Wednesday, 8 September 2010

My European countries experience

आज भी कभी जब मैं अपने मस्ती वाले या enjoyable days को याद करती हूँ तो सब से पहले मेरे दिमाग में चार  जगहों का नाम आता है. गोवा (भारत), यहाँ (UK), Switzerland और Paris (European countries).

अब अगर मैं गोवा की बात करूं तो क्या कहूँ वहां तो मैं honeymoon पर गई थी अब ये पढ़ कर तो आप सभी पढने वाले समझ ही गए होंगे कि वहां मुझे कितना मज़ा आया होगा, हमने बहुत सारी मस्ती की थी, दुनियादारी से परे खुल कर बिना किसी चिंता के बिलकुल आजाद पंछी के ज़िन्दगी गुजारी थी हमने वहां, कहने को वो केवल एक हफ्ता ही था मगर ज़िन्दगी के वो सबसे खुबसूरत दिन थे मेरे लिए, जिन्हें अगर मैं अपनी ज़िन्दगी की पुस्तक में लिखना चाहूं तो उसे सुनहरी अक्षरों से लिखना पसंद करुँगी आज भी जब वो दिन हम याद करते हैं तो ऐसा लगता है मानो कल की ही बात हो वहां का हर एक लम्हा जेसे हमारे लिए कीमती मोती या यूँ कहिये की हीरों के जैसा है. उन दिन को एक एक लम्हा हमारी ज़िन्दगी में आज भी महकता है और हमेशा महकता रहेगा वहां का हर एक लम्हा हमारे लिए एक महकते फूल की तरह है जिसकी खुशबू आज भी उत्तनी ही ताज़ा है जित्तनी के उन दिनों हुआ करती थी वो समंदर के किनारे की मस्ती वो बेधडक बिना मोटापे की परवाह किये चिकन खाना, Pastries खाना, वो रोज़ रोज मिलने वाले गुलाब के फूल का इंतज़ार, वो दिन की मस्ती वो रातों के खुमारी.... अगर मुझसे कोई पूछे की में अपनी अभी तक की ज़िन्दगी मैं से भी यदि अपने ज़िन्दगी के किसी एक हिस्से को असल में ज़िन्दगी का नाम देना चाहूं तो किसे दूंगी तो मेरा जवाब होगा GOA Golden days of my life ....खैर ये तो थी गोवा के बातें.

अब मैं शेयर करना चाहूंगी यहाँ अपने EUROPE के अनुभवों को, यहाँ आकर मैंने सब से पहली जगह देखी वो तो SWITZERLAND दिनांक १६-दिसम्बर २००७ भरी सर्दियौं मैं बर्फीली वादियौं में घूमने का एक अपना अलग ही अनुभव था वो, तब शायद ज़िन्दगी में मैंने पहली बार इतने गरम कपडे पहने होगे मगर सर्दी क्या होती है और किस हद्द तक हो सकती है. इस का पता मुझे -१३ डिग्री centigrade तापमान मे जाकर अहसास हुआ, ऐसा सर घुमा था मेरा कि आज भी याद है मुझे चक्कर आ गया था और मैं बर्फीले रास्ते पर से फिसल गई थी मैंने तभी अपने हाथ खड़े कर दिये थे कि मैं और आगे नहीं जा सकती... तब इन्होने मुझसे कहा तुम अंदर जाके restaurant में बेठो हम आते हैं और वहां जाने के बाद मैंने दो कप काफी पी और दो हॉट एंड चिली सूप भी पी डाले. पता भी नहीं किया कि उसमें क्या था क्या नहीं. उस वक़्त तो बस एसा लग रहा था कहीं से भी कैसे भी कुछ ऐसा मिल जाये जो शरीर को गर्मी दे सके, ऐसा ही एक बार तब भी हुआ था जब हमने GENEVA लैंड किया था और वहां भी कड़ाके की ठण्ड थी और सर्द हवाएं चल रहीं थी. झील के किनारे जो स्टील की रेलिंग लगी तो वो भी कम्पन से बज रही थी. लोग ऊनी टोपे पहने होने के बावजूद भी अपने दोनों हाथों से अपने कानो को ढके हुए निकल रहे थे मगर हम लोग इतनी कड़ाके के सर्दी मे भी फोटो खीचने और खिचवाने में लगे थे तभी जब ऐसा महसूस हुआ की अब ठण्ड बहुत जायदा बढ़ गई है तब कहीं जाके बड़ी मुश्किल से एक काफी शॉप मिली और हमने वहां जाके काफी ली और अपने पास रखे Egg sandwich खाए वहीँ हमको एक और हिन्दुस्तानी परिवार भी मिला जो कि Amsterdam  से आया था, जल्द ही हमारी दोस्ती भी हो गयी  और हमने उनके साथ भी अपनी sandwiches बाँट कर खायी. बहुत अच्छा लगा परदेस मे किसी हिन्दुस्तानी परिवार से मिलना. वहां हमने चार cities घूमी INTERLAKEN ,  BERN , ZURICH AND GENEVA . INTERLAKEN में हमको बहुत आसानी से हिन्दुस्तानी खाना मिल गया था मगर बाकि जगहों पर थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा था क्यूंकि मन्नू (मेरा बेटा) छोटा था तो वो पिज्जा बर्गर जैसा कुछ भी नहीं खा पता था. मगर हाँ यहाँ मैं BERN मे खाए गए पिज्जा का स्वाद कभी नहीं भूल सकती उस दिन भी कड़ाके की ठण्ड थी, यहाँ तक कि बर्फ गिरना भी शुरू होगयी  थी और भूख से भी बुरा हाल हो रहा था तब हम वही के एक restaurant मे गए और पिज्जा मंगवाया और मिर्च के तेल के साथ उसने वो पिज्जा हमको खिलाया वैसा पिज्जा मैंने आज तक फिर कभी नहीं खाया. पिज्जा खाने का भी एक अलग सा ही अनुभव था वो मेरा. आज भी जब कभी मैं कोई भी पिज्जा मंगवाती हूँ या खाती हूँ तो एक बार BERN के उस restaurant Pizzeria को एक बार ज़रूर याद करती हूँ.

कुछ ऐसा ही मजेदार किस्सा हुआ था पहले दिन भी कहने को मजेदार था मगर अंदर से मैं थोडा डर गई थी वेसे तो ये बात सब से पहले बताने वाली है मगर मैं ही सब से आखिर में बता रही हूँ हम लोगों को Interlaken पर उतरना था. मैं और मन्नू हम दोनों तो उतर गए मगर मनीष (पतिदेव) नहीं उतर पाए और ट्रेन आगे निकल गई. उस वक़्त उन दिनों मेरे पास अपना खुद का मोबाइल भी नहीं हुआ करता था कि मनीष हम से संपर्क कर सकें. और तो और मनीष का मोबाइल मेरे पास था अब मुझे ये लगने लगा था कि मैं उनसे contact कैसे करूं.  उपर से मन्नू ने अपने पापा को न पाकर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया. पहले तो मुझे इतनी घबराहट नहीं हुए थी मगर मन्नू के रोने से मैं बहुत घबरा गए थी कि क्या करूँ क्या न करूँ, कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था और वो कहते है न विनाशकाले विपरीत बुद्धी ...बस इतना ही बहुत है कुछ ग़लत नहीं हुआ. मगर उस वक़्त मेरे दिमाग ने काम करना बिलकुल बंद कर दिया था और जो करता भी तो मन्नू के रोने ने मेरे हाथ पैर फुला दिए थे. तभी  मनीष ने किसी और के मोबाइल से मुझे कॉल करके बताया कि वो अगले स्टेशन पर उतर गए हैं और १० मिनिट में आ रहे हैं. तब कहीं जाके मेरी  जान मे जान आई ...क्योंके वहां सब से बड़ी अड़चन थी भाषा की, वहां इंग्लिश कम ही लोग जानते हैं ये सोच कर मैं और भी घबरा गयी थी ..खैर ये सब हुआ और उसके १० मिनिट बाद ही मनीष आगये और सब ठीक हो गया. ५ दिन हम लोगों ने खूब मस्ती की और "दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे" से प्रेरित होकर वो गाय के गले में बाँधने वाली घंटी भी खरीदी...सच कहते हैं लोग, धरती पैर स्वर्ग है SWITZERLAND . जित्तना खूबसूरत सर्दियों मे है उतना ही गर्मियों मैं भी ...ऊपर से हम लोग Christmas के आस पास वहां थे  तो वहां के रोनक्  और भी ज़यादा देखने लायक थी. बर्फ् से ढकी सजीली सड़कें चारों तरफ रौशनी ही रौशनी भरे हुए सजीले मार्केट. फुल ऑफ गिफ्ट आईटम्स, chocolates तो वहां खुली मिलती है ठेलों पर. बिलकुल हमारे हिंदुस्तान की तरह और तौल कर मिलती हैं.  हमलोग वहां से सबके लिए वही लाये थे, उपहार के रूप में देने के लिए और अच्छी बात तो ये है कि सबको पसंद भी बहुत आई  थी.

अब बात आती है PARIS की. यहाँ जाने का हमारा प्रोग्राम दो बार पहले भी बना, एक बार तो बस सोच कर ही रह गए थे दूसरी बार मनीष के दो colleague परिवार के सांथ जाने का प्रोग्राम बना मगर वो लोग तो गए,  हम नहीं जा पाए क्यूँकी मेरे नवरात्री का उपवास आ रहा  था बीच में, तो वहां फिर खाने पीने की समस्या हो जाती इसलिए हम लोगों ने मना कर दिया था कि हम नहीं जा पायेंगे. तब तक तो हम लोगों को Schengen वीसा भी नहीं मिला था ...उसके बाद इस बार जाके finally प्रोग्राम बना और हम लोग ७- अगस्त -२०१० को जापाये. पहले की बात करूँ तो में यह कह सकती हूँ की मन्नू को शायद पहले इतना मज़ा नहीं आता जितना की उसने इस ट्रिप में मस्ती की और वो बहुत उत्साहित भी था, EURO STAR TRAIN  को लेकर और DISNEY LAND के नाम से.
उसे अगर कुछ घूमना था PARIS में तो वो बस एक मात्र DISNEY LAND ही था और दूसरा इस ट्रेन का आकर्षण भी उसे बहुत बेसब्री से इंतज़ार था कि कब ट्रेन पानी में से निकलेगी मगर कब निकल गई हमको ही पता नहीं चला तो उसे कहाँ से चलता ..उसके दिमाग में शायद ये कल्पना थी कि जब वो ट्रेन से बाहर देखेगा तो उससे पानी दिखेगा. जैसे कि  अक्सर बच्चों कि कल्पनाये हुआ करती हैं ,मगर न तो उसको उसकी कल्पना के अनुसार ही कुछ मिला और न हमको ही ऐसा कुछ महसूस हुआ. इस ट्रेन का अनुभव कुछ वैसा ही रहा जैसे वो कहावत है "ना नाम बड़े और दर्शन छोटे". बस बिलकुल वेसे ही कुछ अलग या खास महसूस नहीं हुआ की ये इतनी FAST ट्रेन है तो कुछ अलग सा लगे, और मज़े कि बात तो ये लगी थी जब हम  वहां पहुचे तो वहां के स्टेशन(Gare Du Nord ) के पास वाली रोड पर ऐसा लगा ही नहीं के हम लोग PARIS में खड़े हैं. ऐसा लगा था मानो हम दक्षिण भारत में ही खड़े हों चारों तरफ केवल South INDIAN MARKET और INDIAN FASHION , यहाँ तक के साड़ियाँ भी मिल रही थीं. हमने वहां के खूब फोटो खींचे और वहीँ एक SOUTH INDIAN रेस्तोरेंट में खाना खाया और उसके बाद ट्रेन पकड़ी अपने होटल के लिए. इसके बाद मन्नू को वहां पहुँचते -पहुँचते तक EIFFEL TOWER का भी आकर्षण बहुत हो गया था क्यूंकि उसने  ट्रेन से EIFFEL TOWER देखा तो उसे बहुत मज़ा आया और बहुत उत्साहित भी हुआ, कि उसने सब से पहले इतनी दूर से ही देख लिया ..वेसे अगर सही मायने में कहो तो PARIS का एक मुख्य आकर्षण है EIFFEL TOWER,
दूसरा LOUVRE MUSEUM  और तीसरा DISNEY LAND . ये तीन ही जगह सब से जादा खास हैं. PARIS में वेसे देखने को बहुत कुछ है और ३ दिनो में लगभग हमने सभी कुछ घूम भी लिया था बस हमारा कुछ  छूटा था तो वो था बोट का NIGHT TRIP जो की वहां कि एक खास आकर्षण कि श्रेणी में आता है. वहां पहुँचते से ही हम लोगों ने घूमना शुरू कर दिया था. वैसे तो आम तोर पर काम चल गया मगर वहां एक बात जो पसंद नहीं आयी हमको वो तो "भाषा" यानि कि वहां सैलानियौं के लिए भी कहीं इंग्लिश में कुछ नहीं लिखा था हर जगह सब कुछ बस फ्रेच भाषा मैंने ही था तो कहीं -कहीं थोड़ी बहुत दिक्कत का सामना  करना पडा, और ये बात मुझे कुछ ज्यादा ही महसूस हुई क्यूँकि जब हम वापस लौट कर CRAWLEY आये यानि (UK ) आये तो ऐसा लगा मानो अपने ही देश में वापस आये हों जो की मुझे आज से पहले कभी नहीं लगता था (UK) में ये एहसास मुझे हमेशा भारत जाने पर ही महसूस हुआ करता था, अपना देश अपनी मिटटी वाला एहसास वो मुझे FRANCE से वापस आने के बाद हुआ, UK में ये मेरे लिए बहुत आश्चर्य की बात लगी मुझे अपने आप मैं. खैर जो भी हो हम ने खूब मस्ती की और घुमने का भरपूर लुफ्त भी उठाया.

मन्नू को भी DISNEY LAND बहुत पसंद आया उसका तो मन ही नहीं हो रहा था, वहां से वापस आने का Incidence मुझे आज भी याद है उसने कहा था, हमसे की जब सारे कार्टून्स सोने जाएंगे तब हम घर चलेंगे माँ ...और वहां से आने के बाद भी कई बार उसने कहा था, मुझे DISNEY LAND की याद आ रही है, मुझे वहां वापस जाना है और EIFFEL TOWER का भी कम उत्त्साह नहीं था. उसने ५-६ Keyrings भी लिए जिसमें EIFFEL TOWER के MINIATURE रेप्लिका लगे हुए थे हम लोगो ने भी सब से ज्यादा Effiel  Tower ही ENJOY किया था क्यूंकि वो हमारे होटल के बहुत करीब था, इतना कि बस ५ मिनट का रास्ता. तो लगभग रोज़ ही देखा करते थे हम. दूसरा हमको सब से ज़यादा कुछ पसंद आया तो वो था LOUVERE MUSEUM वो तो इतना बड़ा है कि एक दिन में घूम पाना तो संभव ही नहीं है.  वहां का हर एक section अपने आप में अद्भुत है चाहे वो चित्रकारी का हो, या फिर मूर्ति कला सभी कुछ अपने आप में बहुत अद्भुत है. वहीँ उसके अंदर एक NAPOLEON का महल भी है . उसमें जो राजसी चमक देखने को मिलती है आज भी वैसे ही है. इतने सालों बाद जैसे वहां के लोगों ने उसे संभाल कर रखा हुआ है वो सच में देखने लायक है. जिसे देख कर आज भी लोगों के आंखें चोधिया जाती हैं और सच में महसूस होता है की सच में ऐसा होता है महल. मगर इसका मतलब ये हर्गिज़ नहीं की भारत में ये सब देखने को नहीं मिलता. असल मैं मैंने नहीं देखा इसलिए मुझे यहाँ का ज्यादा अच्छा लगा. भारत में भी ये सब होगा मैंने नहीं देखा है की वहां कैसा है, क्या है मगर हाँ यहाँ के जैसी  देखभाल वहां भी है या नहीं ये में नहीं कह सकती. मगर हाँ इतना ज़रूर कह सकती हूँ की  एहसास ज़रूर एक सा है जो वहां की राजा या रानी के सामान को देखकर लगा यानि जो दिमाग में एक कल्पना बनती है, कि रानी ऐसी लगती होगी, वैसा राजा लगता होगा. जब वो लोग इन चीज़ों को इस्तेमाल करते होंगे. वो एहसास एक से हैं क्यौंकी मैंने भारत में ऐतहासिक जगहों के नाम पर GWALIOR का किला और दिल्ली की जगहों को ही घूमा है और वहां भी वो सब देखकर मुझे ऐसा ही महसूस हुआ था. ऐसी ही कुछ कल्पनाये बनी थी मन में.... खैर मुझे अपने बिंदु से भटकना नहीं चाहिये, मैं बात कर रही थी तो PARIS की वेसे तो हमको यहाँ जितने  भी हिन्दुस्तानी परिवार जो कि हम से पहले Paris  घूम कर आ चुके हैं उन्होंने पहले ही काफी कुछ बता दिया था मगर फिर भी थोडा तो आश्चर्य लगता ही है. कि ऐसी जगह जहाँ कोई  इंग्लिश नहीं समझ  रहा हो और आप को सुने मिले ''रस्ते का माल सस्ते में, १ EURO में ५ कीरिंग लेलो'' तो आप बहुत ही अचंभित तरीके से प्रतिक्रिया करते हो वेसे ही जब किसी नीग्रो के मुंह से नमस्ते सुनो तो भी बहुत अजीब लगता है या यूँ कहो कि मुझे लगा,  क्यूंकि मैंने आज तक अंग्रेजों के मुंह से तो बहुत हिंदी सुनी थी मगर कभी किसी नीग्रो के मुंह से नहीं और ऐसे में जब वो आप से बोले "नमस्ते कैसे हैं आप, सब चंगा" तो बहुत ही अजीब लगता है. मुझे तो लगा......सबको लगता है या नहीं वो मुझे पता नहीं ...मगर इस ट्रिप का भी अपना एक अलग ही मज़ा था अपना एक अलग सा अनुभव जो मुझे हमेशा याद रहेगा ... वहां हमने जितना पिज्जा और बर्गर खाया था उतना पहले कभी नहीं खाया. वापस आने के बाद तो जैसे इन चीज़ों से नफरत सी होगी थी, मन ही नहीं करता था. बहुत दिनों तक इन चीज़ों की तरफ देखने तक का, हम तो हम मन्नू का मन  भी नहीं जबकि उसको पिज्जा बेहद पसंद है मगर वो भी यहाँ आने क बाद साफ़ मना कर देता था की वो नहीं खाना. सादा खाना चाहिये. वो ४ दिन कैसे निकल गए पता ही नहीं चले और अब बस यादें -यादें रहे जाती हैं ....

7 comments:

  1. padtey samy aisa lagta hain ki hum khud hi ghoom rahey they.

    nice and superb attmept.

    keep writin

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  2. very nicely written aur bahut he acche se describe kiya hai every vist ko ,meri poori UK vist remind ho gai hai and what to say my dream place Paris essa laga ki main khud he wahan per hoon.. and the best think about this blog is the starting relay very well.. it makes you to read whole.. i just want you to keep writing as much as possible so that we can get benefited with you experience and can feel the way you feel there..Happy Writing and Keep writing...

    cu at ur next blog :)

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  3. thx for completing my europe visit , as you know i was there for very short peroid & missed everything out there,except one or two rural areas of SPAIN .

    aap k anubahv , mere anubahav ban gaye aur bahut detail se baney hai ................

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  4. switzerland होकर भी शायद फ्लाईट जाती हैं लन्दन?है न???या फिर वहां स्टॉप लेती होंगी....
    एक दोस्त की बहुत नटखट यादें जुड़ी हुई हैं...ओ बताया करती थी की कहानी कहाँ वो घूमी switzerland में दस घंटे के स्टॉप में..

    बहुत सैर करवा दिया आपने यहाँ :)

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  5. कल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    बहुत मुश्किल सा दौर है ये

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