यूं तो अपने शहर से सभी को लगाव होता है। जो इंसान जहां रह कर पला बढ़ा होता है, उसे वहीं की मिट्टी से प्यार होना स्वाभाविक बात है। ठीक इसी तरह मुझे भी मेरे भोपाल से प्यार है। हालांकी यह बात अलग है, कि जबसे मैंने अपना देश छोड़ा है, तब से मुझे पूरे देश से ही प्यार होगया है। मगर फिर भी भोपाल से जुड़ी हर बात मुझे अपनी ओर खींच ही लेती हैं। वैसे तो साधारण तौर पर मुझे समाचार पत्र पढ़ने कि आदत अब नहीं रही लेकिन फिर भी कभी कभी ऑनलाइन समाचार पत्र या टीवी पर समाचार देख सुन लेती हूँ, अच्छा लगता है। देश दुनिया की खबरों के साथ-साथ अपने शहर की खबर भी पढ़ने को मिल जाती है और इस बात का सारा क्रेडिट में इंटरनेट को देना चाहती हूँ और देती भी हूँ। घर बैठे सभी सुविधाओं की उपलब्धि बिना किसी झंझट के आसानी से उपलब्ध जो हो जाती है। अब तो इंटरनेट मेरी रोज़ मर्रा की ज़िंदगी का वो अहम हिस्सा बन गया है, कि उसके बिना जीना मुश्किल हो गया है। जिस दिन नेट काम न करे तो पूरा दिन बेचैनी रहती है। जब तक नेट का कनैक्शन ठीक न हो जाये ऐसा लगता है, जैसे दुनिया ही ख़त्म अब कुछ है ही नहीं करने के लिए। क्या करें कहाँ जाये। यह भी एक प्रकार का नशा है जैसे ब्लोगिंग
इसी सिलसिले में एक दिन मैंने हिन्दी समाचार पत्र दैनिक भास्कर का ई-पेपर पढ़ा जहां इंटरनेट और चेटिंग से जुड़ा एक वाक्या देखा और पढ़ा भी ,सच कहूँ तो वह सब देखने और पढ़ने के बाद मुझे बहुत हँसी आयी। यह सोच-सोच कर जहां आज की तारिख़ में इंटरनेट पर फेसबुक, जीमेल, स्काइप और चेटिंग बहुत ही आम बात है वहाँ आज भी कुछ लोग खासकर छात्र छात्राएँ इतने बेवकूफ़ हैं कि चेटिंग के दौरान किसी अजनबी से हुई बातों को इतना अहमीयत देते हैं कि बात बिगड़ने कि नौबत आ जाये। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ कि आज भी छोटे शहरों में यह सब होता है या यह सब होना संभव है। आज के आधुनिक युग में जहां बच्चा-बच्चा इंटरनेट की सभी सुविधाओं से और उसके गुण-अवगुण से बखूबी परिचित है। वहाँ इस प्रकार के किस्से हँसी ही दिलाते हैं। वह भी छात्र छात्रों के द्वारा किया गया कारनामा अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या देख लिया मैंने या पढ़ लिया मैंने जिसके कारण इतनी लंबी चौड़ी भूमिका बना डाली। तो चलिए अब इस सस्पेंस को यही ख़त्म करते हुए आपके सामने उस वीडियो का व्याख्यान करती हूँ।हुआ यूं कि एक 20-22 साल का लड़का और लड़की आपस में चेटिंग कर रहे हैं पहले hi ,hello से बात शुरू होती है और बातों ही बातों में मुलाक़ात तक बात पहुँच जाती है। लड़का लड़की से मिलने के लिए ज़ोर डालता है और लड़की से फिल्मी स्टाइल में संवाद मारते हुए कहता है, कि हनी तुम्हारे ख़यालों में मेरी रातों की नींद उड़ गयी है, मैं तुम्हारा खूबसूरत सा चेहरा देखना चाहता हूँ, हनी जिसकी कल्पना में, मैं न जाने कितने हसीन ख़्वाब बुन चुका हूँ। जब तुम मिलोगी और मैं तुम्हें देखुंगा तब कैसा होगा वो मंज़र वो हसीन नज़ारा। तब उधर से वह लड़की पूछती है अच्छा क्या करोगे मुझसे मिलकर? लड़का कहता है पहले तुम्हारे करीब आऊँगा और .....लड़की पूछती है और ??? लड़का कहता है और फिर तुमको अपनी बाहों में भरूँगा और ....लड़की लिखती है blush .....इस तरह बातों-बातों में मुलाक़ात का समय और स्थान तय हो जाता है। शाम के पाँच बजे फलां-फलां साइबर कैफ़ में कैबिन नंबर 5 में मिलते हैं तभी लड़के की माँ दरवाज़े खटखटाती हुई चाय का कप लिए अंदर आती है। लड़का, लड़की से थोड़ी देर रुकने को कहता है और चेट विंडो बंद कर देता है। ठीक ऐसा ही लड़की के साथ भी होता है। माँ के जाने बाद दोनों फिर से चेटिंग शुरू करते हैं और मिलने के प्रोग्राम के अनुसार तैयार होना शुरू कर देते हैं। लड़की बहुत सज संवरकर साइबर कैफ़े पहुँचती है। जैसा कि स्वाभाविक है, उस उम्र में लड़कियों को दूसरों का आकर्षण पाना वैसे ही बहुत अच्छा लगता है, तो हर लड़की दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की दिखना चाहती है।
खैर लड़का भी बेहद अच्छे से तैयार होता है, इत्र से लेकर जितना बेचारे लड़के जो कुछ लगा सकते है सब लगा लगू कर बाइक पर स्टाइल के साथ सवार होकर साइबर कैफ़े पहुंचता है। इधर कैबिन में लड़की का दिल भी ज़ोरों से धडक रहा है.....उधर लड़के का दिल भी ज़ोरों से धड़का रहा है!!!! ना जाने क्या होगा सोच-सोच कर दोनों अंदर ही अंदर बेहद बेचैन हैं। लड़का साइबर कैफ़े पहुंचता है, अंदर जाने से पहले खुद को बहुत नर्वस महसूस करता है। उसके हाथ ठंडे पड़े जा रहे है दिल ज़ोरों से धड़क रहा है। लगता है जैसे अभी बाहर आ जायेगा, अंदर जाने से पहले लड़का खुद को ढाढस बंधाते हुये एक बार अपने चेहरे पर हाथ फेरता है बाल संवारता है और अपनी शर्ट ठीक करता है और हिम्मत कर साइबर कैफ़े के अंदर कैबिन नंबर पाँच की ओर बढ़ता है जैसे ही दरवाज़ा खोलता है ....बता सकते है आप क्या हुआ होगा....सोचिए-सोचिए क्या हो सकता है ? दरवाज़ा खुलते ही....अंदाज़ा लगाइए वो हुआ जो कोई सोच भी नहीं सकता है। चलिये मैं ही बता देती हूँ, जैसे ही दरवाज़ा खुलता है दोनों एक दूसरे को देखकर अवाक रह जाते हैं और लड़की के मुंह से निकलता है ...भईया आप.....और यह सब सुनते ही दोनों को ऐसा लगता है यह धरती फट क्यूँ नहीं जाती। ताकि हम इसमें समा जाएँ।
यह देखकर मुझे जाने क्यूँ बहुत हँसी आई हो सकता है आप मुझे पागल समझे क्यूंकि मुझे ऐसा लगा कि आज के जमाने में नेट पर की हुई चेटिंग को लोग असल ज़िंदगी में आज भी इतना महत्व देते हैं ? दूसरी बात घर के घर में भाई बहनो के पास दो अलग-अलग सिस्टम है और तीसरा दोनों को आपस में एक दूसरे का आईडी तक नहीं पता जबकि मध्यम वर्गीये परिवारों में समान्य तौर पर लड़की को भले ही अपने भाई का ईमेल आईडी पता हो या न हो, मगर बड़े भाइयों को हमेशा अपनी बहन के विषय में सम्पूर्ण जानकारी रहा करती है। फिर चाहे वो ईमेल ही क्यूँ न हो, इसलिए यह सब देखकर यकीन ही नहीं हुआ मुझे और शायद इसलिए मैं हँसी, लेकिन इसमें गलती उन लड़के और लड़कियों से ज्यादा यहाँ मुझे उनके अभिभावकों की नज़र आयी। माना कि ज़िंदगी में सभी की अपनी एक निजी ज़िंदगी होती है बच्चों की भी, मगर इसका मतलब यह नहीं कि आपको यह भी पता न हो कि आपके बच्चे कमरा बंद करके क्या कर रहे हैं। आपने तो पढ़ाई की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उन्हें इंटरनेट घर पर ही उपलब्ध करा दिया। मगर उसके साथ-साथ क्या आपको नहीं लगता कि आपकी यह भी ज़िम्मेदारी बनती है, कि आप यह भी देखें के कहीं आपके बच्चे दी गई सुविधा का जाने-अंजाने कहीं कोई गलत उपयोग तो नहीं कर रहे हैं या फिर आपके बच्चे आपसे झूठ बोलकर कहीं और तो नहीं जा रहे हैं। जानती हूँ एक वक्त ऐसा भी आता है सभी अभिभावकों की ज़िंदगी में जब उनको अपने बच्चों का भरोसा जीतने के लिए उन पर आँखें बंद करके विश्वास करने की जरूरत होती है।
मगर तब भी अभिभावकों को चाहिए कि वह कम से कम कुछ एक बातों का ख़्याल ज़रूर रखें जैसे उनके बच्चे उनके द्वारा दी गई ऐसी इंटरनेट जैसे सुविधाओं का कोई गलत फायदा तो नहीं उठा रहे हैं। इसके लिए ज़रूर है अपने बच्चों को दी गई इस प्रकार की सुविधा जहां जितना जानकारी का भंडार वहाँ उतनी ही सावधानी की भी जरूरत है। उस सुविधा से संबन्धित आपको भी सम्पूर्ण जानकारी हो और समय-समय पर आप भी उनके सिस्टम की जांच करते रहें। ताकि आपको उनके द्वारा किये गए कार्यों की सही जानकारी मिलती रहे और उनके मन में भी आपके प्रति हल्का सा डर भी बना रहे, ताकि वो गलत रास्ते पर न चले जायें। क्यूंकि अक्सर ऐसी उम्र में बच्चों का मन एक बे लगाम घोड़े की तरह होता है, जो ज़रा सा मौका पाते ही बस बेखबर दौड़ता चला जाता है। बिना यह जाने कि जिस राह पर वह जा रहा है वो सही है या नहीं, उसे सही वक्त पर सही दिशा दिखाना अभिभावकों की अहम ज़िम्मेदारी है। क्यूंकि यदि वक्त रहते ऐसा न किया गया तो नतीजा हानिकारक हो सकता है और आपके बच्चे आपके हाथों से बेकाबू हो सकते हैं
इसलिए ज़रा सोचिए कहीं आपके घर में भी तो ऐसा कुछ नहीं हो रहा है न लगता है आज की पोस्ट में कुछ ज्यादा ही चिंतन और भाषण हो गया। इसलिए आज के लिए बस इतना ही, फिर मिलेंगे किसी नए विषय के साथ तब तक के लिए जय हिन्द.