Tuesday, 2 April 2013

वैल्यू ऑफ लाइफ कहाँ है...देश में या विदेश में ?

आखिर क्या है यह "वैल्यू ऑफ लाइफ" इस विषय को लेकर हर एक इंसान की नज़र में उसके अपने मत अनुसार अलग-अलग अर्थ है या हो सकते है। जैसे किसी की नज़र में वैल्यू ऑफ लाइफ का अर्थ है असमानता में समानता का होना जैसे यहाँ हर काम को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है यहाँ काम के नज़रिये से कोई छोटा या बड़ा नहीं है या फिर कुछ लोग इस विषय को निजी जरूरत के आधार पर भी देखते हैं। जैसे यहाँ बिजली, पानी,सड़क यातायात व्यवस्था इत्यादि की कोई समस्या नहीं है ऐसे में बहुतों की नज़र में यह वैल्यू ऑफ लाइफ से जुड़े हुए मुद्दे का एक बड़ा कारण हो सकता है। लेकिन यदि मैं अपने नज़रिये और अपने अनुभव की बात करूँ तो मेरे लिए वैल्यू ऑफ लाइफ है अनुभव के आधार पर ज़िंदगी को सीखना। यानी  ज़िंदगी की जगदोजहद को खुद अनुभव करते हुए जीना ही वैल्यू ऑफ लाइफ है।

वैसे आज कल के माहोल का तो सिर्फ सुना-सुना है कि अब देश और विदेश में कोई खास फर्क नहीं रह गया है। यह बात कहाँ तक सही है, यह मैं नहीं जानती। क्यूंकि मैं काफी समय से बाहर ही हूँ और यदि छुट्टियों में भारत आती भी हूँ, तो केवल एक महीने के लिए और उसमें भी अधिकतर समय नाते रिश्तेदारों से मिलने जुलने में ही निकल जाता है। इसलिए बहुत समय हो गया किसी भी एक शहर को या वहाँ की ज़िंदगी को करीब से देखे हुए अब तो मनस पटल पर केवल गुजरे हुए वक्त की छवि ही उभर कर आती है और ऐसा ही लगता है

"नदी सुनहरी अंबर नीला
 हर मौसम रंगीला 
ऐसा देस है मेरा हो ऐसा देस है मेरा" 

यूँ भी होली का त्यौहार नज़दीक आ रहा है तो रंगों का ज़िक्र होना स्वाभाविक ही है। क्यूंकि यह रंगों भरा त्यौहार अपने आप में बहुत सारे संदेश छिपाये हुए आता है और इन रंगों में हर दिल रंग जाने को चाहता है हालांकी अब तो त्यौहारों के मनाये जाने में भी बहुत फर्क आ गया है। अब शायद त्यौहारों में भी पहले की भांति वह सादगी और वह अपनापन नहीं बचा है जो किसी ज़माने में हुआ करता था। अब तो सब कुछ जैसे महज़ एक औपचारिकता रह गयी है, हर काम की फिर चाहे वह त्यौहार हों या नाते रिश्ते सभी पर प्यार का रंग कम और औपचारिकता रंग ज्यादा मात्रा में चढ़ा हुआ प्रतीत होता है।

यूँ भी आए दिन होते अपराधों में इजाफ़े के चलते अब केवल माता-पिता के आलवा किसी और रिश्ते पर विश्वास करने को दिल नहीं करता। अब तो बस ऐसा लगता है कि हर रिश्ते में राजनीति छिपी हुई है।  जिसको देखो बस अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। सभी जैसे शेर की खाल में छिपे हुए भेड़िये की तरह बर्ताव करते नज़र आते है। कब कौन कहाँ गिरगिट की भांति अपना रंग बदल ले कोई भरोसा नहीं, ऐसे हालातों में कभी-कभी यदि वापस आने के विषय में ख्याल भी आता है, तो लोगों से एक ही बात सुनने को मिलती है कि अब यहाँ पहले जैसा कुछ बाकी नहीं है। सब बदल चुका है, यहाँ तक कि भोपाल के लोग भी यह कहते है कि अब भोपाल भी महानगरों की ज़िंदगी के ढर्रे पर आ गया है और महानगर उस से भी दो कदम आगे बढ़ गए है। इसलिए यदि तुम पहले वाली दुनिया समझकर वापस आने का सोच भी रहे हो, तो मत सोचो जहां हो वहीं अच्छे हो। क्यूंकि यहाँ की स्थिति दिन-ब-दिन धोबी के कुत्ते की तरह होती जा रही है।

"न घर की ना घाट की" 

अर्थात विदेशी आबोहवा के चलते अब यहाँ के लोग न यहाँ के रह गए हैं और ना ही वहाँ के, बीच की स्थिति है जो कभी सही नहीं होती। सुनकर बहुत अफ़सोस हुआ, मन भी उदास हुआ, क्यूंकि मेरा मानना तो अब भी यही है कि ज़िंदगी का असली सुख इंडिया में ही है। क्यूंकि वहाँ इंसान अपने अनुभवों से ज्यादा सीखता है कि ज़िंदगी किस चिड़िया का नाम है और मैं भी वही चाहती हूँ कि मेरा बेटा भी ज़िंदगी के हर पड़ाव को हर परिस्थिति को खुद अपने अनुभवों से देखे, समझे और उससे कुछ सीखे क्यूंकि यहाँ ज़िंदगी मुझे वैल्यू ऑफ लाइफ की तरह नज़र आती है और अधिकतर लोगों को लगता भी ऐसा ही है कि यहाँ विदेश में इंसान की ज़िंदगी की कोई कीमत है जो हिंदुस्तान में नहीं है।

हो सकता है कुछ हद तक यह बात सच भी हो। क्यूंकि यहाँ हर चीज़ अनुशासनबद्ध है साथ ही यदि खाने पीने के विषय में भी बात की जाये तो अधिकतर चीज़ें यहाँ दूसरे देशों से  ही आती है अर्थात आयात होती है तो उनकी गुणवत्ता का अच्छा होना स्वाभाविक है और यदि उन्हें यहाँ के पैसों की नज़र से देखो तो बहुत मंहगी भी नहीं लगती। कई और भी कारण है जो इस वैल्यू ऑफ लाइफ के फर्क को दर्शाते हैं। ऐसा मुझे लगता है हो सकता है औरों को ऐसा ना भी लगता हो, आखिर अपना-अपना मत है इसलिए इस विषय पर विचारों का द्वंद भी स्वाभाविक है।

मगर मेरी नज़र में तो तजुर्बों और अनुभवों से सीखना ही ज़िंदगी है गिरकर संभालना और फिर एक नयी शुरुआत करना ही ज़िंदगी है और ऐसे अनुभव यहाँ कम ही देखने को मिलते हैं। वैसे ढूंढो तो शायद ऐसे किस्से यहाँ भी मिल जाये क्यूंकि वह कहते है ना कि "ढूँढने से तो भगवान भी मिल जाते है" लेकिन मैंने ढूंढा नहीं, क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है कि ऐसे बहुत ही कम अभिभावक होंगे जो अपने बच्चों को जानबूझकर गिरने और फिर संभालने का मौका देना चाहते होंगे। क्यूंकि माता-पिता प्यार की वो मूरत होते हैं, जो सपने में भी कभी अपने बच्चे को चोट लगते हुए नहीं देख सकते। तो फिर वास्तविक ज़िंदगी की बात तो बहुत दूर की बात है।

हालांकी अभी मेरा बेटा इन सब चीजों के लिए तैयार नहीं है। अर्थात अभी तो वह बहुत छोटा है, मगर कभी कभी जब वापस आने के विषय में सोचती हूँ तो उसकी बातों को लेकर लगने लगता है कि अब कहाँ रहना है यह गंभीरता से सोचना ही होगा। वरना अभी नहीं सोचा तो शायद बहुत देर न हो जाये। खासकर यह बात बड़े-बड़े त्यौहारों पर बहुत कचौटती है क्यूंकि मैं अकेली उसे लाख बताऊँ, समझाऊँ कि हमारे त्यौहार क्या है कब और क्यूँ मनाए जाते हैं। उसके पीछे कौन सी कहानी के रूप में कौन सा संदेश छिपा है उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्यूंकि उसे ऐसा माहौल ही नहीं मिलता कि वह इन बातों पर ध्यान दे और कुछ समझे, या सीख सके। न जाने और भी कितनी ही ऐसी बाते हैं जो इस असमंजस में डाल देती हैं मुझे कि वैल्यू ऑफ लाइफ यहाँ है या वहाँ अपने हिंदुस्तान में है या अब कहीं भी नहीं है।

35 comments:

  1. विदेश में रहकर वहां की सुविधाओं का लाभ उठायें और अपनी संस्कृति को बनाये रखें तो निश्चित ही दोनों जहान का लुत्फ़ उठाया जा सकता है। वर्ना अपने आप में न यहाँ शांति है न वहां।

    वैसे यह कशमकश हर प्रवासी भारतीय के मन में चलती रहती है।

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  2. कोई चीज़ एक देश में है तो कोई चीज़ दूसरे देश में. असल चीज़ खाने पहनने के सामान की गुणवत्ता नहीं है बल्कि वह मक़सद है जिसके लिये इंसान पैदा हुआ है. उसे हर देश में पूरा किया जा सकता है. इसके लिये रास्ता और मंज़िल का इल्म होना ज़रूरी है. यह पता न हो तो फिर इंसान हरेक देश में भटकेगा.
    भारत में महंगाई और बेरोज़गारी अपने चरम पर है. बच्चों के अपहरण भी हो जाते हैं और बूढों को मारकर उनके नौकर माल लूटकर जाने कहाँ निकल जाते हैं. कुछ केस में मुजरिम पकड भी लिये जाते हैं.
    विदेश से लौटे हुए को उसके अपने रिश्तेदार ही लूट लेते हैं. न लूटो तो वे बदनाम करते हैं और देश में लौट कर लौटने वाला बहुत पछताता है.

    लौटने के आफ़्टर इफेक्ट्स के लिये भी तैयार रहना.

    शुभकामनायें.

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  3. विचारोत्तेजक लेख

    अपने जन्म स्थान और आजीविका स्थल से हर मानव का लगाव होता है जो गाहे बगाहे उभरता है

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  4. वैल्यू ऑफ़ लाइफ .... जियो और जीने दो,
    कहाँ है ..... कौन तय करेगा ! पर अपना घर अपना है और अपनी परम्परा के कुछ मायने थे . अब सब गडमड है - खिचड़ी में से हल्दी,पानी,दाल,चावल,नमक कौन अलग करे !!!

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  5. आजकल के माहौल को देखते हुए हमें ऐसा लगता है... हमारे त्योहारों को जितना महत्व और उत्साह भरा वातावरण विदेशों में मिलता है उतना अब यहाँ नहीं मिलता...!
    और जहाँ तक गिर के संभलने की बात है... जीवन में आगे चलकर कई ऐसे मोड़ आते हैं जब हम गिरते हैं और फिर संभलते हैं...उसके लिए छोटे बच्चों को सिर्फ़ उदाहरण देकर ही समझा दिया जाए तो अच्छा हो....क्योंकि भविष्य में सभी को यही सब झेलना पड़ता है...! अभी से फिर क्यों उन्हें इसमें झोंका जाए...
    [ज़रूरी नहीं, आप हमारी बात से सहमत हों... मगर बात वही है ना! हम अपने बच्चों को कष्ट में नहीं देख सकते...जब तक वो हमारे संरक्षण में हैं... शायद...ममता भी स्वार्थी होती है :-)) ]
    ~सादर!!!

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर..!

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  7. विदेश की सुविधाओं का लाभ उठाकर और अपनी संस्कृति बचाकर देश-विदेश दोनों स्थान का उठाया जा सकता है।

    Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग

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  8. आपकी जड़े हिंदुस्तान से जुड़ी है,आप उसे जानती और मानती है...पर आपके बेटे के साथ ऐसा नहीं है ...तभी मन में द्वंद की स्थिति हमेशा ही बनी रहेगी ||

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  9. हर जगह के अपने अपने फायदे हैं अपने भारत की बात ही अलग है कितना भी हम दूसरों की नकल करेंगे फिर भी अपने भारत जैसा कहीं नहीं पाएंगे । यहाँ हम छोटी छोटी खुशियों मे भी खुश रह लेते है बस हमे खुशियाँ खोजना आना चाहिए ।

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  10. मनुष्य स्वभाव ..कभी वर्तमान स्थितियों से खुश नहीं होता.
    वसुधैवम कुटुम्बकम को अपनाओ और खुशी पाओ :)

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  11. यकीनन हर प्रवासी भारतीय परिवार के लिए यह द्वंद्व की स्थिति बनी रहती है | आपकी चिंता और मानसिक उहापोह समझ सकती हूँ....

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  12. हाल के बरसों मे बहुत तेजी से परिवर्तन हुये हैं, लोगों का गावों से शहरों की तरफ पलायन ही पुरानी संस्कृति के ताबूत के कील ठोकने जैसा है।,
    बड़े बूढ़े गावों में रह गए जो आने वाली पीढ़ियों को सान्सकृति के बारे में बताते थे

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  13. क्‍वानिटी ऑफ लाइफ तो सुना था लेकिन वेल्‍यू ऑफ लाइफ कुछ अटपटा सा लग रहा है। जिन्‍दगी समझौता करके भी जी जा सकती है लेकिन बिना समझौते के जिन्‍दगी ज्‍यादा सरस होती है। हमारा मन जिस मिट्टी से बना है, उसकी खुशबू हमें बारबार अपनी मिट्टी की याद दिलाती है। भारत यूरोप या अमेरिका जैसा नहीं है और ना ही ये देश भारत जैसे हैं। जिस भी देश में रहना है वहाँ का सर्वांगीण हमें स्‍वीकार करना होता है। कुछ यहाँ का और कुछ वहाँ का नही चलता। भारत में ऐसा बहुत कुछ नहीं है जो वहाँ है लेकिन ऐसा बहुत कुछ है जो वहाँ नहीं है। बस आवश्‍यकता इस बात की है कि हमारी प्राथमिकताएं क्‍या हैं?

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  14. अरे इस देश और उस देश में जिंदगी फर्क नहीं करती.....ज़मीन, आसमान, फूल, बारिश सब जगह एक जैसा है......जिन्दगी जो कुछ भी दे उसे ग्रहण करो बस यही है "वैल्यू ऑफ़ लाइफ"......ये मेरा नज़रिया है ।

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  15. भौतिकता तो हर स्थान पर मिल जाती है, जहाँ शान्ति का सुख मिले वही रहने योग्य।

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  16. ’नदी सुनहरी अंबर नीला
    हर मौसम रंगीला
    ऐसा देस हो मेरा,ऐसा देस है मेरा’
    अपने इन पम्क्तियों में सब कुछ कह दिया,
    मेरे भी अनुभव हैं’वेल्यू ओफ़ लाइफ’ के बारे में
    समय आने पर बांटूगी.

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  17. shikha ne sahi kaha... har ko lagta hai wo samay jayda behtar tha.. :)
    waise apne purane sanskaron ko bachcho me jivit rakhne ki koshish parents ko karna chahiye.. aur aap to jarur kar rahe hoge... :)

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  18. विदेश में रहने वालों को ऐसे द्वंद से अक्सर दो चार होना पड़ता है ... इसी ऊहोपोह में समय भी बीत जाता है ... विचार आते हैं चले जाते हैं फिर आते हैं ... जीवन चलता रहता है ...

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  19. हाँ बिलकुल ठीक कहा आपने ममता वाकई स्वार्थी होती है मगर आजकल के बच्चे उदाहरण देने से कुछ समझे तब न क्यूंकि उन्हे तो सब कुछ खुद कर के देखना होता है। :)

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  20. मेरी पोस्ट को स्थान देने लिए आभार....

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  21. हाँ जी, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है :)

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  22. करते तो सभी हैं और हम भी करने की कोशिश कर ही रहें हैं लेकिन अपनी जड़ों से प्यार भी तो उतना ही है जो खींचता है अपनी ओर .... :)

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  23. एक दम ठीक कहा आपने ...

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  24. हर समाज के अपने अपने सरोकार हैं और अपनी अपनी सीमाएं

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  25. "जैसा देश वैसा भेष" ये कहावत तो सुनी ही होगी आपने.... भेष चाहे बदल लिए जाए पर मन और मन में बसी अपने देश की यादें कभी नहीं बदलती... जहाँ पले बड़े हुए... जहाँ के संस्कार हमारी हर सांस में रसे बसे हुए हो वो भुलाये भुला भी नहीं जा सकता... और भारत देश की बात ही निराली है...

    माँ-बाप और परिवार के साथ बिताये पल...वो त्यौहार और उन में छुपी जीवन के लिए उपयोगी सीख... यह सब पुरे परिवार के साथ ही समझ में आता है... बिलकुल सही कहा आपने इन अनुभवों से ही इंसान सीखता है और आगे अपने जीवन में लागू करता है.. और अपने बच्चों को सिखा कर इस परंपरा को पीडी दर पीडी आगे ले जाता है..... और येही सब वैल्यू ऑफ़ लाइफ है.... बल्कि मैं कहूँगी वैल्यू फॉर जॉइंट फॅमिली है.....

    और यह भी एक कड़वा सच ही है की वो जॉइंट फॅमिली का सुख और वो गली मोहले में पड़ोसियों के साथ का सुख अब भारत में मिलना भी कम ही हो गया है... बहुत कुछ बदल गया है यहाँ... और बहुत कुछ नहीं भी बदला.... पुरानी रूढ़िवादी सोच... वो मन के अंदर छुपा बेटे को को बेटी के ऊपर समझने की गिनोनि सोच... देहज प्रथा.. जातिवाद.... जादू टोंने पर विश्वास... अभी भी पूरी तरह समाज से अलग नहीं हुआ है.... हां बहुत पड़े लिखे लोग ज़रूर है इस ईंट पत्थरों के जंगले में....सब कुछ ऊपर ऊपर से बदला है अंदर से सब अभी भी अन्धविश्वासी है.... बिना सोचे समझे रीती रिवाज़...पुराने परंपरागत त्यौहार मनाये चले जा रहे है...कोई उसके पीछे की भावनाओं या तर्क को नहीं समझना चाहता... बस ऐसा हमारे पूर्वज करते थे तो हम भी करते है..निभा रहे है...

    मेरी समझ में वैल्यू ऑफ़ लाइफ वही है जो सोचे समझे परखे फिर कोई कार्य करे... और यही बात हमारे संस्कारों पे भी लागू होती है... हाँ त्यौहार मनाने के दंग भी बदल गए है लोग अब दिखावटी हो गए है.. सब विदेशी रंग दंग की चमक में बस दौड़े जा रहे है... मगर संस्कारों को भी नहीं छोड़ना चाहते( जो की एक अच्छी बात है) .... मगर मेरा मानना है की संस्कारों को भी थोडा बदलना चाहिए... पुरानी रूढ़िवादी सोच को पीछे छोड़ कर... संस्कारों को भी एक नया रूप देना चाहिए(हालाकि उनकी सही सोच, आत्मा और उसके पीछे की सीख को नहीं बदलना चाहिए)...
    तो वैल्यू ऑफ़ लाइफ जब है जब हम खुद को भी थोडा बदले और थोडा पुरानी सोच को भी... सादगी और संतुष्ट जीवन तभी हम पा सकते है... हमे विदेशी चमक दमक देख कर अपनी अच्छाई को नहीं खोना चाहिए...

    मगर आजकल लोग अपनी पुरानी सोच के साथ साथ सचाई और अच्छाई भी खो देते है बस वो सब पाने के लिए जिसमें भी कुछ बुराइयाँ है...

    अंत में एक बात और कहना चाहूंगी...आप चाहे यहाँ रहे या वहां.. बस जहाँ मन बसे वहीँ रहना चाहिए.. जहाँ आपको संतुष्ट जीवन यापन करने हेतु सादगी और सहज वातावरण मिले.... बस पारिवारिक सुख नहीं छोड़ना चाहिए...
    "जीवन में वही श्रेष्ठ है जिसमें सॆयम, संतोष, सहजता, पवित्रता और सरलता जैसे मूल्यों की प्रधानता है..."

    "सुविधाए जीवन में विषमताए उत्पन्न करती है"

    देश हो या विदेश अपने संस्कारों को नए रूप में भी सदेव बिना उसकी आत्मीयता और महत्वता खोये अपने अंदर जीवित रखनी चाहिए... इसमें अपने विवेक और समझ का प्रयोग भी ज़रूरी है...

    मुझे आपका लेख बहुत उम्दा लगा...मैं आपकी परिस्थिती समझने की कोशिश ही कर सकती हूँ...मगर अगर मुझे अपनी पसंद रखनी हो तो मैं भारत छोड़ने का कभी सोचु भी नहीं..और अगर मुझे विदेश जाना भी पड़े तो मैं अपनी समझ और विवेक के साथ ही संस्कारों को अपने आने वाली उस पीडी को समझाने की कोशिश करके परंपरा अनुसार अपनी भूमिका ज़रूर निभाउंगी ....

    आभार!!

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  26. गहन अनुभूति बेहतरीन प्रस्तुति
    बहुत बहुत बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    मुझे ख़ुशी होगी

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  27. आपने कहा कि आपकी नजर में वैल्‍यू ऑफ लाइफ खुद के अनुभवों से गुजर कर सीखने की प्रक्रिया है। तो तब आपको लोगों के कहे अनुसार विवश होने की क्‍या जरुरत है कि अब भारत में पहले वाली बात नहीं रह गई है। धरती हमेशा से वही है, केवल लोगों की विचारधारा में परिवर्तन आया है। जिस धरती पर आपको जीवन मिला, वहां आने के लिए आप इतने झंझावातों में फंसे हुए हैं तो यह आपके लिए हितकर नहीं है। आप, मैं, हम बदलेंगे अपनी प्‍यारी धरती पर बने हुए खराब माहौल को। आप बेहिचक भारत आएं। यहां रहें।

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  28. हर देश की अपनी संस्कृति है और अपने नियम .... बहुत कुछ भारत में ऐसा है जिसके लिए शायद विदेशी तरसते हैं ....

    अधिकतर चीज़ें यहाँ दूसरे देशों से ही आती है अर्थात निर्यात होती है तो उनकी गुणवत्ता का अच्छा होना स्वाभाविक है .....
    इस पंक्ति में निर्यात की जगह आयात कर लें ..... निर्यात का मतलब दूसरे देशों में वस्तुओं को भेजना होता है ।

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  29. पल्लवी जी मेरा मानना है की वेल्यु ऑफ़ लाइफ ..मन की एक भावना है ...वह सुना होगा 'मन चंगा तो कटौती में गंगा ' बस ऐसा ही इससे मिलता जुलता कुछ ...मानती हूँ हिंदुस्तान वैसा नहीं रह गया ...लेकिन मौलिकता नहीं बदलती ....वह उस सौंधे पन सी है ..जो बसी रहती है ..सिर्फ थोडीसी नमी चाहिए ..जो हमारे भीतर है...बस थोडेसे छिड़काव की ज़रुरत है ....

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  30. कहते हैं न जहाँ नहीं चैना वहां नहीं रहना .... जहाँ जिंदगी सुकून के गुजरे वहीँ अच्छा ...
    बहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति

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  31. जहाँ मन को सुकून हो वही सबसे अच्छी ज़गह है...बहुत गहन चिंतन...

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  32. परदेश में देश की याद तो सताती ही है | बहुत सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आप अपने लेखन से ऐसे ही हमे कृतार्थ करते रहेंगे | आभार


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  33. जहाँ सच्चे सुख की अनुभूति, जीवन का मूल्य वहीं है.

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