आज मैं बात करुँगी आप से अपने Italy Tour की, कुछ कहने से पहले या लिखने से पहले मुझे याद एक हिन्दी फिल्म के गाने की कुछ पंक्तियाँ आ रही हैं
सफ़र की थकान के बावजूद भी हमने उस दिन खूब घूमा और अगले दिन (Gandole) गंडोले की भी यात्रा की गंडोला बोले तो एक तरह की नाव है जिस के ज़रिये वेनिस घुमा जाता है क्यूँकि वह पूरा शहर ही पानी में बसा हुआ है। वहाँ के घर की नींव पानी के अंदर (१० मीटर ) नीचे बनी हुई है और उसके बाद पानी के उपर रहने का स्थान शुरू होता है तभी वहाँ के लोग नीचे वाले हिस्सों में न रह कर पहले मंजिल से रहना शुरू करते हैं नीचे सभी का store room बना हुआ है पानी में बसा होने के कारण उस शहर की एक अद्भुत खूबसूरती है मगर जितना खुबसूरत है उतना ही महंगा भी बहुत है आधे घंटे गंडोले से घुमने का सफ़र हमको 100 Euro का पड़ा और होटल में रहने से, वहाँ खाने पीने तक सभी कुछ बहुत महंगा लगा। खैर... जब सोच ही लिया था कि घूमने जाना है तो क्या सस्ता और क्या महंगा। अगर में ४ जगहों को तुलना करके बोलूं तो मुझे वेनिस, पीसा और रोम बहुत ही अच्छी जगह लगीं। मगर सभी जगह बस एक ही दिक्कत का सामना करना पड़ा वो था खाने की समस्या। वहाँ कहीं दूर-दूर तक भारतीय खाने का नाम नहीं था जबकि पेरिस में ऐसा नहीं था, वहाँ काफी सारे भारतीय रेस्तरां थे मगर यहाँ एक था पर हम जहाँ रुके थे वहाँ से काफी दूर था। तो रोज़-रोज़ वही पिज्जा बर्गर खा कर काम चलाना पढ़ रहा था।
पिसा के टेढ़ी मीनार विश्व के सात (७) अजूबों में से एक है और हकीकत में भी उसे देख कर लगता है कि वो सच में अपने आप में एक अजूबा ही है ८ माले की मंजिल और इतनी टेढ़ी बनी हुई है और लोग उस पर चढ़-चढ़ कर देखते भी हैं तो लगता है इतने लोग चढ़ेंगे तो कहीं गिर ही न जाये। पीसा की मीनार पूरी संगमरमर की बनी हुई है और आप टिकट लेकर ऊपर तक जा सकते हैं, लेकिन ऊपर जाने के लिये २९६ सीढ़ी चढ़नी पड़ती हैं। मैं तो ऊपर नहीं गयी क्यूंकि ८ साल से छोटे बच्चों का जाना मना है तो मुझे मन्नू के साथ नीचे रुकना पड़ा। लेकिन मेरे पतिदेव ऊपर तक गये थे और उन्होंने बताया कि ऊपर से इतना अच्छा दिखता है और डर भी लगता है कि गलती से भी गिर गये तो हड्डी भी नहीं बचेगी :)...
हाँ मगर रोम में जाने के बाद एक एहसास जरूर होता है कि इन अंग्रेजों ने हमरे देश की खूबसूरती को तो नष्ट कर दिया मगर खुद के देशों में अपनी खुद की सभ्यता और संस्कृति को बहुत संभाल कर और सजो कर रखा है वो देख कर अच्छा भी लगता है और गुस्सा भी बहुत आता है इन अंग्रेजों पर मगर खैर किया भी क्या जा सकता है अब ...अगर सूक्ष्म रूप में कहूँ तो पूरे इटली में ईसामसीह के जन्म से लेकर उनके सूली पर चढ़ाये जाने तक और उसके बाद उनको उतार ने से लेकर Good Friday की कहानी ही सभी पेंटिंग्स में नज़र आती है मगर ताज्जुब की बात यह है कि इन सभी चीज़ों को अंग्रजों ने संग्रहालय (Museum) और गिरजाघरों (Churches)के माध्यम से इस कदर संभाल कर रखा है और लोगों के सामने प्रस्तुत किया है कि हर जगह से इन सभी स्थानों को देखने के लिये लाखों करोड़ों सैलानी आते हैं जिन में सब से ज़यादा Chinese होते हैं, इनका १५-१६ लोगों का एक-एक समूह होता है और किसी hall में बैठ जाओ और पत्थर फेंको तो इन चिन्कियौं को ही जाके लगेगा, ऐसा वाला हिसाब होता है. इन लोगों को देख कर लगता है कि इन के पास बहुत पैसा है यूरोप के हर देश में यह लोग बड़ी तादाद में घूमते फिरते नज़र आते हैं जबकि Europe UK से भी महँगी जगह है. यह तो थी रोम, पिसा और वेनिस की बातें.
अब बात करते हैं Florence की जो कि मशहूर है एक मशहूर मूर्तिकार माइकल एंजेलो (Micheal Angelo) के लिये जिसका पूरा बचपन Florence में बीता, उसके द्वारा बनाई गयी अनगिनत मूर्तियाँ वहाँ के संग्रहालयों में लगी हुई है, ख़ास कर डेविड की मूर्ती और Leonardo da Vinci ने भी अपनी पहली पेंटिंग वहीँ बनायी थी। Florence शहर देखने में बहुत छोटा सा है कि पैदल ही शहर की अधिकतर जगहों पर घूमा जा सकता है। सुनने में फ्लोरेंस का नाम ऐसा लगता है कि शायद वहाँ ऐसा कुछ खास नहीं होगा। हमको भी इटली जाने के पहले ऐसा ही लग रहा था मगर वहाँ पहुँचने के बाद हमने जाना वहाँ की खासियत क्या है।
Uffizi संग्रहालय में एक से एक पेंटिंग्स देखने को मिलती हैं खासकर वीनस का जन्म की पेंटिंग, उसके अलावा बहुत सारी मूर्तियाँ भी हैं. संग्रहालय घूमने के लिये गाइड लेना, मुझे अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा लगा. मगर यह ज़रूरी नहीं कि आप को भी ऐसा ही लगे, मुझे ऐसा इसलिए लगा क्यूँकि गाइड हर एक पेंटिंग के बारे में इतना विस्तार से बताता है की आप बजाय उसमें रूचि लेने के, बोर होने लग जाते हैं. लेकिन वहाँ के संग्रहालय में जो चीज़ें रखी हुए हैं वो ज्यादातर ऐसी हैं जो सिवाई वहाँ के पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है जैसे वहाँ रखे हुए कुछ म्यूजिक उपकरण जिस में से एक वोएलिन टाइप का था जिसके तार आज तक नहीं बदले गये और उनमें आज भी वैसे ही ध्वनी निकलती है जैसे कि तब निकला कारती थी
और एक था वहाँ रखा पियानो जिसकी खासियत यह थी कि उसका पिछला हिस्सा जो कि सामान्यता फ्लैट होता है, मगर वहाँ रखे हुए पियानो का पिछला हिस्सा खड़ा था और यह सब ऐसी चीज़ें हैं जो दुनियां में और कहीं नहीं है इसलिए शायद वहाँ फोटो लेनी की मनाही है ऐसे ही कुछ वहाँ लगी हुए पेंटिंग्स की भी खासियते हैं जैसे उदहारण के लिये मैं आप को बताऊँ Florence के एक संग्रहालय में Mother Mary की एक पेंटिंग लगी है वो सिर्फ इसलिये मशहूर है कि उसमें Mother Mary के थोड़े से दांत देखाए गये हैं और breast भी जो की एक पारदर्शी पहनावे के ज़रिये दर्शाने की कोशिश की गयी है और कुछ एक पेंटिंग इसलिए मशहूर हैं कि उनमें असली सोने का उपयोग किया गया है. वो ज़रूर देखने में बहुत अद्भुद लगता है जिस तरीके से उसमे सोने का इस्तेमाल किया गया है और जैसा कि मैंने आप को पहले भी बताया है कि फ्लोरेंस कला के क्षेत्र में बहुत ही मशहूर शहर रहा था और वहाँ के लोगों के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी इसलिए वहाँ की पेंटिंग्स तक में सोने का काम है और इतना ही नहीं वहाँ उस ज़माने में पहले सोने का काम पेंटिंग्स में ही नहीं, कपड़ों में भी किया जाता था इसलिए यहाँ माइकल एंजेलो और Leonardo da Vinci जैसे प्रख्यात कलाकारो ने अपनी कला की शुरुवात यहीं से की थी. मगर इन सब का फोटो लेना मना है यही नहीं वहाँ अधिकतर संग्रहालयों में फोटो लेना मना है, जबकि पेरिस में ऐसा कुछ कहीं नहीं था तो इस सब के आधार पर मैं कह सकती हूँ कि Venice में गंडोला, Florence में संग्रहालय, Pisa में मीनार और Rome में Collesum और St. Peter Basalica Church देखने लायक जगह हैं जिनहें देखने लोग दुनिया भर से आते हैं. यदि आप ने English फिल्म Gladiator देखी है
तो आप को Collesum के बारे में कुछ भी बताने की ज़रूरत ही नहीं है और यदि नहीं, तो एक बार देख लीजिये. उससे आप को ज्यादा अच्छे से समझ में आ जायेगा कि Collesum क्या है और कैसा हुआ करता था. उस ज़माने में फिल्म को देखने के बाद जब आप असली जगह को देखते हैं तो दिमाग में वही खूनी खेल की तस्वीरें उमड़ती हैं कि कैसे उस ज़माने कि लोग यहाँ वो हैवानियत का खेल कितनी आसानी से अपने मनोरंजन के लिये खेला करते थे.
मैं फिल्मों की बहुत शौकीन हूँ इसलिए मेरी हर बात किसी न किसी फिल्म से जुड़ जाती है जैसे Venice में Gandole की यात्रा करते वक़्त मुझे वो गाना याद आ रहा था ''दो लफ्फ्जों की है ये कहानी, या है मुहोब्बत या है जवानी ''फिल्म क नाम था The Great Gambler और जहाँ तक बात है St. Peter Basalica church की तो वो भी आप शायद जानते ही हों कि ये दुनिया का सब से बडा church है और pope भी यहाँ बैठते हैं. यह हमारे यहाँ के तीर्थ स्थानों जैसी जगह है. यहाँ के लोगों के लिये इसलिए शायद यह एक ही होने के कारण इतना मशहूर है और इतना भव्य है कि देखते ही बनता है इसके अंदर जो कलाकारी की गयी है जो संगमरमर लगाया हुआ है जो मूर्तियाँ लगी हुए हैं उनको तो बस एक बार देखो तो देखते ही रहो. पोप वहाँ खुद आकार Prayer करते हैं और करवाते हैं पोप से मिलने की इजाजत नहीं होती किसी को अब तक वहाँ जितने भी पोप हुए हैं सभी के इतिहास भी वहाँ मौजूद है सुना है कि वहाँ लगा marble यानि संगमरमर Collesum से ही लाकर लगाया गया है.
आज की तारिख में रोम सबसे ज्यादा अमीर शहरों में से एक है क्यूंकि दुनिया भर के चर्च से जो भी donation जमा होता है उसका कुछ हिस्सा यहाँ आता है अब तो खैर यह एक प्रख्यात शहर बन गया है मगर एक समय में यह एक Vatican City एक देश हुआ करता था जिसमें मात्र 550 लोगों की ही जनसंख्या हुआ करती थी मगर अब यह Vatican city रोम का ही एक हिस्सा है.
लन्दन देखा, पेरिस देखा और देखा जापान
सारे जहाँ में कहीं नहीं है दूसरा हिन्दुस्तान
किन्तु मैंने अभी जापान नहीं देखा है वो देखना बाकि है. :) हाँ लन्दन, पेरिस और इटली ज़रूर देख लिया है और उस के आधार पर मैं इतना भी जरुर कह सकती हूँ कि दूसरा हिन्दुस्तान भले ही कहीं नहीं हो, मगर तब भी दुनिया बहुत खुबसूरत है. हर जगह अपने आप में, अपने यहाँ की सभ्यता और इतिहास को इतनी खूबसूरती से संभाले हुए है कि देखने को मन करता है और देख कर मन में अपने आप ही उस वक़्त की कल्पना भी बनने लगती है जब का वो इतिहास है। यूँ तो आप सभी ने मेरे सब से पहले लेख में पढ़ा ही होगा की मैंने Europe के ४ देशों की कुछ खास जगहों को घूमा है जैसे Switzerland (Zurich, Geneva, Bern, Interlaken, Jungfrau) , France (Paris), Italy (Vanice, Rome, Florence, Pisa)। हालांकि इन सभी जगहों की आपस में कोई तुलना नहीं की जा सकती मगर इतना जरुर कहा जा सकता है कि हर एक जगह बहुत खूबसूरत है और दुनियाँ में देखने लायक सिर्फ बुराइयां ही नहीं है खूबसूरती भी बहुत है।
जब मैं वहाँ (इटली) गई तो मुझे समय का जैसे पता ही नहीं चला, कि ६ दिन कैसे बीत गये। मगर हाँ मेरा बेटा जरुर थोडा बोर हो गया इस ट्रिप में, क्यूँकी वहाँ उसके मतलब का कुछ नहीं था, जैसे की पेरिस में Disneyland था, यहाँ बच्चों से समन्धित ऐसा कोई स्थान नहीं था। खैर ये तो रही बच्चों की बातें, जब हम वेनिस पहुंचे तो वहाँ पहुँच कर हमको पता चला कि हमको हमारे होटल तक पहुँचने के लिये water taxi या water bus करना होगा ये दो नाम सुनकर ही बहुत अजीब लगे थे मगर जब देखा तो वो एक छोटा Cruise का रूप था जिसको वहाँ के लोग water bus के नाम से पुकार रहे थे। मगर इस सब के बावजूद जब हम हमारे होटल पहुंचे तब वहाँ के Museum के बारे पढ़ा और सुना। वहाँ का Museum बहुत अच्छा था इसलिए वहाँ घूमने भी बहुत मज़ा आया।
सफ़र की थकान के बावजूद भी हमने उस दिन खूब घूमा और अगले दिन (Gandole) गंडोले की भी यात्रा की गंडोला बोले तो एक तरह की नाव है जिस के ज़रिये वेनिस घुमा जाता है क्यूँकि वह पूरा शहर ही पानी में बसा हुआ है। वहाँ के घर की नींव पानी के अंदर (१० मीटर ) नीचे बनी हुई है और उसके बाद पानी के उपर रहने का स्थान शुरू होता है तभी वहाँ के लोग नीचे वाले हिस्सों में न रह कर पहले मंजिल से रहना शुरू करते हैं नीचे सभी का store room बना हुआ है पानी में बसा होने के कारण उस शहर की एक अद्भुत खूबसूरती है मगर जितना खुबसूरत है उतना ही महंगा भी बहुत है आधे घंटे गंडोले से घुमने का सफ़र हमको 100 Euro का पड़ा और होटल में रहने से, वहाँ खाने पीने तक सभी कुछ बहुत महंगा लगा। खैर... जब सोच ही लिया था कि घूमने जाना है तो क्या सस्ता और क्या महंगा। अगर में ४ जगहों को तुलना करके बोलूं तो मुझे वेनिस, पीसा और रोम बहुत ही अच्छी जगह लगीं। मगर सभी जगह बस एक ही दिक्कत का सामना करना पड़ा वो था खाने की समस्या। वहाँ कहीं दूर-दूर तक भारतीय खाने का नाम नहीं था जबकि पेरिस में ऐसा नहीं था, वहाँ काफी सारे भारतीय रेस्तरां थे मगर यहाँ एक था पर हम जहाँ रुके थे वहाँ से काफी दूर था। तो रोज़-रोज़ वही पिज्जा बर्गर खा कर काम चलाना पढ़ रहा था।
वहाँ से वापस आने के बाद तो ये हाल है कि मुझे अब तो पिज्जा और बर्गर के नाम से भी उबकाई आती है मगर भला हो Mcdonald वालों का, कि उनका रेस्तरां हर जगह उपलब्ध हो जाता है तो कम से कम खाने को एक सा स्वाद तो मिलता है वरना हम जैसे भारतीय लोगों का तो पता नहीं क्या हो। इन दिनों हम लोगो ने विदेशों में अच्छे-से-अच्छा और बुरा से बुरा खाना खाया है। अब इतनी जगह घूमने के बाद पता चली है असली हिन्दुस्तानी खाने की कीमत क्या होती है। घर के बने सादे खाने की कीमत कितना मायने रखती है, वही खाना जब न मिले तब वहाँ से वापस आने के बाद जब मैंने घर में दाल, चावल, रोटी, सब्जी बना कर खाई, तो हमको ऐसा लगा था मानो खाने के मामले में स्वर्ग मिल गया हो। जगह की खूबसूरती अपनी जगह है और खाने के अहमियत अपनी जगह। मगर मेरे लिये इन सभी जगहों पर घूमना हमेशा के लिये यादगार बन जाने वाला सफ़र रहा है इसलिए मैंने हर जगह से उस स्थान से समन्धित वस्तुएं भी खरीदी हैं ताकि आगे भी याद के तौर पर वो मेरे पास रहें और मुझे इस यात्रा की याद दिला सके। फोटोग्राफ्स के मामले में मुझे रोम और पीसा के फोटो सब से ज्यादा अच्छे लगे। दोनों ही दिन मौसम खुला हुआ था और दोनों जगह भी बहुत अच्छी हैं।
पिसा के टेढ़ी मीनार विश्व के सात (७) अजूबों में से एक है और हकीकत में भी उसे देख कर लगता है कि वो सच में अपने आप में एक अजूबा ही है ८ माले की मंजिल और इतनी टेढ़ी बनी हुई है और लोग उस पर चढ़-चढ़ कर देखते भी हैं तो लगता है इतने लोग चढ़ेंगे तो कहीं गिर ही न जाये। पीसा की मीनार पूरी संगमरमर की बनी हुई है और आप टिकट लेकर ऊपर तक जा सकते हैं, लेकिन ऊपर जाने के लिये २९६ सीढ़ी चढ़नी पड़ती हैं। मैं तो ऊपर नहीं गयी क्यूंकि ८ साल से छोटे बच्चों का जाना मना है तो मुझे मन्नू के साथ नीचे रुकना पड़ा। लेकिन मेरे पतिदेव ऊपर तक गये थे और उन्होंने बताया कि ऊपर से इतना अच्छा दिखता है और डर भी लगता है कि गलती से भी गिर गये तो हड्डी भी नहीं बचेगी :)...
हाँ मगर रोम में जाने के बाद एक एहसास जरूर होता है कि इन अंग्रेजों ने हमरे देश की खूबसूरती को तो नष्ट कर दिया मगर खुद के देशों में अपनी खुद की सभ्यता और संस्कृति को बहुत संभाल कर और सजो कर रखा है वो देख कर अच्छा भी लगता है और गुस्सा भी बहुत आता है इन अंग्रेजों पर मगर खैर किया भी क्या जा सकता है अब ...अगर सूक्ष्म रूप में कहूँ तो पूरे इटली में ईसामसीह के जन्म से लेकर उनके सूली पर चढ़ाये जाने तक और उसके बाद उनको उतार ने से लेकर Good Friday की कहानी ही सभी पेंटिंग्स में नज़र आती है मगर ताज्जुब की बात यह है कि इन सभी चीज़ों को अंग्रजों ने संग्रहालय (Museum) और गिरजाघरों (Churches)के माध्यम से इस कदर संभाल कर रखा है और लोगों के सामने प्रस्तुत किया है कि हर जगह से इन सभी स्थानों को देखने के लिये लाखों करोड़ों सैलानी आते हैं जिन में सब से ज़यादा Chinese होते हैं, इनका १५-१६ लोगों का एक-एक समूह होता है और किसी hall में बैठ जाओ और पत्थर फेंको तो इन चिन्कियौं को ही जाके लगेगा, ऐसा वाला हिसाब होता है. इन लोगों को देख कर लगता है कि इन के पास बहुत पैसा है यूरोप के हर देश में यह लोग बड़ी तादाद में घूमते फिरते नज़र आते हैं जबकि Europe UK से भी महँगी जगह है. यह तो थी रोम, पिसा और वेनिस की बातें.
अब बात करते हैं Florence की जो कि मशहूर है एक मशहूर मूर्तिकार माइकल एंजेलो (Micheal Angelo) के लिये जिसका पूरा बचपन Florence में बीता, उसके द्वारा बनाई गयी अनगिनत मूर्तियाँ वहाँ के संग्रहालयों में लगी हुई है, ख़ास कर डेविड की मूर्ती और Leonardo da Vinci ने भी अपनी पहली पेंटिंग वहीँ बनायी थी। Florence शहर देखने में बहुत छोटा सा है कि पैदल ही शहर की अधिकतर जगहों पर घूमा जा सकता है। सुनने में फ्लोरेंस का नाम ऐसा लगता है कि शायद वहाँ ऐसा कुछ खास नहीं होगा। हमको भी इटली जाने के पहले ऐसा ही लग रहा था मगर वहाँ पहुँचने के बाद हमने जाना वहाँ की खासियत क्या है।
क्या आप जानते हैं रोम से पहले इटली की राजधानी फ्लोरेंस ही हुआ करता था, हमारे गाइड ने हमे बताया था कि एक समय में फ्लोरेंस बहुत ही अमीर शहर हुआ करता था, खास कर कला के क्षेत्र में बहुत आगे था, जो कि वहाँ की पेंटिंग्स में साफ़ देखा जा सकता है। यहाँ तक के दुनिया भर के नामी गिरामी कलाकार वहाँ कला की शिक्षा प्राप्त करने वहाँ जाया करते थे।
Uffizi संग्रहालय में एक से एक पेंटिंग्स देखने को मिलती हैं खासकर वीनस का जन्म की पेंटिंग, उसके अलावा बहुत सारी मूर्तियाँ भी हैं. संग्रहालय घूमने के लिये गाइड लेना, मुझे अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा लगा. मगर यह ज़रूरी नहीं कि आप को भी ऐसा ही लगे, मुझे ऐसा इसलिए लगा क्यूँकि गाइड हर एक पेंटिंग के बारे में इतना विस्तार से बताता है की आप बजाय उसमें रूचि लेने के, बोर होने लग जाते हैं. लेकिन वहाँ के संग्रहालय में जो चीज़ें रखी हुए हैं वो ज्यादातर ऐसी हैं जो सिवाई वहाँ के पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है जैसे वहाँ रखे हुए कुछ म्यूजिक उपकरण जिस में से एक वोएलिन टाइप का था जिसके तार आज तक नहीं बदले गये और उनमें आज भी वैसे ही ध्वनी निकलती है जैसे कि तब निकला कारती थी
और एक था वहाँ रखा पियानो जिसकी खासियत यह थी कि उसका पिछला हिस्सा जो कि सामान्यता फ्लैट होता है, मगर वहाँ रखे हुए पियानो का पिछला हिस्सा खड़ा था और यह सब ऐसी चीज़ें हैं जो दुनियां में और कहीं नहीं है इसलिए शायद वहाँ फोटो लेनी की मनाही है ऐसे ही कुछ वहाँ लगी हुए पेंटिंग्स की भी खासियते हैं जैसे उदहारण के लिये मैं आप को बताऊँ Florence के एक संग्रहालय में Mother Mary की एक पेंटिंग लगी है वो सिर्फ इसलिये मशहूर है कि उसमें Mother Mary के थोड़े से दांत देखाए गये हैं और breast भी जो की एक पारदर्शी पहनावे के ज़रिये दर्शाने की कोशिश की गयी है और कुछ एक पेंटिंग इसलिए मशहूर हैं कि उनमें असली सोने का उपयोग किया गया है. वो ज़रूर देखने में बहुत अद्भुद लगता है जिस तरीके से उसमे सोने का इस्तेमाल किया गया है और जैसा कि मैंने आप को पहले भी बताया है कि फ्लोरेंस कला के क्षेत्र में बहुत ही मशहूर शहर रहा था और वहाँ के लोगों के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी इसलिए वहाँ की पेंटिंग्स तक में सोने का काम है और इतना ही नहीं वहाँ उस ज़माने में पहले सोने का काम पेंटिंग्स में ही नहीं, कपड़ों में भी किया जाता था इसलिए यहाँ माइकल एंजेलो और Leonardo da Vinci जैसे प्रख्यात कलाकारो ने अपनी कला की शुरुवात यहीं से की थी. मगर इन सब का फोटो लेना मना है यही नहीं वहाँ अधिकतर संग्रहालयों में फोटो लेना मना है, जबकि पेरिस में ऐसा कुछ कहीं नहीं था तो इस सब के आधार पर मैं कह सकती हूँ कि Venice में गंडोला, Florence में संग्रहालय, Pisa में मीनार और Rome में Collesum और St. Peter Basalica Church देखने लायक जगह हैं जिनहें देखने लोग दुनिया भर से आते हैं. यदि आप ने English फिल्म Gladiator देखी है
तो आप को Collesum के बारे में कुछ भी बताने की ज़रूरत ही नहीं है और यदि नहीं, तो एक बार देख लीजिये. उससे आप को ज्यादा अच्छे से समझ में आ जायेगा कि Collesum क्या है और कैसा हुआ करता था. उस ज़माने में फिल्म को देखने के बाद जब आप असली जगह को देखते हैं तो दिमाग में वही खूनी खेल की तस्वीरें उमड़ती हैं कि कैसे उस ज़माने कि लोग यहाँ वो हैवानियत का खेल कितनी आसानी से अपने मनोरंजन के लिये खेला करते थे.
मैं फिल्मों की बहुत शौकीन हूँ इसलिए मेरी हर बात किसी न किसी फिल्म से जुड़ जाती है जैसे Venice में Gandole की यात्रा करते वक़्त मुझे वो गाना याद आ रहा था ''दो लफ्फ्जों की है ये कहानी, या है मुहोब्बत या है जवानी ''फिल्म क नाम था The Great Gambler और जहाँ तक बात है St. Peter Basalica church की तो वो भी आप शायद जानते ही हों कि ये दुनिया का सब से बडा church है और pope भी यहाँ बैठते हैं. यह हमारे यहाँ के तीर्थ स्थानों जैसी जगह है. यहाँ के लोगों के लिये इसलिए शायद यह एक ही होने के कारण इतना मशहूर है और इतना भव्य है कि देखते ही बनता है इसके अंदर जो कलाकारी की गयी है जो संगमरमर लगाया हुआ है जो मूर्तियाँ लगी हुए हैं उनको तो बस एक बार देखो तो देखते ही रहो. पोप वहाँ खुद आकार Prayer करते हैं और करवाते हैं पोप से मिलने की इजाजत नहीं होती किसी को अब तक वहाँ जितने भी पोप हुए हैं सभी के इतिहास भी वहाँ मौजूद है सुना है कि वहाँ लगा marble यानि संगमरमर Collesum से ही लाकर लगाया गया है.
आज की तारिख में रोम सबसे ज्यादा अमीर शहरों में से एक है क्यूंकि दुनिया भर के चर्च से जो भी donation जमा होता है उसका कुछ हिस्सा यहाँ आता है अब तो खैर यह एक प्रख्यात शहर बन गया है मगर एक समय में यह एक Vatican City एक देश हुआ करता था जिसमें मात्र 550 लोगों की ही जनसंख्या हुआ करती थी मगर अब यह Vatican city रोम का ही एक हिस्सा है.
अन्तः बस इतना ही कहना चाहूंगी कि अगर घूम सकें तो दुनिया ज़रूर घूमिये, दुनिया बहुत खूबसूरत है इसमें जितनी बदसूरती है आज आतंकवाद भ्रष्टाचार के चलते उतनी ही खूबसूरती भी है इन जगहों के होते... जय हिंद
वाह...इतना बढ़िया और विशद् विवरण पहले नहीं पढ़ा था. आपने तो यूरोप घुमा दिया जैसे. चित्रों की क्वालिटी बहुत ही अच्छी है और ये आपकी स्मृति का एक हिस्सा बन जाएँगी. वर्णन शैली की प्रशंसा न करूँ तो बात अधूरी रह जाएगी. बहुत बढ़िया. आपकी जापान यात्रा की हमें प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteAll roads lead to ROME...
ReplyDeletebahut khoob likha hai aap ne madam ji ......
ReplyDeleteaisa lagata hai mujhey europe jaaney ka plan kharij karna parega ... aap k lekh parh kar lagta hai khud ghoom liye ..
aur last mai " jai hind " ki toh baat hi kya ..wah!
aacha likha hain di
ReplyDeletecongrats, no doubt it is well worded
pics bhi acchey lagey hain
&
I think this time u hit bulls eye
आपके ब्लॉग पर आकर मन प्रसन हो गया...बड़ी शिद्दत से विवरण प्रस्तुत किया है आपने..आगे की कड़ियों का इन्तजार रहेगा ....
ReplyDeleteचलते चलते पर आपका स्वागत है
आप तो बहुत सुन्दर लिखती हैं..एक साथ ही कित्ता सारा घूमा दिया ...बधाई.
ReplyDelete'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
क्या बात है ...बहुत ही बढ़िया. हाँ पर वहाँ भारतीय खाना न मिलना मेरे जैसे के लिए वरदान था जिसे घुमक्कड़ी का ही नहीं अलग अलग जायकों का भी जूनून है :)
ReplyDeleteयात्राएँ …खूब हुईं…बढ़िया …
ReplyDeleteवाह! बढ़िया! अच्छा लगा पढ़कर और तस्वीरें देखकर! बहुत अच्छे से describe किया है आपने पल्लवी... :)
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