वैसे यदि सुंदरता की बात की जाये तो इंसान का मन ज्यादा खूबसूरत होना चाहिए तन नहीं, लेकिन यहाँ बात अंदरूनी सुंदरता अर्थात मन की नहीं हो रही है बल्कि बाहरी सुंदरता अर्थात चेहरे की हो रही है। आमतौर पर लोगों का ऐसा मानना है कि त्वचा का अच्छा होना ज्यादा मायने रखता है। क्यूंकि उसके बाद आपको किसी भी तरह के सौंदर्य प्रसाधन की कोई अवश्यकता ही नहीं होगी। आप स्वाभाविक तौर पर खूबसूरत नज़र आएंगे, बात बिलकुल सही है ऐसा हो जाये तो फिर क्या कहने। लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि त्वचा की कमी को तो फिर भी कुछ देर के लिए ही सही सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल करके छुपाया जा सकता है मगर (भवों) का क्या करेंगे आप, वो तो जैसी हैं वैसे ही नज़र आएँगी ना, हालांकी अब तो उसके लिए भी बहुत सारे जोड़ तोड़ उपलब्ध है बाज़ार में, लेकिन यदि स्वाभाविक दिखने की बात है तो फिर तो थ्रेडिंग की ही सबसे ज्यादा आवश्यकता महसूस होती है।
खैर इस मामले में होने वाले अनुभव मुझे नजाने क्यूँ हर बार चौंका जाते हैं। शादी के बाद जब अपने ही घर के पार्लर में मैंने पहली बार एक काम वाली बाई और एक किन्नर को थ्रेडिंग करवाते देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। जबकि उसमें कोई आश्चर्य वाली बात है नहीं, आखिर वह भी इंसान है और हर इंसान की तरह वह भी खूबसूरत लगना और दिखना चाहते हैं। मगर तब मुझे यह बहुत अजीब लगा था, शायद पहली बार ऐसा कुछ देखा था इसलिए, क्यूंकी ज़िंदगी में कभी न कभी हर बात पहली बार होती है लेकिन यह सब में किसी सौंदर्य पत्रिका को पढ़कर नहीं कह रही हूँ बल्कि इसलिए बता रही हूँ क्यूंकि मेरे तो घर का पार्लर है फिर भी मुझे कोई खास शौक नहीं है कुछ करने का या ज्यादा सजने सँवरने का, मैं तो उनमें से हूँ जो कॉलेज के दिनों में भी केवल वार त्यौहार ही पार्लर की शक्ल देखा करते थे, अन्यथा नहीं, उसमें भी केवल थ्रेडिंग और कुछ करवाया ही नहीं था कभी, शादी के समय जाना कि कितनी चीज़ें होती हैं करवाने के लिए :-)
खैर यह सारी कहानी इसलिए कही क्यूंकि थ्रेडिंग के लिए लाइन लगते मैंने यहाँ पहली बार देखा इसके पहले कभी महज़ थ्रेडिंग के लिए इतनी मारा मारी मुझसे देखने को नहीं मिली क्यूंकि यहाँ पहले ही सौंदर्य से जुड़ी चीज़ें बहुत मंहगी है इसलिए हर कोई सब कुछ घर में ही करना पसंद करता है। आप को जानकार आश्चर्य होगा जहां अपने यहाँ मात्र 10-20 रूपये में बढ़िया थ्रेडिंग हो जाती हैं। वही थ्रेडिंग यहाँ यदि आप मॉल में जाकर करवाओ तो 7 -8 पाउंड में होती है और खुले में मतलब बिना किसी दुकान के ऐसे ही कुर्सी रखकर थ्रेडिंग करने वाले मात्र 3-4 पाउंड में ही थ्रेडिंग करते नज़र आते है जिसके चलते लोग लाइन लगा कर घंटों इंतज़ार करने को भी तैयार रहते हैं।
मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ, मैं तो घर में ही कर लेती हूँ यहाँ तक के घर में इस समस्या से निदान पाने के लिए बहुत सारे अच्छे-अच्छे और सस्ते टिप्स भी हैं जिनकी सहायता से अब कम दर्द के भी आसानी से थ्रेडिंग की जा सकती हैं फिर भी आजकल घर में रहकर इन सब चीजों को करने का टाइम किसके पास है। सब busy without work की तर्ज़ पर बस चले जा रहे है आँख बंद करके, कुछ तो वास्तव में व्यस्त है मगर अधिकांश केवल विंडो शॉपिंग करने में ही समय बिताते नज़र आते है इधर पति देव और बच्चा गया स्कूल उधर मैडम चली विंडो शॉपिंग करने क्यूंकि हर रोज़ तो कोई कुछ खरीदता नहीं और खाना बनाने की अब कोई टेंशन नहीं क्यूंकि यहाँ तो फास्ट फूड का ज़माना है रोटी से लेकर दाल सब्जी सब बनी बनाई उपलब्ध है बाज़ार में, बस लाओ सब्जी डालो ओवन में और रोटी डालो मिक्रोवेव में खाना तैयार है।
अब गया वो ज़माना जब आटा है लगाना
और दाल है पकाना
अब न सब्जी को है धोना न काटना न पकाना
बस पैकेड फूड लाओ ज़रा गरम कर 2 मिनट पकाओ
खाने का लुत्फ़ उठाओ
वही समय यदि कोई एक बार भी अपनी रसोई में जाकर देखे तो सेहत और सुंदरता दोनों का खज़ाना केवल आपकी रसोई में ही छुपा है जरूरत है तो केवल आपके अपने थोड़े से वक्त की वो भी केवल आप ही के लिए :)
सुन्दर दिखने की चाह हर घर में घर करती जा रही है।
ReplyDeleteशादी में पहली बार जाना की महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर जरुरी है , उसके बाद अबतक की जिंदगी में भी गिनती के दिन ही देखे हैं ब्यूटी पार्लर . लेकिन आजकल स्त्रियों के दमकते चेहरे इनका असर बताते हैं , ये और है कि वही चेहरा दो तीन बाद देखो तो असलियत नजर आ जाती है :)
ReplyDeleteलुफ्ट = लुत्फ़ .......ठीक कर लें :-)
ReplyDeleteकॉलेज के दिनों में भी केवल वार त्यौहार ही पार्लर की शक्ल देखा करते थे, अन्यथा नहीं, उसमें भी केवल थ्रेडिंग और कुछ करवाया ही नहीं था कभी..........................ज़रूरत भी क्या थी आप तो यूँ भी करिश्मा.............. :-) :-)
कहाँ गए वो दिन -वो चूल्हे की रोटी,और दाल बटलोई की,
ReplyDeleteजामे आम की खटाई पड़ी और शुद्ध चमचा भर घी!
अपने वजट के अनुसार सभी अपने को सुंदर दिखाने की कोशिश करते है,चाहे वो मर्द हो औरत,,,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग,
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (06-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
सब कुछ फ़टाफ़ट होने लगा है .... खाना भी रेडीमेड ... पार्लर का शौक कम से कम नहीं लगा है :):)
ReplyDeleteअच्छा दिखना और बदल देना चेहरे को - दो अलग आयाम हैं
ReplyDeleteऔर आजकल तो असली चेहरा असलियत में बदल जाता है ...
इन्नल्लाहा जमीलुन युहिब्बुल जमाल
ReplyDeleteइस हदीस का भावार्थ यह है कि परमेश्वर सुंदर है और सौंदर्य से प्रेम करता है।
परमेश्वर ने मनुष्य को भी सुंदर बनाया है और उसे भी सुंदरता का प्रेमी बनाया है।
अपनी देखभाल अच्छी चीज़ है। अगर औरतें एसिड फ़ार्मिंग फ़ूड कम खाएं और अपनी बॉडी की अल्कलाइन नेचर को मेनटेन रखें तो वे हमेशा जवान और ख़ूबसूरत रहेंगी और मर्द करें तो मर्द भी।
इसके लिए ज्ञान और संयम चाहिए। ये गुण हों तो आत्मा भी संतुष्ट रहती है। तन और मन की ताज़गी का यह परम गुप्त सूत्र है।
आपके परिवेश की जानकारी मिली,
शुक्रिया !
शुक्रिया इमरान ... :-)
ReplyDeleteबाहर से अच्छा दिखना सबसे ज्यादा ज़रूरी हो गया है..... वैसे सही भी है, रसोई में स्वास्थ्य और सुन्दरता दोनों मिलती हैं ....
ReplyDeleteपार्लर का भूत तो आज सबके सर चढ़कर नाचता है, क्या करें?
ReplyDeletesundar dikhne ki lalak be-intinhan badhti hi ja rahi hai,sundar chehara sb ko bhata hai
ReplyDeleteदेखे जाइये दुनिया के रंग!
ReplyDeleteहर कोई सुंदर दिखाना चाहता है किन्तु कभी कभी सोचती हूँ कि पुरानी पिक्चरो में हीरोइन बिना थ्रेडिंग के भी कितनी सुंदर दिखती थी,वक्त के साथ सोच और देखने का अंदाज़ भी बदल जाता है
ReplyDeleteबिलकुल सही लिख है,अब कोई भी पार्लर में जाएँ खाली नही मिलेंगें.
ReplyDeleteसुन्दर दिखने की लालसा हर नारी में होती है,और इसलिए आज प्रसाधन साधनों का बाज़ार इतना बढ़ गया है कि सब की जेबें हलकी होती जा रहीं हैं.इनके साथ इन साधनों के साइड इफेक्ट्स भी दिखे जा रहें हैं.पर सुन्दर दिखने की लालसा हर किसी में सदियों से रही है और रहेगी.इसलिए केवल थ्रेडिंग ही नहीं फेसिअल,,स्क्रबिंग,ब्लीचिंग,और भी न जाने क्या क्या पद्तियाँ चल पड़ी हैं,ईद दौड़ में सब शामिल हैं ,चाहे अमीर हों या गरीब मॉडल हो या कम वाली बाई .आखिर इच्छाएं सब में हैं.इस पर अब किसी को कोई अचरज नहीं होना चाहिए.
ReplyDeleteसौन्दर्य तो प्राकृतिक की सुहाता है.........पार्लरवाला नहीं।
ReplyDeleteसौन्दर्य तो प्राकृतिक ही सुहाता है, पार्लरवाला नहीं।
ReplyDeleteएक दम सटीक आकलन
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
सहमत हूँ आपकी इस बात से .....सुंदर दिखना हर किसी की पहली पसंद बन चुकी है
ReplyDeleteसुन्दर होना प्रकृति की देन है और अपने ग्राहक को सुन्दर दिखाना पार्लर का कमाल. रसोई में स्वस्थ रहने और सौंदर्य को बनाए रखने का राज छुपा है. खाना बनाने की फुर्सत न भी मिले तो कम से कम सुन्दरता बरकरार रखने के लिए फुर्सत निकालना ही चाहिए. बढ़िया लेख.
ReplyDelete:-))).... सही कह रही हैं आप....
ReplyDelete~सादर!!!
well said .....
ReplyDeleteमुझे अभिज्ञान शाकुन्तलम की पंक्तियाँ याद आती हैं। दुष्यंत ने जब शकुंतला को वनप्रांतर में देखा तो कहा कि वल्कल वस्त्रों में भी ये वनबाला कितनी खूबसूरत लग रही है। सचमुच प्राकृतिक सुंदरता को बनाव-श्रृगांर की क्या जरूरत है। आपने सच कहा कि मन की खूबसूरती सबसे बड़ी है। भौंहों की खूबसूरती आपको रीतिकाल की नायिका तो बनाएगी लेकिन मन की खूबसूरती भक्ति काल का सौंदर्य प्रदान करेगी।
ReplyDeleteबहुत जरूरी है अपने लिए समय निकालना ओर फिर चाहे जैसा उपयोग करो उसका ....
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