विदेशी गर्मियों का एक और सुनहरा दिन वह भी कई दिनों की बारिश और ठंड के बाद, यहाँ सूर्य नारायण का अपने रोद्र रूप में निकलना यानि खुशियों का त्यौहार जैसे धूप न निकली हो कोई महोत्सव हो रहा हो। या फिर इस संदर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि धूप निकलना मतलब यहाँ के लोगों के लिए एक तरह का कपड़े उतारू महोत्सव जिसमें यहाँ के सभी नागरिक बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं फिर क्या महिलाएं, क्या पुरुष और क्या बच्चे सभी में एक होड़ सी लग जाती है कि कौन कितने ज्यादा और किस हद तक कपड़े उतार कर सड़क पर घूम सकता है।
लेकिन फिर भी दूर तक जाती लंबी सड़क उस पर चिलचिलाती तेज़ धूप में भी ठंडी हवा है ठंडे-ठंडे थपेड़े कम से कम आपको चुभती हुई धूप से राहत पहुँचाते रहते हैं। क्यूंकि यहाँ की गर्मियों के हिसाब से यहाँ का तापमान कितना भी ज्यादा क्यूँ न हो चाहे। यहाँ की तेज़ धूप आपकी त्वचा को जला कर काला ही क्यूँ न कर दे, मगर हवा यहाँ की हमेशा ठंडी ही रहती है। जो तपती गर्मी में एसी (A .C) नहीं तो कम से कम पंखे नुमा आराम तो देती ही रहती है। क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है, कि यहाँ अपने इंडिया की तुलना में प्रदूषण कम होने के कारण आसमान ज्यादा साफ रहता है। जिसके कारण ऐसा महसूस होता है, कि सूर्य की अल्ट्रा वाइलेट किरनें आपकी त्वचा पर ज्यादा और बहुत तेज़ी से असर करती है। ऐसा मुझे लगता है ज़रूर नहीं कि आप सब भी इस बात से सहमत ही हो, मगर जो मुझे लगा वो मैंने बता दिया।
अब इन सब चीजों को मद्देनज़र रखते हुए यदि बात की जाये मेरे अनुभव की, तो भई यहाँ रहते-रहते हम तो सदाबहार टाइप के हो गए हैं। यानि बोले तो साल के बारह महीने अपना तो एक ही तरह का फिक्स आउटलुक है जीन्स टी शर्ट वाला फिर चाहे कोई सा भी मौसम आए जाये हम अपने पहनावे से कोई खास बड़ा समझोता कभी नहीं करते। बस ज्यादा हुआ तो ठंड के दिनों में ओवर कोट ,और सड़ी गर्मी हुई तो टी शर्ट की जगह शर्ट बस इसे ज्यादा ओर कुछ नयापन, अपने पहनावे को लेकर हमको पसंद ही नहीं आता । लेकिन हाँ बाकी विदेशियों की तरह यहाँ सूर्य महाराज की उपस्थिती में बाहर घूमने में हमें भी बड़ा मज़ा आता है। क्यूंकि गरमियों के चलते गरम कपड़ों के बोझ से राहत जो मिल जाती है। एक अजीब सी आज़ादी और खुलेपन का एहसास होता है। आज़ादी बोले तो गरम कपड़ो से आज़ादी :) वरना तो साल के 6-8 महीने ज़िंदगी कोट और जेकिट के भार तले दबे-दबे ही गुज़र जाती है। बस यही कुछ महीने होते हैं आज़ादी के जब खुल कर जीने और बिंदास घूमने को मिलता है।
इतना ही नहीं बल्कि सूर्य नारायण के खुल कर सामने आते ही लोग चूहों की तरह अपने-अपने बिलों से बाहर निकल आते हैं। उस वक्त ऐसा नज़ारा नज़र आता है जैसे नमी और ठंडक वाली जगह जब धूप दिखाई जाती है है न...अपने इंडिया में तब कैसे कीड़े मकोड़े निकल-निकल कर भागते हैं, अपने घरों से वैसे ही कुछ नज़ारा यहाँ इन्सानों के बीच देखने को मिलता है। उस वक्त यहाँ नए-नए आए हुये व्यक्ति को तो ऐसा लगता है जैसे सूरज न निकला हो, मानो कोई अजब गज़ब की बात हो गई हो। वैसे भी बड़े नाजुक होते हैं यह अंग्रेज़ कल ही की बात है एक दिन भी पूरा नहीं हुआ सूर्य महाराज की कृपा का, कि लोगों की नाक से खून भी आना शुरू हो गया बताइये अब इस पर आप क्या कहंगे। एक दिन की गर्मी झेल नहीं पाते यहाँ के लोग और यह हाल हो जाता है जबकि तापमान सिर्फ 28 C रहा होगा जो इंडिया के हिसाब से तो सुहाना और यहाँ के हिसाब से बहुत ज्यादा गर्म।
लेकिन कुछ भी हो तेज़ चिलचिलाती धूप के आने की खुशी मनाते बदहवास से लोगों के चेहरों में भी दिनों एक अलग सी आलौकिक चमक आ जाती है। धूप में तपता गोरा रंग मानो आग में तापी हुई कोई धातु हो जैसे नीली और भूरी आँखों में समंदर के पानी सी चमक, खूबसूरती की नज़र से देखा जाये यदि तो इस गर्मियों के मौसम में जैसे कुदरत की सारी खूबसूरती सिमट कर इन लोगों में समा जाती है। खास कर यहाँ के बच्चों में, वैसे तो मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं चाहे कहीं के भी हों, मगर यहाँ के बच्चे भी मुझे बड़े प्यारे लगते हैं। एक दम गोल-गोल गुड्डे गुड़िया के जैसे खिलौनो की तरह सर्दियों में देखो तो मारे ठंड के गोरे रंग पर लाल-लाल छोटी सी नाक सुर्ख़ होंट जैसे खून टपक रहा हो, नर्म-नर्म कंबल में लिपटे बाबा गाड़ी बोले तो प्रैम(Pram) में लेटे-लेटे आते जाते लोगों को टुकुर-टुकुर देखते बच्चे और कोई उन्हे देख कर मुस्कुरा दे तो खिलखिला कर हँसते और अपने कंबल में दुबक जाते। एक दम फूल से कोमल बच्चे इन गर्मियों में भी विटामिन डी लेने के चक्कर में तेज़ धूप में खेलते लाल मुंह के बंदर समान लाल-लाल चेहरा लिए, सर पर टोपी और सन स्क्रीन पोते खेलते खिलाते शोर मचाते मस्ती करते बच्चे, जाने क्यूँ यहाँ के लोग मुझे क्रिसमस से ज्यादा खुश इन गर्मियों में नज़र आते हैं। :)
कमाल है न!!! केवल तेज़ धूप और सड़ी गर्मी के आने का भी जश्न मानते हैं लोग :)
यहाँ के लोग मुझे क्रिसमस से ज्यादा खुश इन गर्मियों में नज़र आते हैं। :)
ReplyDeleteखुश होने को तो किसी भी बात पर हुआ जा सकता है ... बेहतरीन प्रस्तुति।
हर जगह ही तो सूरज का प्रकोप है..
ReplyDeleteहम्म गर्मियां ठन्डे देशों में उत्सव का ही कारण होती हैं. और कम से कमतर कपड़ों के पीछे एक लोजिक भी है. कि यही १-२ महीने ली गई सूर्य की गर्मी से यहाँ लोग पूरा साल निकालते हैं वर्ना उन्हें त्वचा के कई तरह के रोग भी हो जाते यहाँ तक कि स्किन केंसर भी.इसीलिए जब भी सूर्य देव की कृपा होती है यहाँ के लोगों का पूरा प्रयास होता है अपनी त्वचा को पूर्ण एक्सपोजर देने का.
ReplyDeleteमौसम द्वारा अंगड़ाई लेने की शुभकामनाये . हम तो सूरज देव से बचने की हर कोशिश करते है आजकल.
ReplyDeleteदेशकाल के हिसाब से मौसम को महसूस करने का भी एक अपना अंदाज़ होता है
ReplyDeleteसूरज तो यहाँ बस 'सूरज' ही है
chalo apki post ko padhkar hamne yaha ki garmi se thoda sukun pa liya . sundar lagi waha ki garmi ! idhar to ..........baap re ,,,nam se hi dar lagta hai .
ReplyDeleteमौसम के मिजाज़ का बहुत खूबसूरत वर्णन किया है .
ReplyDeleteवास्तव में अंग्रेजों को ऐसे देखकर हम हिन्दुस्तानी तो बड़े मग्न ओते हैं .
अपना अपना अंदाज होता है हर मौसम के मजा लेने का,,,,,,, सुंदर प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
Summer Time :)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा जानकारी शेयर करने के लिए आभार |
ReplyDeletebahut sunder jaankari mili ..........
ReplyDeletemausam ka maja lijiye
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteएक हम हैं 44-45 डिग्री की आग झेल रहे हैं ...वैसे आपके तो मज़े हैं....आनंद लीजिये....फिलहाल तो आपकी पोस्ट से हम भी आनंद ले रहे हैं।
ReplyDeleteसादर
.बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteअनंद मई प्रस्तुति ...!!
ReplyDeleteशरीर अपने वातावरण के हिसाब से ही खुद को समायोजित करता है।
ReplyDeleteaap ki post padh hi rahe ki varish shuru ho gayee..... shayad garmi se kuchh nijat mile..
ReplyDeleteहाँ जी बिलकुल ठीक कहा आपने मैं यह पार्ट लिखना भूल ही गयी थी। अच्छा हुआ जो आपने यहाँ टिप्पणी के रूप में लिख दिया आभार :-)
ReplyDeleteमेरी इस पोस्ट को भी ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए आभार...
ReplyDeletewaah kya mausam aaya hai..............enjoy this...............
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति के साथ बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteहमारे सूरज में बहुत वेराइटी है. वहाँ के लोग हमारे सूरज से ईर्ष्या कर सकते हैं. :))
ReplyDeleteगरमी ग़रीबों का मौसम है, नंगे बदन पेड़ के नीचे सो जाना, और जाड़ा अमीरों का .. जहां भयंकर ठंड में कैसे हो गुजारा?
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ReplyDeleteग्रीष्म का सुंदर चित्रण.
ReplyDelete46 C + में तो तंदूर बन जायेंगे.
सहज प्रस्तुति सराहनीय.
लन्दन की गर्मियों और सर्दियों, दोनों के बारे में खूब सूना है मैंने..वैसे मैं तो दिल्ली की गर्मियों से बेहद परेसान हूँ...आपके पोस्ट का वो भाग पढ़ के जहाँ आपने लिखा है की गर्मियों में भी ए.सी टाईप हवा चलती है, बहुत जलन हो रही है आपसे :) :)
ReplyDeleteवैसे सर्दियाँ मुझे सबसे ज्यादा पसंद है...और हाँ, सर्दियों के ठीक बाद जो वसंत का समय आता है, उस समय सही में लगता है की कपड़ों का भार अचानक कम हो गया है.. :)
सूरज की गरमी को दुनिया के अलग-अलग देशों के लोग अलग-अलग नजरिए से देखते हैं। आपके आलेख का सार कुछ ऐसा ही है।
ReplyDeleteबढि़या आलेख।
सामयिक सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमौसम ने तो हमारे दुबई में भी अंगडाई ले ली है और पारा ४५ से ऊपर जा रहा है ... कहते हैं शायद ५२-५४ तक न चला जाए इस बार ... अचा लगा आपके सुहावने मौसम कों पढ़ना .. कुछ ठंडा आ गयी ...
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