँ कि तरह हर चीज़ पर खूब छूट (sale )चलती है मगर तभी यह लोग बाहर मस्ती नहीं कर पाते हमारे इंडिया कि तरह इनका यह त्योहार आता ही भरपूर सार्दियौं  में हैं और यहाँ तो क्या दुनिया में अधिकतर जगहों पर इस मौसम  में बर्फ गिरा करती है तो कोई भला चाहे भी तो कैसे मज़े करे बाहर... मगर इनके यहाँ तो त्यौहार में भी दस तरह के Restrictions हैं बोले तो पाबंदियां, अब चाहे वो क्रिसमस हो या दीवाली आप को यदि फटाके चलाने है तो उसका एक निश्चित समय,एक निश्चित स्थान  होगा और एक निश्चित समय भी तय होगा आप को उस स्थान पर जाकर ही फटाके चलाने होंगे और जो समय तय है, उस समय तक ही आप फटाके फोड़ सकते हो उसे ज्यादा नहीं क्यूँ.... ताकि दूसरों को आपके फटाकों की आवाज़ से disturb (परेशानी) ना हो...यह बात अपनी जगह एक हद तक सही भी है मगर मेरे हिसाब से यह हर एक व्यक्ति की अपनी-अपनी सोच पर निर्भर करता है कि किसको क्या पसंद आता है जैसे अगर मैं अपनी ही बात करूँ तो मुझे यह पाबंदियां ज़रा भी पसंद नहीं क्यूंकि त्यौहार साल में एक ही बार आता है खैर यह मेरा नजरिया है.

 बाज़ार के आधार पर में कहूँ तो दीवाली पर बस यहाँ के  बाज़ारों में एक मात्र चीज़ फटके ही हैं जो देखने को मिलते हैं जिससे लगता है कि हाँ दिवाली आने वाली है वरना उसका भी पता ही ना चले की कब आई और कब चली गयी, मगर कम से कम यहाँ दिवाली पर फटाके तो मिल जाते है वही बहुत है.  इसलिए ऐसे में नॉन कम्युनिटी के लोगों के त्योहार का ख्याल रखते हुए उन्हें यह महसूस न होने देना कि वो अपने वतन से दूर है अपने आप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है

इस मामले में मुझे अपना भारत मस्त लगता है चाहे जो करो जितना मर्ज़ी हो करो कोई रोकने टोकने वाला नहीं भरपूर मज़ा  लो अपने त्योहार का बिना किसी के डर के जैसे चाहो वेसे मनाओ जितना मन करे जितनी देर तक मन करे फटके फोड़ो मस्ती करो और सही मायने में तो त्यौहार का मज़ा ही तभी आता है. एक वही तो दिन होता है खुल के जीने का जिसमें लोग अपने निजी जीवन की सारी परिशानियौं को भूल कर जीवन का आनंद उठाते हैं और उसमें यदि कोई किसी प्रकार की पाबंदी लगा दे तो त्यौहार का सारा मज़ा ही किरकिरा हो जाये,  इसलिए'' EAST AUR WEST INDIA IS THE BEST ''. भारत से बाहर आने के बाद पता लगा कि हमें भारत में कितनी आजादी दे रखी है.  खैर मैंने तो बस इस लेख  के माध्यम से दोनों जगहों में मनाये जाने वाले त्योहारों के तरीके में जो अंतर है उससे बताने के कोशिश की है.........

मैं यहाँ इस विषय पर इतना ही कहना चाहूंगी कि त्यौहार चाहे किसी भी मज़हब का क्यूँ ना हो ख़ुशी ही देता है और जीवन कि कठिनाइयों  से उबर कर एक नया जीवन जीने का उत्साह भी जगाता है, नया जीवन अर्थात पुरानी परेशानियों को भूल कर, पुराने दुखों को भूल कर, एक नई शुरुआत करने का अवसर भरपूर उमंग के साथ जीवन को नए सिरे से शुरू करने की प्रेरणा देता है. कोई भी त्यौहार आने वाली नई पीढ़ी को संस्कार सीखाता है, इसलिए मैं यह मानती हूँ कि धर्म चाहे जो भी हो अच्छी ही बातें सिखाता है ,और त्योहार चाहे कोई भी हो खुशियाँ ही लाता है इसलिए हर त्यौहार को पूरी उमंग के साथ मनाईये  और उसका भरपूर आनंद उठाइए और आपसी  मतभेदों को भूल कर खूब हँसीये हंसाइये और  जीवन का मज़ा लीजिये फिर चाहे वो दिवाली के पटाखे हों या ईद कि सिवैयां या फिर बैसाखी कि मस्ती हो या क्रिसमस का केक खूब खाईये और खूब खुशीयाँ मानिए  फिर देखिये आप का जीवन भी कैसे खुशियौं से भर जाता है ....क्यूंकि ''राम रहीम एक हैं एक हैं काशी काबा'' .....जय हिंद