बात उस समय कि है जब इंसान अपनी निजी एवं अहम जरूरतों के लिए सरकार और प्रशासन पर निर्भर नहीं था। खासकर पानी जैसी अहम जरूरत के लिए तो ज़रा भी नहीं। उस वक्त शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब पानी भी बेचा और खरीदा जायेगा। हाँ यह बात अलग है कि तब जमींदारों की हुकूमत हुआ करती थी। निम्नवर्ग का जीना तब भी मुहाल था और आज भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब जमींदार गरीबों को लूटा करते थे। आज यह काम सरकार और प्रशासन कर रहे हैं। रही सही कसर बैंक वाले पूरी कर रहे हैं। तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि तब से आज तक गरीब किसान की किस्मत में सदा पिसना ही लिखा है। आगे पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें ...
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