दोस्तों आपको क्या लगता है क्या दामिनी के आरोपियों को फाँसी की सजा सुनाकर अदालत ने सही इंसाफ किया है शायद नहीं, क्यूंकि ऐसा करने से पापी को सजा ज़रूर मिल गयी मगर पाप ख़त्म नहीं हुआ और ना ही होगा। मेरी नज़र में इस तरह के अपराध तभी कम हो सकते हैं जब हम खुद की सोच को बदलें आज यानि 13 सितंबर को जब सुबह से ही पूरे देश और दुनिया को इंतज़ार था दामिनी कांड के मामले में होने वाले फैसले का, अदालत ने आज इस मामले में लिप्त आरोपियों को फाँसी की सजा सुना दी जिससे लोग दो भागों में बंट से गए क्यूंकि कुछ चाहते थे फांसी तो कुछ चाहते कैद-ए-बामुशक्कत या उसे भी कड़ी यदि कोई सजा होती हो तो वो हो उन आरोपियों को, न्यूज़ इंडिया चैनल पर इस मामले पर बहस भी सुनी तब ऐसा लगा जैसे इस मामले में सभी लोग, इस मामले की आड़ में अपना-अपना कैरियर भुनाने में लगे हैं। यह सब देखकर तो ऐसा लगा जैसे कुछ लोगों को फिर एक नया मुद्दा मिल गया भुनाने के लिए, कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा खासकर बचाव पक्ष के वकील का बयान और बीजेपी की नेता सुश्री आरती मेहराजी एवं मुकेश नायकजी की बात सुनकर, आप भी देखिये सुनिए और बताइये कि मुझे जो लगा वह कहाँ तक सही है। मुझे तो इस बहस में केवल सामाजिक कार्यकर्ता रंजना कुमारी जी और प्रोफेसर डीयू की बातें थोड़ी ठीक लगी लेकिन उन्हें ज्यादा बोलने का मौका ही नहीं दिया गया।
खैर मैं कोई पत्रकार नहीं कि किसी भी खबर को बढ़ा चढ़कर या उसमें नमक मिर्च लगा कर आपके समक्ष रख सकूँ मैं एक आम नागरिक हूँ और इस मामले में मेरी सोच यह कहती है, कि निर्भया के अपराधियों के लिए फाँसी की सजा, सजा नहीं मुक्ति है, क्यूंकि एक ज़हरीले साँप को मार देने से उस साँप की प्रजाति ख़त्म नहीं हो जाती। अब कसाब का मामला ही ले लीजिये उसे भी तो फाँसी दी गयी थी। मगर उससे हुआ क्या ?? आतंकवादी घुसपैठ तक में, कोई कमी नहीं आयी। सब ज्यौं का त्यों ही तो है बाकी सब तो दूर की बातें हैं इसलिए मेरी नज़र में ऐसे हैवानों को तो कोई ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए जिससे यह ज़िंदगी भर भुगतते रहे और रो-रो कर मौत की भीख मांगे तभी भी इन्हें मौत न मिले कभी ....
लेकिन यदि गंभीरता से इस पूरे मामले पर गौर किया जाय तो मुझे ऐसा लगता है कि कब तक हम, हमारे देश में होने वाली किसी भी आपराधिक गतिविधि का घड़ा सरकार या प्रशासन के सर फोड़कर खुद के कर्तव्यों की इतिश्री करते रहेंगे। माना कि दामिनी कांड में लिप्त यह चार अपराधियों ने जो हैवानियत दिखाई उससे ज्यादा मानवता और इंसानियात के लिए शर्मसार बात और कोई हो नहीं सकती। यह चार लोग किसी भी तरह से इंसान कहलाने लायक नहीं है। इन्हें तो शायद शैतान कहना भी शैतान की बेज़्जती होगी। लेकिन क्या आदालत का यह फैसला हमारी मानसिकता बदल पाएगा ?? क्या आपको नहीं लगता कि इस सब में हम भी कहीं न कहीं उतने ही अपराधी नहीं है, जितने की यह लोग हैं। ज़रा सोचकर देखो सड़क पर पड़ी दामिनी और उसके मित्र की सहायता के लिए गुहार वहाँ जमा भीड़ में से किसी ने नहीं सुनी और आज हम बात कर रहे हैं इंसाफ के लिए...शायद यही हमारे समाज की एक कमजोरी है कि जब हम हाथ के हाथ या यूं कहिए कि मौका ए वारदात पर इंसाफ कर सकते हैं, तब तो हम कुछ करते नहीं और फिर बाद में सरकार और प्रशासन पर सारा दोष मढ़कर अपनी भड़ास निकालते रहते हैं कि सरकार को यह करना चाहिए, वो करना चाहिए, कानून व्यवस्था बदलनी चाहिए वगैरा-वगैरा, सब बदलना चाहिए, मगर हम नहीं बदलेंगे। अरे कभी अपने अंदर झांक कर कोई क्यूँ नहीं देखता कि इन सबके साथ -साथ आपको भी बदलना होगा।
इस पूरे घटना कृम में मुझे अब तक दामिनी के मित्र की बातें सही लगी समस्या यह नहीं है कि कानून व्यवस्था में कोई कमी है इसलिए अब तक इस तरह के अपराधों में कोई सुधार नहीं हो पाया है, बल्कि समस्या यह है कि हमारा समाज ही आपस में कन्नेक्टेड नहीं है, जुड़ा हुआ नहीं है। इसलिए कोई किसी कि मदद नहीं करता, सब सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। कानून के पचड़ों में कोई नहीं पड़ना चाहता इसलिए हादसों के वक्त अधिकांश लोग अफसोस ज़ाहीर करके घटनास्थल से धीरे से खिसक लेते हैं और बदनाम किया जाता है पुलिस विभाग को, जबकि बदलाव की जरूरत पुलिस विभाग से ज्यादा हमें है, सर्वप्रथम हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। आज मुझे तो उसी की सबसे ज्यादा जरूरत नज़र आती है। यहाँ मैं एक बात और बताती चलूँ मेरा किसी भी राजनैतिक पार्टी या पुलिस विभाग से कोई खासा लगाव नहीं है। मगर किसी भी विभाग में या परिवार में या यूं कहो कि किसी भी समुदाय में पांचों उँगलियाँ एक सी नहीं होती फिर ऐसे में हमें पूरे विभाग को गालियां देना का अधिकार कहाँ से मिल गया जो हम जब तक दिया करते है यह भी तो ठीक बात नहीं, कहने का मतलब यह है कि यदि सरकार ने कुछ नहीं किया तो आपने भी कहाँ कुछ किया....अन्तः हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि
"जब भी हम किसी पर उंगली उठाते हैं,
तब तीन उँगलियाँ खुद हमारी ओर इशारा करती है"
ठीक उसी तरह जैसे वो कबीर दास जी ने कहा है ना कि
"बुरा जो देखन मैं चला
बुरा न मिलया कोय
जो मन खोजा
जो मन खोजा
अपना मुझसे बुरा न कोय"
कुल मिलाकर बस इतना ही कहना चाहूंगी कि यदि हम एक अच्छे, साफ सुथरे, सुरक्षित एवं सभ्य समाज का निर्माण करना चाहते है तो सबसे पहले हमें ही अपने आप को बदलना होगा बाद में दूसरों की बारी आती है तभी कुछ संभव हो पाएगा अन्यथा वर्तमान स्थिति को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि हालात और भी बद से बदतर ही होते चले जाएँगे... अब भी वक्त है, जाग सको तो जागो और सिखाओ अपने बच्चों को मानवता का पाठ हम आज बदलेंगे तभी हमारा आने वाला कल बदल सकेगा... जय हिन्द
बदलाव तो अपने अंदर लाना ही होगा ... पर सके दिल में ये एकसाथ तो नहीं आ सकता ... क़ानून ऐसो स्थिति के लिए ही डट्रेंट का काम करता है ... ओर वो कठोर होना जरूरी है ...
ReplyDeleteएक बात आपने सही कही कि आस-पास हम लोग ही कितने सजग होते हैं घटनाओं के प्रति। लोगों को आपस में एक-दूसरे के साथ सामाजिक रुप से जुड़ना चाहिए, आपकी यह बात एकदम दुरुस्त है। कानून तो बाद में कोई कार्य करता है। घटना के समय जो लोग मौजूद रहते हैं वे अपराधियों से एकजुट होकर क्यों नहीं लड़ते और क्यों नहीं पीड़ितों को संभालने का कार्य करते।
ReplyDeleteह्म्म्म ये बात सही है की हम बदलेंगे तो युग बदलेगा पर इस निर्णय का भी बहुत अहम रोल है कानून का सख्त होना बहुत ज़रूरी है जिससे कोई भी ऐसा घृणित काम करने से पहले सौ बार सोचे |
ReplyDeleteयह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे मन में किस प्रकार के संस्कार-विचार इकट्ठे हुए हैं. वे ही कोई कार्य करने के लिए हमें प्रेरित करते हैं और वही हमें कोई कार्य करने से रोकते हैं. संघर्ष से भरी पोस्ट.
ReplyDeleteगंभीर बिषय .....
ReplyDeleteइन्साफ तो हुआ ही पर अब आवश्यकता है उससे नसीहत लेने की |
ReplyDeleteविकृत मानसिकता वाले लोग कभी भी कुछ भी करते हैं और अंजाम क्या होगा नहीं सोच पाते |
आशा
क़ानून चाहे फांसी दे,या उम्र कैद,इससे अपराध कम नही होगें,जब तक हम और हमारा समाज नही बदलेगा,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बिखरे स्वर.
कानून में सख्ती और हमारी मानसिकता में संवेदनशीलता आये तो कुछ बात बने ......
ReplyDeleteसही कहा. खुद को बदलना आवश्यक है.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/९/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
ReplyDeleteकुछ विषय ऐसे हों, जिन पर कोई समझौता नहीं़ कोई चर्चा नहीं, किसको क्या बतलाने का प्रयास किया जा रहा है इस नराधमी कृत्य में।
ReplyDeleteकानून ने अपना काम किया ....ज़रूरत है स्वयं की मानसिकता को बदलने की .... लोगों में संवेदनशीलता है लेकिन सहायता करने के बदले यदि लोगों को शक की नज़र से देखें तो लोग किनारा कर जाते हैं ।
ReplyDeletekadi saza iss liye zaroori hai kyo ki aag ko paani ka darr hamesha hona chahiye ...
ReplyDeleteसुधार सबमे होना जरुरी है ,पुलिस ,प्रशासन, न्यायालय एवं सबसे ज्यादा राजनैतिक क्षेत्र में
ReplyDeletelatest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
latest post कानून और दंड
कानून ने अपना काम किया,(सही) आग को पानी का डर हमेशा होना चाहिए यह भी(सही),लेकिन क्या आप सभी को यह नहीं लगता कि कानून ने अपना काम बहुत देर से किया। बल्कि मुझे तो ऐसा लगता है कि यदि चुनाव ना आने वाले होते, तो शायद यह मामला अब भी अधर में ही लटका होता और सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि मेरी नज़र में तो यदि यह केस इतना हाइलाइट नहीं हुआ होता, तो भी शायद दामिनी को इंसाफ नहीं मिलता। क्यूंकि आज भी न जाने कितनी दामिनीयां रोज़ शिकार बनती है,ऐसे दरिंदों की गृणित मानसिकता का, मगर उनकी आवाज उनके आस-पास के लोग, समुदाय, समाज किसी के कानो तक नहीं पहुँचती, तो फिर भला कानून तक कैसे पहुँच सकती है।
ReplyDeleteबढ़िया रचना
ReplyDeletedownloading sites के प्रीमियम अकाउंट के यूजर नाम और पासवर्ड
उम्दा प्रस्तुति . इन्साफ तो हुआ
ReplyDeleteपापा मेरी भी शादी करवा दो ना
दामिनी को इंसाफ़ मिला, लेकिन क्या अपराधों में कोई कमी आयी? कितनी दामिनियाँ इंसाफ़ के लिए तरस रहीं हैं..उनकी आवाज सुनने वाले कोई नहीं हैं...आवश्यकता है समाज को अपनी सोच बदलने और जागरूक होने की.
ReplyDeletedekha jaye to insaf to hua hai. rahi baat apradh ke kam hone ki to jabtak ye duniya rahegi ya insan namak prani jabtak is dharti par rahega to apradh khatam nhi ho sakta. ye kam ya jayada hamesha rahega.
ReplyDeleteयहाँ इन्साफ ऐसे ही होता है. यह भी आजकल होने लगा है वरना पहले तो लड़की को इतना भी नहीं मिलता था.
ReplyDeletekavita verma has left a new comment on your post "क्या इंसाफ हुआ है ?":
ReplyDeletepallavi ji is case ke baad mansikta me badlaav to aaya hai ,pahle jaha log aisi ghatnao ki report nahi karte the ab saamne aane lage hai , jisase aise darinde samaj me khule aam ghoom nahi sakte ...is jaghany apradh ke liye fansi ki saza se aise logo ke housale to past honge ..
aaj jrurat mansikta badlne ki hai. logon ka jamir mar chuka hai.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग और ऍफ़ बी पोस्ट देखकर लगता है जल्दी ही आप पाठको के करीब हिन्दी दिनक के माध्यम से पहुँच जायेंगी . शुभकामनायें !
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