“कहते हैं खुशियाँ जलती हुई फुलझड़ियों की तरह होती है जो थोड़ी देर जल कर बुझ जाया करती है और दुःख एक सुलगती हुई अगरबत्ती की तरह है जो देर तक जलता रहता है और बुझने के बाद भी महकता है”
यह बस केवल मेरे विचार हैं जिनकी व्यापक रूप से व्याख्या करने का मैंने प्रयत्न किया हैं। मैंने यह बात किसी फिल्म के संवाद में सुनी थी। मुझे यह बात दिल को छू लेने वाली लगी तो क्या आप सभी लोग भी इस बात से सहमत हैं, कितना सुंदर और गहरा विचार है ना, मुझे तो यह बात बहुत सच्ची और सही लगी, माना कि जब कोई इंसान बेहद खुश होता है तो उसे किसी भी तरह के नशे की कोई आवश्यकता ही नहीं होती क्यूँकि उस वक्त उस इंसान को अपनी खुशी का ही नशा इतना होता है कि वह उसी में खोया रहता है। लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है कि कोई भी इंसान नशा क्यूँ करता है?
वैसे देखा जाये तो नशा करने के लिए हर एक इंसान के पास अपनी एक वजह होती है कोई ग़म में नशा करता है तो खुशी में लेकिन आजकल के दौर में तो चाहे खुशी हो या गम दोनों ही सूरतों में लोग खूब पीते हैं अर्थात नशा करते हैं। यहाँ मेरे कहने का तात्पर्य यह की लोग अपने गम को मिटाने के लिए या औरों से छिपाने के लिए, लेकिन यदि साधारण आदमी के नज़रिये से देखा जाये तो शायद वो इसलिए ही पीता है ताकि थोड़ी देर के लिए ही सही वह आपने दुखों से, चिंता से, परेशानीयों से छुटकारा पा सके, मगर मुझे ऐसा लगता है कि जब कोई आदमी जरूरत से ज्यादा दुःखी होता है तब भी वो एक तरह के नशे में ही होता है क्योंकि गम भी तो एक प्रकार का नशा ही तो है जिसका असर लोगों पर कम नहीं होता। हाँ यह उस बात पर ज्यादा निर्भर करती है कि उस इंसान को किस बात का दुःख है। किसी को इश्क का ग़म होता है वो सभी लोग ज्यादातर नशा कर-कर के ही खुद को खत्म कर लिया करते हैं, या हम मज़दूरों का भी उदाहरण ले सकते हैं वह लोग ज्यादातर अपनी थकान मिटाने के लिए पीते है थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी परेशानीयों से छुटकारा पाने के लिए पीते है। जिन लोगों को पीने से भी राहत नहीं मिलती तो वह या तो आत्महत्या कर लिया करते हैं या अवसाद में चले जाते हैं। मेरे विचार से तो यह भी एक तरह का नशा ही हुआ।
खैर यह मेरा मत है। इसलिए मुझे यह पंक्ति बहुत खूबसूरत लगी जिन से मैंने अपने इस ब्लॉग कि शुरू वात की है सुख और दुःख की इस पहेली को किसी ने ऊपर लिखें शब्दों में कितनी खूबसूरती से बांधा है ना, जैसे किसी शायर की कोई शायरी हो। आसान शब्दों में कितनी अच्छी तरह से सुख और दुःख को परिभाषित कर दिया है।
काश हर इंसान इस बात को इतनी ही आसानी से समझ पाता या समझ सकता तो कितना अच्छा होता। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि जितनी आसान यह बात दिखती है उतनी है नहीं। लिखित पंक्तियों में कहा गया है कि खुशियाँ तो पल भर की होती है और गम बहुत लंबा। एक पुरानी किसी फिल्म के गीत में भी यह कहा गया है कि “राही मनवा दुःख की चिंता क्यूँ सताती है दुःख तो अपना साथी है” और इसलिए शायद ज्यादातर लोगों को भी अपनी जिंदगी में सुख से ज्यादा दुःख का ही आभास होता है और इसलिए शायद आज तक कोई भी इंसान किसी भी सूरत में कभी पूर्ण रूप से खुश नहीं देखा गया। किसी न किसी बात का दुःख हर इंसान को हमेशा रहता ही है, कभी उस बात को दुःख का नाम दिया जाता है तो कभी मलाल का, मगर रहता सभी को है इसलिए खुशी चाहे जितनी हो हमेशा कम ही लगती है और दुःख चाहे जितना कम हो मगर बहुत लगता है इसलिए कई बार लोग खुश होकर भी खुश नहीं रह पाते। कहते हैं ना कि लोग अपने सुखों से कम खुश होते हैं और पड़ोसी के सुखों से ज्यादा दुखी होते हैं।
सच है, टीसता हुआ दर्द ही अपना है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर विश्लेषण किया है आपने. इसका एक दूसरा पक्ष भी है. सुख-दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. उसका एक तीसरा पहलू भी है जिसे 'शांत रहने की आदत' कहा गया है. यह ऐसे है जैसे सिक्का लुढ़कते हुए कभी अपने दोनों पहलुओं को आजू-बाजू लिए घेरे पर खड़ा हो जाता है. घेरा जितना चौड़ा होगा पहलुओं की ओर गिरने की संभावना उतनी ही कम होती जाएगी.
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है।
ReplyDelete" सुखों से कम खुश होते हैं और पड़ोसी के सुखों से ज्यादा दुखी होते हैं: -- सोलह आने सच है ये बात तो :P
ReplyDeleteवैसे आपकी बात सच है की सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं :)
एक सार्थक चिंतन पल्लवी जी - अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteमेरे हिसाब से सुख और दुःख एक तुलनात्मक स्थिति है. किसी के लिए जो सुख है वही दूसरे के लिए दुःख की भी स्थिति हो सकती है. लोग अपनी अपनी बुद्धि और परिस्थिति से प्रायः सुख दुःख का निर्धारण करते हैं. कुछ ही दिन पहले एक गीत का ये बंद आया -
दर्द बहुत देता इक कांटा, जो चुभता है तन में।
उसे निकाले चुभ के दूजा, क्यों सुख देता मन में।
सुख कैसा और दुःख है कैसा, नित चुनते आयाम।
निहारे नयन सुमन अविराम।।
आपने दुःख की तुलना अगरबत्ती के सुलगने से की है जब कि मेरा मानना है कि जिस तरह पूजा घर में दीपक अँधेरा हँटाने का प्रतीक है उसी तरह अगरबत्ती के भी अपने सन्देश हैं. कभी मैंने लिखा था कि-
जिंदगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख़ बन के तू खुशबू लुटाती रहे
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
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http://maithilbhooshan.blogspot.com/
aap ne sahi kaha sukha or dukha dono 1 hi sike ke do pahlu hai ye sab jante hai par usako mante nahi hai. isili kahte hai ki ZINDAGI KE RANG KAYEE RE.
ReplyDeleteसुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
ReplyDeleteसही विश्लेषण है आपका ....यूँ ही लिखते रहिये ...!
बहुत ही सलीके से विवेचना की है आपने। दुख से भागना नही चाहिए। अगर दुख नही होता तो सुख का मजा हम कैसे उठाते। दुख के बाद ही तो सुख का अहसास होता है।
ReplyDeletevery beaytiful lines to start with.according to me khushi aur gam is an state of mind .kisi se pass ab kuch heyton bhi dukhi hey kissi ke pass kuch nahi to bhi sukhi .mean to say it depends how you take it .chaho to dukh ko khushi ssamjh lo yaa khushi ko dukh banaa lo.at times it happens.but finally jeevan kya hey........koi naa jaane.....bye bye......
ReplyDeletevyaakhyaa mein poornta hai, bahut badhiyaa
ReplyDeleteAapne iss baar jo kaha ha wo kaphi haad tak sach ha.. par ye bhi sach ha ki har insaan apne dukho ko hi bada nahi samajhta..,, kuch ese bhi hote ha jo ye samajhte ha ki unke dukh unke saath jyada waqt ke liye nahi rahenge..... wo ye samajhte ha ki agar dukh aaya ha to iska matlab ye ha ki khushiya bhi ab jaldi aainge.. kyuki koi bhi dukh jyada der nahi raheta. Par aapne uss shayar ki baat ko bahut acche se kaha ki "sukh ek jalti phuljadi ki tarha hota ha, aur dukh ek agarbatti ki tarha"...... bahut kubh.
ReplyDeleteएक गाना याद आया...
ReplyDelete"ज़िन्दगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है, थोडे आन्सू है थोडी हसी आज गम है तो कल है खुशी"
sukh arthaat - jeevan mai honey waali ghatnaao ka hamaari apeksha k anuroop hona.
ReplyDeleteaur
dukh arthaat - jeevan mai honey waali ghatnaao ka hamaari apeksha k anuroop na hona.
kabhi kabhi kisi ka dukh hamaarey liye sukh saabit hota hai kabhi hammara dukh kisi k liye sukh saabit hota hai .
hotey dono he chadbhrangur kintnu dukh ka ehsaas hum ko jyada lagta hai kyoki waha par hamaara ahem (ego)saamney aa jaata hai aur ye phuljadi aur agarbatti ki upma ko ekdum sateek bana deta hai .
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
अच्छा लेख और लिखने का तरीका |बधाई |
ReplyDeleteआशा