मशीनी युग और मानसिक
शांति
आधुनिक युग में मशीनों
के बिना जहां जीवन की कल्पना भी नहीं कि जा सकती, वहाँ
मानसिक शांति की बात करना शायद एक ना समझी ही साबित होगा। लेकिन बदलते वक़्त ने अब
हर चीज़ के मायने बदल दिये हैं, फिर चाहे वह मनोरंजन के साधन हो या मानसिक शांति। अब
लगभग सभी चीजों की परिभाषा बदल रही है या बदल गयी है। आप इस विषय में क्या सोचते
हैं, यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है। मैं यहाँ जो कुछ भी
कहना चाह रही हूँ । वह पूर्णतः मेरे विचार है। जिस तरह आजकल सस्ती लोकप्रियता का
चलन चल रहा है, जिसे पाने कि खातिर लोग अपने स्तर से गिर रहे है। ठीक
उसी तरह मानसिक शांति पाने के लिए भी अब लोग को प्रकृति का सामीप्य नहीं चाहिए,
बल्कि मशीने चाहिए एक यंत्र चाहिए जिसे वर्तमान हालातों में यदि अलादीन का चिराग
कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। क्यूंकि आजकल कि दुनिया में हो रहे सभी तरह के क्रियाकलाप
इसी यंत्र में समाहित है। फिर चाहे वह हितकर हों या अहितकर लोग उसे अपनी अपनी
सुविधाओं के अनुसार उपयोग में लाते हैं। बस ज़रा उँगलियाँ फेरी और बस आपके जिन ने
आपके समक्ष सम्पूर्ण जानकारी परोस दी जो आपने चाही थी।
कितनी अजीब बात है, आज
लोग हरियाली वाला वाल पेपर लगाना तो बहुत पसंद करते हैं किन्तु सुबह जल्दी उठकर उस
प्रकृतिक सौंदर्य का अपनी आँखों द्वारा साक्षात आनंद लेना कोई नहीं चाहता । सब को जैसे
सभी कुछ चाहिए तो है मगर असलियत में नहीं नकली पने में, जंगल, खेत,
नदियां, समंदर, फूल, पत्ती, बाग बगीचे, सभी को बहुत पसंद होते हैं,
इसमें कोई दो राय नहीं है। इनके समीप जाकर कुछ देर शांति से बैठकर जिस मानसिक
शांति का अनुभव होता है उसकी तो कोई उपमा दी ही नहीं जा सकती। परंतु यह केवल वही
जान सकता है जिसने यह सब वास्तव में अनुभव किया हो। मुझे खेद है कि आज की पीढ़ी इन
बहुत ही साधारण और छोटे छोटे अनुभवों से वंचित है। बाकी ना सिर्फ आज की पीढ़ी बल्कि
हम सब भी तो वैसे ही हो गए हैं, “मशीनी युग के गुलाम” हमें भी तो खुद को मनोरंजित करना
हो तो या किसी भी प्रकार का चिंतन मन्नन करना हो तो,
सर्वप्रथम मशीन ही दिखाई देती है। अब उसका रूप कोई भी होसकता है फिर चाहे वह स्मार्ट
फोन हो, टीवी हो, लैपटाप हो, आईपेड हो, वो कोई भी मशीन हो सकती है। लेकिन हम में से किसी के
दिमाग में यह नहीं आता कि चलो किसी बाग में घूमकर आते है या किसी नदी किनारे चलते
हैं या नदी न मिले तो झील ही सही मगर प्रकर्ति के निकट चल के बैठते हैं।
नहीं साहब, ऐसा
कुछ करने लगे तो दकियानूसी ना कहलाने लग जाए कहीं,
इसलिए यह सारे सुख जो हमें ईश्वर ने मुफ्त दिये हैं अपना तनाव कम करने के लिए उस
पर भी पैसा डालो और ऐसी एप्लिकेशन खरीदो जो तनाव कम कर सकती हो क्यों? वह भी
किसी खेल के साहारे क्यूंकि आजकल लोग बहुत व्यस्त हैं। किसी के पास समय नहीं है, ऐसा
सब करने के लिए। जबकि मेरी नज़र में लोग “बिज़ि विदाउट वर्क” ज्यादा है। तभी तो खाली
समय में भी मशीन में घुसकर ही समय काटते हैं और कहते है हमारे पास समय का अभाव है।
दोगली दुनिया के दोगले लोग, खुद
ऑफिस में बैठकर खाली समय में भी एक मशीन से निकलकर दूसरी मशीन में ही घुसने का
मौका ढूंढते फिरते हैं और वहीं यदि घर की ग्रहणी अपना सारा काम निपटने के बाद अपने
लिए मिले हुए समय में से थोड़ा सा समय अलादीन के चिराग में लगा दे, तो
कोई कहने से नहीं चुकता कि इनके पास कोई काम नहीं है, जब
देखो जब फोन में ही घुसी रहती है। जबकि घर की गृहनियों के यदि छोटे बच्चे हों तो
आधे से ज्यादा समय तो आज के यह मशीनीयुग के बच्चे खा जाते हैं। मानो पैदा इंसान ने नहीं मशीन ने ही किया हो
इन्हें और तंज़ झेलती है ग्रहणी, यह भी कोई बात हुए भला।
खैर अब युग मशीनी है तो
तनाव होना तो निश्चित ही है। इसलिए तो आजकल मशीनों पर भी तरह तरह कि एप्लिकेशन और
सॉफ्टवेअर उपलब्ध है। बच्चों के स्कूल से लेकर ऑफिस तक में तनाव कम कैसे किया जाये
को लेकर आए दिन सेमिनार होते रहते हैं। लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि यदि थोड़ी देर
के लिए यह समय के अभाव के नाटक को एक ओर रख के सोचा जाये तो तनाव मुक्त जीवन जीना
इतना भी बड़ी समस्या नहीं है, जितना इसे गा गाकर बना दिया गया है। तनाव का कारण केवल काम
का भार ही नहीं होता, तनाव का मुख्य कारण होता आपके अंदर का डर जो किसी भी प्रकार का
हो सकता है। जिसका कोई एक रूप निश्चित नहीं होता। पर अधिकतर हार अर्थात पराजय का
डर और उसके बाद सामाजिक दबाव ही इंसान को गलत कदम उठाने पर मजबूर कर देते हैं। जबकि
इस डर को मिटाने का सीधा सा उपाए है डर के कारण को जानकार उस पर काम किया जाये। और
अधिकतर मामलों में इन सब चक्करों के चलते सबसे पहले यदि कुछ खोता है तो वह है
इंसान के मन की शांति और जहां तक मेरा मानना है, हर
इंसान को खुद यह बहुत अच्छे से पता होता है कि उसे उसके मन की शांति कहाँ और कैसे
मिलेगी। जैसे मुझे लिखने से मानसिक शांति मिलती है।
ठीक इसी तरह हर एक
इंसान के मन की शांति, किसी ना किसी काम में होती है, पर
कई बार या तो उन्हें पता नहीं होता या फिर उन्हें समझ ही नहीं आता कि अपनी रुचि पर
काम करके भी अपने तनाव को बहुत ही आसानी से कम किया जा सकता है। जैसे किसी को खाना
बनाकर उसके मन शांति मिलती है, तो किसी कोई तस्वीरें बनाना पसंद होता है, किसी
को संगीत से लगाव होता है, तो किसी को नृत्य से, पर अफसोस की हम तनाव के वक़्त केवल समस्या पर ध्यान देते है उसके समाधान पर नहीं और फल स्वरूप तनाव बना रहता और लगातार बढ़ता रहता है। ऐसे में हमें अपने मन की शांति के लिए कुछ उपाय करना बेहद जरूरी होता है जो समान्यता हम नहीं करते जिसे अंगेजी में "माइंड डाइवर्ट" करना कहते हैं और यह काम हम अपनी रुचि के आधार पर बहुत ही आसानी से कर सकते हैं। जैसा की मैंने उपरोक कथन में कहा कि हर किसी को पता होता है कि उसकी उसकी 'रुचि' उसके 'मन की शांति' उसे क्या करके मिलेगी। मगर अपनी समस्या और तनाव के चलते वह व्यक्ति उस पर ध्यान नहीं दे पाता। तब भी यदि वह थोड़ी देर के लिए प्रकृतिक रूप से प्रकर्ति के समीप जाकर अपनी समस्या का समाधान खोजेगा ना तो उसे कोई न कोई हल मिल ही जाएगा क्यूंकि जो सुकून, जो शांति प्रकृति के समीप्य में जाकर मिलती है न, उसका
कोई तोड़ नहीं है। फिर भी एक बार को में यह मान भी लूँ कि आजकल की भाग दौडभाग भरी ज़िंदगी
में किसी के पास समय ही नहीं बचता। तो भी उसे अपनी रुचि के लिए समय ज़रूर निकालना
चाहिए । ताकि वह बिना किसी मशीन के सहारे अपने तनाव को कम कर सके। यह उतना भी कठिन
नहीं है कि इस काम के लिए भी आपको मशीनों की अवश्यकता पड़े। याद रखिए इंसान ने
मशीनों को बनाया है, मशीनों ने इंसान को नहीं।
आज की सच्चाई लिखी है
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏🏼
Deleteबहुत बेहतरीन लेख आज के जीवन को आईना दिखाया है आपने ।
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