वैसे मेरे पास इस विषय में लिखने को ज्यादा कुछ है नहीं क्यूँकि जो कुछ भी है वो सभी मीडिया ने पहले ही गा रखा है। वैसे भी देखा जाये तो जब कभी कोई मुद्दा अपने पूरे जोर पर हो तो उस पर लिखने का कोई मतलब नहीं निकलता मुझे तो ऐसा लगता है, जो सब कह रहे हैं, वो ही मैं भी बोल रही हूँ। उस में क्या नया है। बात तो तब बनती है, जब आप उस विषय पर कुछ लीग से हट कर कहो या लिखो। मगर आज कल लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के इतने सारे साधन हो गये हैं कि जब तक आप कुछ अलग सोचो तब तक तो वो बात किसी न किसी और माध्यम से लोगों तक पहुँच ही चुकी होती है और उसका सब से बड़ा और प्रभावशाली माध्यम है मीडिया और उस में भी खासकर सारे news chennel जो राई का पहाड़ बनाने में उस्ताद होते हैं।
खैर अब तो यह एक ऐसा विषय बन गया है कि अब इस पर पढ़ना शायद आप लोगों भी अच्छा ना लगे, क्योंकि श्री अन्ना हज़ारे जी के अनशन के चलते इस विषय पर बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा और बहुत कुछ लिखा। यहाँ तक कि लोगों ने इस विषय पर हजारों की तादाद में देश भक्ति के गीत और कवितायें तक लिख डाली, कुछ दिनों पहले तक यह विषय बहुत ही गरमाया हुआ था। मीडिया ने भी इस विषय को खूब भुनाया और इस आंदोलन को हवा दी सच्चाई की एक ऐसी आँधी चली कि लोगों ने गाँधी जी को याद करने के साथ-साथ उनके दिखाये हुए मार्ग पर चलना भी पसंद किया। “बहुत अच्छी बात है” मुझे भी इस बात की बहुत ही ख़ुशी है, कि हमारे देश में इतने सालों बाद ही सही कुछ तो अच्छा हुआ, कुछ तो लोगों को समझ में आया कि किस तरह से लूटा जा रहा है अपने ही देश को देशवासीयों के द्वारा। मगर मेरा सवाल है, उन सभी देशवासियों से जो अपने आपको सच्चा हिंदुस्तानी मानते है और अन्ना जी के साथ रह कर देश के लिए कुछ करना चाहते है। मगर मैं उन सभी से एक सवाल करना चाहती हूँ कि किसी के ऊपर भी उँगली उठाने से पहले लोग यह क्यूँ भूल जाते हैं खुद उन की तरफ भी उन्ही की तीन उँगलियाँ उठती हैं। आज हर कोई कहता नज़र आता है कि भ्रष्टाचार हटाओ तो क्या उसने खुद कभी इस बात पर अमल किया है। वह स्वयं खुद कितना बड़ा भ्रष्ट है।
कोई बता दे जरा मुझे कि आखिर यह भ्रष्टाचार आया कहाँ से, जिसे देश के ठेकेदार बने यह नए लोग जड़ से मिटा देने का दावा कर रहे हैं, पहले बच्चे को झूठ बोलना खुद ही सिखाते हैं कि बेटा फलाने अंकल आये और यदि हमारा पूँछें तो कह देना की हम घर में नहीं है और फिर जब वही बच्चा आगे जाकर उन से खुद अपने मतलब के लिए झूठ बोलता है, तो उस पर ग़ुस्सा दिखाते हुए कहते हैं कि हम से झूठ बोलता है, यही सिखाया है हमने तुझे कि अपने ही लोगों से तू झूठ बोले.. वगैरा-वगैरा।
बच्चे के स्कूल में उसके दाख़िले का मसला हो, या मंदिर में लाइन में ना खड़ा होना पड़े इसलिए VIP द्वार से अंदर जाने का या फिर हेलमेट ना पहने का मामला हो, पहले नियम हम खुद जानबूझ कर भंग करते हैं और फिर जब उसका हरजाना देने की बात आती है सजा के रूप में या जो धन राशि तय होती है उस से बचने के लिए हम खुद ही यातायात पुलिस के कर्मचारी को घूस खिलाते हैं और उन लोगों को ज्यादा पैसे देकर हम खुद ही सब से पहले भ्रष्टाचार की शुरुवात करते हैं और दोष देते हैं देश के नेताओं को, जबकि उन से पहले तो हम खुद ही भ्रष्ट हैं। इस का मतलब यह नहीं है कि मैं देश के नेताओं को भ्रष्ट नहीं मानती, मानती हूँ। मगर उनसे कहीं ज्यादा मैं उन लोगों को भ्रष्ट मानती हूँ जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और अपना उल्लू सीधा करने के लिए खुद ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और सारा इल्ज़ाम बड़ी आसानी से मढ़ दिया जाता है, देश के नेताओं के ऊपर। यह कहाँ का इंसाफ़ है भाई, सिर्फ यही नहीं और भी ऐसे कई सारे मसले हैं जिसमें हो रहे भ्रष्टाचार के ज़िम्मेदार हम खुद ही हैं। मगर ज़िम्मेदार ठहराते हैं देश के नेताओं को, क्यूँ ?
खास कर कोई सरकारी मामला हो तब तो देखने लायक रहता है लोगों का रवैया, उस वक्त हर कोई यही कहता नज़र आता है कि ऊपर से नीचे तक सभी भ्रष्ट हैं पैसा फेकों तमाशा देखो, मगर उस वक्त कोई यह नहीं कहता उस कर्मचारी के ऐसे रवैये के पीछे भी हम ही हैं। आखिर एक ही दिन में तो वो ऐसा नहीं बन गया ना, अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हम में से ही कुछ लोगों ने उसे घूस खिलाई और आज जब वो हर दूसरे आदमी से वही उम्मीद रखता है तो वो भ्रष्ट हो गया वाह यह भी कोई बात हुई।
मैं बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ आप सभी को यह आलेख पढ़ कर शायद यही लग रहा होगा कि मैं नेताओं की तरफ हूँ, एक आम आदमी की तरफ नहीं और देश से बाहर रह कर मेरे लिए भ्रष्टाचार पर लिखना या कुछ भी कहना बहुत आसान है। मगर मैं आप सभी को बता दूँ जो भी ऐसा सोच रहे हैं खास कर उनको कि ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं भी भारतीय जनता का एक हिस्सा हूँ और मैं भी अपने देश से इस भ्रष्टाचार रूपी दानव का नाम मिटा हुआ देखना चाहती हूँ, मगर खुद भ्रष्ट होकर नहीं।
मैं जानती हूँ कि यहाँ जब कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है तो पैसे वाले लोग हमेशा उसकी आवाज को दबा दिया करते हैं। यह बात हमेशा अलग-अलग ढंग से हमारी हिन्दी फिल्मों के माध्यम से कई बार दिखाई जा चुकी है। वास्तविकता भी यही है मगर यदि इस सब को हम यूँ हीं भाग्य का लिखा समझ कर या राजनेताओं के डर से अपनाते रहेंगे तो मिट चुका हमारे देश से भ्रष्टाचार, सिर्फ देश भक्ति की कवितायें लिखने से, या गीत लिखने से, या इस विषय पर लेख लिखने से, कुछ नहीं हो सकता। जरूरत है लोगों में जागरूकता जगाने की, लेकिन सब के लिए यह संभव नहीं जो भारतीय लोग बाहर रहकर श्री अन्ना जी का समर्थन करना चाहते हैं उन के लिए तो एक मात्र यही मार्ग बचता है कि वो अपने विचारों को लेखन के माध्यम से लोगों तक पहुंचायें क्यूंकि लेखन ही एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिये लोगों में क्रांति लाई जा सकती है। मुझे गर्व है कि मैं ब्लॉग जगत की एक सदस्य हूँ। जहां लोग अपने विचारों को लेखन के माध्यम से जन-जन तक पहुँचा रहे हैं। जो कि लोगों में जागरूकता लाने का एक बहुत ही अच्छा प्रयास है। श्री अन्ना हज़ारे जी ने भी लोगों में जागरूकता लाने का जो महत्वपूर्ण प्रयास किया है वह वास्तव में सराहनीय सेवा है। इस नाते मैं उनके साथ हूँ। यहाँ मुझे एक और मशहूर लेखक दुषयंत कुमार जी की कुछ और पंक्तियाँ भी याद आ रही है।
"सिर्फ हँगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं है,
सारी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए
,
मेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही
,
हो कहीं भी यह आग, मगर आग जलनी चाहिए"
जय हिन्द ....
सच कह रही हूँ भ्रष्टाचार के लिए हम सब जिम्मेदार हैं.ये बात और है कि आम जनता मजबूरी वश भी भ्रष्ट होती है.क्योंकि बिना भ्रष्ट हुए कोई काम ही नहीं होता.न नौकरी मिलती है न बच्चे को एडमिशन..
ReplyDeleteभ्रष्टन के सब हैं और भ्रष्ट हमारे, एक ही थाली के चट्टे बट्टे सारे...
ReplyDeleteआम आदमी तो नीचे स्तर के भ्रष्टाचार से ही तो दुखी है..
ReplyDeletebhrstachar ko hum khuda badava dete hai jab koi kaam nahi banata to hum risavat dete hai agar ye dena banad kar de to kuch kaam ho sakta hai .
ReplyDeletebhrastachar...:) ye to jab nahi achar sanhita banegi to usme ye likha jayega ki itna bhrastachar manya hai:):)
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है. सरकार भली है क्या, हमीं तो सरकार हैं जिन्होंने सरकार चुनी है. आपके विचारों से सहमत.
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा आपने पल्लवी जी - बहुत हद तक आपसे सहमत हूँ। कभी मैंने भी एक शेर कहा था कि-
ReplyDeleteबुराई कितनी सुमन में कभी ना गौर किया
उँगलियाँ उठतीं हैं दूजे पे निशाना क्यूँ है
और लगभग इसी भाव के एक आलेख भी हैं मेरे - लिन्क यहाँ है -
http://meraayeena.blogspot.com/2011/06/blog-post_3581.html
हाँ एक आग्रह - जगह जगह वर्तनियों को एक बार फिर से देख लें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
बहुत-बहुत धन्यवाद श्यामल जी,
ReplyDeleteज्वलन्त मुद्दे पर आपका बहुत सुन्दर लेख |
ReplyDeleteसुन्दर सारगर्भित लेख है आपका.
ReplyDeleteकाश! भ्रष्टाचार समाप्त होकर सदाचार सर्वत्र होता.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
श्री अन्ना हज़ारे जी ने भी लोगों में जागरूकता लाने का जो महत्वपूर्ण प्रयास किया है वह वास्तव में सराहनीय सेवा है।...वाकई..एक जागरुकता की जरुरत है...बस!!
ReplyDeleteकमलेश खान, राकेशकुमार एवं उड़न तश्तरी उर्फ़्फ़ समीर जी उर्फ़्फ़ चचा, आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया... क्रप्या यूँ हीं समपर्क बनाये रखें आभार...
ReplyDeletesateek baat kahi hai aapne .
ReplyDeletePALLAVI JI-I HAVE GIVEN YOUR BLOG'S INTRODUCTION ON ''YE BLOG ACHCHHA LAGA ''.PLEASE COME ON GIVEN LINK AND SHARE YOUR VIEWS&FEELINGS WITH US .HAVE A NICE DAY .
YE BLOG ACHCHHA LAGA
भ्रष्टाचार का सीधा मतलब होता है भ्रष्ट आचरण . यह केवल शुद्ध आचरण से ही दूर हो सकता है. इसके लिए व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तर पर मानव समाज में आचरण की शुद्धता लाने की ज़रूरत है. इस नज़रिए से आपका यह आलेख वाकई विचारणीय है. यह अच्छी बात है कि सात समन्दर पार भी अपने वतन की हर घटना पर आपकी नजर है. अपनी माटी से जुड़ाव इसे ही कहते हैं. मेरे ब्लॉग पर आने का आपको बहुत-बहुत धन्यवाद .हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeletehi neha .corruption is so deep rooted inour society that we can not expect good quality of life unlesswe r not corrupt.aat certain phase of life u have to corrupt or else u it will become difficult and difficult for us to survive.as always well drafted.
ReplyDeleteसही कहा आपने कहीं न कहीं हम ही इसके लिए जिम्मेदार हैं. शिक्षक दिवस की बधाइयाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...बधाई
ReplyDeletesam samayik lekh ke liye aabhar.bahut hi jwalant mudda uthaya hai aapne is bar............badhai
ReplyDeleteसही कहा आपने
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ.
ReplyDeleteसही कहा ....हमसभी इसके लिए जिम्मेदार हैं ,शुरुआत हमें खुद से ही करनी चाहिए
ReplyDeleteSolah ane sach...
ReplyDeleteस्वराज्य जी,आनंद उर्फ़्फ़ टिंकू,चंद्र भूषण जी,अमरजी,संजय भास्कर जी,सोनू जी,एवं रेखा जी ,आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें, बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteपल्लवी जी , आपने बहुत हटकर लिखा है। असहमति का कोई प्रश्न ही नहीं। जब जक हम अपने नैतिक मूल्यों को प्रमुखता नहीं देंगे, भ्रष्टाचार जाने वाला नहीं।
ReplyDeletebhai bahut khoob likha hai .......kabir das ki panktiya hai ..'" bura jo dekhan mai chala bura na milya koi , jo aapney bheetar jhank k dekha , mujh se bura na koai "
ReplyDeletekuch toh hum khud he kartey hai par bahut se aisi ghatnaaye hoti hai jaha par hum niyamo ka palan karney k kaaran saja jhelni parti hai ...aur majboor ho kar koi भ्रष्टाचार ki rah par aa jaata hai ...
जनता और नेता दोनों बराबर के भागीदार हैं!
ReplyDeleteहम सब?
ReplyDeleteजनता तो मजबूरी में भ्रष्ट होती है ... यदि क़ानून का पालन सख्ती से किया जाए तो भ्रष्ट होने का अवसर ही न आए ..पर तब वो लोग जो रातों रात करोड़पति बन जाते हैं उनका क्या होगा ... जब मूलभूत आवश्यकतायें पूरी न हों .. मँहगाई बढती जाये आमदनी कम हो तो लोग गलत तरीके से पैसे कमाने पर भी मजबूर होते हैं .. सबसे बड़ी बात है कि कानून भी अलग अलग हैसियत के लोगों के लिए अलग अलग हैं ..ईमानदार आदमी इस दलदल में जी नहीं पाता .. या तो उसे उठा कर बाहर फेंक दिया जाता है या उस दलदल में उसकी ईमानदारी दम तोड़ देती है ..आज यदि आम आदमी राशन कार्ड बनवाने के लिए रिश्वत देता तो इसलिए क्यों कि कार्ड बनवाना एक प्रोजेक्ट है ..इतना समय खराब करके भी ज़रुरी नहीं कि कार्ड बन ही जाए ..खैर अन्ना के आंदोलन के बाद कुछ तो परिवर्तन हो रहे हैं ..समय सीमा निर्धारित की जा रही है काम करने की ..यह अच्छी शुरुआत है ...
ReplyDeleteजागरूक करने वाले लेख के लिए बधाई