Tuesday, 21 September 2010

Village visit...

गाँव एक ऐसा शब्द है जिसको सुनते ही ज्यादातर भारतवासीयों को अपनत्व की भावना उत्पन्न होने लगती है, आँखों के सामने वहां के सारे चित्र दिखाई देने लगते है बिलकुल एक चलचित्र कि तरह, जैसे भारत से बाहर रह कर हम भारत को बहुत याद करते हैं ठीक वैसे ही भारतवासी भारत में रहे कर खुद के गाँव को बहुत याद किया करते हैं, बच्चों के दादा दादी, अपने नाती पोतों को अपने-अपने गाँव के किस्से  सुनाया करते हैं कि उन्होंने कितने  मज़े किये हैं अपने गाँव में और उनकी कितनी सारी यादें जुडी हैं उनके अपने गाँव से और आज कि युवा पीढी (young generation ) उसने तो गाँव नाम कि चीज़ सिर्फ फिल्मों में ही देखी है, जैसा सुहाने गावँ का नक्शा उसमें खिंचा जाता है उससे बच्चे यही समझते हैं कि सच में हर गाँव ऐसा ही होता होगा, यहाँ तक कि मुझे भी ऐसा ही लगता था और अगर सच कहूँ तो शायद पंजाब के गाँव ऐसे ही होते भी होंगे लेकिन मैंने जो गाँव अपनी ज़िन्दगी में पहली बार देखा था वो था राजस्थान राज्य  के झालावाड जिले का एक छोटा सा गाँव जिसका नाम था "डग" जो कि.....इंदौर से कुछ 200 km दूर है.



वहां मैं अपनी मौसी और अपने बड़े भाई के साथ गयी थी और मेरे साथ मन्नू भी था, वहां जाकर पहली बार मैंने जाना कि खेत क्या होते हैं, कैसे दिखते हैं, वहां मैंने पहली बार लहसुन का खेत देखा और जो कुछ भी मैंने वहां देखा सब एक तरह से पहली बार ही देखा था, सिवाय एक कुंए के. वहां पास ही में एक खुली प्याऊ जैसी थी जिसमें जानवरों के पीने के लिए पानी भरा जाता था, वो भी मैंने पहली बार ही देखा था. वो मेरे लिए एक बहुत ही अच्छा और यादगार अनुभव है, वहां मैंने पहली बार मिट्टी में गड्ढा करके बाटी बनाते देखी और खेत में बैठ कर खाने का मज़ा और स्वाद तो मुझे आज तक याद है, तब मुझे मेरे भाई साहब ने ताज़े ताज़े खोद कर  निकले हुए लहसुन को आग में भून कर खिलाया था खाने के साथ, तब उस वक़्त मुझे वो बहुत अच्छा लगा था मगर उसके बाद से आज तक फिर वो स्वाद  मुझे कभी नहीं मिला जो उस दौरान मिला था. फिर मेरे मौसी मुझे भिन्डी और फलियौं(French beans ) के खेत में लेकर गयी थीं वहां मैंने पहली बार अपने हाथों से सब्जियां तोड़ीं, मन्नू को भी बहुत मज़ा आरहा था.

उस दिन बहुत मज़े और  मस्ती की थी हम ने. यहाँ तक के आम के पेड़ों से कैरियां तोड़ी थीं और हम आस पास कि बहुत सारी जगह भी घुमने गय थे. जैसे वो गुरु चेला कि समाधी जिससे एक कहानी जुडी है कि वो समाधियाँ पहले दो अलग स्थानो पर थोड़ी दूरी पर बनाई गयी थी, मगर अब धीरे-धीरे पास आती जा रही हैं. ऐसा कुछ मगर अभी पूर्ण रूप से मुझे भी याद नहीं है. खैर उस बारे  में फिर कभी ...वहां पास में एक देवी का मंदिर भी हैं वहां भी गए थे हम और वहीँ एक चमत्कारी हनुमान मंदिर भी  है. हम वहां थोडा ऊपर वहां भी गए थे,  इतने करीब से मन्नू ने शायद पहली बार हकीकत में बंदर और मोर देखा था, हम सब ने उसका फोटो खीचने के लिए तो बहुत जतन  किये थे, हमारे साथ एक और शख्स थे जिनका नाम था पार्थो दादा, वो तो मोर के पीछे मेरा cell फ़ोन लेकर काफी दूर तक गए थे, मगर जैसा फोटो वो खींचना चाहते थे वैसा नहीं खिंच पाए थे. वहां जाने पर एक अरसे बाद में छत पर सोई थी वो रात को छत पर लेटे-लेटे चाँद को देखते हुए सोना और सुबह -सुबह चिड़ियों कि चहचहाने से उठना, उसके बाद पोहा और गाँव के बाज़ार में बनी जलेबी का नाश्ता, जिस पर हल्की सी धूल कि परत भी थी. मगर  बिना कुछ देखे बिना खा लिया, गावं का स्वाद पूरी तरह लेने के लिए. पूरी तरह उन सारे अनुभवों का लुफ्त उठाया, यहाँ तक कि मैंने वो १ रुपये वाली रंगीन ice cream भी खाई और मन्नू को भी खिलाई, तब यह जान कर बहुत अजीब लगा था कि अब भी १ रूपये में कुछ मिलता है  जिसमें मुंह से लेकर हाथ पैर तक सब रंगीन हो जाता है. बिना यह सोचे समझे कि वो किस पानी से बनी है या कब की बनी है मन्नू ने भी बहुत Enjoy की थी वो ट्रिप या यूँ कहो कि सही मायने में उसने ही सब से ज्यादा आनंद उठाया था. खेत में घूमते वक़्त उसके पैरों में कई बार बहुत सारे कांटे भी चुभे, जिन्हे देखकर मुझे बहुत दर्द हुआ क्यूंकि उन नन्हे पैरों ने कभी जाना ही नहीं था कि कांटे क्या होते हैं.

इसलिए शायद मुझे दर्द हुआ था मगर उसे ज्यादा नहीं, क्यूंकि उसे तो मज़ा आरहा था अपने मामाजी के साथ मस्ती करने में उसे इन सब चीज़ों की कोई परवाह ही नहीं थी और मैंने भी उसे पूरी तरह उसे फ्री छोड़ दिया था.  इससे  मुझे मेरी मौसी की कही हुई एक बात याद आती है, खास कर जब भी मैं गर्मियौं में चाय पीती हूँ तब, बात उस वक़्त कि है जब हम सब लोग खेत में बैठ कर खाना खा  रहे, तब आंधी आई थी और सभी की पत्तलों में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी मिल गई थी तब सबने कहा था कोई बात नहीं, कभी कभी खाने के साथ अपनी मिटटी का भी स्वाद ले लेना चाहिये और उस के बाद जब एक नींद लेने के लिए वहीँ खेत में चटाई  डाल के सोये, पता नहीं कब नींद आ गयी थी, जब कि वहां इतनी ज्यादा सड़ी गर्मी थी कि सारे कपडे पसीने से भर गये थे, तब भी बहुत सुकून की नींद आई थी. उस के बाद वहां जब में उठी तो मौसी ने मेरे भैया से चाय लाने  के लिए कहा, उस पल मुझे ऐसा लगा कि यार इतनी सड़ी गर्मी भरी दोपहर में चिलचिलाती धूप में मौसी चाय के पीने के बारे में सोच भी कैसे सकती हैं. और मैंने उनको बोला भी था कि इस टाइम चाय, तो वो बोलीं हाँ यही सही वक़्त है चाय का, ठंडा पीने का नहीं. क्यूंकि जैसे ''जहर को जहर काटता है वेसे ही गर्मी को गर्मी मारती है'' ऐसे में अगर तुमने ठंडा पिया तो (लू) लग जाएगी और चाय पीने तो कुछ नहीं होगा और फिर उसके बाद सब ने गरम-गरम चाय पी और फिर शाम को वहां से वापस इंदौर के लिए रवाना हुए, रास्ते में खूब चाट भी खाई और उज्जैन में Ice cream भी.



 अन्तः मैं इतना ही कहना चाहूंगी अपने सभी पाठकों से कि आप भी अपने बच्चों को अपने गाँव ज़रूर लेकर जाइये, आपका अपना ना  भी हो तो भी ज़रूर लेकर जाइये और उन्हें अपनी मिटटी से मिलवाइये. उनको बताइए  कि क्यूँ भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है और कैसा लगता है अपने गाँव कि मिट्टी से मिलकर, उसे जुड़ कर. वहां कि यादों में खो कर उस मिट्टी के सहारे अपने देश से जुडी भावना को महसूस करके. एक किसान कैसे और कितनी मेहनत  करता है जिसके बाद आप को खाना मिलता है और अपने बच्चों को गावं से जुडी सभी जानकारियाँ दीजिये.  ताकि आगे चल कर वो समझ सके अपने देश कि अहमियत को और एक किसान की महनत को भी और अपने संस्कारों को भी ......

इस यादगार यात्रा के कुछ फोटो Mannu In DAG

9 comments:

  1. Really very heart touching, specially last part of the post. your writing is also improving day by day.

    Pics of the post.
    http://picasaweb.google.com/nimishgaur/MannuInDAG

    Maneesh

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  2. aaj nimish dada bahut khush hoga
    aapney uski man maangi murad poori kar di hain shaayad

    aapko kaafi yaad raha dag trip ka
    great going

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  3. First of all congrats Pallavi ji, on writing this blog, you really write with complete zest.

    Writings and pictures are great to know about our acquaintances and keep in touch with each other...

    Best Wishes!

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  4. बहुत बधाई. निःसंदेह बहुत अच्छा लिखा है. तुम्हारे लेखन में डग सजीव हो गया.
    मैं यहाँ बताना चाहूँगा कि तुमको डग में इतना मजा इसलिये क्योंकि तुम पूरी तरह खुले विचार से गाँव की यात्रा करने गयीं थीं. तुम जो कि कुछ दिन पहले ही लंदन से आय़ीं थीं, इसके बावजूद न तुमने mineral water पीने की इच्छा जाहिर की और न मन्नू के लिये वह मंगवाया. जैसा देश वैसा भेष की कहावत को चरितार्थ करते हुये तुमने गांव में बिलकुल ग्रामीण जीवन जीया.
    इस बार तुम बिलकुम सहज लिख पायीं, यह धीरे धीरे आदत बन जाये बस इसी शुभकामना के साथ.
    इति.
    निमिष.

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  5. arey is title ( "VILLAGE Vsit" ) ko dekh kar laga ki aap koi UK k village ka bhraman kar k likh rahi ho , magar jab poora paraha tab tak toh mai apney naani k village mai pahuch chuka tha , and u know what's most facinating thing of a village ? as you said,"night sky" when one go to sleep on roof .and you see how mere look at depleted moon & countless stars with dark background gives wings to one's thoughts .........

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  6. bahut accha blog hai aur dil ko chu lena wala ... mujhe es ko padh kar apna village yaad aa gaya us se judi meri yaadein meri ankhon main chal ne lagi hai...really bahut accha anubhav hai village ka....also ur writing makes it more close to it so keep posting...

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  7. यहा मे सिर्फ़ इतना कहना चाहुगा कि
    भाई मज़ा आ गया...

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  8. Nostalgic post..आज के बच्चे गाँव से परिचित हैं कहाँ..मुझे अपने गाँव में बहुत अच्छा लगता था...अब तीन साल हो गए मुझे गाँव गए हुए...

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