यूं तो सुखद बचपन की कोई परिभाषा नहीं होती। मगर फिर भी जहां निजी जरूरत की पूर्ति के साथ-साथ बड़ों का आशीर्वाद हो, उनका प्यार दुलार डांट डपट सभी कुछ मौजूद हो, जीवन के वो हँसते गाते पल हों जो जीवन शब्द को सार्थक बनाते हैं। वही तो सही मायने में बचपन कहलाता है।
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