कहते है परिवर्तन का नाम ही ज़िंदगी है सच ही तो है। यूं भी सब कुछ हमेशा एक सा कहाँ रहता है। फिर चाहे रिश्ते हों या इंसान या फिर सपने, सब कुछ वक्त के साथ बदल ही जाता है। जो नहीं बदलता, वक्त उसका वजूद रहने नहीं देता। पर कई बार ऐसा भी तो होता है कि हम ना चाहते हुए भी बदल ही जाते है। जैसे इंसान की काया वैसे तो आजकल अनगिनत प्रसाधन उपलब्ध है बाज़ार में अपनी काया को जैसे का तैसा दिखाने के लिए फिर चाहे वो सौंदर्य प्रसाधन हों या फिर कसरत करने के तरीके, सिर्फ इतना ही नहीं अब तो कपड़े भी ऐसे आते हैं कि आप अपनी बेडोल काया को सुडोल दिखा सकते है। खैर आज की तारीख में हर कोई सदा जवान लगना चाहता है। खूबसूरत दिखना चाहता है और हो भी क्यूँ न, खूबसूरत दिखने में भला बुराई ही क्या है। बस इतना ध्यान रखना है कि आप सुंदर दिखने के चक्कर में खुद को इतना भी न संवारलें कि आप हंसी का पात्र बन जाये।बस
खैर ऐसा ही कुछ अनुभव हुआ कल जब फेसबुक पर अपनी एक बहुत पुरानी सहेली से मुलाक़ात हुई। बहुत शौक था उसे तैयार होने का, सुंदर दिखने का, हमेशा एकदम टिपटॉप रहने का, मुझे आज भी याद है कि वो रात को भी सदा अपने बाल संवार कर और अपने माथे पर लगी हुई बिंदी को कायदे से वापस उसी स्थान पर लगा कर सोया करती थी जहां से उसने निकाली हो। ताकि अगले दिन सुबह सब जहां का तहां मिल जाये बिना ब्रुश किए तो वो बात तक नहीं करती थी किसी से, सर से लेकर पाँव तक हमेशा सजी सांवरी रहा करती थी वो, सुबह उठते ही उसका सबसे पहला काम हुआ करता था आईना देखना और बंदी लगाना :) चटक रंग बहुत पसंद थे उसे, हल्के रंग तो जैसे उसे हमेशा उदासी का एहसास कराते थे। खासकर नेल पोलिश के रंगों को लेकर तो बहुत ही चिंतित रहा करती थी वो, मेरी और उसकी पसंद हमेशा से अलग रही है, मगर फिर भी अब कपड़ों और रंगों के मामले में उस पर खासा असर दिखाई देता है मेरी पसंद का, अब उसे भी हल्के रंग पसंद आने लगे हैं।
लेकिन फिर भी वो एक रंग था कुछ मिक्स सा जो ना तो लाल में आता है और ना ही महरून में, उस रंग को मम्मी का रंग कहा करते थे हम हमेशा, क्यूंकि उसकी और मेरी मम्मी के अलावा और भी बहुतों की मम्मीयों को जाने क्यूँ हमेशा केवल वही रंग पसंद आता था। जितनी सुंदर थी वो उतना ही अच्छा उसका स्वभाव भी था। हर दिल अज़ीज़ थी वो, स्वभाव के मामले तो आज भी वैसी ही है वो :) लेकिन रंग रूप और काया की बात करूँ तो अब बहुत मोटी हो गयी है वो, दो बच्चे हैं उसके एक प्यारा सा, बहुत ही प्यारा सा बेटा और एक परी जैसी बेटी, मगर वो खुद एकदम बदल गयी है। शादी और बच्चों के बाद यूं भी एक औरत का कायकल्प हो ही जाता है। सब पहले जैसे नहीं रह पाते है। अक्सर लोग मोटे हो ही जाते है।
लेकिन फिर भी वो एक रंग था कुछ मिक्स सा जो ना तो लाल में आता है और ना ही महरून में, उस रंग को मम्मी का रंग कहा करते थे हम हमेशा, क्यूंकि उसकी और मेरी मम्मी के अलावा और भी बहुतों की मम्मीयों को जाने क्यूँ हमेशा केवल वही रंग पसंद आता था। जितनी सुंदर थी वो उतना ही अच्छा उसका स्वभाव भी था। हर दिल अज़ीज़ थी वो, स्वभाव के मामले तो आज भी वैसी ही है वो :) लेकिन रंग रूप और काया की बात करूँ तो अब बहुत मोटी हो गयी है वो, दो बच्चे हैं उसके एक प्यारा सा, बहुत ही प्यारा सा बेटा और एक परी जैसी बेटी, मगर वो खुद एकदम बदल गयी है। शादी और बच्चों के बाद यूं भी एक औरत का कायकल्प हो ही जाता है। सब पहले जैसे नहीं रह पाते है। अक्सर लोग मोटे हो ही जाते है।
हालांकी अब तो सुपर वुमन ही नहीं,बल्कि सुपर मॉम का भी चलन हैं। फिर भी ऐसे परिवर्तनों को आने से बहुत कम ही लोग रोक पाते है। फिर चाहे वो एश्वर्या राय बच्चन ही क्यूँ न हो। भई अब हर कोई तो शिल्पा शेट्टी हो नहीं सकता ना...:) हाँ यह बात अलग है कि इन बड़े लोगों के पास सिवाए खुद पर ध्यान देने के और कोई दूजा काम नहीं होता है। इसलिए यह लोग जल्दी ही अपनी पुरानी काया पुनः पा लेते है। लेकिन आम इंसान के लिए यह संभव नहीं हो पाता है। उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जिस लड़की को कभी खुद से प्यार था आज उसे सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार और बच्चों से प्यार है। जो लड़की कॉलेज के दिनों में हमेशा यह कहकर ठहाका लगाया करती थी कि यार जब तक दो चार लड़के मरे नहीं लड़की पर, तो लड़की होने का फ़ायदा ही क्या, आज वो लड़की खुद का एक भी फोटो तक दिखाना नहीं चाहती है। कहती है, यार शादी के बाद सारे परिवर्तन केवल एक लड़की में ही क्यूँ आते है। लड़कों में तो एक भी परिवर्तन नहीं आता वो ज्यादा लंबे समय तक एक से दिखते हैं और हम ? पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाते-उठाते और रिश्तों का दायित्व निभाते -निभाते कब बदल जाते हैं पता ही नहीं चलता। यहाँ तक के कई बार यूं भी होता है कि खुद को आईने में देखकर भी कभी-कभी यकीन नहीं होता कि यह हम ही हैं।
फिर भी हर परिवर्तन और ज़िंदगी में आने वाले हर पड़ाव को सर आँखों पर रखकर आगे बढ़ना सीख ही जाते है हम, शायद यही एक गुण है या यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि यही एक वह महत्वपूर्ण गुण है जो एक नारी को एक पुरुष से प्रथक करता है और शायद इन्हीं गुणो की वजह से एक माँ का दर्जा एक पिता के दर्जे से ज़रा ऊपर का होता है। जब बच्चे प्यार से गले लग कर कहते हैं "ममा आई लव यू" तो जैसे खुद में आत्मविश्वास का संचार पाते हुए हम गर्व से यह डायलोग मारते हैं हम कि
हम ही हम है तो क्या हम है
तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो
और भूल जाते है फिर खुद को एक बार कि इस 'मैं' के लिए एक स्त्री के जीवन में कोई स्थान ही नहीं होता।