यूं तो फिर एक बार मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार आने को है 15 अगस्त। यानि आज़ादी का दिन, भले ही मैं इस स्वर्णिम अवसर पर इस बार अपने वतन, अपने देश से बाहर हूँ। मगर अपनी मिट्टी की खुशबू आज भी मेरे ज़हन में रची बसी है और हमेशा बसी रहेगी। बचपन में भी इस दिन का इंतज़ार मुझे हमेशा बाकी के त्यौहारों की तरह रहा करता था। मन जैसे जोश और खरोश से भरा भरा रहता था। उसके दो कारण थे, एक तो उस दिन स्कूल में विशेष कार्यक्रम हुआ करते थे, जिसमें से किसी एक में मेरा होना तय रहा करता था। फिर चाहे वो सामूहिक गान हो या नृत्य और दूसरा आस पास बजते देश भक्ति के गीत उन दिनों मन में एक नया जोश भर दिया करते थे। तब सच में ऐसा महसूस होता था कि अभी अगर देश के लिए कुछ करने का मौका मिल जाये तो शायद हम भी हमारे वीरों की तरह ज़रूर कुछ कर के दिखा देंगे।
मेरे लिए हमारा राष्ट्रीय गीत हमेशा से किसी आरती से कम नहीं रहा है। एक बार को मैं भगवान की आरती में भले ही खुद को अर्थात अपने मन को पूर्ण मान सम्मान के साथ न जोड़ पाऊँ, मगर अपने राष्ट्रीय गीत के प्रति मेरा मन स्वतः ही जुड़ जाता है और मेरी कोशिश आज भी यही रहती है कि देश के प्रति जो भावनाएं मेरे अंदर है वह मेरे बेटे में भी हों। मगर भावना किसी सब्जी या फूल आदि का कोई बीज नहीं जो आप जबरन किसी के मन में बो दो, वह तो उस जंगली पौधे के समान है जो स्वतः ही अपनी जड़ें फैलता है। बस ज़रा माहौल की आबो हवा की जरूरत होती है उसे, इसलिए शायद में अपने बेटे के मन में वह जज़्बात जगाने में अब भी नाकामयाब हूँ। लेकिन इस में उसकी कोई गलती नहीं है। क्यूंकि उसकी तो पढ़ाई लिखाई शुरू ही यहाँ से हुई है। उसने तो कभी वह माहौल ना देखा, ना सुना, तो उसमें कहाँ से वो बातें आएंगी जो हम महसूस किया करते हैं। मगर इतना ज़रूर है कि उसने पिछले साल जो कागज़ का तिरंगा लाया था इंडिया से, वो आज भी अपने कमरे में पूरे मान सम्मान के साथ सजा कर रखा हुआ है। मेरे लिए तो इतना भी बहुत है। :)
लेकिन वर्तमान हालातों को देखते हुए तो अब ऐसा लगता है कि 15 अगस्त मात्र एक तारीख बनकर रह गया है। आज हमारे देश को आज़ाद हुए 66 साल हो जाएँगे पर मुझे नहीं लगता कि आज़ादी का सही मतलब अब भी हम समझ पाये हैं? जिस दिन से देश आज़ाद हुआ है तब से बिखर गए हम और तब से बिखरते ही चले गए हम, देश को आज़ाद कराने के लिए अनेकता में एकता की मिसाल कायम करने वाला भारत आज स्वयं अंदर से खोखला हो चला है। हमे हमेशा किसी न किसी ने लूटा, कभी मुग़लों ने, तो कभी अफगानियों ने, तो कभी इन अंग्रेजों ने और इसका एकमात्र कारण रहा आपसी मतभेद। जिसके चलते सभी ने हमारा फायदा उठाया। मगर फिर भी मेरा सलाम उन देश के वीरों और वीरांगनाओं को जिन्होंने इतना सब होने के बाद भी अपने साहस के बल पर अपने देश का सर किसी के सामने झुकने न दिया। आज उन्हीं वीर योद्धाओं और स्वतंत्रता सैनानियों की बदौलत हम एक आज़ाद देश में सांस ले पा रहे है। मेरी और से उन सभी महान वीर योद्धाओं और स्वतंत्रता सैनानियों को शत-शत नमन...
लेकिन अब इस पावन अवसर पर सब कुछ महज़ एक औपचारिकता बनकर रह गए हैं। स्कूल और कॉलेज में तो शायद अब भी थोड़ा बहुत लगता होगा कि कोई विशेष दिन या विशेष त्यौहार है। मगर आम जनता में अब वो बात नहीं दिखती और अगर कभी किसी मुद्दे पर जनता न्याय के लिए एक जुटता दिखाये भी तो सरकार उन बेगुनाह मासूम लोगों की खबरों में लाठी चार्ज करवाती है यह सब पढ़कर और देख सुनकर तो यही लगता है कि अब इस स्वतन्त्रता दिवस के मायने ही नहीं बचे क्यूंकि सच्चे देश भक्तों के साथ सीमा पर आए दिन क्या हो रहा है, यह तो आपको भी दिख ही रहा होगा जो किसी की भी नज़रों से छुपा नहीं है। जो वास्तव में हकदार है इस पावन अवसर को मनाने के वो मातम मना रहे है और जो झूठे और मक्कार लोग हैं वह देश को बेच-बेच कर न सिर्फ खा रहे है बल्कि उसका जश्न भी मना रहे है।
लेकिन कहीं न कहीं जनता भी इस सब से अछूती नहीं है। अब देश में क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए जैसी बातों से बहुत कम लोगों को फर्क पड़ता है शायद इसलिए लोगों को कौन सी फिल्म कब रिलीज़ होने वाली है कौन से अभिनेता का जन्म दिन कब आता है। यह सब हर साल याद रहता हैं मगर स्वतन्त्रता संग्राम में शहीद हुए हजारों लाखों स्वतंत्रता सैनानियों का जन्मदिन या उनका शहीद दिवस कब आता है यह याद नहीं रहता। इसमें भी गलती लोगों की कम और मीडिया की ज्यादा है जिसका सबूत है अख़बार की सुर्खियां आप किसी भी अख़बार के ई-पेपर पर जाकर देख लीजिये आपको फिल्मों की चटपटी खबरों का भंडार ज्यादा मिलेगा और देश की खबरें कम क्यूंकि यदी वह ऐसा नहीं करेंगे तो उनका अख़बार बिकेगा कैसे। अब जब बात अखबारों की ही चली है तो आप भी शायद इस बात से सहमत हों कि फेस्बूक जैसी सोशल साइट भी अब अखबारों से कम नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे कुछ लोग टीवी के सामने बैठकर अपडेट छापते रहते हैं।
अभी कल ही की बात ले लो कल खुदी राम बॉस जी की शहादत का दिन था। मगर कितने लोग हैं जिन्हें यह स्वर्णिम अवसर याद रहा। यहाँ मैं विशेष रूप से उन लोगों की बात कर रही हूँ जो, जब देखो सारा-सारा दिन या लगभग रोज़ ही कोई न कोई सुविचार छापते रहते हैं या भगवान की फोटो सांझा करने का ज्ञान देते रहते हैं कि इसे अभी सांझा करो कुछ अच्छा होगा या कोई अच्छी ख़बर मिलेगी इत्यादि। यूं तो फेस्बूक पर जाने क्या-क्या सांझा करते हैं लोग, मगर कल इस वीर के प्रति सहानुभूति सांझा करने वालों की संख्या बहुत कम दिखाई दी। मैं मानती हूँ कि इज्ज़त दिल में होनी चाहिए दिखावे में नहीं, मैं खुद इसी बात में विश्वास रखती हूँ। इसलिए मैंने खुद ऐसा कुछ सांझा नहीं किया। यूं भी मैं उपडेट बहुत कम ही करती हूँ।
खैर मैं भी क्या बात कर रही थी और कहाँ आ गयी। आज हमारे देश के जो हालात है उन्हें देखते हुए तो ऐसा लगता है उसके लिए कौन जिम्मेदार है यह कहना शायद नामुमकिन सी बात है। क्यूंकि इस सब का घड़ा केवल राजनीति पर फोड़ना भी पूरी तरह सही नहीं होगा। हाँ यह ज़रूर कहा जा सकता है कि मुख्य रूप से जिम्मेदार हमारे नेतागण ही हैं। मगर बाकी कई और भी ऐसी चीज़ें हैं जो हमारे मासूम बच्चों के कोमल मन पर देश के प्रति वो मान सम्मान, वो जोश खरोश वाली भावनाएं जगा पाने में असमर्थ है। कहते हैं बच्चे वही चीज़ जल्दी सीखते हैं जो वह देखते हैं। अगर यह बात सच है तो फिर आज की तारीख में या तो बच्चों को कोई ऐसा दिख नहीं रहा है। जिसको देखकर वो कुछ अच्छा सीखें अर्थात "उस जैसा" बनना है वाली बात सीख सकें और ऐसा तो हो नहीं सकता कि ऐसे लोग ही नहीं है। तो फिर क्या कारण हो सकता है कि आज के बच्चे अच्छी बातें कम और बुरी बातें ज्यादा जल्दी सीख रहे हैं। तो फिर तो एक ही बात बचती है वो है हमारा मीडिया और तकनीक जिसने हमारे लिए यदि ज्ञान के नए भंडार खोले तो वहीं दूसरी और भटक जाने के गलत रास्ते भी उसी ने खोले।
इंटरनेट को ही ले लो जिसने जहां हमें छोटी से छोटी जानकारी आसानी से उपलब्ध कराई लेकिन ना सिर्फ सही बल्कि गलत जानकारी को भी सारे आम लोगों के सामने परोस दिया। रही सही कसर अखबारों ने पूरी कर दी जिसमें खबर के नाम पर बस जुर्म ही जुर्म दिखाई देते हैं या फिर विज्ञापन का भंडार, अब बची फिल्में तो उसमें से गिनी चुनी ही ऐसी होती है, जिन्हें आप पूरे परिवार के साथ मज़े से देख सकें। छोटे पर्दे पर सास बहू की नौक झौंक से फुर्सत नहीं है लोगों को, ले देके एक दो सीरियल देश भक्ति पर बन जाये तो उसमें भी खामियां निकालने में लगे रहते हैं लोग, अब भला ऐसे में बच्चों के सामने कौन सा ऐसा उदाहरण बचता है, जिसे देखने के बाद बच्चों के मन में देश प्रेम के प्रति किसी तरह के कोई बातें घर कर सके।
ऐसा नहीं है कि अच्छाई ख़त्म हो चुकी है और अब बस बुराई का ही राज है। अच्छाई आज भी ज़िंदा है मगर शायद इस मीडिया की मेहरबानी की वजह से अच्छाई कहीं छिपी रह जाती है और आम जनता के सामने टीआरपी को बढ़ाने के चक्कर में केवल बुराई को ही मिर्च मसाला लगा-लगा कर कुछ इस तरह से लोगों के सामने रखा जाता हैं कि सब को वही सच नज़र आने लगता है और नतीजा "अच्छाई" मीडिया की TRP के चक्कर में गेहूं के साथ घुन की तरह पिसकर रह जाती है। आप सब की क्या राय है।
मुझे अपने लिखे एक पोस्ट की याद आ गयी जो शायद दो तीन साल पहले लिखा था मैंने...
ReplyDeleteबात आपकी ठीक भी है, १५ अगस्त या फिर २६ जनवरी अब शायद महज औपचारिकता बन कर रह गए हैं.
और अपने बेटे को लेकर चिंता क्यों करती हैं, वो समय के साथ साथ सब सीखेगा...और आप तो अच्छी परवरिश दे ही रही हैं उसे और अच्छे संस्कार और अच्छे ज्ञान भी!
ReplyDeleteआज बस एक छुट्टी से ज्यादा नहीं है १५ अगस्त का दिन ... और इन सब के लिए हम सभी दोषी हैं ... देश प्रेम के जज्बे को बरकरार नहीं रख सके हैं ..,
ReplyDeleteअब तो लोग खुद को जान लें - यही काफी है
ReplyDeleteसमस्या बडी विकट है.
ReplyDeleteरामराम.
bahut dikkat hai.. par kya kar sakte hain... :)
ReplyDeleteसमय ऐसा आ गया है कि युवाओँ के पास इतना ही समय बचा है कि वे उतना और वही पढ़ते हैं जितना हाँडी़ चढ़ जाए. औरों का क्या कहूँ, बचपन में जो उत्साह मैं महसूस करता था, अब वह नहीं है. स्वतंत्रता, भ्रष्टाचार और ग़रीबी का ऐसा मिश्रण देश में हुआ है कि स्वतंत्रता प्राप्ति पर शक होने लगा है और 15 अगस्त केवल एक तारीख बन गई है. देश के लिए दुआएँ करते रहना चाहिए.
ReplyDeleteअब बाड़ ही खेत को खा रही है. फिर तो भगवान ही रखवाला है.
ReplyDeleteसमय बदलने के साथ स्थितियां बदल गई पहले की अपेक्षा अब सब कुछ बदल गया है. अपनी मिट्टी की खुशबू ज़हन में रची बसी रहे यह कम नहीं है। ..
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. समय के साथ साथ अब सब कुछ बदल गया है। अपनी मिट्टी की खुशबू ज़हन में रची बसी रहे यह कुछ कम नहीं है..
ReplyDelete15 अगस्त का पावन अवसर महज़ एक औपचारिकता बनकर रह गया हैं।
ReplyDeleteRECENT POST : जिन्दगी.
बिलकुल सही कह रही हैं आप पल्लवी जी ! बच्चों के मन में देश प्रेम का वह जज्बा आज दिखाई नहीं देता जो हमारे मन में अपने बचपन में हुआ करता था ! और कदाचित इस अवमूल्यन का कारण हमारे नेताओं का भ्रष्ट आचरण और अनैतिक कृत्य हैं जिन्होंने बच्चों की सोच और उनके व्यक्तित्व के विकास को दिग्भ्रमित किया है ! विचारणीय आलेख !
ReplyDeleteवन्दे मातरम
ReplyDeleteहाँ , औपचरिकता भर ही है..... बच्चों में पाने देश के प्रति लगाव ज़रूरी है, वे ही भावी नागरिक हैं .....
ReplyDeleteआज स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस महज़ औपचारिक बन कर रह गए हैं .... विचारणीय लेख ।
ReplyDeletesahi baat
ReplyDeleteराष्ट्र की आराधना एक अप्रतिम उत्साह भर देती है।
ReplyDeleteवक्त के साथ साथ सब कुछ बदल रहा है .....
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
बहुत बढ़िया सार्थक आलेख पल्लवी जी
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
सब के मन की बात कह दी आपने। विचारणीय।
ReplyDeleteआज प्रत्येक राष्ट्रीय पर्व सिर्फ एक औपचारिकता बन कर रह गया है...शायद आज का नेतृत्व बहुत हद तक इसके लिए उत्तरदायी है...
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित आलेख..
बिल्कुल सही कहा... सार्थक और सारगर्भित आलेख पल्लवी जी ..
ReplyDelete