मैंने इस blog के जरिये अपने जिन्दगी के कुछ अनुभवों को लिखने का प्रयत्न किया है
Tuesday, 1 July 2014
पागल होना,शायद सामान्य होने से ज्यादा बेहतर है...!
यूं तो एक पागल व्यक्ति लोगों के लिए मनोरंजन का साधन मात्र ही होता है। लोग आते हैं उस पागल व्यक्ति के व्यवहार को देखते है। उस पर हँसते और उसका परिहास बनकर अपने-अपने रास्ते निकल जाते है। इस असंवेदनशील समाज से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। कभी-कभी सोचती हूँ तो लगता है कैसा होता होगा पागल होना। क्या महसूस करता होगा कोई पागल। भले ही कोई पागल हो किन्तु उसका दिमाग तो फिर भी काम करता ही है। क्या सोचता होगा वह इंसान जिसे दुनिया की नज़रों में पागल घोषित कर दिया गया हो।
खासकर वह पागल व्यक्ति जिसे पागलखाना भी नसीब न हुआ हो। जो सड़क पर दर-दर की ठोकरें खाकर भी दुःखी प्रतीत नहीं होता। लोगों के मनोरंजन और परिहास का पात्र बने रहने पर भी जिसे कभी किसी से कोई शिकायत नहीं होती। किसी पागल व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने तक तो फिर भी बात समझ में आती है। किन्तु यदि वह पागल व्यक्ति कोई स्त्री हो तो मुझे दुःख और भी ज़्यादा होता है। इसलिए नहीं कि वह एक स्त्री है। बल्कि इसलिए कि इस बेरहम समाज को उस स्त्री के पागल होने पर भी दया नहीं आती। उसका दर्द उसका दुःख नज़र नहीं आता। अगर कुछ नज़र आता है! तो वह है केवल उसका फटे कपड़ों से झाँकता हुआ शरीर। क्योंकि भूखे कुत्तों को तो बस हड्डी से मतलब होता है। फिर चाहे वो हड्डी किसी की भी क्यूँ ना हो।
खैर आजकल तो लोग छोटी-छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते। यहाँ तो फिर भी एक पागल स्त्री की बात हो रही है। फिल्मों के अलावा मैंने कभी नहीं देखा कि कभी कोई इंसान किसी पागल व्यक्ति का तन ढ़क रहा हो या उसे खाना खिला रहा हो। हालांकी दुनिया में सभी बुरे नहीं होते। निश्चित ही ऐसे दयावान और संवेदनशील व्यक्ति भी होते ही होंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है।
कितनी अजीब बात है ना ! इस दुनिया में इंसान से बड़ा जानवर और कोई नहीं है। फिर भी एक इंसान को इंसान से ही सबसे ज्यादा डर लगता है। फिर चाहे वह इंसान कोई चोर, डाकू लुटेरा या हत्यारा ही क्यूँ न हो या फिर कोई पागल व्यक्ति हो। बाकी सबसे डरने का अर्थ तो फिर भी समझ में आता है। लेकिन एक पागल इंसान से भला क्या डरना। मुझे तो बहुत आश्चर्य होता है जब कोई व्यक्ति विशेष रूप से कोई स्त्री जब यह कहती है कि मुझे तो शराबियों से ज्यादा पागलों से डर लगता है। 'अरे पागलों से क्या डरना'! वह बेचारे तो पहले ही अपने होश खो चुके बेबस इंसान है। अव्वल तो किसी से भी डरने की जरूरत ही नहीं होती। फिर भी हर इंसान को किसी न किसी से डर लगता ही है। किन्तु फिर भी मैंने अधिकतर स्त्रियॉं को यह कहते सुना है कि उन्हें नशे में धुत्त लोगों से ज्यादा पागल व्यक्ति से डर लगता है।
मेरी समझ से ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे मन में पागल व्यक्ति के लिए एक निश्चित परिभाषा बैठी हुई है कि ‘अरे पागल का क्या भरोसा’ जाने क्या करे। जबकि दूसरी और हर समझदार इंसान यह बात भली भांति जानता है कि हर पागल एक सा नहीं होता अर्थात आक्रामक नहीं होता। जबकि वह पागल व्यक्ति किसी से कुछ भी न बोले। केवल अपनी ही धुन में रहता हो। फिर भी वो एक अकेला इंसान सबकी नज़रों में खटकता रहता है।
जबकि उन डरने वाली स्त्रियों के स्वयं अपने ही परिवार में दारू पीकर रोज़ मारपीट का शिकार होती हैं। गाली गलौच के कारण घर में रोज़ महाभारत होता है। जिसका बच्चों पर भारी मात्र में बुरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन इस सबसे उन्हें डर नहीं लगता है। मगर हर उस चीज़ से डर लगता है जो उन्हें ज़रा भी नुक़सान नहीं पहुँचाती। जैसे किसी इंसान की लाश...मेरी नज़र में तो डर ने लायक ज़िंदा इंसान होते है। मुर्दे बिचारे किसी का क्या बिगाड़ लेंगे। मगर फिर भी लोग मुरदों से ज्यादा डरते है। यह सब देखकर तो लगता है, हम समझदारों से अच्छे तो यह पागल इंसान ही है। कम से कम दुनिया की परवाह किए बिना अपनी दुनिया में मस्त तो रहते हैं। बहुत पहले कभी लगता था कि 'ईश्वर ने यह कैसा अन्याय किया है इन इंसानों के साथ'! जो इन्हें पागल बना दिया।
लेकिन आज जब कभी किसी पागल इंसान को देखती हूँ तो दिल से यह नहीं निकलता कि ‘हे ईश्वर इन्हें ठीक कर दे’।बल्कि अब तो यही फ़रियाद निकलती है कि ''हे ईश्वर बुद्धिजीवियों को थोड़ी सद्बुद्धि दे''। ताकि हम ऐसे लोगों का परिहास बनाने के बजाए उनकी सहायता कर सकें। या कम से कम जो लोग विभिन्न प्रकार के मनोरोगों से जूझ रहे हैं और आत्महत्या करने पर विवश हो रहे हैं हम उन्हें ही यह एहसास दिला सके कि इस दुनिया में 'जीना मौत को गले लगाने से ज्यादा आसान है'। क्योंकि ईश्वर की बनाई यह दुनिया वास्तव में खूबसूरत है और जीने लायक भी है। अगर कुछ बुरा है, तो वह है 'चंद बुरे लोग'। तो उन चंद बुरे लोगों के कारण भला कोई मासूम ज़िंदगी क्यूँ अंतिम साँस ले !!!
सार्थक संवेदनशील आलेख ! आपके आलेख के महत्त्व एवं अर्थ को आत्मसात करने के लिये दिल के एक कोने को मानवता के रसायन से मुलायम करने की आवश्यकता होगी !
ReplyDeleteसच कहो तो इंसान से ज्यादा खतरनाक आज कौन है ... हर समस्या, हर असामान्य परिस्थिथि के लिए इन्सान ही जिम्मेवार है आज .. पागल को तो क्या पाता uska to dimaag hi kaam nahi karta par dimaag waale insaan ke=o kya kahen ...
ReplyDeleteतथाकथित इंसान ही इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है. पागल को तो जब अपने बारे में ही कुछ पता नहीं तो वह दूसरे को क्या नुकसान पहुंचाएगा. आज़ इंसान में संवेदनशीलता की कमी होती जा रही है...बहुत सारगर्भित आलेख...
ReplyDeleteभावप्रवण
ReplyDeleteहर व्यक्ति का अपना संसार होता है जो उसकी खोपड़ी के आकार से बड़ा हो ही नहीं समता. पागल का भी अपना संसार होता है जो उसकी खोपड़ी में होता है जो मस्तिष्क की तंत्रिकाओं में हो रही गतिविधि से संचालित होता है. वैसे कहते हैं कि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ मात्रा में पागलपन होता है या कभी न कभी एक पागलपन सवार हो जाता है. दूसरों के प्रति और अपने प्रति भी संवेदनशीलता बहुत ज़रूरी है.
ReplyDeleteउम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
झकझोरता आलेख। वाकई विचारणीय है।
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