Monday, 28 May 2012

एक बार फिर मौसम ने ली अँगड़ाई


विदेशी गर्मियों का एक और सुनहरा दिन वह भी कई दिनों की बारिश और ठंड के बाद, यहाँ सूर्य नारायण का अपने रोद्र रूप में निकलना यानि खुशियों का त्यौहार जैसे धूप न निकली हो कोई महोत्सव हो रहा हो। या फिर इस संदर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि धूप निकलना मतलब यहाँ के लोगों के लिए एक तरह का कपड़े उतारू महोत्सव जिसमें यहाँ के सभी नागरिक बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं फिर क्या महिलाएं, क्या पुरुष और क्या बच्चे सभी में एक होड़ सी लग जाती है कि कौन कितने ज्यादा और किस हद तक कपड़े उतार कर सड़क पर घूम सकता है।

लेकिन फिर भी दूर तक जाती लंबी सड़क उस पर चिलचिलाती तेज़ धूप में भी ठंडी हवा है ठंडे-ठंडे थपेड़े कम से कम आपको चुभती हुई धूप से राहत पहुँचाते रहते हैं। क्यूंकि यहाँ की गर्मियों के हिसाब से यहाँ का तापमान कितना भी ज्यादा क्यूँ न हो चाहे। यहाँ की तेज़ धूप आपकी त्वचा को जला कर काला ही क्यूँ न कर दे, मगर हवा यहाँ की हमेशा ठंडी ही रहती है। जो तपती गर्मी में एसी (A .C) नहीं तो कम से कम पंखे नुमा आराम तो देती ही रहती है। क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है, कि यहाँ अपने इंडिया की तुलना में प्रदूषण कम होने के कारण आसमान ज्यादा साफ रहता है। जिसके कारण ऐसा महसूस होता है, कि सूर्य की अल्ट्रा वाइलेट किरनें आपकी त्वचा पर ज्यादा और बहुत तेज़ी से असर करती है। ऐसा मुझे लगता है ज़रूर नहीं कि आप सब भी इस बात से सहमत ही हो, मगर जो मुझे लगा वो मैंने बता दिया।

अब इन सब चीजों को मद्देनज़र रखते हुए यदि बात की जाये मेरे अनुभव की, तो भई यहाँ रहते-रहते हम तो सदाबहार टाइप के हो गए हैं। यानि बोले तो साल के बारह महीने अपना तो एक ही तरह का फिक्स आउटलुक है जीन्स टी शर्ट वाला फिर चाहे कोई सा भी मौसम आए जाये हम अपने पहनावे से कोई खास बड़ा समझोता कभी नहीं करते। बस ज्यादा हुआ तो ठंड के दिनों में ओवर कोट ,और सड़ी गर्मी हुई तो टी शर्ट की जगह शर्ट बस इसे ज्यादा ओर कुछ नयापन, अपने पहनावे को लेकर  हमको पसंद ही नहीं आता । लेकिन हाँ बाकी विदेशियों की तरह यहाँ सूर्य महाराज की उपस्थिती में बाहर घूमने में हमें भी बड़ा मज़ा आता है। क्यूंकि गरमियों के चलते गरम कपड़ों के बोझ से राहत जो मिल जाती है। एक अजीब सी आज़ादी और खुलेपन का एहसास होता है। आज़ादी बोले तो गरम कपड़ो से आज़ादी :) वरना तो साल के 6-8 महीने ज़िंदगी कोट और जेकिट के भार तले दबे-दबे ही गुज़र जाती है। बस यही कुछ महीने होते हैं आज़ादी के जब खुल कर जीने और बिंदास घूमने को मिलता है।
इतना ही नहीं बल्कि सूर्य नारायण के खुल कर सामने आते ही लोग चूहों की तरह अपने-अपने बिलों से बाहर निकल आते हैं। उस वक्त ऐसा नज़ारा नज़र आता है जैसे नमी और ठंडक वाली जगह जब धूप दिखाई जाती है है न...अपने इंडिया में तब कैसे कीड़े मकोड़े निकल-निकल कर भागते हैं, अपने घरों से वैसे ही कुछ नज़ारा यहाँ इन्सानों के बीच देखने को मिलता है। उस वक्त यहाँ नए-नए आए हुये व्यक्ति को तो ऐसा लगता है जैसे सूरज न निकला हो, मानो कोई अजब गज़ब की बात हो गई हो। वैसे भी बड़े नाजुक होते हैं यह अंग्रेज़ कल ही की बात है एक दिन भी पूरा नहीं हुआ सूर्य महाराज की कृपा का, कि लोगों की नाक से खून भी आना शुरू हो गया बताइये अब इस पर आप क्या कहंगे। एक दिन की गर्मी झेल नहीं पाते यहाँ के लोग और यह हाल हो जाता है जबकि तापमान सिर्फ 28 C रहा होगा जो इंडिया के हिसाब से तो सुहाना और यहाँ के हिसाब से बहुत ज्यादा गर्म।
लेकिन कुछ भी हो तेज़ चिलचिलाती धूप के आने की खुशी मनाते बदहवास से लोगों के चेहरों में भी दिनों एक अलग सी आलौकिक चमक आ जाती है। धूप में तपता गोरा रंग मानो आग में तापी हुई कोई धातु हो जैसे नीली और भूरी आँखों में समंदर के पानी सी चमक, खूबसूरती की नज़र से देखा जाये यदि तो इस गर्मियों के मौसम में जैसे कुदरत की सारी खूबसूरती सिमट कर इन लोगों में समा जाती है। खास कर यहाँ के बच्चों में, वैसे तो मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं चाहे कहीं के भी हों, मगर यहाँ के बच्चे भी मुझे बड़े प्यारे लगते हैं। एक दम गोल-गोल गुड्डे गुड़िया के जैसे खिलौनो की तरह सर्दियों में देखो तो मारे ठंड के गोरे रंग पर लाल-लाल छोटी सी नाक सुर्ख़ होंट जैसे खून टपक रहा हो, नर्म-नर्म कंबल में लिपटे बाबा गाड़ी बोले तो प्रैम(Pram) में लेटे-लेटे आते जाते लोगों को टुकुर-टुकुर देखते बच्चे और कोई उन्हे देख कर मुस्कुरा दे तो खिलखिला कर हँसते और अपने कंबल में दुबक जाते। एक दम फूल से कोमल बच्चे इन गर्मियों में भी विटामिन डी लेने के चक्कर में तेज़ धूप में खेलते लाल मुंह के बंदर समान लाल-लाल चेहरा लिए, सर पर टोपी और सन स्क्रीन पोते खेलते खिलाते शोर मचाते मस्ती करते बच्चे, जाने क्यूँ यहाँ के लोग मुझे क्रिसमस से ज्यादा खुश इन गर्मियों में नज़र आते हैं। :)

कमाल है न!!! केवल तेज़ धूप और सड़ी गर्मी के आने का भी जश्न मानते हैं लोग :)  

31 comments:

  1. यहाँ के लोग मुझे क्रिसमस से ज्यादा खुश इन गर्मियों में नज़र आते हैं। :)
    खुश होने को तो किसी भी बात पर हुआ जा सकता है ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  2. हर जगह ही तो सूरज का प्रकोप है..

    ReplyDelete
  3. हम्म गर्मियां ठन्डे देशों में उत्सव का ही कारण होती हैं. और कम से कमतर कपड़ों के पीछे एक लोजिक भी है. कि यही १-२ महीने ली गई सूर्य की गर्मी से यहाँ लोग पूरा साल निकालते हैं वर्ना उन्हें त्वचा के कई तरह के रोग भी हो जाते यहाँ तक कि स्किन केंसर भी.इसीलिए जब भी सूर्य देव की कृपा होती है यहाँ के लोगों का पूरा प्रयास होता है अपनी त्वचा को पूर्ण एक्सपोजर देने का.

    ReplyDelete
  4. मौसम द्वारा अंगड़ाई लेने की शुभकामनाये . हम तो सूरज देव से बचने की हर कोशिश करते है आजकल.

    ReplyDelete
  5. देशकाल के हिसाब से मौसम को महसूस करने का भी एक अपना अंदाज़ होता है
    सूरज तो यहाँ बस 'सूरज' ही है

    ReplyDelete
  6. chalo apki post ko padhkar hamne yaha ki garmi se thoda sukun pa liya . sundar lagi waha ki garmi ! idhar to ..........baap re ,,,nam se hi dar lagta hai .

    ReplyDelete
  7. मौसम के मिजाज़ का बहुत खूबसूरत वर्णन किया है .
    वास्तव में अंग्रेजों को ऐसे देखकर हम हिन्दुस्तानी तो बड़े मग्न ओते हैं .

    ReplyDelete
  8. अपना अपना अंदाज होता है हर मौसम के मजा लेने का,,,,,,, सुंदर प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

    ReplyDelete
  9. बहुत ही उम्दा जानकारी शेयर करने के लिए आभार |

    ReplyDelete
  10. bahut sunder jaankari mili ..........

    ReplyDelete
  11. एक हम हैं 44-45 डिग्री की आग झेल रहे हैं ...वैसे आपके तो मज़े हैं....आनंद लीजिये....फिलहाल तो आपकी पोस्ट से हम भी आनंद ले रहे हैं।

    सादर

    ReplyDelete
  12. .बेहतरीन प्रस्‍तुति

    ReplyDelete
  13. अनंद मई प्रस्तुति ...!!

    ReplyDelete
  14. शरीर अपने वातावरण के हिसाब से ही खुद को समायोजित करता है।

    ReplyDelete
  15. aap ki post padh hi rahe ki varish shuru ho gayee..... shayad garmi se kuchh nijat mile..

    ReplyDelete
  16. हाँ जी बिलकुल ठीक कहा आपने मैं यह पार्ट लिखना भूल ही गयी थी। अच्छा हुआ जो आपने यहाँ टिप्पणी के रूप में लिख दिया आभार :-)

    ReplyDelete
  17. मेरी इस पोस्ट को भी ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए आभार...

    ReplyDelete
  18. waah kya mausam aaya hai..............enjoy this...............

    ReplyDelete
  19. रोचक प्रस्तुति के साथ बढ़िया जानकारी

    ReplyDelete
  20. हमारे सूरज में बहुत वेराइटी है. वहाँ के लोग हमारे सूरज से ईर्ष्या कर सकते हैं. :))

    ReplyDelete
  21. गरमी ग़रीबों का मौसम है, नंगे बदन पेड़ के नीचे सो जाना, और जाड़ा अमीरों का .. जहां भयंकर ठंड में कैसे हो गुजारा?

    ReplyDelete
  22. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  23. ग्रीष्म का सुंदर चित्रण.
    46 C + में तो तंदूर बन जायेंगे.
    सहज प्रस्तुति सराहनीय.

    ReplyDelete
  24. लन्दन की गर्मियों और सर्दियों, दोनों के बारे में खूब सूना है मैंने..वैसे मैं तो दिल्ली की गर्मियों से बेहद परेसान हूँ...आपके पोस्ट का वो भाग पढ़ के जहाँ आपने लिखा है की गर्मियों में भी ए.सी टाईप हवा चलती है, बहुत जलन हो रही है आपसे :) :)

    वैसे सर्दियाँ मुझे सबसे ज्यादा पसंद है...और हाँ, सर्दियों के ठीक बाद जो वसंत का समय आता है, उस समय सही में लगता है की कपड़ों का भार अचानक कम हो गया है.. :)

    ReplyDelete
  25. सूरज की गरमी को दुनिया के अलग-अलग देशों के लोग अलग-अलग नजरिए से देखते हैं। आपके आलेख का सार कुछ ऐसा ही है।
    बढि़या आलेख।

    ReplyDelete
  26. सामयिक सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  27. मौसम ने तो हमारे दुबई में भी अंगडाई ले ली है और पारा ४५ से ऊपर जा रहा है ... कहते हैं शायद ५२-५४ तक न चला जाए इस बार ... अचा लगा आपके सुहावने मौसम कों पढ़ना .. कुछ ठंडा आ गयी ...

    ReplyDelete

अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए यहाँ लिखें