आज जाने क्यूँ इस पोस्ट को लिखते वक्त मन में बार-बार टीवी सीरियल "इस प्यार को क्या नाम दूँ" का गीत दिमाग में घूम रहा है कि आज में अपनी इस पोस्ट को क्या नाम दूँ :-) खैर आज हम बात करेंगे शादी, विवाह के संबंध और तलाक की, हालांकी इस विषय का कोई एक कारण नहीं है जिसके आधार पर हम यह कह सकें कि यदि उस कारण को ख़त्म कर दिया जाये, तो इस समस्या से निजात पायी जा सकती है। मगर फिर भी कुछ हद तक कुछ कारण ऐसे हैं, जिन्हें लेकर मुझे ऐसा लगता है कि यदि उन पर थोड़ा ध्यान दिया जाये तो शायद इस किस्सों में कुछ कमी लायी जा सकती है। ऐसा मुझे लगता है हो सकता है आप सभी लोग मेरी बातों से सहमत ना भी हों। अभी पिछले कुछ दिनों से तलाक के विषय में बहुत कुछ पढ़ने को मिला, कहीं कोई कहानी, तो कहीं कानूनी सलाह। यहाँ तक के आधे से ज्यादा टीवी सीरियलों में भी आज कल यही विषय सुर्खियों में है। खैर आप सोच रहे होंगे ना, कि पहले ही "सत्यमेव जयते" कम है सामाजिक विषयों पर चिंतन करने के लिए जो मैं फिर शुरू हो गई। तो भई मैं पहले ही बता दूँ मैं "सत्यमेव जयते" के द्वारा उठाये गये किसी भी विषय पर बात नहीं कर रही हूँ। बल्कि पिछले कुछ दिनों में जो पढ़ा और उसे पढ़ने के बाद जो मुझे लगा बस वही लिख रही हूँ।
विवाह एक पवित्र बंधन जिसमें न केवल दो इंसान एक दूसरे की ज़िंदगी से जुडते है बल्कि दो परिवार भी एक दूसरे से जुड़ जाते है और तब कहीं जा कर बनता है एक खुशहाल और समृद्ध परिवार। समृद्ध शब्द का प्रयोग यहाँ मैंने इसलिए किया क्यूंकि मेरी नज़र में समृद्ध होने का अर्थ केवल पैसे से समृद्ध होना नहीं है। मेरी नज़र में जिसके पास रिश्तों का मीठा खजाना है वह व्यक्ति भी उतना ही समृद्ध है जितना कि कोई धनवान व्यक्ति क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है, कि हम पैसों से किसी का भी या यह कहना ज्यादा सही होगा शायद इस संसार में हम पैसे से सब कुछ खरीद सकते है। मगर यदि कुछ नहीं खरीद, सकते तो वह है किसी की किस्मत, किसी के साथ जुड़े उसके प्यार और विश्वास से जुड़े रिश्ते।
ऐसे में शादी विवाह जैसे प्यार भरे हंसी खुशी से जुड़े रिश्ते पर तलाक का शब्द कैसा लगता है ना !!! जैसे किसी ने मासूम से चेहरे पर कोई करारा चांटा जड़ दिया हो, या फिर हँसते खेलते परिवार पर अचानक से आयी कोई विपत्ति या विपदा, या फिर जैसे एक खुशहाल ज़िंदगी को मौत के घाट उतार दिया हो। यहाँ खुशहाल ज़िंदगी से तात्पर्य विवाह से है और मौत का तात्पर्य तलाक से है। वैसे यदि यहाँ इस विषय में विदेशों की बात की जाये तो यहाँ तो तलाक लेना कपड़े बदलने जैसा है। क्यूंकि यहाँ लिविंग रिलेशन का भी चलन बहुत है। सिर्फ इतना ही नहीं यहाँ तलाकशुदा लोगों का असर बच्चों पर साफ दिखाई देता है कोई भी अकेला इंसान जिसका तलाक हो चुका है अर्थात माता-या पिता जो अपने बच्चों को तलाक के उपरांत अकेले पाल रहा है तो उस इंसान की आने वाली सभी पीढ़ियाँ भी वही करती है जो देखती आयी है। क्यूंकि जैसा कि आप सभी जानते है बच्चे कहीं के भी हो मगर उन पर अपने परिवार में हो रही नकारात्मक बातों और घट रही घटनाओं का सीधा प्रभाव पड़ता है। जिसके चलते वह आगे चलकर न तो अपने जीवन में सफल ही हो पाते हैं और ना ही अपने बच्चों में साथ रहने जैसी बातों का महत्व समझा पाते हैं और यही नकारात्मक असर उनके जीवन में आगे चलकर उनकी आने वाली पीढ़ियों में भी आसानी से देखा जा सकता है। ठीक इसी तरह साथ रह रहे अभिभावकों के बच्चों में एक सकारात्मक सोच पनपती है और उनके बच्चे भी आगे चलकर अपने भावी जीवन में एक अच्छे और कामयाब इंसान बनते हैं मगर हम बात कर रहे हैं हमारे अपने भारत देश के समाज की, जहां तक मेरी समझ कहती है। तलाक जैसा फैसला बहुत ही मजबूरी में लिया जाना चाहिए। ना कि यूँ ही जैसे आज कल होता है कि ज़रा सी आपसी अनबन हुई नहीं कि लोगों के अहम टकराना शुरू हो जाते है और नतिजा तलाक। जबकि मेरा मानना तो यह है कि तलाक की नौबत तो तब आनी चाहिए जब दोनों में से किसी एक का जीना दुश्वार हो जाये। इतना कि ज़िंदगी जीने के लिए और कोई दूसरा विकल ही ना बचे। मगर अफसोस कि वास्तव में ऐसा होता नहीं है।
आखिर क्या कारण है यूं आम होते जा रहे इन तालक के किस्से? कहाँ और क्या कमी आ गयी है, परवरिश में जो यह तलाक के किस्से आम हो गये हैं। क्या आज के आधुनिक समाज में महिलाओं का होता सशक्तिकरण, या यू कहें कि बढ़ती आत्म निर्भरता है तलाक का कारण ? या फिर इस आत्म निर्भरता ने बढाया इस पुरुष प्रधान समाज के पुरुषों का अहम ? वैसे देखा जाये तो इस समाज में पुरुषों का अहम तो कभी भी कम था ही नहीं, वह तो हमेशा से ही ज्यादा रहा है तो अब क्या बढ़ेगा। लेकिन फिर भी तलाक के सिलसिले को मद्देनज़र रखते हुए हम किसी एक पक्ष को इस विषय का पूर्णरूप से जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। क्यूंकि जिस तरह "ताली हमेशा दोनों हाथों से बजती है"। ठीक उसी तरह "धुआँ भी तभी उठता है, जब कहीं आग लगी होती है"।अर्थात तलाक के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। इस मामले में भी कहीं ना कहीं स्त्री और पुरुष दोनों ही जिम्मेदार होते हैं।तभी नौबत तलाक तक आ पहुँचती है।
लेकिन सावल यह उठता है कि आखिर वो ऐसे कौन से कारण होते हैं जो एक हँसते खेलते परिवार पर तलाक रूपी ग्रहण लगा जाते हैं। वैसे तो यहाँ मैं स्त्री या पुरुष का कोई पक्ष नहीं लेना चाहती। मगर फिर भी दोनों पक्षों के कुछ कारणों को मैं आपके समक्ष रखना चाहूंगी। जिनके आधार पर मुझे ऐसा लगता है, कि शायद इस समस्या के वही कुछ एक कारण हो सकते है। लेकिन इस सबके पीछे ऐसा कुछ नहीं है कि मैं स्वयं एक ग्रहणी हूँ इसलिए मुझे कामकाजी महिलाओं से कोई समस्या है या फिर मैं उनके विरुद्ध हूँ। यहाँ जो भी मैं लिख रही हूँ वह केवल मेरी एक सोच है। जो ज़रूरी नहीं कि आप की सोच और विचारों से मेल खाती ही हो।
मेरा ऐसा मानना है कि इसके पीछे सबसे अहम कारण है पैसा, आज की आधुनिक जीवन शैली की अंधी दौड़ में सबसे ज्यादा अगर कुछ मायने रखता है, तो वह है पैसा। क्यूंकि माना कि पैसा सब कुछ नहीं, मगर तब भी पैसा बहुत कुछ है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता, इसी पैसा कमाने की धुन सभी को है। चाहे स्त्री हो या पुरुष, पैसा कमाने का काम वैसे तो सदियों से बुज़ुर्गों ने पुरुषों को सौंपा हुआ था और घर गृहस्थी स्त्रियों का काम हुआ करता था। जो शायद कुछ हद तक सही भी था क्या कभी आप में से किसी ने यह सोचा है कि आखिर ऐसे नियम क्यूँ बनाये गये थे। आखिर कुछ तो कारण रहा होगा।
खैर पहले एक माँ अपनी बेटी को विवाह उपरांत विदा करते वक्त हमेशा यह सीख दिया करती थी, कि बेटा हमेशा बड़ों का सम्मान करना, कभी किसी को पलट कर जवाब मत देना। बड़ों को सम्मान, छोटों को प्यार, और हम उम्र को अपनापन देना। जिसके कारण बहुत सी छोटी-मोटी बातों पर परिवार में कलह होने से बच जाती थी। क्यूंकि तब लोग अपने आप से ज्यादा खुद से जुड़े लोगों और रिश्तों को अहमियत दिया करते थे।जिसके चलते चुप रहने के कारण या किसी बात पर समझौता कर लेना जो पूरे परिवार के हित में होता था। उस वक्त उस समझौते को करते वक्त किसी भी स्त्री के मन में परिवार के सामने खुद छोटे हो जाने या नाक नीची हो जाने जैसे भाव नहीं आते थे। मगर आज की तारीख में ऐसा नहीं है। आज यदि लड़की नौकरी करती है,अर्थात खुद पैसा कमाने में सक्षम है और अपने पेरों पर खड़ी है तो उसकी माँ उसे सिखाती है, बेटा तुझे किसी से डरने या किसी के आगे झुकने की कोई जरूरत नहीं है, तू आत्मनिर्भर है इसलिए तुझे अपनी मन मर्ज़ी करने का सम्पूर्ण अधिकार है। तुझे जो पसंद ना हो तो मत करो, मना करना सीखो ना कि चुप रहकर हालातों से समझौता करना। नतीजा सब अपनी मर्ज़ी के मालिक बन अपनी-अपनी चलाने की कोशिश में लगे रहते हैं। जिसके कारण अहम का टकराव और नतीजा झगड़ा बढ़ते-बढ़ते नौबत तलाक तक आ पहुँचती है।
पहले के जमाने में यदि पति अपनी पत्नी के लिए आगे बढ़कर कोई ऐसा काम कर दे जो स्त्री के नाम का होता है जैसे रसोई में कोई काम या किसी तरह की कोई छोटी-मोटी सेवा तो बेचारी पत्नी खुद को दुनिया में सब से ज्यादा खुशनसीब समझने लगती थी और आज की नारी का कहना है, कि यही तो हम स्त्रियों की विडम्बना है कि हम अपना अधिकार भी एहसान समझ कर लेते है। यानि इस पक्ष का निचोड़ यह हुआ कि लोग डर और समझौते में अंतर भूल गये हैं। इसलिए तो आज कल किसी से ना डरने और दबने या किसी के आगे ना झुकने की शिक्षा दी जाती है बेटियों को...खैर इसके पीछे सभी के निजी कारण भी हो सकते है और कुछ हद तक सामाजिक प्रभाव भी वह सब की अपनी-अपनी सोच पर निर्भर करता है।
अब यदि बात करें हम दूसरे पक्ष की अर्थात पुरुष पक्ष की, तो उन्हें भी आजकल पढ़ी लिखी नौकरी पेशा लड़की ही चाहिए होती है। क्यूंकि आज के इस महँगाई के युग में एक व्यक्ति की आमदनी से घर चलाना कठिन होता है। हालांकी इस में कोई गलत बात नहीं है। यही वक्त की मांग है, मगर होता यह है कि इंसान की ख्वाइश की कोई इंतहा नहीं होती। :-) कमाऊ बीवी के साथ उन्हें एक कुशल ग्रहणी भी चाहिए होती है। जो बाहर भी काम करे और घर में भी काम करे। साथ में उनके परिवार के सभी सदस्यों के साथ भी उसका तालमेल बढ़िया हो, जो आम तौर पर हो नहीं पाता है। क्यूंकि एक व्यक्ति एक वक्त में एक ही काम अच्छे से कर सकता है और यदि वह चारों तरफ हाथ पैर मारे तो कभी किनारे पर नहीं पहुँच सकता है। वही होता है इन कामकाजी महिलाओं के साथ घर और बाहर की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते उन्हें इतना समय ही नहीं मिल पाता कि वह बाकी रिशतेदारों के साथ भी वैसे ही घनिष्ठ संबंध कायम रख पाएँ जैसे एक गृहणी रख पाती है। बस यहीं से एक पुरुष के अहम को चोट पहुँचना प्रारम्भ हो जाती है और रोज़ के झगड़े बढ़ते चले जाते है। कभी कभी तो पत्नी की कमाई पति से ज्यादा होना भी पुरुष के अहम को चुनौती देता है और नतीजा तलाक।
तब भी बात यहीं खत्म कहाँ होती है.....मुझे तो यह समझ नहीं आता कि कोई भी विवाहित दंपत्ति तलाक लेने से पहले आपस में बैठकर एक बार शांति से अपनी-अपनी समस्याओं पर बात क्यूँ नहीं करते कि उनको एक दूसरे से आखिर समस्या क्या है और यदि वह लोग ऐसा करते भी हैं, तो क्या एक बार भी उन्हें अपने बच्चों का ख़्याल नहीं आता ? मुझे तो लगता है कि ऐसा विचार नहीं ही आता होगा। क्यूंकि आजकल सभी सक्षम होते हैं कोई किसी के आगे खुद को कम दिखाना नहीं चाहता, जिसके चलते लोग यह भूल जाते हैं, कि बच्चों को आपका पैसा नहीं बल्कि आपके साथ की जरूरत है आप दोनों के प्यार की जरूरत है। क्यूंकि बच्चों की सही परवरिश माता या पिता दोनों में से किसी एक के अभाव में कभी पूरी नहीं हो सकती। हाँ वो अपने जीवन में एक बेहद कामयाब इंसान ज़रूर बन सकता है मगर उसके मन के अंदर उस कमी का कांटा हमेशा खटकता रहता है। फिर चाहे वह उस बात को ज़ाहिर करे या ना करे वो अलग बात है। कुछ दंपत्ति ऐसे भी होते हैं जिनके बच्चे नहीं होते लेकिन साथ गुज़ारे हुए कुछ अच्छे पलों की यादें तो होती है। मगर तब भी उन्हें उन यादों के साथ रहना मंजूर होता है बजाये खुद अपने जीवन में एक दूसरे के साथ चलते हुए नयी यादें बनाने के आखिर क्यूँ ??
अंततः बस यही पूछना चाहूंगी आप सभी से कि क्या आपको नहीं लगता कि पैसा कमाने और आत्मनिर्भर होने जैसी चीजों ने जहां एक ओर व्यक्ति का विकास किया है वहीं दूसरी और फायदे से ज्यादा नुकसान भी किया है और कर भी रहा है जिसका परिणाम है यह "तलाक"!!!
बिल्कुल सही कहा है आपने ...
ReplyDeleteशादी जब पॅकेज से हो , प्रेम विवाह जब सोच समझकर हो .... तो विचारों का तालमेल अधर में . दुखद स्थितियां अलग अलग कारण
ReplyDeleteसहनशीलता की कमी भी आज इसका एक मुख्य कारण है.पढ़कर समझ से जीवन बिताने के बजाय दोनों में इतना अहम् आ जाता है कि अपने को सही समझने के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाते,और तब दूसरे को सुनने समझने,और सहने कि क्षमता भी खो देतें है और अंजाम होता है तलाक
ReplyDeleteविवाह व्यक्तिगत है, कभी कभी तलाक की मुक्ति विवाह की घुटन से आवश्यक होती है।
ReplyDeleteपैसा कमाना तो नहीं;हाँ एक अच्छे जीवन के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक है और आत्मनिर्भरता कभी तलाक का कारण नहीं हो सकती। तलाक मनोवैज्ञानिक और पारिवारिक समस्या है जो अलग अलग परिस्थिति पर निर्भर करती है लेकिन इसका असर समाज पर भी पड़ता है।
ReplyDeleteकुछ हद तक मैं प्रवीण सर की बात से भी सहमत हूँ लेकिन तलाक की नौबत ही न आए तो ज़्यादा बेहतर होगा और इसके लिये mutual understanding बनानी ही पड़ेगी।
सादर
मेरे ख्याल से आपस का इगो जब हद से ज्यादा बढ़ जाता है,और ऐसी असहनीय स्थित तलाक का कारण बनती है,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
तलाक के कुछ कारणों पर आपने अच्छा प्रकाश डाला है। तलाक अहम के टकराव का परिणाम तो है ही साथ ही साथ बदलते हुए परिवेश में हमारे संस्कारों में व्यापक परिवर्तन हुआ है। तलाक का एक प्रमुख कारण किसी भी पक्ष की एक विशिष्ट सोच भी है। पति या पत्नी यदि किसी विशेष अपेक्षा के साथ पत्नी या पति पक्ष से जुड़ता है;और शादी के बाद वह अपेक्षा उन्हें पूर्ण होती नहीं दिखाई देती तो इसका निश्चित परिणाम होता है तलाक। दूसरे तलाक का समाज में बढ़ना स्वयं तलाक का एक कारण है;पहले जो स्त्रियां या पुरुष तलाक के बाद की निंदित जिंदगी की वजह से तलाक लेना पसंद नहीं करते थे,वहीं आज तलाक की स्वीकार्यता और दूसरे या तीसरे विवाह पर भी कोई निंदित भाव न होने के कारण लोग धड़ल्ले से तलाक ले रहें हैं। लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि जो सुख किसी एक परिवार को बसाने में है वह सुख दो या तीन परिवार तोड़ कर बसाने में नहीं। व्यक्ति के मन को समझे बिना तलाक के मूल कारणों को समझना भूल होगी।
ReplyDeleteसमझ नहीं आता आपके इस प्रश्न का क्या जवाब दें?
ReplyDeleteविकास और आत्मनिर्भरता भी ज़रूरी है और एक परंपरावादी समाज और परिवार भी।
उम्दा आलेख
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - यह अंदर की बात है ... ब्लॉग बुलेटिन
कई सारे कारण हैं ..... समझौते अब कोई नहीं करना चाहता ....
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ कर ये लगा की शादी जो करते हैं वो केवल समझोता करते हैं और अगर समझोता { जिसको हम करार भी कह सकते हैं } नहीं होता हैं तो शादी टूट जाती हैं और तलाक हो जाता हैं .
ReplyDeleteजब तक शादी समझोता होगी / रहेगी तलाक भी होगे इस लिये शादी को इस से आगे कुछ होना होगा
समझोता ना हो सकने की स्थिति में शादी को निभाना यानी ये कहना की हम बच्चो की वजह से साथ हैं एक दकियानूसी सोच हैं क्युकी गलत रिश्ते में रह कर आप बच्चो को सही परवरिश दे सकेगे क्या ???
पहले लोग इस प्रकार के समझोते करते थे और कहीं बाहर पति पत्नी और वो के सम्बन्ध बनते थे पर अब वो अलग हो कर दुबारा जिन्दगी शुरू करते हैं
आज प्रश्न होना चाहिये तलाक के बाद बच्चो की जिम्मदारी किस प्रकार से अलग हो कर भी उनके अभिभावक उठा सके
तलाक का संस्कार से क़ोई लेना देना नहीं हैं , तलाक एक गलत शादी से अलग होने की क्रिया मात्र हैं जैसे बच्चे होना शादी के बाद परिवार बनाने मात्र हैं
विकल??
ReplyDeleteतलाक यदि अहम के कारण हो तो उसे जरुर टाला जाना चाहिए, जब हम दुनिया भर से समझौते कर लेते हैं तो एक अच्छे रिश्ते के लिए थोडा सा समझौता क्यों नहीं हो सकता . मगर अन्याय या प्रताड़ना सहने की स्थिति में मजबूरी में लिए गये विकल्प के तौर पर यह गलत नहीं है . साथ रहकर एक दूसरे की जिंदगी नरक बनाने से बेहतर है , अलग रहा जाए . अत्याचार या प्रताड़ना सहते /देखते हुए बच्चों का बढ़ना भी उनके मानसिक विकास के लिए उचित नहीं है !
पश्चिम का प्रभाव आम जिंदगी पर पड़ रहा है . विवाहित जीवन भी अछूता नहीं रहा . पहले रिश्ते मां बाप की पसंद और तहकीकात के बाद होते थे . अब लड़का लड़की स्वयं ही सारे फैसले ले लेते हैं . अक्सर उनके फैसले में अनुभव की कमी होती है जो उम्र के साथ आती है .
ReplyDeleteकन्ज्युमेरिज्म के ज़माने में शादी भी एक कंज्यूमर प्रोडक्ट बन कर रह गई है .
विचारोत्तक लेख .
दो लोगो की सोच एक जैसी हो, ऐसा होना लगभग असंभव बात होती है, इसलिए एक-दुसरे की ख़ुशी, प्यार, स्नेह के लिए अपने उसूलों से समझौता करना पड़ता है और मेरे विचार से इसमें कहीं से भी कोई भी बुराई नहीं है. हाँ अगर ऐसा समझौता अपना मन मार कर होता है, जिससे की हमेशा पछतावे का बोध होता रहे, तो यह स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती है. बाकी तो अपनी-अपनी सोच है.
ReplyDeleteजैसा कि मैंने ऊपर कहा कि दो लोग एक जैसे होना लगभग असंभव है और तलाक़ का एक प्रमुख कारण यह भी है कि हर एक अपने साथी को अपने चश्मे से ही देखता है, उसकी परेशानियां, मज़बूरी, कमजोरी पर ध्यान नहीं दिया जाता.... और इसीलिए अपनी मर्ज़ी थोपने की कोशिश की जाती है....
इसके साथ-साथ पैसे कमाने की अंधी दौड़ भी इसका एक प्रमुख कारण है. इस भाग-दौड़ में हम अक्सर अपने परिवार को समय नहीं दे पाते हैं.... आज के दौर में माता-पिता दोनों ही कमाना चाहते हैं. अगर कोई महिला घर में रह कर बच्चो की परवरिश करना चाहती है तो उसके पति की नज़र में उसका स्वयं का बहार जाकर कमाना बड़ा काम होता है और महिला का घर-बार संभालना छोटा. वहीँ अगर कोई पुरुष घर पर रह कर बच्चो की परवरिश का ज़िम्मा संभालना चाहता है तो वह (तथाकथित) समाज की नज़रों में नामर्द जैसे अलंकारों से सुशोभित हो जाता है....
रिश्ता जब रिसने लगता है तब होता है तलाक
ReplyDeleteबहुत अच्छा और सामयिक मुद्द आपने उठाया है पल्लवी जी--विश्लेषण भी बहुत तार्किक ढंग से किया है। पर इस मामले में सिर्फ़ किसी एक कारण को हम दोष नहीं दे सकते--मुझे लगता है कि विवाह जैसा पवित्र बंधन निश्चित ही एक समझौता होता है पूरी उम्र साथ निभाने का--लेकिन हमारे देश,समाज की बदलती आर्थिक,राजनैतिक और बौद्धिक परिस्थितियां बहुत गहराई तक आम आदमी को प्रभावित कर रही हैं---इनका भी परिणाम आज तलाक के रूप में सामने आ रहा है।लेकिन मुख्य रूप से आज तलाक के पीछे पति-पत्नी के अहम का टकराव है।यदि इनमें से कोई भी थोड़ा समझौता कर ले तो शायद आज इतनी बड़ी संख्या में तलाक के मामले सामने नहीं आएंगे। मैंने तो खुद अपने एक मित्र के परिवार में सिर्फ़ छोटी सी बात---आफ़िस से लौट कर कौन चाय बनाएगा---पर भयंकर झगड़ा और अन्त में तलाक होते देखा है। देखने में तो यह बहुत छोटी सी बात लगती है---लेकिन जब झगड़े शुरू होते हैं तो --परिवार,खानदान,रियासत ---सब का वर्चस्व आड़े आता है---पति पत्नी दोनों में कोई भी थोड़ा झुकना नहीं चाहता--और अन्त तलाक।---
ReplyDeleteआपका लेख काफ़ी प्रभावशाली और तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। बधाई।
हेमन्त कुमार
bahut hi umda paost...kuch Aisi hi sthiti hai samja ki Sabka Aham samne aa jata hai jab Samjhauta kerne ki baat ati hai..koi bhi jhukne ko taiyar nahi hai..........chahe wo stri ho ya purush............
ReplyDeleteaur uska sabse dukhad pahlu risto ki MAUT. (TALAK)...........
samajik visay pe likhne ke liye bahut bahut badhai..........
समय बहुत बदल गया है. अब लड़कियों को यह कह कर नहीं विदा किया जाता कि बेटी यहाँ से डोली उठी है अब ससुराल से अर्थी ही उठेगी. लडकियां अब आत्म निर्भर होती हैं तो रिश्तों को ढोना नहीं चाहतीं उन्हें जीना चाहती हैं,और मजबूरी में रिश्ते को बांधे रखने की बजाय उसे तोड़ देना पसंद करती हैं. हाँ इसका एक कारण अवश्य ही आर्थिक आत्म निर्भरता है.
ReplyDeleteजब भी पुरुष का अहम् टकराएगा और वहां स्त्री झुकने तैयार न हो तो नौबत तलक तक पहुच जाती है .दोनों की समझदारी से विवाह की गाड़ी सही चलती है .
ReplyDeleteतार्किक पोस्ट के लिए आभार !
bahut hi vicharniya post.....sunder parstuti.
ReplyDeletePallavi ji....
ReplyDeleteBahut hi gahan chintan.....
Mere hisaab se dahej kam lana ,love marriage or olaad na hona bhi talak ki parmukh samsya hai.
Pahli baar aapke blog pe aayee aur aana saarthak ho gaya.....behad wicharneey post!
ReplyDeleteसब कुछ तो कह दिया गया टिप्पणियों में . अच्छा विचार विमर्श पढने को मिला .
ReplyDeleteबढ़ते तलाक के मामलों के पीछे असंतुष्ट मानसिकता है. हम जीवन में संतुष्टि ढूँढने और उसकी यादों को सहेजने की आदत भूलते जा रहे हैं.
ReplyDeleteएक दूसरे से सामंजस्य की कमी, बढती असहनशीलता आज तलाक का बहुत बड़ा कारण है.
ReplyDeleteजब दिल लॉक हो जाय तब तलाक हो जाय।
ReplyDeleteरिश्तों को मजबूरी में ढोते रहने से बेहतर है दूसरी राहें तलाशी जांय। लड़कियों को पढ़ाना और समर्थ बनाना अब और भी जरूरी हो चुका है।
वर्तमान में तलाक बढ़ने का एक कारण ये भी है कि अब यदि किसी पुरुष को दूसरी शादी करनी हो तो पहली पत्नी को तलाक देना पड़ेगा जब कि पहले पुरुष एक पत्नी के रहते दूसरी शादी आसानी से कर सकता था
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