Sunday, 20 February 2011

Transfer again

मेरे अनुभव  अब और क्या लिखूं और कहाँ से शुरू करूँ, आज मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा है. अभी तक के जितने अनुभव थे मैं वो सभी लिख चुकी हूँ और रोज़-रोज़ तो नए अनुभव होते नहीं तो अब और क्या लिखूं वैसे तो स्थानान्तरण को लेकर मैं पहले भी एक पूरा Blog लिख चुकी हूँ मगर फिर भी मैं आप के साथ अपना एक स्थानान्तरण से जुडा हुआ एक और अनुभव बांटना चाहूंगी. जैसा कि शायद आप समझ ही गये होंगे कि मेरा एक बार फिर से स्थानान्तरण हो गया है. यानी कि मेरा नहीं मेरे पतिदेव का प्रोजेक्ट फिर बदल गया है तो ज़ाहिर है कि हम को Crawely छोड़कर फिर UK की ही एक नई जगह शिफ्ट होना पड़ा और इस नई जगह का नाम है Macclesfield जो कि Manchester जैसे बड़े शहर के पास है और जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि जब भी आप किसी नई जगह में रहने जाते हो तो पुरानी जगह से उस नई जगह की तुलना आप के दिलो दिमाग  में चलती ही रहती है जैसे कि अभी मेरे दिमाग में चल रही है. यहाँ से पहले अर्थात्  Macclesfield से पहले मैं Crawley में रहा करती थी और उससे भी पहले Bournmouth में. तो जब में Crawely आयी थी तब मुझे Bournmouth कि बहुत याद आती थी क्यूँकि वो Crawley से भी बड़ा शहर था हर बात में तुलना होने लगती थी कि वहाँ ये अच्छा था वो अच्छा था अब तो ऐसा लग रहा है कि गांव में आ गये हैं वगैरा-वगैरा. मगर फिर crawley में २ साल रहने के बाद अब यह नया शहर गांव के जैसा लग रहा है मुझे क्यूँकि यहाँ तो वो सब भी नहीं हे जो Crawely में था और वैसे  भी Macclesfield एक बहुत छोटा सा शहर है और काफी पुराना भी. साधारण बोलचाल कि भाषा में आप इसे कस्बा भी कह सकते हैं यहाँ इंडियन या एशियन शॉप  के नाम पर भी एक ही दूकान है तो ये सोच कर और सुनकर तो मुझे थोड़ी चिंता हो गई थी कि अब भारतीय मसाले या अन्य और किचन का सामान और सामग्री कहाँ से और कैसे मिलेगा. बिना उसके तो बहुत समस्या हो जायेगी और इन सब चीज़ों के बिना तो काम ही नहीं चलेगा. ज़रा-ज़रा चीज़ों के लिये तो Manchester जाया नहीं जा सकता. कैसे क्या होगा, क्या नहीं, मगर फिर कहीं जाके मुझे Sainsbury मिल गया और वहाँ काफी कुछ था जिससे देख कर मुझे थोडा अच्छा लगा  कि चलो ''Something is better then nothing'' क्यूँकि यहाँ तो ASDA भी नहीं है केवल Tesco और Sainsbury ही है आपकी जानकारी के लिये बता दूँ यह सभी shopping mall के नाम है जहां किचन के सामान से लेकर हर चीज़ एक ही स्टोर में मिल जाती है वेसे अब तो ऐसे  mall इंडिया में भी है मग़र फिर भी मैं यह बताना उचित समझती  हूँ कि मैं किस बारे में बता रही हूँ वेसे तो जो भी लोग UK आ चुके हैं वो सभी यह नाम  जानते होंगे और उन सभी ने यह नाम सुने भी होंगे और वो इन malls  में स्वयं गये भी होंगे. मग़र अपने सभी पाठकों को ध्यान में रखते हूये मुझे यहाँ विस्तार से बताना ही उचित लगा.

ख़ैर एक तरफ जहाँ मुझे Crawely  छोड़ने का ग़म था वहीँ दूसरी और नए शहर और नए घर को देखने का उत्साह  भी बहुत था. हालांकी पुराने घर से  मेरी काफी  सारी यादें जुड़ चुकी थी इस मामले में बहुत भावुक इंसान हूँ मग़र क्या करूँ यह मेरे अपने हाथ में तो है ही नहीं.  ना चहाते  हुए भी मुझे वो घर छोड़ना ही पड़ा लेकिन मुझे ख़ुशी इस बात कि थी कि नए घर में मुझे GAS मिलेगी मैं Hot Plate पर खाना बनाते -बनाते बहुत उब गयी थी और दूसरी बात यह की हमारा नया घर बहुत बड़ा है, रहने वाले केवल तीन और घर दो मंजिल का...फिलहाल तो मैं इतना ही कह सकती हूँ कि मुझे यहाँ आये अभी ३-४ दिन ही हुए हैं मग़र इतनी भी बुरी जगह नहीं है. ठीक है छोटा सा शहर है सुविधाएँ भी कम है मग़र अच्छा है. क्यूंकि मैं विश्वास रखती हूँ कि ''जो होता है अच्छे के लिये ही होता है तो जाहि विधि रखे राम ताहि विधि रहिये ''और मुझे इन दोनों ही बातों पर यकीन है इसलिए  मैं जहाँ भी रहती  हूँ खुश रहने  कि कोशिश ज़रूर करती हूँ ...
लेकिन कहीं ना कहीं अभी कुछ दिनों तक तो Crawely कि यादें ताज़ा रहेंगी ही और मन में भी बार -बार तुलना होगी ही हर एक चीज़ को लेकर जब तक इस शहर से पूरी तरह दोस्ती नहीं हो जाती तब तक तो मन में लगता ही रहेगा मग़र अब ज़िन्दगी दो चार दिनों में ही routine में आ गई  है तो अब उतना अकेला पन महसूस नहीं हो रहा है हालांकी अभी मेरे घर में, ना तो Net है ना ही TV मग़र इन सब चीज़ों के बिना भी काम चल ही रहा है और हैरानी कि बात तो यह है कि इन सब चीज़ों कि इतनी ज्यादा आदत होते हुए भी ज़िन्दगी में इन सबकी कमी बहुत ज्यादा नहीं अखर रही है . सारा दिन बस घर के काम में ही कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता हाँ ये बात ज़रूर है पिछली छह  महीनो में मेरी  एक आदत और बिगड़ गई थी कि मेरे पतिदेव् अपने Office का काम घर से ही किया करते थे तो उनको पूरा दिन घर में देखने कि आदत हो गई थी. उनकी वजह से बोरियत भी काम होती थी क्यूँकि कोई चौबीस घंटे आप की नज़रों के सामने रहता था बात करने वाला,  मग़र अब ऐसा नहीं है अब तो वो पहले की तरह सुबह जाते है और शाम को ही वापस आते है, मग़र चलता है थोड़े और दिन लगेंगे फिर सब पहले कि तरह हो जायेगा जैसा हमेशा से होता आया है अब पता नहीं यहाँ और कितने दिन रहना है साल भर या छह महीने कोई नहीं जानता. दिक्कत तो बस इतनी होती है कि जैसे ही लगने लगता है कि अब ज़िन्दगी सेट हो गई है वैसे ही या तो प्रोजेक्ट बदल जाता है या जगह बदल जाती है और वही लम्बा इंतज़ार कि पता नहीं किस्मत का ऊँट किस करवट बैठेगा और सच कहूँ तो इस सब से भी ज्यादा बुरा तो मन्नू को लेकर लगने लगता है उसके सारे दोस्त बदल जाते हैं माहौल बदल जाता है माना कि अभी वो बच्चा है और बहुत आसानी से खुद को नए महौल में ढाल भी लेता हे मग़र थोड़े दिन तो लगता ही है सभी को. उसे भी अपने पुराने स्कूल की, वहाँ के दोस्तों की याद आती हे मग़र किया कुछ नहीं जा सकता फिर उससे समझाना पड़ता है बहुत तब कहीं जाके उसे अच्छा लगता है.
अभी के लिये बस इतना ही कही सकती हूँ कि बस यही है मेरा नया अनुभव आ गया और जो भी होगा आप के सांथ ज़रूर बाटूंगी तब तक के लिये जय हिंद ....

3 comments:

  1. स्थानांतरण पर हमारे मन पर क्या बीतती है उसका विशद् विवरण आपने कर दिया है.बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और उनके कारण हम भी. आपने इस संदर्भ में पूरे परिवेश की बात की है. बहुत अच्छा लगा.

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  2. आपने अपने अनुभव को बड़ी सुन्दरता से लिखा है!

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  3. यही व्यथा हमारी घरवाली की है, पिछले तीन वर्षों में तीन बार मकान बदल चुके हैं और दो शहर, हमने प्रोजेक्ट नहीं नौकरी ही बदल ली। खैर अब यहाँ बैंगलोर में आज एक वर्ष पूर्ण हो गया, और अब कब कहाँ जाना पड़े कुछ कह नहीं सकते सब अपने प्रोजेक्ट के ऊपर निर्भर करता है। हमने तो समानों की सूचि बना रखी है जब भी मकान बदलना हो या शहर थोड़ी कठिनाई कम हो जाती है।

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