जब से इंडिया से वापस आई हूँ तब से इस विषय में लिखने का बहुत मन था मगर यह पोस्ट पूरी हो ही नहीं पा रही थी जिसके चलते पिछले कई दिनों से यह पोस्ट ड्राफ्ट में पड़ी थी सोचा आज इसे पूरा कर ही दिया जाये तो बस इंडिया की याद में लिख दिया अपना एक छोटा सा यात्रा वृतांत इस बार मैंने भी इंडिया में दतिया का राजमहल देखा जिसे देखने की हमारी कोई खास मंशा तो नहीं थी मगर बस हम वहाँ हैं और वहाँ जाना बार-बार तो संभव हो नहीं पाता बस यही सोचकर हमने सोचा चलो अब यहाँ आए हैं तो देख ही लेते हैं। दतिया शहर के विषय में बचपन में मैंने अपने पापा से पहले ही काफी कुछ सुन रखा था और शादी के बाद सासू माँ से काफी कुछ जानने को मिला क्यूंकि दतिया उनका मायका है। वैसे तो हम एक ही दिन के लिए वहाँ रुक पाये थे इसलिए यह तय हुआ कि एक ही दिन में आस पास जितने भी स्थान देखना संभव हो वो देख लिया जाय, यह सोचकर हम सबसे पहले पहुंचे वहाँ के सुप्रसिद्ध माता के मंदिर पितांबरा पीठ, जो अब एक प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ-साथ एक बहुत ही मशहूर पर्यटक स्थल भी बन चुका है। हम जब वहाँ पहुंचे तो उस मंदिर में कुछ निर्माण कार्य भी चल रहा था और बाहर पेड़े वालों और फूल वालों की भरमार लगी हुई थी और ऊपर से सूर्य नारायण की कृपा मुफ्त में बट रही थी वह भी इतनी ज्यादा कि फल फूल लेने के लिए भी बाहर उन दुकानों पर खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, वह तो बस यह गनीमत थी कि वहाँ इतना सुप्रसिद्ध मंदिर होते हुए भी उस वक्त ज़रा भी भीड़ भाड़ नहीं थी उसकी वजह शायद यह हो सकती है गर्मियों का मौसम होने की वजह से उस दौरान वहाँ पर्यटकों का महीना नहीं था जिसे अँग्रेजी में ऑफ पीक सीज़न कहते हैं जिसके चलते हमें उस मंदिर में माता के दर्शन बहुत ही आसानी से हो गये।
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पीतांबरा पीठ मंदिर के बाहर का दृश्य क्यूंकी अंदर केमरा ले जाना मना था |
गर्मी इतनी भयानक थी उस दिन की शब्दों में बयान करना भी मुश्किल है मगर मंदिर के अंदर पहुँच कर जो राहत महसूस हुई तो मेरा और मेरे बेटे का तो ज़रा भी मन ही नहीं हुआ मंदिर से बाहर जाने का, उस वक्त ऐसा लग रहा था कि बस वहीं बैठे रहो जाने क्यूँ किसी भी मंदिर में भगवान के दर्शन हो जाने के बाद मेरा वहाँ कुछ देर रुकने का बहुत मन होता है और मैं कुछ देर वहाँ रुकती भी हूँ। ऐसा करने पर न जाने क्यूँ मुझे एक अजीब सा ही सुकून मिलता है। खैर राजमहल देखने की चाह ने हमें वहाँ ज्यादा देर रुकने नहीं दिया और हम चल पड़े राजमहल देखने। दतिया आज भी एक पुराने शहर की तरह है जहां आज भी छः सीटों वाले टेम्पो एवं तांगा चलता है अपने बेटे को इन सब चीज़ों का अनुभव करवाने के लिए हमने भी टेम्पो से जाने का विचार बनाया क्यूंकि उस वक्त उस कड़ी धूप में तांगे के लिए इंतज़ार करना ज़रा भी संभव नहीं था और हम टेम्पो में सवार हो कर, ज़ोर-ज़ोर से हिचकोले खाते हुए चल दिये राज महल की ओर, इसके पहले हमने यूरोप में नेपोलियन का महल देखा हुआ था। तो थोड़ी बहुत तुलना होना स्वाभाविक ही था हालांकी तुलना वाली कोई बात ही नहीं थी क्यूंकि इन मामलों में तो अपने देश की ASI एवं टूरिस्म व्यवस्था कितनी महान है यह मुझे बताने की ज़रूरत ही नहीं है आप सभी लोग खुद ही वाकिफ है।
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महल के बाहर का नज़ारा |
लेकिन फिर भी क्या करें "दिल है की मानता नहीं", जब अब वहाँ पहुंचे तो रास्ते भर आसपास की गंदी सड़कें शिखा जी की पोस्ट के मुताबिक अपनी आज़ादी का जश्न मनाती सी दिखी :) फिर जब महल के बाहर से नज़ारा देखा तो थोड़ी निराशा होना कोई बड़ी बात नहीं थी क्यूंकि एक भव्य महल जब जगह -जगह काली काई से ढका हो तो कैसा दिखेगा इसका अंदाज़ा अभी आपको चित्रों से लग जाएगा, महल के अंदर प्रवेश करते ही चमगादड़ के मूत्र की बदबू से दिमाग सड़ चुका था, ऊपर अभी पाँच माले चढ़ना बाकी था वैसे तो यह महल सात मंज़िला था मगर ऊपर की दो मंजिल बंद कर दी गयी थी क्यूंकि किसी जमाने में कुछ लोगों ने वहाँ से कूदकर आत्महत्या कर ली थी, ऐसा वहाँ के गाइड ने बताया। अब वास्तविकता क्या है यह तो राम ही जाने उसने यह भी बताया कि बटवारे के समय जब पाकिस्तान से लोग भागकर यहाँ आये तो उन्हें रहने के लिए जो भी स्थान मिला उन्होने वहीं शरण ले ली उसी में से उनके रहने का एक स्थान यह महल भी था। इसलिए उन्होंने उनके यहाँ शरण ली और उनके चूल्हे से निकले धूँए ने इस राजमहल को अंदर से भी काला कर दिया।
अब यदि बात करें इस महल के इतिहास की तो इस राजमहल को पुराने महल के नाम से भी जाना जाता है। यह महल महाराज वीरसिंह देव ने उस जामने में पैंतीस लाख रूपय में अब्दुल हामिद लाहोरी और शाहजहाँ के स्वागत में बनवाया था और साढ़े चार सौ कमरों के इस भव्य महल में राज परिवार का कभी कोई एक भी सदस्य इस महल में कभी भी नहीं रहा क्यूंकि इस महल का निर्माण ही केवल तोहफ़े के रूप में करवाया गया था।
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महल के अंदर बनी तस्वीरें |
यह बात सुनकर मेरे दिमाग में जो सबसे पहली बात आयी वह यह थी कि उस जमाने में कितना समय हुआ करता था सभी के पास आप सोच सकते हैं, 9 साल लगे थे इस महल को बनाने में जबकि यह पहले से तय था कि इसमें किसी को नहीं रहना है उसके बावजूद इतनी बड़ी लागत और समय लगा कर इस भव्य इमारत का निर्माण किया गया जिसमें एक से एक सुंदर कलाकारी की गयी है, रंग इतने पक्के हैं कि आज भी सलामत है मगर सही ढंग से देख रेख न होने के कारण सब कुछ अस्त व्यस्त सा हो गया है कुछ कमरों में लगी बेहद खूबसूरत तस्वीरें है जिनको हमने बंद दरवाजों के बावजूद भी लेने की कोशिश की मगर कुछ ही तस्वीरें ले पाये।
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बंद कमरे के अंदर एक झरोखे से ली गयी एक तस्वीर |
मगर वह कमरे अब बंद कर दिये गए हैं ताकि लोगों के कारनामों से उन इतिहासिक धरोहरों को बचाया जा सके। वरना आजकल के प्रेम दीवाने तो अपना नाम लिख कर शायद उन तस्वीरों को भी नहीं बख्शते। मगर इस सब के बावजूद आज भी इस महल की सुंदरता देखते ही बनती है। भले ही यहाँ यूरोप में बने नेपोलियन के राजमहल की तरह बेशकीमती सामान की चका चौंध नहीं है अर्थात यहाँ कोई आलीशान कालीन या पर्दे या फिर सोने चांदी से बनी चीज़ें नहीं रखी है जिसे राजसी ठाट बात झलके, मगर राज महल की इमारत का निर्माण अपने आप में इतना खूबसूरत है कि इन सब चीजों की कमी नहीं अखरती ,या यूं कहिए की कम से कम मुझे तो नहीं अखरी। बाकी तो पसंद अपनी-अपनी और खयाल अपना-अपना....
मुझे अगर वहाँ कुछ अखरा तो केवल वही बात जो मैंने पहले भी अपने कई यात्रा वृतांत में लिखी है यहाँ और वहाँ में इतिहासिक इमारतों के रख रखाव में ज़मीन असामान का अंतर, यहाँ एक मामूली से किले को भी इतना सहेज कर रखते हैं लोग और वहाँ इतनी भव्य इमारतों और किलों की कोई देखरेख नहीं है नाम मात्र की भी नहीं, बड़े और ऊंचे स्तर की तो बात ही छोड़िए और यहाँ स्टोन हेंज नामक स्थल जहां अब केवल कुछ पत्थर मात्र बचे है उसे भी ऐसा दार्शनिक स्थल बना रखा है कि लोग ढ़ेरों पैसा खर्च करने को तैयार हैं महज उन चंद पत्थरों को देखने के लिए और अपने यहाँ इतना भव्य महल खड़ा है मगर उसे देखने वाला कोई नहीं न वहाँ कोई साफ सफाई है, न ही किसी तरह का कोई टिकिट, न कोई रोक टोक, जब यह सब नहीं तो गाइड का भी वहाँ क्या काम। हमें भी जिसने इस राज महल के बारे में जानकारी दी वो भी वास्तव में गाइड नहीं था, वहाँ काम करने वाला एक अदना सा कर्मचारी था जो गर्मी से बचने के लिए महल के निचले हिस्से में सोया हुआ था जिसे हम ही लोगों ने जबर्दस्ती जगाकर पूरा महल घुमाने के लिए कहा था। समझ नहीं आता हमारे अपने देश में देखने को इतना कुछ है फिर भी लोग ढेरों पैसा खर्च करके बाहर घूमना ज्यादा पसंद करते हैं औए अपने ही देश में ऐसे स्थलों पर ढंग की कोई व्यवस्था ही नहीं है। होगी भी कैसे अतिथि देवो भवः के सिद्धांतों पर जो चलते हैं हम।
खैर इस सुंदर से राज महल की कुछ तस्वीरें नीचे दे रही हूँ उन्हें देखकर आप खुद ही फैसला कीजिये कि आखिर इस देख रेख की भेदभाव का आखिर क्या कारण है
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महल के अंदर के कुछ दृश्य |
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महल के अंदर के कुछ दृश्य |
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महल के अंदर के कुछ दृश्य |
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महल के अंदर का दृश्य जिसे साफ किया गया है |
मंदिर भीड़ से परे... गर्मी से थोड़ी राहत...
ReplyDeleteगन्दगी में आज़ादी का जश्न
और दतिया महल का सचित्र इतिहास ... आपकी यह खूबी है कि पाठक को वहाँ खड़ा कर देती हैं
आपकी कलम से एक बेहतरीन यात्रा वृतान्त एवं चित्र ...आभार
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया रश्मि जी ...:)आभार
ReplyDeleteकमाल की प्रस्तुति,पढकर ऐसा लगा कि मानो स्वयं अपनी आँखो से देख रहे हो,चित्रमय यात्रा वृत्तांत साझा करने के लिये आभार,,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
बहुत अच्छा लगा विवरण ...
ReplyDeleteमहल बना, केवल स्वागत के लिये, बहुत बर्बादी थी।
ReplyDeleteसचमुच हम अपनी एतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को न संभाल कर रख पाते हैं , न कोई फायदा उठा पाते हैं . जबकि बाहर वाले रख रखाव पर ध्यान देकर महँगी टिकेट लगाकर पर्यटन से ही देश चला रहे हैं . ऐसा हमें दुबई जाकर भी महसूस हुआ था .
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .
दतिया महल के बारे मे विस्तार से विवरण ...गंदगी की समस्या तो है ही हमारे देश में|मन बहुत दुखी होता है ये सब देख के .....!!काश बस थोड़ा सा हम अपने देश के लिए भी कर पाते .. ...!!
ReplyDeleteचित्र भी सुंदर हैं ...सार्थक आलेख ...!!
* तस्वीरें अच्छी हैं। आप एक कुशल फोटोग्राहर हैं।
ReplyDelete** यात्रावृत्तांत लिखने की आपकी शैली, बिल्कुल आपकी है। इसमें एक आत्मीयता है, जो पाठक को पूरा आलेख पढ़ने को विवश कर देती है।
*** ऐसा लगा कि एक गाइड की भांति आप हैं और आपके साथ पूरे महल की सैर कर रहा हूं। लेकिन यह गाइड उंगली दिखा कर रास्ता नहीं दिखाता बल्कि उंगली थाम कर घुमाता है। और पूरी आत्मीयता से छोटी-छोटी बातें समझाता है।
बहुत अच्छा लेख।
उस ज़माने में अपना वैभव प्रदर्शन का शायद यही तरीका होता था उनके पास.महल बना दो. वो तब की बर्बादी थी.और तब स्विस बैंक भी तो नहीं था.
ReplyDeleteइस वृतांत के माध्यम से हम भी साथ साथ घूम लिए .... सुंदर चित्र ।
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा वृतांत... सुंदर चित्र
ReplyDeleteरूठे हुए शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteपोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
वैसे तो मैं पहले यहां हो आया हूं।
ReplyDeleteलेकिन लग ऐसा रहा है कि आज पहली बार पहुंचा यहां।
बहुत सुंदर यात्रा वृतांत
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ReplyDeleteबहुत विस्तृत वर्णन किया है आपने और बहुत सुन्दरता से किया है.....इस बात से सहमत हूँ आपसे कि रख रखाव की बहुत कमी है यहाँ .....पर मुझे राजस्थान के किलों में ऐसा नहीं लगा क्योंकि वो आज भी उनके अपने वारिसों के हाथ में हैं और सरकार के सहयोग से वो उसे पर्यटकों का आकर्षण बनाये हुए हैं कभी मौका मिले तो जोधपुर का किला ज़रूर देखें.....आपकी सारी शिकायतें दूर हो जाएँगी वैभव दिखेगा वहाँ.......जहाँगीर के समय के एक अंग्रेज़ यात्री ने लिखा है कि हिंदुस्तान के मुग़ल बादशाहों के वैभव कि तुलना में इंग्लैंड का राजघराना कुछ भी नहीं यहाँ के मंत्री भी आलिशान महलों में रहते हैं....सब वक़्त कि मार है और हमारी कमी कि आज जहाँगीर का ' तख़्त-ए-ताउस' और भारत का विश्व प्रसिद्ध हीरा 'कोहिनूर' इंग्लैण्ड के संग्रहालय कि शोभा बढ़ा रहा है :-(
ReplyDeleteek behtareen varnan!! hamne Pallavi ke kalam ke dwara ghum liya Datia ka kila..
ReplyDeletewaise ek baat kahen... ham ek vikashsheel desh me rah rahe hain... aur hamara desh dheere dheere khud me swablambit hone ki koshish me hai... ek itne bade desh me bahut se chhoti chhhoti pareshaniya dikh hi jayegee... fir bhi hamara desh aur hamare desh ki dharohar ... usse salam:)
हम लोग अपनी परंपरा और इतिहास के प्रति जागरूक नहीं ही हैं
ReplyDeleteहमारे देश में पर्यटन स्थलों और एतिहासिक धरोहरों की दुर्दशा देखते ही बनती है . यहाँ की साफ सफाई , और व्यवस्था राम भरोसे ही रहती है . एक कहावत के अनुसार दतिया कभी गले का हार कहा जाता था. आपने तथ्यों को सही ढंग और विस्तार से समझाया है . सुँदर विवरण और चित्र . आभार .
ReplyDeleteजीवंत वृत्तांत और सजीव चित्रों को देखकर ऐसा लह रहा है कि हम स्वयम् दतिया के महल में हैं.
ReplyDeleteचित्र और वृतांत काबिले तारीफ़ हैं हमें भी देखने की इच्छा जगी है बहुत बधाई अपना अनुभव शेयर करने के लिए
ReplyDeletebadhiyaa
ReplyDeleteख़ूबसूरत फ़ोटोग्राफ़ी। खण्डहर होती हमारी धरोहरें। ध्वस्त होते हमारे विश्वास।
ReplyDeleteएकदम मस्त वाली पोस्ट है!!! :)
ReplyDeleteइस पोस्ट मे संस्मरण की शैली सादगी पूर्ण है । चित्र प्रशंसनीय है । मैने इस किले को सन 1995 मे देखा था । किले की दशा तब भी कमोबेश ऐसी ही थी । पोस्ट पढकर मन से यही उदगार निकलते है कि शाहजहाँ की चापलूसी मे उस वक़्त के 45 लाख रुपये फिज़ूल खर्च लिये । इसकी उगाही मे राजा ने न जाने किस किस तरह से गरीबों का खून चूंसा होगा ।
ReplyDeleteओरछा में एक महल नुमा भवन देखा था. उसकी स्थापत्य कला वैसी ही है जैसी इस दतिया के महल की है. रखरखाव के नाम पर उसका हाल भी ऐसा ही था. अलबत्ता हाँ राजा राम के मंदिर की हालत कई अन्य मंदिरों से बेहतर दिखी थी. दतिया के महल की सैर कराने के लिए आभार. बहुत बढ़िया विवरण और चित्र. चाहता हूँ कि पी.एन.सुब्रमणियन इस पोस्ट पर आएँ और अपने विचार दें.
ReplyDeleteदतिया के मंहल को देख कर ओरछा की याद आगई |बहुत सुन्दर सचित्र आलेख |अच्छी लेखन शैली |बधाई |
ReplyDeleteआशा
सुन्दर वृतांत,अच्छी जानकारी.
ReplyDeleteआभार,पल्लवी जी.
जबर्दस्त जानकारियों का पुलिंदा है यह यात्रा वृत्तांतनुमा रचना। बहुत ही रोचकता और विश्लेषणात्मकता से लिखी गई रचना।
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