कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ ही नहीं आ रहा है मन मैं कई तरह के विचारों का कोलाहल मचा हुआ है इस विषय पर लिखने को बहुत कुछ है मगर सभी लिखना शुरू किया तो वह लेख नहीं कहानी बन जायेगी J
मेरा मानना है की यह एक ऐसा विषय है जिसमें हर एक व्यक्ति की अपनी एक अलग परिभाषा होती है या यूं कहिए कि अपना एक अलग नजरिया होता है। कुछ लोग पहनावे को आधुनिकता का प्रमाण समझते है तो कुछ लोग विचारों में आये हुए परिवर्तनों को आधुनिकता मानते है कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि पश्चिमी परिधानों का प्रभाव केवल महिलाओं पर पड़ता है क्यूँकि जब भी पश्चिमी सभ्यता की बात आती है तो लोगों के मन में सब से पहले वहाँ के परिधानों का ही चित्र उमड़ता है।
हमारे इस पुरुष प्रधान समाज में अधिक तर लोगों का मानना यही है कि पश्चिमी सभ्यता का सब से अधिक प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ता है अगर एक तरह से देखा जाये तो यह बात गलत भी नहीं है क्योंकि पूरी दुनिया में केवल स्त्रियों के परिधान ही हैं जो कई प्रकार के होते हैं किन्तु पुरुषों के लिए पूरी दुनिया में लगभग एक ही तरह का पहनावा होता है और इस के आधार पर यह प्रभाव पड़ना मेरे विचार से तो स्वाभाविक सी बात है। आप का क्या मत है इस विषय पर क्या आप लोग इस बात से सहमत हैं ??
यह बात मैं यहाँ इसलिए नहीं कह रही हूँ कि मैं स्वयं एक स्त्री हूँ इसलिए स्त्रियों के पक्ष में बोल रही हूँ बल्कि इस आधार पर बोल रही हूँ क्योंकि मैं स्वयं भारत से बाहर रह रही हूँ। मैं भी पाश्चात्य परिधान पहनती हूँ और समय अनुसार यदि जरूरत पड़े तो खान-पान को भी अपना लेती हूँ और मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुराई है। कहा जाता है, कि बदलते वक्त के साथ बदल जाने में ही समझदारी है जो वक्त के साथ नहीं बदलता वो या तो टूट जाता है, या अकेला रह जाता है। तो फिर यदि यही बदलाव जब कोई स्त्री अपना लेती है, तो फिर यह पुरुष प्रधान समाज उस बात को क्यूँ नहीं अपना पाता।
खैर मेरा मानना तो यह है कि “कोई भी इंसान हो स्त्री या पुरुष अपने विचारों से बड़ा होता है ना कि परिधानों से” ,कुछ लोगों का मानना यह भी है पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता को मानने वाले हिन्दुस्तानी लोग अकसर खुद की संस्कृति और सभ्यता को भूल जाते है मगर ऐसा नहीं है, हर एक कि जिंदगी में हर एक बात के लिए अपनी एक अलग जगह होती है। विदेश में रहने वाले लोग विदेशी हो जाते है यह बात ठीक नहीं है कभी-कभी वक्त की मांग को देखते हुए कई बार कुछ चीजें ऐसी करनी पड़ जाती हैं जैसे बहुत अधिक ठंड के मौसम में वक्त की नजाकत को देखते हुए जीन्स पहनना ही पड़ती है अन्यथा हिन्दुस्तानी परिधान (साड़ी) में आप बीमार पड सकते हैं
इस आधार पर किसी महिला को गलत ठहराना यह कहना गलत होगा क्यूँकि वो कहते है ना “तुलसी इस संसार में भांति-भांति के लोग” जैसा मैंने उपर पहले भी कहा है कि कोई भी इंसान अपनी सोच एवं विचारों से बड़ा होता है पहनावे से नहीं, इसलिए यह कतई जरूरी नहीं कि एक आधुनिक कपड़े पहने वाली महिला के विचार बहुत ही आधुनिक हो, लेकिन ठीक इसी तरह यह भी कतई जरूरी नहीं कि उसके विचार ऐसे हों जिनके कारण उसे यह कहा जाये कि वो अपने संस्कारों को खो चुकी है। क्यूँकि मेरा ऐसा मानना है कि यह जरूरी नहीं है कि पाश्चात्य संस्कृति को मानने वाला कोई व्यक्ति यदि स्वयं संस्कारित हैं तो वह पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति में रहकर भी सभ्य ही रहेगा। फिर चाहे उसका परिधान कितना भी आधुनिक क्यूँ ना हो फिर चाहे वो कोई स्त्री हो या कोई पुरुष, अर्थात जैसे पांचों उँगलियाँ एक बराबर नहीं होती, ठीक उसी तरह सभी लोग एक जैसे नहीं होते। हाँ यह बात सच है कि विदेश में रहने वाले लोग अकसर विदेशी चीजों को अपना कर खुद को बहुत आधुनिक समझने लगते है, आधुनिक परिधानों को पहन कर खुद को अन्य लोगों से बहुत अधिक आधुनिक मानने लगते है, लेकिन विदेश में रहने वाले सभी लोग एक ही तरह की सोच रखते है, यह सही नहीं है।
यह तो थी कपड़ों में आए बदलाव की आधुनिकता, लेकिन आज कल के दौर में न सिर्फ परिधानों में परिवर्तन आया है बल्कि हमारे आस पास की सभी खास और आम चीजों में भी बहुत परिवर्तन आ गया है जैसे अगर में यहाँ कि बात करुँ तो घरों कि बनावट और उस में इस्तेमाल में लाया जाने वाले सभी उपकरणों में भी बहुत आधुनिकता आ गई है जैसे यहाँ के घरों मे पहले अलग प्रकार के चूल्हे इस्तेमाल में लाये जाते थे और अब हॉट प्लेट और हेलोजन का ज़माना है। ठीक इसी तरह पहले घरों को गरम रखने के लिए चिमनियों का प्रयोग किया जाता था और आज आधुनिक से आधुनिक हीटर बाज़ार में उपलब्ध हैं। हाँ मगर यह बात जरूर सही है कि एक आम इंसान कि सोच का दायरा भी तभी बड़ा हो पता है जब वो दुनिया देख सके अपने घर से बाहर आकर जब वो अलग-अलग लोगों से मिलता है, उनके विचारों से अवगत होता है तभी उसकी खुद की सोच में भी बदलाव आता है।
ऐसा बदलाव यदि कोई अपने जीवन में अपनाता है तो उस में कोई बुराई नहीं है और ऐसे बहलावों को आधुनिकता का नाम देना सही भी है तो जब लोग इस परिवर्तन को आधुनिक मान का स्वीकार करने के लिए उत्सुक हो सकते है तो नारी के द्वारा अपने निजी जीवन में लाये गये परिवर्तनों को भी लोगों को खुशी –खुशी अपना लेना चाहिए न की यह सोच कर उस पर उँगली उठाते रहना चाहीये कि सारी आधुनिकता का प्रभाव केवल महिलाओं पर ही पड़ता है नये अनुभवों के साथ सोच में परिवर्तन आना तो स्वाभाविक सी बात है किन्तु उसका भी एक सीमित दायरा होता है लेकिन सोच में उस बदलाव का अर्थ, संस्कारों को भूल जान नहीं होता और यदि उस सोच को Broad minded होना कहा जाये तो वो गलत नहीं होगा यह मेरा मत भी है और मेरा अपना अनुभव भी जय हिन्द ...
नये अनुभवों के साथ सोच में परिवर्तन आना तो स्वाभाविक सी बात है किन्तु उसका भी एक सीमित दायरा होता है लेकिन सोच में उस बदलाव का अर्थ, संस्कारों को भूल जाना नहीं होता
ReplyDeleteNice post.
आधुनिकता का सरल सा अर्थ है- 'प्रश्नचिह्नों की निरंतरता'. जब भी हम चली आ रही किसी परंपरा,रू़ढ़ि आदि पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं तो उसे आधुनिकता कहा जाता है. अब चाहे वह परिधान हो, खानपान हो, व्यवहार हो. इस दृष्टि से आधुनिकता बुरी नहीं है. अच्छा-बुरा उसे हमारा आसपास और हमारा व्यक्तिगत नज़रिया बनाता है. इस दृष्टि से आपकी पोस्ट बहुत सार्थक है और व्वावहारिक है.
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.
सार्थक पोस्ट आभार
ReplyDeleteमेरे ख्याल मे विदेश मे रहने पर भारतीयो का लगाव भारत के प्रति और बढ़ जाता है.
ReplyDeleteएक सार्थक आलेख.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके बारे में जानकर...परसों ही यॉर्क आया हूँ..मैनचेस्टर एयरपोर्ट पर ही उतरा था. अब यॉर्क में २० जुलाई तक हूँ और फिर वापस टोरंटो.
स्वागत है हिन्दी ब्लॉगजगत में एवं अनेक शुभकामनाएँ नियमित लेखन के लिए.
बदलाव तो प्रकृ्ति का नियम है हम प्रकृ्ति से कैसे अलग हो सकते हैं लेकिन बदलाव भी एक दायरे मे हो पश्चिमी लोग भी शायद पहरावे मे उतने फुहड या नण्गे नहीं दिखते जितनी आज कल की कुछ आधुनिक भारतीय औरतें। जीन्स पहनना बुरा नही कोई भी परिधान केवल शरीर की नग्नता दिखाने के लिये ही पहना जाये वो बुरा है। आ[ाका स्वागत है हिन्दी ब्लाग जगत मे। शुभकामनायें।
ReplyDeleteकोई भी इंसान अपनी सोच एवं विचारों से बड़ा होता है पहनावे से नहीं
ReplyDeleteसही बात है..निर्मला आंटी की बातें बहुत सही हैं.
@समीर चचा..अरे ये तो बहुत दिन से लिख रही हैं..और स्वागत आप आज कर रहे हैं...कुछ दंड देना पड़ेगा आपको :) :) :) हा हा
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अभी जी,की आपने भी मेरा छोटा सा परिचय दे दिया समीर चचा जी को :)और इसी बहाने बाकी सबको भी :):)हा हा .....
ReplyDeleteपरिवर्तन हर युग में है , सार्थक भी, निरर्थक भी
ReplyDeletenaari blog sae jud kar naari aadharit vishyon par likhna chahey to sampark kar saktee haen
ReplyDeleteपल्लवी जी नमस्कार -
ReplyDeleteमेरे अनुभव से जुड़ -आप के लेख पढ़ नारी और आधुनिकता का पथ देख -बहुत सुन्दर लगा -सार्थक लेख आप के -आप बाहर है इसलिए जोश और ज्यादा है काश यहाँ भी लोग इस तरह से बनें और अच्छी बातों को अपनाएं -आधुनिकता की गन्दी दौड़ कुछ है जो उस से बचें
बहुत बहुत आभार आप का -लिखते रहें और जोश जगाएं
शुक्ल भ्रमर ५ ------निम्न सुन्दर कथन आप के
खैर मेरा मानना तो यह है कि “कोई भी इंसान हो स्त्री या पुरुष अपने विचारों से बड़ा होता है ना कि परिधानों से”
नारी के द्वारा अपने निजी जीवन में लाये गये परिवर्तनों को भी लोगों को खुशी –खुशी अपना लेना चाहिए न की यह सोच कर उस पर उँगली उठाते रहना चाहीये कि सारी आधुनिकता का प्रभाव केवल महिलाओं पर ही पड़ता है नये अनुभवों के साथ सोच में परिवर्तन आना तो स्वाभाविक सी बात है
इंसान अपनी सोच एवं विचारों से बड़ा होता है पहनावे से नहीं|
ReplyDeleteaap ne sahi kaha ki adami ki soch mai parivratan so na chahiye pahnave mai nahi agar aap ki soch achi hai to aap parivratan ko suvikar kar sakte hai.
ReplyDeleteपूरी रचना पढ़ गया सार्थक लगा विचार
ReplyDeleteसुमन ह्रदय से ये कहे कर लें निम्न सुधार
कहीये (कहिए) -- संस्क्रती(संस्कृति) “रहिमन(तुलसी) इस संसार में भांति-भांति के लोग”
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
मेरा मानना है आदमी चाहे कितना भी बद्ले लेकिन उसे अपनी मिट्टी से दूर नही होना चाहिए..
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूँ की इंसान पहनाए से नहीं विचारों से बड़ा या छोटा होता है ... जहां तक परिवर्तन की बात है वो तो धीरे धीरे हर चीज़ में आता है ... ये तो श्रृष्टि का नियम है ...
ReplyDeleteयदि सिर्फ विचारों से ही काम चलताहै इंसान बड़ा होता है तो ....फिर कपड़ों की आवश्यकता ही क्या है....यह जुमला शान शौकत वाले व सादा कपड़ों के संदर्भ में कहा गया है....देह-प्रदर्शक वस्त्रों के लिए नहीं ....वस्त्र सदा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिचायक होते हैं....
ReplyDelete---बस् अपना दायरा मनुष्य को स्वयं तय करना चाहिए......
--विश्व में वह कौन सीमा हीन है
हो न जिसका खोज सीमा में मिला...
Nimish Gaur said by mail.... I've been reading your posts. Its gr8 that you are writing regularly but I am not finding any improvement in your style. I think you are not reading other people's blogs.
ReplyDeleteRemember, you must be a good reader to become a good writer.
Keep writing.
Bye
आपके विचारों से सहमत हूँ।
ReplyDeleteसादर
आपकी पोस्ट की हलचल आज (30/10/2011को) यहाँ भी है
ReplyDeleteखैर मेरा मानना तो यह है कि “कोई भी इंसान हो स्त्री या पुरुष अपने विचारों से बड़ा होता है ना कि परिधानों से”
ReplyDeleteआपकी यह बात मुझे बहुत ही अच्छी लगी.
पहनावा सुंदरता और शालीनता भी मन में लावे
तो अच्छा लगता है.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,पल्लवी जी.
बदलाव तो प्रकृति का नियम है .. अति के बाद पुन: स्वयं इति हो जाएगी !!
ReplyDeleteपुरुषो के पहनावे में पाश्चत्य प्रभाव लगभग १०० वर्ष पूर्व से ही आने लगा है इसलिए हम उसको स्वीकार कर चुके है पर महिलाओ की पोशाक में परिवर्तन पहले तो धीरे धीरे आया. पर पिछले कुछ वर्षो में तेजी से परिवर्तन हो रहा है जिसको समाज स्वीकार नहीं कर पा रहा है.
ReplyDeleteसबसे जरुरी बात है कि हम आधुनिक चाहे जितने हो जाये पर जो नहीं है उन्हें हीन नजरो से नहीं देखे. यही संस्कार है.
परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत सत्य है.बदलाव के साथ बदलना भी जरूरी है.परिधान शिष्ट , शालीन व व्यक्तित्व के अनुरूप होने चाहिये,इनका चयन भी समय व प्रसंग के अनुकूल होना चाहिये.यह सही है कि व्यक्ति विचारों से बड़ा होता है, परिधानों से नहीं.किंतु यह भी सही है कि परिधानों का विचारों पर भी प्रभाव पड़ता है.सार्थक आलेख.
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