हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की तरफ से हिन्दी फिल्म प्रेमियों को एक नायाब तोहफा है यह फिल्म(इंगलिश विंगलिश), इस फिल्म की जितनी तारीफ की जाये कम है। वैसे मुझे यह फिल्म देखने में थोड़ी देर ज़रूर हो गयी मगर इस फिल्म को देखने के बाद लगा कोई बात नहीं "देर आए दुरुस्त आये" क्यूंकि यह फिल्म तो पहले दिन पहला शो देखने वाली फिल्म है। सालों बाद हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी कोई फिल्म आई जिसको देखकर दिल बाग-बाग हो गया। सच दिल को छू गयी। यह फिल्म एक बार फिर न जाने क्यूँ मुझे ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों का वो दौर याद आ गया जब एक आम मध्यमवर्गीय लोगों की ज़िंदगी को बिलकुल ज़मीन से जुड़कर ही पर्दे पर दिखाया जाता था। जिसमें उस फिल्म के हर पात्र से जनता कहीं न कहीं खुद को जुड़ा हुआ पाती थी। ठीक वैसा ही मैंने इस फिल्म में हर पात्र को कहीं न कहीं खुद से जुड़ा हुआ ही पाया। वैसे इस साल कई सारी अच्छी फिल्में आई ऐसा मैंने सुना था, मगर अफसोस कि मैं सभी देख नहीं पायी जैसे (बर्फी) यह फिल्म देखने की भी मेरी बहुत तमन्ना थी। मगर नहीं देख नहीं पायी वैसे देखने को तो यह फिल्म मैं ऑनलाइन देख ही लूँगी मगर वो क्या है ना, कि मुझ जैसे लोगों को अच्छी फिल्म देखने का सही मज़ा सिनेमाघर में ही आता है। जैसा कि इस फिल्म को देखने के बाद आया, न जाने क्यूँ इस फिल्म को देखने के बाद दिल को एक सुकून सा मिला कि आज भी हमारे देश में अच्छे निर्माता निर्देशकों के साथ ही श्रीदेवी और अमिताभ बच्चन जी जैसे महान कलाकार भी मौजूद है गर्व होता है इन्हे पर्दे पर देखकर। वैसे बाल्की जी की यह दूसरी फिल्म थी बच्चनजी के साथ, मेरा मतलब है वैसे तो यह फिल्म उनकी धर्मपत्नी गोरी शिंदे जी ने निर्देशित की है मगर इसे बाल्की जी की फिल्म भी कहा जा सकता है। खैर भले ही इस फिल्म में बच्चनजी का बहुत छोटा सा किरदार है मगर बहुत ही दमदार है। इसे पहले बाल्की जी ने बच्चनजी के साथ एक फिल्म और बनाई थी जिसका नाम था (चीनी कम) यह भी एक बेहतरीन फिल्म थी।
ऐसा मुझे लगता है,क्यूंकि हर मामले में पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना होता है और जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि मैं बच्चन जी की बहुत बड़ी पंखी हूँ और मैंने आज तक उनकी कोई फिल्म नहीं छोड़ी है :-)फिर चाहे वो फिल्म (लास्ट इयर)ही क्यूँ न हो इसका नाम बहुत कम लोगों ने सुना है कि इस नाम की भी उनकी कोई फिल्म कभी आई भी थी। मगर यहाँ मैं बताती चलूँ कि उनकी यह फिल्म आई थी जो इंगलिश में थी साथ में अर्जुन रामपाल भी था। खैर यहाँ में (लास्ट इयर) की नहीं बल्कि (इंगलिश विंगलिश)फिल्म की चर्चा करने आयी हूँ। मगर क्या करूँ मैं बच्चन जी कोई फिल्म नहीं छोड़ती न फिर चाहे उसमें उनकी छोटी सी सहायक भूमिका ही क्यूँ न रही हो या फिर अतिथि भूमिका ही क्यूँ न रही हो जैसे वो पूरानी (गोलमाल) हो या (गुड्डी)या फिर(राम जी लंदन वाले) सब देखी हैं मैंने, इसलिए इसे भी छोड़ ना सकी और ऊपर से श्रीदेवी 15-16 साल बाद उनकी कोई फिल्म आयी है और आज भी उनका अभिनय और खूबसूरती बिलकुल वैसी है जैसे पहले हुआ करती थी। न जाने कैसे यह लोग चरित्र में ऐसे कैसे उतर जाते हैं कि इंसान इनके बजाए खुद को इनमें देखने लगता है। फिल्म शुरू होते ही मेरा तो मन किया था सिटी मारने को, और बच्चन जी के आने पर तो ज़ोर से ज़ोर से सिटी मारने और ताली बजाने का मन था मेरा, मगर अफसोस यह हो न सका....क्यूँकि फिल्म पुरानी होने के कारण भीड़ भाड़ ज़रा भी नहीं थी। वरना यदि होती तो मैं सिटी ज़रूर मारती।
ऐसा मुझे लगता है,क्यूंकि हर मामले में पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना होता है और जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि मैं बच्चन जी की बहुत बड़ी पंखी हूँ और मैंने आज तक उनकी कोई फिल्म नहीं छोड़ी है :-)फिर चाहे वो फिल्म (लास्ट इयर)ही क्यूँ न हो इसका नाम बहुत कम लोगों ने सुना है कि इस नाम की भी उनकी कोई फिल्म कभी आई भी थी। मगर यहाँ मैं बताती चलूँ कि उनकी यह फिल्म आई थी जो इंगलिश में थी साथ में अर्जुन रामपाल भी था। खैर यहाँ में (लास्ट इयर) की नहीं बल्कि (इंगलिश विंगलिश)फिल्म की चर्चा करने आयी हूँ। मगर क्या करूँ मैं बच्चन जी कोई फिल्म नहीं छोड़ती न फिर चाहे उसमें उनकी छोटी सी सहायक भूमिका ही क्यूँ न रही हो या फिर अतिथि भूमिका ही क्यूँ न रही हो जैसे वो पूरानी (गोलमाल) हो या (गुड्डी)या फिर(राम जी लंदन वाले) सब देखी हैं मैंने, इसलिए इसे भी छोड़ ना सकी और ऊपर से श्रीदेवी 15-16 साल बाद उनकी कोई फिल्म आयी है और आज भी उनका अभिनय और खूबसूरती बिलकुल वैसी है जैसे पहले हुआ करती थी। न जाने कैसे यह लोग चरित्र में ऐसे कैसे उतर जाते हैं कि इंसान इनके बजाए खुद को इनमें देखने लगता है। फिल्म शुरू होते ही मेरा तो मन किया था सिटी मारने को, और बच्चन जी के आने पर तो ज़ोर से ज़ोर से सिटी मारने और ताली बजाने का मन था मेरा, मगर अफसोस यह हो न सका....क्यूँकि फिल्म पुरानी होने के कारण भीड़ भाड़ ज़रा भी नहीं थी। वरना यदि होती तो मैं सिटी ज़रूर मारती।
खैर अब बहुत हो गयी मेरी बातें अब फिल्म पर आते हैं। एक अच्छी फिल्म वो होती है जो दर्शक को "गुड पर मक्खी" की तरह चिपका कर रखे जो आपको एक पल के लिए भी पलक झपकाने तक का मौका न दे, ठीक वैसी ही फिल्म है यह "इंगलिश विंगलिश" एक साधारण से परिवार की एक बहुत आम साधारण सी औरत की कहानी जिसे ठीक से इंगलिश बोलनी नहीं आती जिसके कारण उसे हर रोज़ अपने परिवार वालों से जाने अंजाने में मज़ाक और अपमान सहना पड़ता है और फिर अचानक एक दिन उसे अपनी बहन की बेटी की शादी में सम्मिलित होने के लिए (न्यूयॉर्क) जाना पड़ता है और फिर शुरू होते है उसके छोटे-छोटे संघर्ष जिनसे बखूबी निपटते हुए नायिका अंत में अपने परिवार में अपना खोया हुआ मान सम्मान फिर से पा लेती है। पूरी कहानी यहाँ मैं नहीं बताऊँगी क्यूंकि जिन लोगों ने अब तक यह फिल्म देखी नहीं है मैं नहीं चाहती उनका इस बेहतरीन एवं अतुल्य फिल्म को देखने का सारा मज़ा चला जाये। मगर इस बीच दो संवादों ने मुझे बहुत प्रभावित किया एक तो बच्चन जी ने बोला है कि "हर किसी की ज़िंदगी में कुछ न कुछ पहली बार ही होता है और यह पहली बार ज़िंदगी में केवल एक ही बार आता है इसलिए अब हमें इन अंग्रजों से डरने की जरूरत नहीं बल्कि अब हमारी बारी है इन्हें डर दिखाने की इसलिए इस पहली बार का बिंदास और बेबाकी से खुलकर मज़ा लीजिये" और दूसरी बात नायिका की खूबसूरती में एक फ्रेंच इंसान के द्वारा बोला गया यह संवाद की "उसकी आंखे इतनी खूबसूरत हैं जैसे दूध में कॉफी की दो बूंदें"।
सच मेरे तो दिल को छू गयी यह फिल्म, इस फिल्म की दूसरी बात जो मुझे अच्छी लगी वो यह कि कभी-कभी दो अंजान लोग जो एक दूसरे की भाषा तक नहीं समझते, मगर फिर भी एक अच्छे इंसान होने के कारण वह कितनी आसानी से हमारे कितना करीब आ जाते हैं। यह जानते हुए भी कि सामने वाला हमारी भाषा, हमारी बोली नहीं समझता। फिर भी कभी-कभी उससे अपने मन की बात कह देना भी दिल को कितना सुकून पहुंचा जाता है और हैरानी की बात तो यह होती है कि वह बात समझे न समझे, हमारी भाषा समझे न समझे, मगर जज़्बात समझ जाता है। ठीक प्यार की तरह जिसकी अपनी कोई भाषा या परिभाषा नहीं होती मगर फिर भी हर प्रांत का इंसान उस जज़्बे को समझता है, महसूस कर सकता है। इससे याद आया इसी फिल्म का एक और बढ़िया संवाद कि यूं तो हर इंसान प्यार का भूखा होता है और हर इंसान को केवल प्यार चाहिए मगर तब भी सिर्फ प्यार से बात नहीं बनती प्यार के साथ-साथ एक औरत को मान सम्मान की भी उतनी ही जरूरत होती है जितनी कि प्यार की,
खैर यहाँ बात हो रही थी भाषा की, इससे पता चलता है भाषा का भी कितना बड़ा महत्व है ना हमारी ज़िंदगी में, सोचो अगर यह भाषा न होती तो क्या होता। फिर भी हमें अपनी भाषा की कोई कदर नहीं है अंग्रेज़ी बोलना आजकल सांस लेने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है आज की तारीख़ में इंसान oxygen के बिना ज़िंदा रह सकता है मगर इंगलिश के बिना नहीं, कमाल है न!!! जाने कब बदलेगी यह मानसिकता कि जिसे इंगलिश नहीं आती उसे कुछ नहीं आता। ऐसी मानसिकता रखने वालों के लिए एक करारा जवाब है यह फिल्म, मेरे हिसाब से कोई भी नई भाषा सीखने में कोई बुराई नहीं। भाषाएँ सभी अपने आप में बहुत ही मधुर और सम्माननीय हैं, मगर इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी मातृभाषा को ही भुला देने और केवल दूसरों के सामने खुद को स्मार्ट दिखने के लिए अपनी भाषा को छोटा समझते हुए केवल दिखावे के लिए उस भाषा का प्रयोग करें जो हमारी है ही नहीं बल्कि होना तो यह चाहिए कि हम औरों की और सामने वाला हमारी दोनों ही एक दूसरे की भाषाओं का तहे दिल से आदर सम्मान करें ना की पीठ पीछे परिहास।
खैर बहुत हो गया ज्ञान, वापस फिल्म पर आते हैं इस फिल्म से हमें एक और बहुत अच्छा संदेश मिलता है कि हमें भाषा भले ही न आए किसी दूसरे प्रांत की, मगर हमें उसकी भावनाओं का ख़्याल रखना ज़रूर आना चाहिए। क्यूंकि दिल तो एक ही होता है और उसमें भावनाएँ भी एक सी ही होती है इसलिए अंजाने में भी किसी का दिल दुखाना ठीक बात नहीं जो अक्सर हम भूल जाते हैं, यह सोचकर कि अरे सामने वाले को थोड़ी न हमारी भाषा आता ही है कुछ भी बोल लो,और इस तरह का फूहड़ता भरा परिहास यहाँ बड़ी आसानी से देखने को मिलता है वो भी ज़्यादातर हम हिंदुस्तानियों के द्वारा जो सारासर गलत है, सच है "अपने बच्चों को सब कुछ सिखाया जा सकता है मगर दूसरों की भावनाओं की कदर करना भला कोई कैसे सिखाये" यह दोनों भी इसी फिल्म के संवाद है जो अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रश्न है और भी बहुत कुछ है इस फिल्म में देखने सुनने और सीखने लायक क्यूंकि संवाद भले ही कितने भी साधारण क्यूँ न लग रहे हों आपको मगर दो बड़े कलाकारों द्वारा अपनी कला के माध्यम से इसे भावों के रूप में ढालकर देखने का तरीका अर्थात निर्देशन इतना कमाल का है कि आप जज्बाती हुए बिना नहीं रह पाते और लाख चाहने पर भी आँखें नाम हो जी जाती है मगर अब बस पहले ही बहुत कुछ कह चुकी हूँ इस फिल्म के विषय में इसलिए अब कुछ नहीं अब तो बस इतना ही यदि आप एक सच्चे हिन्दी फिल्म प्रेमी है और एक अच्छी और बेहतरीन या फिर एक अतुल्य फिल्म में अंतर करना जानते हैं तो एक बार यह फिल्म ज़रूर देखिएगा....जय हिन्द
खैर यहाँ बात हो रही थी भाषा की, इससे पता चलता है भाषा का भी कितना बड़ा महत्व है ना हमारी ज़िंदगी में, सोचो अगर यह भाषा न होती तो क्या होता। फिर भी हमें अपनी भाषा की कोई कदर नहीं है अंग्रेज़ी बोलना आजकल सांस लेने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है आज की तारीख़ में इंसान oxygen के बिना ज़िंदा रह सकता है मगर इंगलिश के बिना नहीं, कमाल है न!!! जाने कब बदलेगी यह मानसिकता कि जिसे इंगलिश नहीं आती उसे कुछ नहीं आता। ऐसी मानसिकता रखने वालों के लिए एक करारा जवाब है यह फिल्म, मेरे हिसाब से कोई भी नई भाषा सीखने में कोई बुराई नहीं। भाषाएँ सभी अपने आप में बहुत ही मधुर और सम्माननीय हैं, मगर इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी मातृभाषा को ही भुला देने और केवल दूसरों के सामने खुद को स्मार्ट दिखने के लिए अपनी भाषा को छोटा समझते हुए केवल दिखावे के लिए उस भाषा का प्रयोग करें जो हमारी है ही नहीं बल्कि होना तो यह चाहिए कि हम औरों की और सामने वाला हमारी दोनों ही एक दूसरे की भाषाओं का तहे दिल से आदर सम्मान करें ना की पीठ पीछे परिहास।
खैर बहुत हो गया ज्ञान, वापस फिल्म पर आते हैं इस फिल्म से हमें एक और बहुत अच्छा संदेश मिलता है कि हमें भाषा भले ही न आए किसी दूसरे प्रांत की, मगर हमें उसकी भावनाओं का ख़्याल रखना ज़रूर आना चाहिए। क्यूंकि दिल तो एक ही होता है और उसमें भावनाएँ भी एक सी ही होती है इसलिए अंजाने में भी किसी का दिल दुखाना ठीक बात नहीं जो अक्सर हम भूल जाते हैं, यह सोचकर कि अरे सामने वाले को थोड़ी न हमारी भाषा आता ही है कुछ भी बोल लो,और इस तरह का फूहड़ता भरा परिहास यहाँ बड़ी आसानी से देखने को मिलता है वो भी ज़्यादातर हम हिंदुस्तानियों के द्वारा जो सारासर गलत है, सच है "अपने बच्चों को सब कुछ सिखाया जा सकता है मगर दूसरों की भावनाओं की कदर करना भला कोई कैसे सिखाये" यह दोनों भी इसी फिल्म के संवाद है जो अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रश्न है और भी बहुत कुछ है इस फिल्म में देखने सुनने और सीखने लायक क्यूंकि संवाद भले ही कितने भी साधारण क्यूँ न लग रहे हों आपको मगर दो बड़े कलाकारों द्वारा अपनी कला के माध्यम से इसे भावों के रूप में ढालकर देखने का तरीका अर्थात निर्देशन इतना कमाल का है कि आप जज्बाती हुए बिना नहीं रह पाते और लाख चाहने पर भी आँखें नाम हो जी जाती है मगर अब बस पहले ही बहुत कुछ कह चुकी हूँ इस फिल्म के विषय में इसलिए अब कुछ नहीं अब तो बस इतना ही यदि आप एक सच्चे हिन्दी फिल्म प्रेमी है और एक अच्छी और बेहतरीन या फिर एक अतुल्य फिल्म में अंतर करना जानते हैं तो एक बार यह फिल्म ज़रूर देखिएगा....जय हिन्द
दीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteशुभकामनाये पर्व-मालिका की ।
जय गणेश देवा
जय श्री लक्ष्मी ।।
जय माँ सरस्वती ।।
जय श्री राम -
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteत्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा
और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपने इतनी तारीफ़ की इस फिल्म की तो देखनी ही पडेगी,,,,
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें,,,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
म्यूजिकल ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें,
फिल्म तो खैर अच्छी है ही, पर एक बात तो मुझे खटक ही गयी, बस इंग्लिश बोलना आते ही, सबकी नज़रों में उसकी इज्ज़त बढ़ जाती है। उसके सारे गुण नज़र आने लगते हैं, पति बेटी सब उसे प्रशंसात्मक नज़रों से देखने लगते हैं .
ReplyDeleteजबकि अगर फिल्म इस बात पर जोर देती कि फ्रेंच, इटैलियन , जापानी लोग अच्छी अंग्रेजी नहीं जानते, फिर भी जीवन में आगे बढ़ रहे हैं, इज्जत की ज़िन्दगी जी रहे हैं, और यह सब देखकर उसके परिवार वाले की आँखें खुल जातीं तो फिल्म ज्यादा प्रभावशाली बनती।
दीपावली पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
ReplyDeleteGyan Darpan
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
ReplyDeleteअवसर मिलेगा तो जरूर देखेंगे।
ReplyDeleteबहुत बढिया । आपको दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ...
ReplyDelete!! प्रकाश पर्व की आपको अनंत शुभकामनाएं !!
जो मैंने महसूस किया और कह न सका ...वो आपने समीक्षा सहित मेरे दिल की बात को बड़ी
ReplyDeleteखूबसूरती से बयाँ कर दिया !
बहुत आभार आपका .....
दीपावली की बहुत-बहुत बधाई ,परिवार सहित खुश और स्वस्थ रहें!
अच्छी समीक्षा की है आपने. अब आपकी दृष्टि से भी देख ली. प्रकाश पर्व की शुभकामनाये.
ReplyDeleteबड़ा ही सीधा सरल संदेश, प्यारी फिल्म..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रविष्टि वाह!
ReplyDeleteइसे भी अवश्य देखें!
चर्चामंच पर एक पोस्ट का लिंक देने से कुछ फ़िरकापरस्तों नें समस्त चर्चाकारों के ऊपर मूढमति और न जाने क्या क्या होने का आरोप लगाकर वह लिंक हटवा दिया तथा अतिनिम्न कोटि की टिप्पणियों से नवाज़ा आदरणीय ग़ाफ़िल जी को हम उस आलेख का लिंक तथा उन तथाकथित हिन्दूवादियों की टिप्पणयों यहां पोस्ट कर रहे हैं आप सभी से अपेक्षा है कि उस लिंक को भी पढ़ें जिस पर इन्होंने विवाद पैदा किया और इनकी प्रतिक्रियायें भी पढ़ें फिर अपनी ईमानदार प्रतिक्रिया दें कि कौन क्या है? सादर -रविकर
राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है
बढियां समीक्षा पल्लवी जी...फिल्म मुझे भी पसंद आई थी...
ReplyDeleteफिल्म को देखने के पहले इस फिल्म के बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं था...सिर्फ ये पता था की श्रीदेवी की कमबैक फिल्म है,
और मेरे लिए ये काफी था...फर्स्ट डे, फर्स्ट शो में फिल्म देखने के लिए :)