लोग मुझसे अक्सर कहा करते हैं, कि मैं अपने ब्लॉग बहुत दिनों में पोस्ट करती हूँ, जबकि मुझे रोज़ लिखना चाहिए मगर मुझे ऐसा लगता है कि मेरे ब्लॉग का जो शीर्षक मैंने दिया है. मेरे अनुभव वो मेरे लिखे हुए ब्लॉग से हमेशा मेल खाना चाहिए और मेरा ऐसा मानना है कि हर किसी को जिन्दगी में रोज-रोज नये अनुभव नहीं हूआ करते. खास कर मुझ जैसी घर में रहने वाली औरत को क्यूंकि ना तो मैं बाहर घूमती हूँ और इसलिए मेरा रोज नये-नये लोगों से मिलना जुलना भी रोज नही होता है, जिस के कारण मुझे हर रोज ज़िन्दगी का कोई नया अनुभव मिले. हाँ मगर जॉब वाली अर्थात कामकाजी महिलाये हैं उनको ज़रुर अपनी जिन्दगी में रोज़ नए अनुभव होते रहते होंगे, क्यूंकि उनको हर रोज ही नये-नये लोगों से मेल जोल बनाना ही पड़ता है. मगर आप सब के साथ बाँटने के लिए मैं कहाँ से लाऊँ रोज नये अनुभव, इसलिए जब भी मुझे ऐसा लगता है कि मेरी ज़िन्दगी का कोई भी ऐसा अनुभव है जो मैं आप लोगों के साथ बाँट सकती हूँ या बाँटना चाहिए. तो मैं उसे आपके साथ उसे एक ब्लॉग के माध्यम से बाँट लेती हूँ, मगर रोज मेरे लिए यह सम्भव नहीं. कथा, कहानी या कविता तो मुझे आती नही कि उसके माध्यम से मैं अपने ब्लॉग को और भी रुचिकर बना सकूं. जो भी है वो बस एक मात्र मेरे अनुभव ही हैं जो अब तक मैंने आप के साथ बाँटे हैं और आगे भी बाँटती रहूंगी. अनुभव खुद अपने आप मैं एक बहुत ही गहरा शब्द है जिसके कई सारे अर्थ होते हैं, इस एक शब्द को लेकर हर किसी की अपनी एक अलग सोच होती है जैसे कोई अपने बुजुर्गों के अनुभव को अनुभव मानता है, तो कोई दूसरों के अनुभव से मिलने वाली सीख को अनुभव मानता है, ठीक वैसे ही कोई खुद के किसी काम में मिले अनुभव को अनुभव मानता है, ताकि आगे वो किसी और को उस दिशा में सलाह दे सके. हालांकि यह जरुरी नहीं कि हर बार आप का अनुभव अच्छा ही हो, कभी-कभी जीवन में बुरे अनुभव भी होते है जो यह प्रेरणा देते हैं कि आगे कभी आप के जीवन में वैसा मौका दुबारा आये तो आप अपनी वही ग़लती दुबारा न दोहराएँ, वो अंग्रेज़ी में एक कहावात है ना की ''ALL THAT GLITTERES IS NOT GOLD'' अर्थात ''हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती'' मतलब हमेशा जो जैसा लगता है जरुरी नहीं है कि वो वैसा ही हो.
उन्होंने तो फिर भी एक बार ही सही, हवाई यात्रा का अनुभव तो कर ही लिया मगर मेरे माता-पिता तो वो भी कभी नहीं कर सकते क्यूंकि इन मामलों मे वह थोड़े पुराने विचारों के हैं खैर वह एक अलग मुद्दा है.
जैसे एक और साधारण सा उदाहरण हवाई यात्रा करना, अगर मैं अपने घर के लोगों की बात करूँ तो मेरे माता पिता या मेरे ससुराल वाले माता-पिता अर्थात मेरी सास और ससुरजी जब यहाँ(UK) आये थे तो इससे पहले उन्होंने कभी कोई हवाई यात्रा नहीं की थी , जिसके चलते उन्होंने हम लोगों से कई बार सलाह मशवरा किया, की क्या करते है कैसे करते है वगैरा-वगैरा.
हम तो बात कर रहे थे केवल अनुभव कि, जैसे अगर मैं आप को एक साधारण सा उदाहरण दूँ. एक नारी के लिए माँ बनने का अनुभव एक ऐसा अनुभव है कि हर एक स्त्री दूसरी माँ बनने जा रही स्त्री को अपने अनुभव के आधार पर सलाह जरुर देती है कि क्या करो, कैसे करो. इसी प्रकार कुछ काम ऐसे होते हैं जिनको करने से पहले हमको लगता है, कि एक बार अपने घर के बड़ों से उस विषय पर बात कर लेना ज्यादा सही होगा. क्यूंकि उनको उस बात का पहले से अनुभव है कि क्या सही होगा क्या ग़लत , जैसे शादी-ब्याह की सारी रस्में ऐसी हैं, जिनमें हमेशा घर के बड़े बुजुर्गों का ही अनुभव हमारे काम आता है. अनुभव खुद अपने आप में एक ऐसा शब्द है जो खुद हमें भी बहुत कुछ सिखाता है और हमको भी दूसरों से सीख लेने के लिए प्रेरित करता है. ताकि यदि हम अनजाने में भी कोई ग़लती करने जा रहे हों तो भी एक बार हमको सोचने अथवा समझने का अवसर मिल सके. कई बार ऐसा भी होता है कि हमारे बड़े भी हम से सीख लेना पसंद करते हैं क्यूँकि ज़िन्दगी में कई चीज़ें ऐसी भी हो जाती है. कभी-कभी जिसका अनुभव हमको पहले हो जाता है और हमसे बड़ों को बाद में होता है, या कभी पहले हुआ ही नहीं होता.
तो हम बात कर रहे थे अनुभवों की जैसे कई बार जब अपनों से बड़ों के अनुभव को जान कर हमको कोई फैसला लेने में जो आत्मविश्वास महसूस होता है ना, ठीक वैसे ही जब हमारे बड़े हमसे किसी बात में कोई सलाह लेते हैं तो बहुत अच्छा लगता है, बहुत खुशी मिलती है कि आज वह हम को इस काबिल समझने लगे हैं कि वो हमसे सलाह ले सकते हैं. नहीं तो बड़े होने के नाते उन्होंने हमसे ज्यादा दुनिया देखी हुई होती है तो उनका अनुभव स्वाभाविक है कि उनका अनुभव हर मामले में हम से ज्यादा ही होता है, मगर कई बार कुछ बच्चे बदकिस्मती से इस बात को भूल जाते हैं और जब ग़लती होती है तब उनको इस बात का एहसास होता है कि यदि पहले ही एक बार अपनों से बड़ों की सलाह ले ली होती, तो आज यह ग़लती न हुई होती. इसका सब से अच्छा उदाहरण तो मुझे खुद अपने ही घर में लगभग रोज ही देखने को मिल जाता है जब में अपने बेटे के साथ KINECT खेलती हूँ या कोई VIDEO GAME खेलती हूँ. जब जान बूझकर उससे कहती हूँ अरे मन्नू मुझे तो पता ही नहीं कि यह खेल कैसे खेलते हैं, इसमें क्या करना है, इत्यादी. हालाँकि अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है मगर फिर भी शायद वो भी वैसा ही कुछ महसूस करता है जैसा हम लोगों को लगता है जब हमसे बड़े लोग हमसे कुछ पूछते हैं और उनको बताने में हम को जो गर्व महसूस होता है या यूँ कह लीजिये की खुशी या आत्मविश्वास महसूस होता है. ठीक वैसे ही उससे भी लगता है, जब वो मुझे सिखाता है कि देखो मम्मा इस में ऐसे करो, वैसे करो. उस वक़्त उसके चेहरे पर जो हाव-भाव उभरते हैं वो बस देखते ही बनते है, जब वो हर छोटी बड़ी चीज़ में अपनी समझ के अनुसार अपनी राय देता है, तो कभी-कभी तो हम को बहुत गुस्सा भी आ जाता है, और कभी-कभी बहुत प्यार भी आता है कि वो भी अपने को एक परिवार का सदस्य होने के नाते अपनी राय तो दे ही देता है. फिर चाहे आप उसकी बात मानो या ना मानो, वो तो अपने मन की कर ही लेता है इसलिए कभी-कभी हम लोग उसे प्यार से ज्ञानी बाबा भी बुलाते हैं :) उसे चिढ़ाने के लिए और वो चिढ़ता भी बहुत है, हर बात को जानने की, समझने की उसे बहुत उत्सुकता रहती है और थोड़े बहुत समझाने से उसे संतुष्टि नहीं मिलती है. उसे बात की गहराई में जाकर उसे समझने की इच्छा रहती है कि अगर ऐसा है तो क्यूँ है, क्या कारण है, उसके पीछे अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है टीवी पर कोई फिल्म आ रही थी अभी नाम तो मुझे याद नहीं, मगर उसमें किसी के मरने का कोई scene था बस फिर उसने वो बात पकड़ ली थी , मरने से क्या होता है, मरने के बाद क्या होता है, आत्मा क्या होती है, भगवान कौन होते है, दिखते क्यूँ नहीं है वगैरा-वगैरा. उसके सवालों का जवाब देते-देते हम लोग थक जाते हैं मगर उसके सवालों का कभी कोई अंत ही नहीं होता. कभी वो हमारे दिए हुए जवाबों से संतुष्ट हो जाता है, तो कभी ज़रा भी नहीं, फिर उसे ''बाबाजी अब ज्ञान बाँटना कम कीजिये ज़रा'', कह कर थोड़ी देर के लिए चुप कराना पड़ता है. ज़िन्दगी के यह छोटे बड़े अनुभव कभी-कभी कुछ खट्टी-मीठी यादें बन जाते है जो की या तो घर में बच्चे के साथ रोज़ ही होते हैं, या फिर जब आप अपने जीवन में रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से हट कर कहीं कुछ करते हो तो तब होते हैं. उम्मीद है आप को यह ब्लॉग भी पसंद आये इसी आशा के साथ जय हिंद ......
जीवन के सामान्य से दिखने वाले अनुभवों और विचारों को बोलचाल की भाषा में उतारना अपने आप में बड़ी बात है. कितने लोग ऐसा कर पाते हैं? साहित्यकार शब्दों का जाल बुनते हैं और आकर्षक, रोचक और भयानक शब्दों से रचना को सजाते हैं. आपका ब्लॉग शब्दों के मकड़जाल से अलग है और सामान्य संस्कारों की बात करता है. एक सुझाव है कि आप यदि दूसरों के दुख-सुख के अनुभव को अपना अनुभव करें तो उसे भी इस ब्लॉग पर लिख सकती हैं. करके देखें आपको अच्छा लगेगा.
ReplyDelete@Bhushan sir, जी जरुर आप के सुझाव का बहुत-बहुत धन्यवाद सर ...आपके सुझाव के अनुसार में इस विषय पर लिखने की कोशिश अवश्य करुँगी आप के सुझाव और विचार मेरा होंसला बढ़ाते हैं सर :)
ReplyDeleteसादर
badiya
ReplyDeletegood one
ReplyDeleteI believe that the article could have been edited a bit. wid strong and meaningful words some lines could have been reduced
रोज रोज लिखने की जरूरत नहीं है पल्लवी जी, आराम से लिखिए, कोई दिक्कत नहीं है...
ReplyDeleteवैसे छोटे छोटे बच्चों से खेलते वक्त मैं भी ऐसे ही सवाल पूछता हूँ जान बूझकर की "अरे ये तो बता की कैसे खेलते हैं इसे" :)
मैं तो कभी कभी अपनी बहन सब से भी ऐसे उलटे सीधे सवाल पूछ लेता हूँ :)
पल्लवी जी - बहुत अच्छा लगा पढ़कर आपके अनुभव की गाथा और साफगोई भी। सचमुच जब शीर्षक ही "मेरे अनुभव" हैं तो सच्ची अनुभूति ही बाँटना चाहिए। वैसे साहित्य की भी कई परिभाषाओं में से एक यह भी है कि "साहित्य वैयक्तिक अनुभूति की निर्वैयक्तिक प्रस्तुति है" उस लिहाज से भी आपके कथ्य का समर्थन किया जा सकता है। किसी के अनुभव से परिचित होना या फिर अपने अनुभव से किसी को परिचित कराना और उससे व्यवहार-जगत में सही निर्णय लेना - दोनों सुखद लगता है।
ReplyDeleteबच्चा के साथ का का भी आपका अनुभव अच्छा लगा। बच्चे यूँ ही सवाल करते हैं। दरअसल मेरे समझ से "कुतुहल" और "जिज्ञासा" में यही फर्क भी है। बच्चों में जिज्ञासा के बदले कुतुहल होता है जिसमें उसे सिर्फ प्रश्न पूछने से मतलब है उन प्रश्नों के उत्तर से नहीं जबकि जहाँ जिज्ञासा है वहाँ समुचित उत्तर की तलाश रहती है।
कुछ वर्तनी संबंधी गलतियों की तरफ भी ध्यान दिलाना चाहता हूँ - उम्मीद है बुरा नहीं मानियेगा। उदाहरण स्वरूप - शिर्षक - शीर्षक, हूआ - हुआ, बाटने - बाँटने इत्यादि।
शुभकामनाएं।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
sabse pehley toh mai aap ka apney he blog par wapas aaney ka swagat karata hoo, aur ye waapsi aap ne bahut he saadgi bharey andaaz mai ki ,
ReplyDeleteaap k anubhav par adhaarit 2 "gyani baba" mere ghar mai bhi hai jo waqt be waqt aapna gyan hum ko vitrit kartey rehtey hai .
आप का अनुभव बहुत अच्छा लगा| धन्यवाद|
ReplyDeleteWell said Pallavi. Great thoughts.
ReplyDeleteKeep it up.