कुछ भी कहने से पहले एक बात ज़रूर कहना चाहूंगी यह आलेख से किसी की भी भावनाओं को आहत करने या ठेस पहुँचाने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है यह आलेख महज़ एक मुलाक़ात के अनुभव पर आधारित एक पोस्ट है इसलिए कृपया इसे अन्यथा ना ले। क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है कि सभी धर्म अपने आप में बेहद पवित्र एवं महान है हर धर्म इंसान को नेकी की राह पर चलने का ही ज्ञान देता है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि किसी एक धर्म को मनाने वाला कोई इंसान किसी दूसरे धर्म को मनाने वाले दूसरे इंसान को बहला फुसलाकर अपने धर्म को मानने के लिए बाध्य करने लगे और जो लोग ऐसा करते हैं, या करने का प्रयास करते हैं। वह मुझे ज़रा भी पसंद नहीं आते, मैं नहीं कहती कि कोई धर्म बुरा है मगर मैं यह भी नहीं सुन सकती कि मेरे धर्म में कोई कमी है। क्यूंकि मेरी नज़र में सभी धर्म समान है तो कोई भी धर्म छोटा बड़ा कैसे हो सकता है या फिर अच्छा या बुरा कैसे हो सकता है। किन्तु हाँ फिर भी मुझे गर्व है कि मैं हिन्दू हूँ और उसके साथ-साथ एक आम इंसान भी जिसे किसी और धर्म से कोई बैर नहीं अर्थात न मैं कोई और धर्म अपनाना चाहती हूँ और ना ही किसी को अपने धर्म को अपनाने के लिए बाध्य करने में मेरी कोई रुचि है।
आज एक महिला घर आयी जो देखने में चीनी जैसे लग रही थी मगर खुद को गुजराती बता रही थी और तारीफ़ बाइबिल की कर रही थी। काफी देर तक उसके साथ बात करने पर ऐसा लगा जैसे वो मुझे धर्म परिवर्तन करने के लिए माना रही है लेकिन हर बात के बाद वो यह भी कहती जा रही थी कि मेरी बातों को आप अन्यथा न लें मैं आपका धर्म परिवर्तन करवाना नहीं चाहती हूँ, मैं तो केवल आपको हिन्दी में बाइबल पढ़वाना चाहती हूँ क्यूंकि बाइबल जो कहती है वो अन्य कोई दुसरा धर्म ग्रंथ नहीं कहता इस बात पर मेरा उसके साथ उसकी द्वारा कही हुई कई बातों को लेकर तर्क वितर्क हुआ जैसे मुझे आदम और हउआ की जो कहानी पता थी उसके अनुसार वो फल खाने का परिणाम है हम सब, मगर मुझे यह नहीं पता था कि उसी एक फल को खाये जाने के कारण मरते हैं हम सब, यदि ईश्वर के कहे को मानकर आदम और हउआ ने वह फल नहीं खाया होता तो हम में से कभी कोई नहीं मरता। यह कहानी मुझे पहले नहीं पता थी।
इस प्रकार उनसे न जाने ऐसी कितनी बेसर पैर की बातें होती रही और जाते जाते उन्होने कहा मैं फिर आऊँगी पल्लवी, मुझे तुमसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और हो सकता है तुम्हें भी मुझसे बहुत कुछ सीखने को मिले। जब तक तुम कुछ प्रश्नों के विषय में सोचना जैसे मरने के बाद हमारा क्या होता है ? हम दुखी क्यूँ होते है खुश क्यूँ होते है ? और भी न जाने क्या-क्या, मुझे अब ठीक से याद भी नहीं। वैसे धर्म के मामले मैं निजी तौर पर उन लोगों में से हूँ जो किसी भी धर्म से कोई बैर नहीं रखते, जो वक्त आने पर दिवाली भी मानते है और ईद भी अर्थात जब जैसा मौका हो तब वैसे ही रंग में ढलने का प्रयास करते हैं। क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है कि ज़िंदगी महज़ चार दिन की है उसमें हमें बहुत कुछ करना है तो भला उसे यह धर्म अधर्म के नाम पर क्यूँ खर्च किया जाये जैसे वो कहते हैं न
"और भी ग़म है ज़माने में मोहब्बत के सिवा"
बस कुछ वैसी ही बात है लेकिन जब इस तरह के लोगों से मुलाक़ात हो जाती है तो अंदर ही अंदर कहीं एक द्व्न्द सा होने लगता है जाने कब इंसान यह धर्म अधर्म के फेर से परे होकर कुछ और सोचेगा जिसे न केवल एक जाति या धर्म का कल्याण हो बल्कि सम्पूर्ण मनाव जाति का कल्याण हो सके। न जाने कब तक इन धर्मों के नाम पर मासूम लोगों को, उनकी भावनाओं को, ठगा जाता रहेगा। न जाने कब तक धर्म के नाम पर फैलाया गया अंधविश्वास का कारोबार फलता फूलता रहेगा। न जाने कब एक इंसान दूसरे को सिर्फ उसके इंसान होने के नज़रिये से पहचान पाएगा, न कि उसकी जाती या धर्म के नाम से, यह सब कुछ लगभग उस फिल्म के शीर्षक की तरह है "इस रात की सुबह नहीं"
मेरा मानना तो यह है की कोई भी धर्म बुराई की ओर जाने का संदेश कभी नहीं देता। बल्कि हर धर्म केवल एक ही बात सिखाता है कि "नेकी कर और दरिया में डाल" अर्थात "कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर" लेकिन फिर भी लोग अपने अपने धर्म को ज्यादा महान दिखाने के चक्कर में दूसरे के धर्म पर उंगली उठाते रहते हैं अब भला आप ही बताइये मरने के बाद किसने देखा कौन कहाँ जाता है, लेकिन नहीं बाइबल को जबर्दस्ती मनवाने वाले लोग कहते हैं कि बाइबल के अनुसार मरते केवल बुरे लोग हैं अच्छे लोग तो पुनः जीवित हो जाते है ईसा मसीह की तरह, तो मैंने उनसे कहा यदि ऐसा ही है तो प्राकृतिक विपदा में तो हजारों और लाखों की संख्या में मासूम लोगों की जाने चाली जाती है उनका क्या...तो मुझे जवाब मिला उसमें भगवान की कोई गलती नहीं है। आप यदि घर से बाहर निकलो और अचानक सड़क दुर्घटना में आपकी मृत्यु हो जाये तो उसमें भगवान की क्या गलती, अब भला यह भी कोई तर्क हुआ?? यह तो वही बात हुई कि मौत आनी थी सो आ गई और बच गए तो "जको रखे साइयाँ मार सके न कोय", इशू ने नर्क के नाम पर कब्र बनाई है और स्वर्ग के नाम पर आकाश, जो बुरे लोग हैं वो नर्क में जाते हैं अर्थात कब्र में जाते है और जो अच्छे लोग हैं वो ऊपर स्वर्ग यानी आसमान में जाते हैं।
उन्हें इस बात को कुछ ऐसे समझाने का प्रयास भी किया था कि आपने अपना घर बड़ी खूबसूरती से सजाया संवारा है इसमें कुछ बुरे लोग आकर सब तहस नहस कर दें तो आपको कैसा लगेगा और आप उनके साथ क्या करेंगी, मैंने कहा ऐसे लोगों को मैं घर से बाहर कर दूँगी और क्या, तो वह बोली बिलकुल ठीक वैसे ही ईश्वर ने यह दुनिया बड़े प्यार और मेहनत से सजाई और बनाई है जिसे कुछ बुरे लोग बर्बाद करना चाहते हैं तो ईश्वर उन्हें मार डालते हैं और नर्क में भेज देते है फिर कभी न वापस आने के लिए।
अब यह भी कोई बात हुई भला, अरे भाई यदि ऐसा ही है तो फिर आपके धर्म में सभी लोगों को आप जान बूझ कर नर्क में क्यूँ डाल देते हो, है कि नहीं.....मगर नहीं मानेगे नहीं चाहे कुछ कर लो, इंसान मिट्टी से बना है इसलिए उसे मिट्टी में ही जाना है। मैंने भी कहा हाँ बिलकुल ठीक बात है हमारे यहाँ इसी बात को पाँच तत्वों से जोड़कर कहा गया है और कौन कहाँ जाएगा यह उसके कर्मों पर आधारित है और उसका फैसला ईश्वर के हाथों में है। हमारे हाथ में नहीं हमारे हाथ में यदि कुछ है, तो वह केवल इतना है कि हम जानबूझ कर किसी को ठेस न पहुंचाए, किसी के साथ बुरा न करें,अर्थात जहां तक संभव हो सके अपने आपको "सादा जीवन उच्च विचार" कि तर्ज पर चलायमान रखें। ताकि यदि कहीं कोई अगला पिछला जन्म होता हो तो आसानी से कट जाये।
बस फिर क्या था इसी बात पर उन्होने हमें धर लिया और शुरू हो गईं कि अरे आपके धर्म में अगला जन्म होता है क्या बाइबल के अनुसार तो एक ही जन्म होता है और मरने के बाद सब ख़त्म, उसके बाद कुछ नहीं होता जो बुरा है वो (हैल) नरक में जाएगा और जो अच्छा है वो ऊपर (हैवन) स्वर्ग में, मैंने कहा देखिये मुझे भी नहीं पता कि अगला पिछला जन्म होता है या नहीं, मैं तो यह मानती हूँ कि जो आज है उसे ही ढंग से जी लो वही बहुत है कल किसने देखा मगर दादी नानी से जो किसे कहानियां सुनी पढ़ी है उनके आधार पर मैंने यह कथन कह दिया। क्यूंकि हो सकता है कोई कारण होता हो जिसके लिए हम पुण्य और पाप मानते हैं और उसी के आधार पर कर्म करते हैं।
कुल मिलाकर वह अपनी ही कही बातों पर स्वयं ही ठीक से तर्क नहीं दे पा रही थी इसलिए शायद उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें दुबारा मुझसे मिलना होगा अब शायद अगली बार वो और भी तैयारी के साथ मेरे घर आएंगी ताकि अपने तर्कों और बातों के आधार पर मुझे बाइबल पढ़ने एवं उसमें लिखी बातों को मानने के लिए मुझे माना सकें देखते हैं आगे क्या होता है।
कुछ लोग खुद में उलझे रहते हैं ... खुद ही स्पष्ट नहीं होते
ReplyDeleteलगता है वो आपका धर्म परिवर्तन करवा के ही मानेगीं...:)
ReplyDeleteजो स्वयं ही संतुष्ट हो वह संतुष्टि बाटेगी,कारण नहीं..
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 25-02-2013 को चर्चामंच-1166 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
हैरानी हुयी जानकर ...... ऐसे उनकी बातों को आप अन्यथा ना ही लें :)
ReplyDeleteउसी एक फल को खाये जाने के कारण मरते हैं हम सब, यदि ईश्वर के कहे को मानकर आदम और हउआ ने वह फल नहीं खाया होता तो हम में से कभी कोई नहीं मरता....
ReplyDeleteयदि वो फल नहीं खाते तो हम सब होते ही कहाँ ? :):) मरने की नौबत तो तब आती ...
कसी धर्म को मानना या न मानना स्वयं पर निर्भर करता,,,,
ReplyDeleteRecent post: गरीबी रेखा की खोज
मैं तो सभी बातों से सहमत.
ReplyDeleteबढिया
धन्य हैं :)
ReplyDeleteयही तो दुर्भाग्य है कि किसी भी धर्म को मानने वाले लोग यह सोचने लगते हैं कि हमारा धर्म हि सर्वश्रेष्ठ है और बाकी धर्म निम्न है और यही बहुत सारे फसादों कि जड़ है !
ReplyDeleteऐसे प्रचारक ईसा का संदेश नहीं देते अपितु चर्च का प्रचार करते हैं। इनका उद्देश्य केवल संख्या बढाना मात्र है जिससे दुनिया पर सत्ता काबिज की जा सके। भारत के गाँवों में सेवा के नाम पर इन लोगों ने यही धंधा चला रखा है और उपद्रव करते रहते हैं।
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना ..भाव पूर्ण आपको बहुत - बहुत बधाई
ReplyDeleteमेरी नई रचना
मेरे अपने
खुशबू
प्रेमविरह
मेरी बात-चीत तो इससे भी आगे तक गयी थी, फिर सोचा अपनी-अपनी आस्था है! कशमकश की क्या ज़रूरत? हाँ यह ज़रूर हुआ कि वह मुझे समझा रहे थे और खुद समझ कर चले गए। :-)
ReplyDeleteआभार आदरेया -
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ||
"सादा जीवन उच्च विचार" कि तर्ज पर ... बिल्कुल सही
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति शेयर की,आभार.
ReplyDelete
ReplyDeleteअसल में धर्म एस ऐसा विषय है जिस पर कभी तर्क वितर्क करना ही नहीं चाहिए ये आस्था का विषय है जो तर्क से नहीं बदले जा सकते है , हमारा नीजि अनुभव या लालच ही हमारे विचार बदल सकता है , फिर भी धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले अपने काम में लगे रहते है और हर हथकंडा अपनाते है । ऐसे लोगो के साथ कभी तर्क नहीं करना चाहिए क्योकि जैसे जैसे आप तर्क करेंगी वो आप को और विश्वास दिलाने के लिए और किस्से कहानिया तर्क देंगे, इसलिए इन्हें चुपचाप सुन कर बीदा कर देना चाहिए , ताकि सामने वाले को लगे की आप को बात समझ ही नहीं आ रही है ।
ऐसे अजनबी लोग मुलकात के बाद भी अजनबी बने रहें,यही अच्छा है .
ReplyDeleteधर्म वही है जिसको करने से मन को शाश्वत शांति मिले ,बाकी सब पथ हैं , अपना पथ छोड़कर दुसरे पथ पर वही जाते हैं जिसको अपने पथ पर विश्वास न हो.
ReplyDeletelatest postमेरी और उनकी बातें
वही तो, मैं तो यह कहानी पहले कभी सुनी ही नहीं थी ...:)
ReplyDeleteहाँ शायद उन्हें भी मेरी बातों से ऐसा कुछ लगा हो इसलिए वो मुझ से दुबारा मिलना चाहती है अब देखिये फिर कब आती है ।
ReplyDeleteहाँ सच्ची...मगर वो दुबारा आने को कह गयी हैं। राम जाने फिर अब कौन सी नयी कहानी के साथ आएँगी :)
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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हा हा हा,
काश ऐसा कोई धर्म प्रचारक मुझे भी मिलता... एक गहरा शक तो पैदा कर ही देता मैं 'ऊपर वाले' के बारे में उस के दिमाग में भी... :)
...
ऐसे लोग स्वयं अपने ही विचारों की भूलभुलैय्या में भटकते रहते हैं ......
ReplyDeleteपल्लवी जी
ReplyDeleteयह मेरी आपसे या यूँ कहें आपकी किसी रचना/कृति/आलेख से पहली मुलाकात है. खैर, आपका आलेख पढ़ा, आपने ईमानदारी से अपनी वस्तुस्थिति और आपबीती बयान की और विषय वस्तु के सम्बन्ध में अपने विचारों से भी सबको अवगत कराया. मैं यहाँ कुछ अपनी तरफ से जोड़ना चाहता हूँ. आप तो पढ़ी लिखी शायद ब्रिटेन में प्रवास करने वाली महिला है. हमारे भारत में सुदूर आदिवासी इलाकों में सीधे सादे आदिवासियों के बीच ऐसे शिकारी खूब घूमते हैं. सबसे बड़ी बात जो मैं कहना चाहता हूँ, वो यह है कि इन्हें स्वयं मालूम नहीं की वो क्या कर रहे हैं, ना इन्हें ईश्वर के बारे में मालूम होता है और ना ही ईश्वरीय सत्ता के बारे में. न उन्हें स्व का ज्ञान होता है न ब्रहम का. ऐसे लोग उन सेल्स मैन की तरह होते हैं, जिन्हें जितना सिखाया जाता है, वे उतना ही रटते रहते हैं, उन्हें उससे आगे और पीछे कुछ भी ज्ञान नहीं होता. ऐसे लोगों पर तरस ही खाया जा सकता है. उन्हें यहाँ तक कि बाइबिल में अन्तर्हित तत्वों के बारे में भी कुछ खास जानकारी नहीं होती. ऊपर ऊपर जितना सिखा दिया जाता है, उतना ही बोलते हैं. such people may understand a little churchanity, but I am sure they are totally devoid of christianity, they dont understand what Jesus was and whats the theory of God undestood by jesus, so just forgive them, ये सत्व और तत्व से हीन लोग है. इनसे परेशां मत होइए, दया कीजिये. आप एक महान धर्म और संस्कृति की वाहक हैं, अपने धर्म शास्त्रों को पढ़िए, कभी उपनिषद, गीता पढ़िए, ऐसे लोग कभी आपके पास आने की हिम्मत नहीं करेंगे.
सादर
नीरज'नीर'
www.kavineeraj.blogspot.com
धर्म प्रचार के लिए ओर आजकल तो पैसे के लिए प्रचार भी करने लगे हैं लोग ...
ReplyDeleteअब देखते हैं उनके तर्क पैने हैं या आपके ...
भगवान बचाये!!
ReplyDeleteजबरिया धर्म ग्रहण नहीं किया जाता
ReplyDeleteश्रद्धा की बात है आज तो फुटपाथ पर बिकता है
आलेख बढ़िया है बस समझने का अंदाज अलग अलग हो सकता है
धर्म केवल एक है...
ReplyDeletedhram ke naam par ladne aur ladane walon kii kami nahi hai...wo apni baat sabit karne ke liye kisi bhi had tak jaate hain...chahe samne wala sabhi dharm ko ek hi nazar se kyun na dekhta ho...
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