वैसे तो ऐसा बहुत कम ही होता है कि जब इतना भी समय न मिल पाये कि मैं अपने ब्लॉग पर भी न आ पाऊँ। मगर इस बार ऐसा क्रिसमस की छुट्टियों के चलते हुआ, इस बार समय ही नहीं मिला ब्लॉग पर आने का इसलिए आज लगभग एक हफ्ते बाद आना हुआ है।


मैं भी यही कहूँगी मेरे लिए भी यह साल कुछ ऐसा ही था न बहुत ही बुरा और ना ही बहुत अच्छा क्यूंकि सब कुछ नज़रिये और परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि किन परिस्थियों में आपका नज़रिया क्या रहा था। जैसे यदि घूमने की दृष्टि से देखें तो मेरा यह साल बहुत ही उम्दा रहा। इस साल मैंने पेरिस, इटली, इंडिया सभी जगह खूब घूमा और खूब मज़े किये। ब्लॉग के नज़रिये से भी यदि देखें तो इस साल मैंने पहले की तुलना में खूब सारी पोस्ट बहुत जल्दी-जल्दी डाली और वैसा ही आप सभी का प्यार और प्रोत्साहन भी मिला बहुत सारे अच्छे-अच्छे लोगों से उनकी पोस्ट के ज़रिये मुलाक़ात हुई, दोस्ती हुई जिनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जिनकी मैंने आज तक कभी असली सूरत तक नहीं देखी मगर उनकी रचनाओं के माध्यम से ऐसा लगता है जैसे बरसों की जान पहचान हो और कुछ ऐसे भी हैं जिनको पहले मैंने बहुत घमंडी या अकड़ू किस्म का समझा, मगर जब धीरे-धीरे उनसे बात हुई तब पता चला कि वास्तव में वह बहुत ही प्रेमी लोग हैं मैंने ही उन्हे समझने में भूल की थी। नाम किसी का नहीं लूँगी क्यूंकि इतने सारे लोगों का नाम लेना नामुमकिन सी बात है और यदि गलती से भी कहीं कोई छूट गया तो बेवजह मेरा वो दोस्त बुरा मान जाएगा.


खैर यदि मैं ब्लॉग जगत कि बातें लिखने बैठ गई तो शायद यह पोस्ट कभी ख़त्म ही ना हो,

तो दूसरी और इसी त्योहार का दूसरा रूप पंजाबी समाज का जानदार त्योहार लोहड़ी यह भी नई फसल के आगमन को ही दर्शाता है जिसमें हर नई फसल की चीजों का भोग लगाया जाता है जैसे मक्का, मूंगफली, तिल से बनी रेवड़ी और गज़क आहा, मुझे बहुत ही पसंद है यह दोनों मिष्ठान, लिखते-लिखते ही मेरे तो मुंह में पानी आरहा है।


मगर अब नव वर्ष के स्वागत का तरीका बदल गया है ,क्यूंकि आज की जीवन शैली में परंपरायें रह ही नहीं गई हैं कि कोई उनका पालन करे और कुछ थोड़ी बहुत बची हैं उन्हें निभाने के लिए आज कल किसी के पास समय ही कहाँ है। परंपरा निभाना तो दूर की बात है आजकल तो लोगों के पास जीने के लिए समय नहीं तो त्यौहार क्या खाक मनायेंगे। ऐसा लगता है आजकल सब कुछ ओपचारिकता में बदल गया है। बस यह करना है इसलिए करते हैं मगर अंदर से वो करने वाली भावना होती ही नहीं है शायद इसलिए आज नव वर्ष का जश्न भी केवल होटल तक सिमट कर रह गया सा लगता है। या यह कहना भी शायद गलत नही है कि नववर्ष केवल जवान पीढ़ी तक सिमट कर रह गया है पहले ही संयुक्त परिवार की परंपरा अब बाकी नहीं है ऊपर से एकल परिवारों में भी केवल जवान पीढ़ी ही होटल मे जाकर खाना पीना खाकर, नाच गाकर नव वर्ष के आने का जश्न मना लिया करती है। जिसका केवल एक रात का नशा और जोश होता है अगली सुबह होते ही सब फुर हो जाता है और ज़िंदगी वहीं के वहीं "ढाक के तीन पात" पर ही खड़ी नज़र आती है।
न उसमें कोई जोश ही नज़र आता है न उमंग, सब कुछ बस जैसे एक रात के लिए ही होता है "रात गई बात गई" टाइप .

"आप सभी को नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें, ईश्वर करे आपके सभी के सपने पूरे हों,
आपको मान-सम्मान और अपनों का ढेरों प्यार और आशीर्वाद मिले"
आपको मान-सम्मान और अपनों का ढेरों प्यार और आशीर्वाद मिले"
इसी मंगलकामना के साथ एक बार फिर आप सभी को
IN
ADVANCE
"WISH YOU A VERY HAPPY AND PROSPEROUS NEW YEAR"