Monday, 29 December 2014

ज़िंदगी

ज़िंदगी


ज़िंदगी एक बहुत बड़ी नियामत है जिसका कोई आकार-प्रकार, कोई आदि कोई अंत नहीं है। जहां एक और एक ज़िंदगी खत्म हो रही होती है। वहीं दूसरी और न जाने कितनी नयी ज़िंदगियाँ जन्म ले रही होती है। क्यूंकि ज़िंदगी तो आखिर ज़िंदगी ही होती है। फिर चाहे वो मानव की हो या किसी अन्य जीव जन्तु की, होती तो ज़िंदगी ही है। ‘यह वो शब्द है’ जो ‘ईश्वर की तरह’ है। अर्थात जो जिस रूप में इसे देखता है, इस विषय में सोचता है। यह उसे वैसी ही नज़र आती है। किसी के लिए पहाड़ तो किसी के लिए शुरू हो से पहले ही खत्म हो जाने वाली एक छोटी सी डगर। अमीर घर में पैदा हुए किसी बच्‍चे के लिए ज़िंदगी कुदरत का अनमोल तोहफा होती है, तो बहुत ज्‍यादा गरीबी में ज़िंदगी कुदरत का अभिशाप भी बन जाती है।
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