वर्तमान हालातों को देखते हुए तो ऐसा लगता है अब अपने देश में जो न हो वो कम है। पता नहीं जो कुछ दिखाया जा रहा है उसमें कितनी सच्चाई है। कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ, मगर फिर भी यदि दिल की माने तो "धुआँ तभी उठता है जब आग लगी हो कहीं। इन सब बातों को देखते हुए तो यही लगता है कि हमारे चारों और बेईमानी और भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि किसी की भी बात पर हम चाहकर भी आँख बंद करके विश्वास नहीं कर सकते। फिर चाहे वो एक आम इंसान हो, या फिर कोई नेता या अभिनेता या फिर कोई खुद को साधू संत या धर्म गुरु समझने वाले ऐसे ठग ही क्यूँ न हो, आज चारों और केवल एक ही खबर, एक ही समाचार है आसाराम बापू की गिरफ़्तारी जिसके चलते और कुछ हो ना हो मगर मीडिया ज़रूर अपनी TRP बढ़ा रहा है खैर, आज मैं यहाँ मीडिया का रोना नहीं रोना चाहती। क्यूंकि उसका तो काम ही यही है कि केवल वो खबरें दिखाओ जिसमें टीआरपी बढ़ सके। बाकी चाहे सारी दुनिया में आग लगे तो लगे।
अब जब आसाराम जी का नाम आया है तो कई आबा बाबाओं का नाम आना भी स्वाभाविक सी बात है। जैसे निर्मल बाबा और राधा माँ और भी जाने कौन-कौन जिनके कारनामे सुनकर तो अंधविश्वास की जय हो, कहने का मन करता है। वैसे, विवाद और आसाराम बापू का पुराना नाता है। उन्होंने कुछ महीने पहले गाजियाबाद में भी एक पत्रकार के सवाल पूछने पर उसे थप्पड़ रसीद कर दिया था। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने दिल्ली के बहुचर्चित गैंग रेप प्रकरण में पीड़ित लड़की को भी दोषी बता दिया था। जब मीडिया उनके बयान को दिखाने लगा था तो उन्होंने मीडिया को भी कुत्ता कह डाला था। क्या धर्म गुरु होने की यही निशानी होती है। मेरी समझ में तो यह नहीं आता कि क्यूँ हम अपनी अक्ल से काम नहीं लेते जो इन बाबाओं के चक्करों में पढ़कर स्वयं अपने ही हाथों से अपना ही जीवन नष्ट कर लेते है। क्यूँ केवल ईश्वर में विश्वास रखते हुए अपने कर्मो को अंजाम नहीं दे पाते हम, जो हमें इन सो कॉल्ड बाबाओं की जरूरत पढ़ने लगती है। जो सिर्फ दान धर्म के नाम पर सभी से पैसा ऐंठना चाहते है और ऐंठते भी है और लोग खुशी खुशी मूर्खों की भांति अपना सर्वस्व लुटा देते हैं।
एक तरफ तो जब कोई बलात्कार या एसिड हमले की खबर पढ़कर या देख, सुनकर हम स्वयं ही यह कहते नज़र आते हैं कि भई कलयुग है, कलयुग इसमें जो ना वो कम है। तो फिर दूसरी और हम यह क्यूँ भूल जाते हैं कि यह सारे बाबा भी तो कलयुग में ही हैं, फिर यह कैसे सतयुगी व्यक्ति की तरह व्यवहार कर सकते हैं। जो हम आँख बंद करके इनकी बात पर विश्वास करने लग जाते है और फिर जब इस तरह भांडा फूटता है तब भी आँखें नहीं खुलती हमारी, ऐसा क्या पाठ पढ़ते हैं यह बाबा जो हक़ीक़त पर भी विश्वास नहीं कर पाते हम, अनपढ़ लोगों का इन बाबाओं पर विश्वास एक बार फिर भी समझ आता हैं। लेकिन पढे लिखे व्यक्तियों का यह अंधविश्वास मेरी समझ में तो आज तक नहीं आया। मेरा एक उसूल रहा है, मैं जिन चीजों पर विश्वास नहीं करती उनकी आलोचना करना भी पसंद नहीं करती। क्यूंकि मैं नहीं चाहती कि मेरे कडवे बोल से किसी का व्यर्थ ही दिल दुखे। मगर वो कहते हैं ना कभी-कभी किसी के प्राण बचाने के लिए उसे जहर भी देना पड़ता है या यूं कहिए कि होश में लाने के लिए कई बार थप्पड़ मारना भी दवा का काम करता है।
मेरा तो आसाराम जी में या उन जैसे सो कॉल्ड धर्म के ठेकेदार बने बैठे धर्म गुरुओं में कभी किसी भी तरह का विश्वास रहा ही नहीं है क्यूंकि मैं ईश्वर में श्रद्धा रखने वालों में से हूँ। मेरी नज़र में तो यह बाबा लोग गुरु कहलाने लायक भी नहीं है। पता नहीं लोग इन्हें इंसान समझने की समझदारी क्यूँ नहीं दिखा पाते इसलिए जो लोग भी इस तरह के बाबाओं में विश्वास रखते हैं उन सभी से मैं यह कहना चाहती हूँ कि यह बाबा भी हम आप जैसे आम इंसान ही हैं इनकी भी वही सब जरूरतें हैं जो एक आम इंसान की होती हैं इसलिए इन पर अंधी भक्ति मत दर्शाइए, भक्ति ही करनी है तो ईश्वर की करें मगर आँखें और दिमाग खोल कर करें। आँख बंद करके नहीं, और जो सलाह आप अपनी बहू बेटियों को रास्ते चलते मनचले लड़कों या पुरुषों से सतर्क रहने के लिए देती हैं, वही इन बाबाओं के पास जाने से भी दें। यह कोई भगवान नहीं है बल्कि इंसान के रूप में छिपे भेड़िये है। आसाराम जी की बातें तो बहुत बड़े लेवल पर चल रही हैं। क्यूंकि वह एक पैसे वाले तुच्छ इंसान है, फिर चाहे उन्होंने वह पैसा गरीब या मासूम बल्कि, मैं तो कहूँगी मूर्ख जनता को उल्लू बना बनाकर ही क्यूँ ना कमाया हो। कहलायेंगे तो वह पैसे वाले ही, इसलिए उन्हें इतना हाइ लाइट किया जा रहा है और फिर भी लोग लगे हैं अनशन करने की, उन्हें छोड़ दो।
यहाँ तक कि कई जगह महिलाएं भी अनशन कर रही है। अब उनसे जुड़ी बलात्कार वाली खबर कितनी सच्ची है यह तो राम ही जाने मगर यदि एक प्रतिशत भी सच है तो फिर धिक्कार है उन महिलाओं पर जो उन्हें छुड़वाने के लिए अनशन कर रही है। क्यूंकि जैसा मैंने पहले भी कहा की यदि दिल की सुने तो "धुआँ तभी उठता है जब कहीं आग लगी हो" कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि हो सकता है यह कॉंग्रेस की चाल हो, तो कहीं यह भी सुना कि आसाराम जी ने एक वर्ष पूर्व ही अपने साथ ऐसा कुछ होने की घोषणा कर दी थी अरे जब ऐसा ही था तो फिर क्यूँ उन्होंने जोधपुर के कमिश्नर के कहने पर उसी दिन आत्म समर्पण नहीं किया क्यूँ ज्यादा समय की मांग की, वैसे तो मुझे इस तरह के लोगों में कोई दिलचस्पी कभी रही ही नहीं, मगर दामिनी कांड के बाद जो बयान उन्होने दिया था, उसके बाद से तो जैसे मुझे उनसे नफरत ही हो गई थी। मगर हमारे देश में तो धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले और घिनौनी सोच रखने वाले शैतानों की भी कोई कमी नहीं है। यह अनुभव शायद आपने भी किया होगा और यदि नहीं किया तो जाकर देखिये कभी किसी धार्मिक स्थल पर जहां विशेष रूप से कोई घाट हों, सारे धर्म के पुजारियों की हक़ीक़त यदि आपके सामने ना आ जाए तो कहना।
मेरे श्रीमान जी को तो नफरत है ऐसे धार्मिक स्थलों से क्यूंकि उन्हें भी वहाँ के पंडो की आँखों में वो दिखता है जो एक स्त्री को दिखाई देता है औरों को भी दिखता ही होगा ना उसके बावजूद भी हम उसी मंदिर में जाकर उसी पंडित से आशीर्वाद लेते हैं क्यूँ ? भगवान के सामने सिर झुका दिया फिर किसी इंसान के सामने झुकाने की ऐसी कौन सी आवश्यकता पढ़ जाती है जो हम सच्चाई जानते हुए भी उस पंडित के सामने अपना शीश झुका देते हैं। इस मामले में मुझे वह "कुछ कुछ होता है" फिल्म का संवाद बहुत सही लगता है यदि सिर झुकाना ही है तो केवल तीन लोगों के सामने ही झुकाओ "एक अपनी भारत माता के सामने" दूसरा अपनी माँ (माता-पिता) के सामने" और तीसरा "केवल ईश्वर के सामने" और किसी के सामने आपका मस्तक कभी झुकना ही नहीं चाहिए। मगर जाने क्यूँ यह साधारण सी बात लोगों के समझ में नहीं आती और हम इन बाबाओं के गुलाम बन जाते हैं।
अरे दान धर्म ही करना है तो गरीबों का भला करो, जानवरों की देखभाल करो किसी रोते हुए को हंसाकर करो, किसी दुखी का मन बहलाकर करो, मगर इन बाबाओं पर विश्वास दिखाकर मत करो...जय हिन्द
प्रभावी पोस्ट
ReplyDeleteसारा खेला इस बात का है कि कौन अपने पीछे भीड़ इकट्ठी कर सकता है। इस बाबा के पीछे अन्धों की भीड़ है, इसलिए इसके किए पर आप को अभी भी अपने दिल में यही लगता है कि जब आग लगी है तभी तो धुंआ भी उठ रहा है। अरे आग कब की लगी है और धुंए से सारा वातावरण विषाक्त हो गया है। इसमें अचम्भा क्या कि यह ऐसे कर सकता है। इसका चेहरा ही खींचकर बताता है कि यह वास्तविकता में क्या है।
ReplyDeleteआपकी बिचारध।रा उच्च है। …. सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक एवँ प्रभावशाली आलेख ! ना जाने वह कौन सी शुभ घड़ी आयेगी जब इंसान अपने ज्ञान चक्षु खोल कर इन गुरुघंटालों की असलियत को देख पायेगा और अपने घर की बहू बेटियों की सुरक्षा के लिये सतर्क होगा ! ऐसी अंधश्रद्धा की मैं घोर निंदा करती हूँ कि लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग करना ही बंद कर दें ! बहुत बढ़िया पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 09/09/2013 को
ReplyDeleteजाग उठा है हिन्दुस्तान ... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः15 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
Well written, Following lines are very much impressive and we must think..
ReplyDeleteभई कलयुग है, कलयुग इसमें जो ना वो कम है। तो फिर दूसरी और हम यह क्यूँ भूल जाते हैं कि यह सारे बाबा भी तो कलयुग में ही हैं,
यदि सिर झुकाना ही है तो केवल तीन लोगों के सामने ही झुकाओ "एक अपनी भारत माता के सामने" दूसरा अपनी माँ (माता-पिता) के सामने" और तीसरा "केवल ईश्वर के सामने"
In fact, I personally believe everyone must realize that our soul has given by god and that is pure, so rather ... 'In dhongee pandito.. babao ki.. apne aatma ki sune...
I really doubt about NGOs run by such baba's..
जनता मूर्ख है जो इन ढोंगी बाबाओं को भगवान् समझ लेती है.
ReplyDeleteऔर हमारे देश में ऐसे मूर्खों की कोई कमी नहीं।
सुन्दर आलेख।
बहुत व्यावहारिक बात कही है आपने और सही सलाह दी है. वास्तविकता यही है कि धर्म के क्षेत्र में ऐसे लोग घुस आए हैं जिनका धर्म से दूर का वास्ता भी नहीं है.
ReplyDeleteपता नहीं इन उपदेशकों, महन्तों, धर्माधिकारियों के सामने लोगों की मति क्यों कुण्ठित हो जाती है?
ReplyDeleteहमारे देश में डरे हुए लोगों की भरमार है और डरा कर रखना इन ढोंगी बाबाओ को बहुत आता है . कर्म करो और मुक्ति को इन ढोंगी बाबाओ के पास चले जाओ अपना दिमाग और जूते बाहर ही उतार दो और जय हो जय हो करो ...आज भी शिक्षा की आवश्यकता है अपने देश वासिओं को
ReplyDeleteअब भी आँख खुल जाये तो बहुत है ..... पढे लिखे लोग जब ऐसे बाबाओं के प्रति अंध विश्वास रखते हैं तो सच ही उनकी बुद्धि पर तरस आता है ।
ReplyDeleteहमें पाखंडी और अच्छे संतों में फर्क करना सीखना होगा ! केवल उनको दोष देकर जनता अपनें दोषों को छिपा नहीं सकती क्योंकि इनको पनपानें में अंधभक्तों का ही बड़ा हाथ रहता है !
ReplyDeleteइन ढोंगी बाबाओं को भगवान् समझना मूर्खता है..सार्थक आलेख..
ReplyDeleteमै सिर्फ ईश्वर पर विस्वास करता हूँ,,साधू संतो और धर्म के ठेकेदारो पर मेरा कभी विस्वाश नही रहा,,,
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !
RECENT POST : समझ में आया बापू .
श्रद्धा अंधी नहीं होनी चाहिए, हिंदू धर्मग्रंथों में इसलिए गुरु का चुनाव बड़ी सावधानीपूर्वक करने कहा गया है। ढोंगी का जुर्म केवल जनता को ठगने को लेकर नहीं है उस पर जनश्रद्धा पर कुठाराघात करने का मुकदमा भी चलना चाहिए।
ReplyDeleteसबसे पहले तो खुद पे विश्वास, फिर इश्वर पे विश्वास ... ओर जब ईश्वर पे विश्वास हो गया तो बीच के लोगों से क्या फर्क पड़ेगा ... आपकी पोस्ट से सहमत हूं ...
ReplyDelete'लेकिन पढे लिखे व्यक्तियों का यह अंधविश्वास मेरी समझ में तो आज तक नहीं आया। मेरा एक उसूल रहा है, मैं जिन चीजों पर विश्वास नहीं करती उनकी आलोचना करना भी पसंद नहीं करती। क्यूंकि मैं नहीं चाहती कि मेरे कडवे बोल से किसी का व्यर्थ ही दिल दुखे।'
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक आलेख है पल्लवी जी सहमत हूँ आपसे इस सभी पर पर हाँ एक बात कहना चाहूँगा की पाँचों उँगलियाँ एक जैसी नहीं होती ये तो सभी धर्म मानते हैं की गुरु बिन ठौर नहीं 'गुरु' को पहचानना बहुत ज़रूरी है वो तो आपको हिला के रख देता है आपको कुछ और नहीं सिर्फ खुद को बदलने की ज़रूरत होती है चलना खुद ही पड़ता है 'गुरु' सिर्फ आपको रास्ता दिखा सकता है यहाँ एक बात कहना चाहूँगा की हिंदी में हम 'सदगुरु' का प्रयोग करते हैं तो 'गुरु' के 'सद' का ज़रूर ध्यान रखें |
आज का मनुष्य डरता ही कहाँ है किसी से...वो तो डरता है अपने बुरे कर्मों से .जो वो लगातार करता है ..उसका फायदा उठाते है आज के बाबा लोग ...बस इतनी सी बात है ...न कुछ बुरा करो ..न डरो..लानत भेजो ऐसे बाबाओं पर और सेवा करो अपने बडो की .....?
ReplyDeleteसचेत करता आपका लेख .....
The History.
ReplyDeleteसच कहा आपने। अब तो किसी भी बाबा पर यकीन करने का दिल नहीं करता !!
ReplyDeleteहम तो यूँ भी बाबाओं को दूर से प्रणाम करते हैं !
बहुत सही सीख ..
ReplyDeleteआज धर्म के नाम पर वह सब कुछ हो रहा है जिसकी धर्म मनाही करता है। आज कौन चरित्र ऐसा है जो हमें विश्वसनीय लगता है? लेकिन एक बात जरूर है कि सरकार उन्हीं पर हाथ डालती है जिनसे उन्हें लाभ नहीं मिलता या जिन्हें वह अपने दायरे में लेना चाहती है। आम आदमी इतना मंगता हो गया है कि वह हर जगह झांसे में आ जाता है, यदि हम सब ऐसे स्थानों पर जाना ही बन्द कर दें तब इनकी दुकानदारी ठप्प हो जाएगी।
ReplyDeleteकुकरमुत्ते जैसे बाबाओं से नफ़रत हो गई है ....जब देखो कभी भी कहीं भी उग आते हैं...और अपने साथ साथ सबको दूषित करते फिरते हैं
ReplyDeleteविचारणीय बात ...अब तो चेतें हम
ReplyDeleteसार्थक आलेख.
ReplyDeletehttp://dehatrkj.blogspot.com
मुझे इस तरह के लोगों में कोई दिलचस्पी कभी रही ही नहीं.
ReplyDeleteyah aapki soch hai aur achhi hai.
मन को झकझोरने वाली एक बेबाक और सार्थक रचना । बधाई । सस्नेह
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