Friday 9 April 2021

राजस्थान डायरी भाग - 4

उदयपुर क्या कहूँ इस जगह के विषय में बस दिल वहीं रह गया और हम चले आये। झीलों की नगरी उदयपुर वैसे तो मैं खुद ही झीलों की नगरी से हूँ अर्थात भोपाल से हूँ। लेकिन यह जो लहराता हुआ पानी है ना, यह खींचता है मुझे अपनी ओर फिर चाहे वह समंदर का किनारा हो या किसी नदी, झील या तालाब का किनारा मेरा मन जैसे हर छोटी बड़ी लहर के साथ डूबता उबरता रहता है इन किनारों पर, कहीं समंदर की बड़ी-बड़ी तेज आवाजों वाली लहरें और कहीं इन झीलों का शांत सा पानी।

खैर मैं विषय से भटकना नहीं चाहती। इसलिए उदयपुर की ओर वापस आती हूँ। यहाँ चार बड़ी झीलें है और कुल मिलाकर 10 दार्शनिक स्थल हैं। जिन्हें देखने के लिए आपके पास कम से कम 2 से 3 दिन का समय तो होना ही चाहिए। पर अफसोस कि हमारे पास इन सभी स्थलों को देखने का पर्याप्त समय नहीं था क्योंकि अभी हमें यहाँ से आगे जोधपुर और जैसलमेर भी घूमना था। तो हम लोग कुछ स्थल ही अच्छे से देख पाए थे। जिनके नाम थे। सिटी पेलेस, जग मंदिर, बागोर की हवेली, पिचोला झील, कार म्यूज़ियम एवं बड़ा बाज़ार  माफ कीजिएगा इस संस्मरण अंगेजी के शब्दों का समावेश कुछ अधिक मिलेगा। लेकिन क्या करें यहाँ के स्थलों के नाम ही ऐसे हैं कि अंग्रेजी का इस्तेमाल किए बिना बताए नहीं जा सकते। 

इसके अतिरिक्त यहाँ देखने के लिए जो अन्य स्थान है उनके नाम कुछ इस प्रकार है। जैसे फतेह सागर झील, बड़ी झील, दूध तलई झील, सहेलियों की बाड़ी, करणी माता का मंदिर आदि।

अब इन सबके विषय में, मैं आपको केवल जानकारी दे सकती हूँ। लेकिन अपने अनुभव नहीं बता सकती और बात तो (मेरे अनुभव) पर म्हारे अनुभव की ही होना चाहिए ना। तो भईया अब हम पहुँच गए झीलों की नगरी उदयपुर, यहां पहुँच कर सच में ऐसा लगा मानो स्वर्ग पहुँच गए। क्या आप जानते हैं उदयपुर को भारत का (वेनिस) भी कहा जाता है। यूँ तो मैंने (वेनिस) भी बहुत अच्छे से घुमा हुआ है। लेकिन फिर भी उदयपुर की बात ही अलग थी। शांत, ठंडा, मन भावन शहर है उदयपुर यदि आपको प्रकृति से प्रेम है और शांति पसंद है, तो यकीन मानिए आपके लिए उदयपुर से अच्छी और कोई जगह हो ही नहीं सकती।

उदयपुर शहर की स्थापन महाराणा प्रताप के बाद सिसोदिया वंश के सम्राट उदय सिंह (द्वितीय) ने 1559 में की थी और जब उन्होंने यह देखा कि मुगल मेवाड़ को शांति से जीने नहीं देंगे तब उन्होंने उदयपुर को अपनी नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया। जिसके चलते जब वह इस जगह को देखने आए तो बस यहीं के होकर रह गए। पिचोला नामक गाँव के पास बनी इस झील को देखकर उन्होंने भी इसके निकट ही अपनी राजधानी बसाने का फैसला कर लिया और बस उन्होंने सबसे पहले बनाया यह सिटी पेलेस, जो कि राजस्थान का सबसे बड़ा पेलेस है। जिसे बनाने में करीब 400 साल लग गए। जिसमें उदयसिंह के अलावा आने वाले अन्य शासकों का भी योगदान रहा है।  इस महल का निर्माण 1559 में महाराणा उदयसिंह दिव्तीय ने करवाया था। इस महल के अंदर लगभग 11 सुंदर महल हैं। यह एक पहाड़ी की चोटी पर बनाया हुआ महल है। जिससे पूरे शहर का हवाई दृश्य प्राप्त होता है। आज भी इस पेलेस में राणा प्रताप के वंशज रहा करते हैं। यह बात अलग है कि महल के कुछ हिस्से को अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। जहाँ शाही परिवार की तस्वीरों के अतिरिक्त महाराणा प्रताप का कवच, तलवार, भाला आदि भी रखा हुआ है। पूरा महल घूमने में आपको 2 से 3 घंटे का समय लग सकता है। 

वहीं से आप पिचोला झील को देख सकते है। यह इस शहर की सबसे पुरानी झील है, जिसमे बोटिंग करने का मज़ा ही कुछ और है। उदयपुर का मुख्य शहर इसी झील के पास स्थित है यह झील यहाँ आने वालों को अपनी सुंदरता और वातावरण से आकर्षित करती है। 





इसी झील के बीच में स्थित है, दुनिया का सबसे रोमांटिक और सबसे महंगा होटल (द ताज लेक पेलेस) 


इसी झील के किनारे पर स्थित है दुनिया का सबसे महंगा होटल (द ओबेरॉय उदय विलास होटल) 



 



इस बात का अंदाज़ आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अंबानी की बेटी की प्री वेडिंग शूट इसी जगह की गई थी। जिसमें ठहराना सब के बस की बात नहीं, तो फिर इसे बाहर से देखकर खुश हो लेना ही सही है, नहीं...! तो हमनें भी वही किया। इसी के पास एक और मशहूर होटल है (द लीला पेलेस) इसकी भी बात कुछ और ही है। पिचोला झील का नाम इस गाँव पिचोला के आधार पर ही पड़ा था और हाँ इस झील से सूर्य अस्त होता हुआ बड़ा ही सुहाना लगता है मानो डूबता सूरज अपनी सुनहरी लालिमा को इस पानी पर बिखेरता हुआ कह रहा हो जैसे देखो कहीं भूल ना जाने मेरे इस अस्तित्व को कल फिर आना हाँ...! इसलिए शायद इस अद्भुत नज़ारे को देखने का शुल्क 800 रुपये है। वरना दिन में बोटिंग शुल्क 500 रुपये है।


फिर आता है जग मंदिर :- यह झील को बीचों बीच बना बहुत ही सुंदर महल है। जी हाँ यह एक महल है। नाम से लगता है कि यहाँ कोई मंदिर होगा। मगर ऐसा बिल्कुल नहीं है, बल्कि आधुनिक संसाधनों के साथ शाही ठाट बाट देखने का एक अच्छा जरिया है। इस सफेद संगमरमर से बने महल पर लगे झंडे आकर्षण का प्रथम केंद्र बिंदु बनते है। फिर इसके अंदर नीचे ऊपर कमरों आदि की भी व्यवस्था है और एक बड़ा सा फूलों से सुसज्जित बागीचा भी है जहां झील के किनारे टेबल कुर्सी पर बैठकर आप खाने पीने के साथ साथ झील के नज़रों और शहर की सुंदरता का भरपूर आनंद भी ले सकते हैं। 

इस सब के अतिरिकर यहाँ शादी के मंडप जैसे भी छोटे छोटे मंडप टाइप बने हुए हैं। जिसका उपयोग शायद प्री वेडिंग शूट के लिए किया जाता होगा। यूँ भी उदयपुर में ऐसी बहुत से स्थल हैं, जहाँ लोग आजकल प्री वेडिंग शूट के लिए जाते हैं। कई सारी फिल्मों की भी शूटिंग यहाँ हुई हैं। 


फिर वहाँ से लौटकर हम पहुँचे विंटेज कार म्यूज़ियम जहाँ आपको 1935 की एक से एक कारें देखने का मौका मिलता है। जिसे देखकर मेरा तो मन बहुत खुश हो गया। इतना कि उन कारों के समीप फोटो खिंचवा कर मुझे तो खुद में ही एकदम रॉयल फीलिंग आने लगी। खैर वहाँ उस ज़माने की मर्सडीज़ बेंज़ और भी ना जाने कितने तरह की कारें हैं। इतना ही नहीं सब के सब एकदम तंदुरुस्त और चालू अवस्था में है। पता है एक बग्गी भी थी वहां इतनी शानदार कि क्या कहें। आप तस्वीरों में खुद ही देख लो। दिलचसब बात तो यह है कि यहाँ उस वक़्त का एक शाही पेट्रोल पंप भी है। जो अब भी चालू अवस्था में है।

भईया इतना सब घूमने के बाद अब शाम हो चली थी मतलब ऐसी भी शाम नही पर हाँ 3 बज गए थे और हमें लगी थी जोरो की भूख तो भईया अब तो "पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा"। तो हम जा पहुँचे एक रेस्टोरेंट में उस वक़्त, फिर क्या था, बस खाना ही खाना दिख रहा था मुझे तो उस वक़्त दाल बाटी, चूरमा, बाफले, कढ़ी गट्टे की सूखी सब्जी, गुलाब जामुन, प्याज़ की कचौड़ी, मिर्ची वड़ा, छाछ,लस्सी मतलब एक ही थाली में इतना कुछ कि मुझे तो सभी पकवानों के नाम भी ठीक से याद नहीं है।

अब भई इतना खाने के बाद किस की दम है कि और घूमा जाय। तो उस दिन हम वापस अपने होटल लौट आए और बिस्तर पर डले-डले देखते और सोचते रहे कि शाम को क्या किया जाय। तब होटल के रिसेप्शन से "बागोर की हवेली" के विषय मे पता चला। तो बस बन गया प्रोग्राम वहीं जाने का वैसे तो यह हवेली भी अपने आप में देखने लायक स्थान है। यह हवेली महाराणा शक्ति सिंह का निवास स्थान थी। 


इस हवेली को भी संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। जो मेवाड़ की संस्कृति को प्रस्तुत करता है। जो सुबह 9:30 से शाम 5:30 बजे तक खुला रहता है एवं रात को 7 से 8 बजे तक यहाँ पर्यटकों के मनोरंजन और उन्हें अपनी सभ्यता और संस्कृति को दिखाने बताने और समझाने के लिए विविध सांस्कृतिक रंगा रंग कार्यक्रम होते हैं। जैसे लोक नृत्य धरोहर, लोक संगीत,कठपुतली का तमाशा आदि स्थानीय कलाकारों की ओर से प्रस्तुत किये जाते है। जिसका मज़ा ही कुछ और होता है। यदि आप लोग भी कभी यहाँ आएँ तो इस कार्यक्रम को ज़रूर देखें। अपनी मिट्टी की सुगंध और उसके प्रति आपका प्रेम, आपका जुड़ाव, आपको यहाँ बाँधे रखेगा। उस दिन पहले ही काफी देर हो चुकी थी कर्यक्रम खत्म होते-होते लगभग 9 बज चुके थे। रात काफी हो चुकी थी और ठंड भी बहुत बढ़ चुकी थी। कुछ स्थानीय लोग अलाव जलाकर हाथ तापते देखने को मिले। पर हम वहाँ से वापस लौट गए अपने होटल।



अगले दिन सुबह वहीं छत पर झील के किनारे नाश्ता करने का आंनद तो शायद मैं कभी नहीं भूलूंगी।


फिर हम निकले निजी बाजार घूमने तो पहुँचे सीधे बड़ा बाज़ार दोस्तों उदयपुर आकर यहाँ आना तो बनता है। यहाँ दिन भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है । इस बाज़ार में आपको पारंपरिक राजस्थानी परिधान, बंदिनी साड़ी और पारंपरिक सोने एवं चाँदी के जेवरात भी मिल जाएंगे। इसके अलावा आप मौची वाड़ा जाना भी ना भूलिएगा यहाँ आपको हाथों से बनी बेहद सुंदर जूतियां, मोजड़ी आदि सस्ते दामों में खरीदने का अच्छा अवसर प्राप्त होगा। मैने भी खरीदी थी। 


अब उन स्थलों की बारी जहाँ हम जा नहीं पाये किन्तु आपको जानकारी देना ज़रूर बनता है।

फिर आती है दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी नकली आरिटिफिशल झील जैसमन झील जो कि 14km लंबी है। इस झील को 1685 में महाराणा जयसिंह ने बनवाया था।

फिर आता है सुखाड़िया सर्किल यह जगह अपने फब्बारों की वजह से मशहूर है। यहाँ लगभग 21 फुट ऊंचा फब्बारा ही इस का मुख्य आकर्षण है जिसके चारों ओर बोटिंग की जाती है।  

फिर आता सबसे खूबसूरत बगीचा सहेलियों की बाड़ी, ऐसा कहा जाता है कि महाराणा संग्राम सिंह ने इसे अपनी रानी और उनकी दासियों के लिए भेंट स्वरूप यह स्थान बनवाया था। फतेह सागर झील के किनारे बने यह स्थान बहुत ही खूबसूरत झरने वा हरे भरे लॉन्ज आदि के लिये विख्यात है।

फिर आता है सज्जन गढ़ पेलेस, जिसे मानसून प्लेस के नाम से भी जाना जाता है। इसे मेवाड़ के महाराणा सज्जन सिंह ने 1884 में बारिश के बादलों को पास से देखने के लिए बनवाया था। सच सफेद संगमरमर से बना यह मानसून पेलेस बारिश के दिनों में तो और भी देखने लायक जगह बन जाती होगी।

फिर आती है फतेह सागर झील, यह एक नासपाती के आकार की झील है। जिसे महाराणा फतेह सिंह द्वारा 1678 में विकसित किया गया। यह उदयपुर की चार झीलों में से एक है।

बड़ी झील, यहाँ आप सूर्य उदय का मज़ा ले सकते हैं चारों से पहाड़ियों और प्रकृतिक सुंदरता से घिरी यह झील अपने आप में देखने लायक स्थान है और आज के समय में यह भी एक प्री वैडिंग शूट के लिए एकदम  सही  स्थल है। 

दूध तलई झील, यह भी अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध एक झील है जो अपने साफ सुथरे और नीले रंग के पानी के लिए महशूर है। इसलिए इसका नाम दूध तलाई पड़ा हालांकि इस स्थल से दूध का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है।   

फिर आता है जगदीश मंदिर, यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां चार भुजाओं वाले भगवान विष्णु की काले पत्थर से बनी मूर्ति है। कहते है यह मंदिर भी लगभग चार सौ 400 साल पुराना मंदिर है। यह मंदिर भी सिटी प्लेस के पास ही स्थित है। साथ ही यह शहर के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। यह मंदिर महाराणा जगत सिंह द्वारा 1651में बनवाया गया था। यदि मंदिरों की बात करें तो यहाँ का एक करणी माता का मंदिर भी प्रसिद्ध ही जो कि एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जहाँ रोप वे द्वारा जाया जाता है। तो यह था उदयपुर यात्रा का संस्मरण इसके बाद हम निकले जौधपुर की ओर लेकिन उसके अनुभव अगले भाग में तब तक आप आनंद लीजिये इस अद्भुत शहर के मेरे अनुभव का नमस्कार।

9 comments:

  1. झीलों के शहर कि सुन्दर तस्वीरें और रोचक वर्णन ... बहुत अच्छा लिखा है ...

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  2. आप शिल्पग्राम क्यों नही गई?फतेहसागर की पाल से कुछ दूरी पर बसा शिल्पग्राम में सम्पूर्ण भारत के ग्राम्य कला संस्कृति के दर्शन होते हैं। उदयपुर दर्शन इस स्थान को बिना देखे अपूर्ण ही रह जाता है। मेरा सबसे प्रिय दर्शनीय स्थल है जो अद्भुत है, जब भी वहां जाती हूं प्रवेश द्वार के समीप ही बने चबूतरे पर नाचे बिना नही रहती। हा हा हा

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    1. जी जाना तो चाहती थी पर समय का अभाव था। इसलिए जा नहीं पायी अगली बार अगर कभी फिर जाना हुआ उदयपुर तो आपकी बात याद रखूंगी।

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  3. उदयपुर का बहुत सुंदर वर्णन। जगहों की तारीफ़ करने की आपकी कला लाजवाब है।

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