एक दिन केंसर एड्स और कोरोना वायरस मिल कर आपसे बात चीत कर रहे थे। तो केंसर बोला "भईया मैं तो इंसानों द्वारा स्वयं बुलाया गया रोग हूँ। जीवन शैली का परिवर्तन ही मेरे होने का मुख्य कारण है।"
तभी एड्स बोली और "मैं भी कौन सा आसमान से टपकी हूँ, मैं आधुनिकरण का परिणाम हूँ और क्या"...
पर भईया "केंसर तुम एक बार लग जाओ तो इंसान को ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार को नंगा कर के भी नहीं छोड़ते और मरीज की हालात भी ऐसी कर देते हो कि बेचारा कहीं मुंह दिखाने लायक नही रहता।"
अच्छा....! और जैसे "तुम बड़ी दूध की धुली हो, तुम्हारे तो नाम से ही जाने क्या क्या मन में आता है राम राम राम.... हैं"
"तो यहां मेरा नही "शिक्षा और जानकारी" का अभाव है। अरे मैं कम से कम नया शिकार समझ कर एक इंसान से दूसरे इंसान को चिपकती तो नहीं हूँ यही क्या कम है"
"बताओ भला...! तो मैं कौन सा चिपक जाता हूँ, वह तो लोगों के मन का डर है, जो मेरे मरीज से दूरी बनाये रखते हैं।"
हाँ यार वही तो ...अब क्या कहें, पर कुछ भी कहो "केंसर भईया मैं तो फिर भी बुलावे पर आती हूँ, पर तुम तो अचानक ही मरीज के अंदर अपने पैर फैला देते हो और बेचारे को जब तक इस बात का पता चलता है तब तक तो बहुत देर हो चुकी होती है।"
"हाँ यह बात तो है, पर तुम्हारे साथ भी तो वैसा ही है, तुम कौन सा ढोल बजा बजाकर आती हो।"
इतने में कोरोना वायरस आकर बोलता है और भाई लोग कसा काय...सब ठीक ना..? मजा मा...!
तो केंसर और एड्स दोनो आपस में चिपक कर थर-थर कांपने लगते है और जल्दी से मास्क पहन लेते है। एक भाग के जाता है और हैंड वाश की बोतल दिखाने लगता है। उनकी यह हरकत देखकर, बेचारा कोरोना वायरस चुपचाप उदास होकर एक कोने में जाकर बैठ जाता है, केसर और एड्स दोनों पहले एक दूजे की तरफ देखते है फिर कोरोना की तरफ देखते है, फिर वह पास आकर उससे हमदर्दी जताना चाहते है, लेकिन कोरोना उनको हाथ के इशारे से वहीं रोक देता है और उसकी आंखों से दो बून्द आंसुओं की टपक जाती है टप-टप...
फिर वो कहता है में जानता हूँ कि मैं बहुत बुरा हूँ। छूने से फैलने वाली बीमारी हूँ। पर इसमें मेरा क्या दोष है....? मैं अपने आप तो नही आया ना तुम दोनो की तरह मैं भी इंसान की लापरवाही का ही नतीजा हूँ। फिर भी लोग हैं कि कुछ समझने को त्यार ही नहीं है। कितना कहा सब से मुझसे दूर रहना है तो पार्टियां मत करो, भीड़ इकट्ठी मत होने दो, अपने हाथों को बार बार धो ओ, मुंह और नाक पर मास्क लगाओ पर नही यहां कोई किसी को सुनने को तैयार ही नही है। पूरी दुनिया ने मुझे एक भीषण महामारी घोषित कर दिया है।
मुझे अफसोस है पर इन जाहिल इंसानों को नही, इन्हें इतना समझ क्यों नही आता की ज्यादा भीड़ देखकर मुझ पर एक अनजाना सा दबाव बढ़ जाता है और मैं किसी बिना आवाज़ वाले बम की तरह फटकर एक इंसान से सभी में पहुंच जाता हूँ। इसमें मेरी क्या गलती है दोस्तों...
आज मैं हर इंसान से हाथ जोड़कर यह बिंत्ति करना चाहता हूँ और यह कहना चाहता हूँ कि मुझे आप सबकी जान लेने का कोई शौक नही है। मैं भी किसी को मारना नही चाहता। यदि आप लोग मुझसे और मेरे दोस्तों से बचकर एक स्वस्थ जीवन बिताना चाहते है, तो बस सावधानी बरतिए, अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाइये, माँ प्रकृति से प्रेम कीजिये, और अपनी पुरानी संस्कृति को वापस अपनाइए। तभी आप सब हम सब का खात्मा करने में कामयाब हो सकते है अथवा हम आप का विनाश करनें को मजबूर है।
कोरोना जाते-जाते रुकता है और फिर कहता है, ’’एक बात और! मैं अपने आप नहीं आया। मुझे बनाया और फैलाया गया है। बहन एड्स और भाई कैंसर हम तीनों से भी बड़ा खतरा तो ड्रैगन है, जिसने मुझे बनाया और यहां-वहां सब जगह फैला दिया। लेकिन मैं यदि गर्मी में मर भी जाउंगा पर पृथ्वी के मूर्ख लोग तब भी बाज नहीं आएंगे। पन्द्रह दिन-महीने में मेरे कारण मरे करोड़ों लोगों को भूलकर चिल-पौं में फिर लग जाएंगे। सच बोलूं! प्रलय देवता को मेरे जैसे टुच्चे कोरोना को भेजने के बजाय कोई ऐसा शक्तिशाली विषाणु भेजना चाहिए था, जो हरामी लोगों को ही चुन-चुन कर मारता और सज्जनों को छोड़ देता। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।’’ चलो चलता हूं।
ReplyDeleteAap ne kahaani ko poora kar diya.
Deleteकोरोना की अपील पर ध्यान देना है । प्रस्तुति बहुत अच्छी है
ReplyDeleteJi bahut zaruri hai.
Deleteबेहतरीन लेखन ,संदेश सभी को समझ आ रहा हैं सभी मंथन भी कर रहे हैं मगर सबक कितनो को याद रहेगा पता नहीं ,विकेश जी ने कोरोना की बात को आगे बढ़ाई हैं वो भी गौर करने योग्य हैं ,क्यों कुछ बेगैरत लोगो के किये को सज्जन भी भुगतने पर मजबूर हो रहे हैं ,सादर नमन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद🙏🏼
Deleteसटीक और सामयिक रचना
ReplyDeleteधन्यवाद।
ReplyDeleteBA LLB 1st Semester Political Science Notes
ReplyDeleteकोरोना, कैंसर और एड्स ने हम मनुष्यों का दिमाग खोलने के लिए आपस में बातें की. बीमारियाँ हमें समझा रही है फिर भी हम मनुष्य नहीं चेतते, तो बीमारी क्या करे. बहुत अच्छा लिखा आपने. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏🏼
Deleteसार्थक सन्देश देती हुई पोस्ट। बहुत उम्दा पल्लवी जी
ReplyDeleteधन्यवाद झा जी।
Deleteअति उत्तम ,नमस्कार ,आज की जरूरत है ये
ReplyDeleteपल्लवी , बुरे से बुरे व्यक्ति वस्तु विचार और कीटाणु के जीवन में भी कुछ अच्छा बदा होता है.... इस कोरोना के भाग्य का " अच्छा" है आपकी कहानी....
ReplyDeleteShirish bye tha way😊 upar vala comment Maine kiya hain
ReplyDeleteसुंदर संदेश।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर धन्यवाद
ReplyDeleteBahut badiya he.
ReplyDeleteHappy Valentine's Day Gifts Ideas Online
ReplyDeleteVery well written content. Keep up the good work.Apply for ISO 45001 Standards For Health and Safety
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