Monday, 19 March 2012

आमना सामना ...


एक इतवार की बात है मैं बहुत बोर हो रही थी कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ, लिखने के लिए भी कोई विषय नहीं सूझ रहा था और ना ही पढ़ने को ही कुछ अच्छा मिल रहा था। तो सोचा चलो और कुछ नहीं तो टीवी ही दिखते हैं। हालांकी मुझे यह भी बहुत अच्छे से पता था, कि इतवार को तो, टीवी की भी छुट्टी होती है। उस पर भी कोई खास कार्यक्रम नहीं आते, मगर वो कहते है न "कुछ नहीं से कुछ भला" बस वही सोचकर मैंने टीवी ऑन किया था, इधर उधर कई जगह कई सारे चैनल देख डाले कहीं कुछ अच्छा नहीं आ रहा था, कि तभी कलर चैनल लग गया। उस वक्त उस पर एक कार्यक्रम आ रहा था। जिसका नाम था आमना-सामना, आप सभी लोगों ने भी कभी यह प्रोग्राम कलर चैनल पर देखा हो शायद, मैंने तो यह प्रोग्राम इस इतवार को पहली बार ही देखा था।

खैर फिर मैंने सोचा चलो यही देखते हैं थोड़ी देर, क्या है इस प्रोग्राम में, लोग क्यूँ इतनी बहस कर रहे हैं। आख़िर किस विषय को लेकर लोगों ने इतना बवाल मचा रखा है। सोचा चलो थोड़ी देर देखते हैं। समझ आया तो देखेंगे वरना बंद कर देंगे। तब साथ ही साथ एक ख़्याल और भी आया, काश ज़िंदगी भी कुछ इसी तरह की होती तो कितना अच्छा होता कि जब मन किया अपने हिसाब से तय कर लिया,कि ज़िंदगी के इस सफर में क्या देखना है क्या नहीं, खैर वो बात अलग है, फिर थोड़ी देर मैंने यह प्रोग्राम देखना शुरू किया तो क्या देखती हूँ। एक लड़की है रोशनी उसकी सगाई किसी मनीष नाम के लड़के साथ हुई थी। मगर अब दोनों परिवार एक दूसरे पर फरेब और धोखाधड़ी का इल्ज़ाम लगाते हुए इस प्रोग्राम में बहस कर रहे हैं। अब पता नहीं यह किसी प्रकार का रियलिटी शो था, या किसी और तरह का कोई कार्यक्रम, वैसे इस तरह के कार्यक्रमों में जो भी दिखाया जाता है। वो सच से कोसों दूर होता है और जो दिखाया जाता है वो महज़ टी. आर. पी बढ़ाने के लिए इसलिए इस प्रोग्राम में उठाए गए विषय पर गौर करना हो सकता है, एक बेवकूफी साबित हो। पहले लगा जाने दो यह तो महज़ एक दिखावा है हकीकत में ऐसा थोड़ी न होता है। फिर लगा, क्या पता आजकल होने लगा हो, मगर इस प्रोग्राम को देखने और उठाए गए विषय पर सोचने के बाद मेरे भी दिमागी कीड़े शिखा जी के दिमागी कीड़ों की तरह कुलबुलाने लगे और मन करने लगा कि इस विषय पर कुछ लिखा जाये।

तो बस लीजिये लिख डाला हमने, प्रोग्राम का विषय था, दो परिवारों के बच्चों के बीच हुये सगाई के रिश्ते को लेकर की गई धोखाधड़ी। लड़के वालों का कहना था,कि हमको लड़की वालों ने बहुत बड़ा धोखा दिया है। शादी की एक मेट्रीमोनियल साइट पर लड़की के प्रोफ़ाइल फ़ोटो को देखकर लड़के ने लड़की को पसंद कर लिया। बात आगे बढ़ी मगर लड़की वालों ने लड़के लड़की को कभी आपस में मिलने नहीं दिया, ना ही बात करने दी क्यूंकि लड़की का जैसा फ़ोटो लड़की के पिता ने उसकी प्रोफ़ाइल में लगाया था वो हकीकत से बहुत अलग था। अब इस बात से आप यह तो समझ ही गए होंगे, कि लड़की का प्रोफ़ाइल फ़ोटो कैसा और कितना खूबसूरत रहा होगा, जबकि लड़की का रंग वास्तव में बहुत काला था। यह तो था लड़के वालों का आरोप, उधर लड़की वालों का कहना था कि हमने कोई नया काम नहीं किया। हर ऐसी लड़की की जो देखने में सुंदर ना हो अर्थात जिसके पास कोई रंग रूप ना हो, उसके माता पिता ऐसा ही करते है। लड़की के पिता का कहना था, कि एक लड़की का पिता होने के नाते मैं और क्या कर सकता था।

इतना ही नहीं लड़की को भी भरी सभा में बुलाया गया सभी ने उस लड़की में और उसकी प्रोफ़ाइल फ़ोटो में लगी फोटो को ध्यान से देखा और लड़की के माता-पिता से कहा। यहाँ गलती आपकी ही सबसे ज्यादा नज़र आ रही है। आखिर आपने ऐसा क्यूँ किया? ऐसा करके न सिर्फ आपने लड़के वालों को बल्कि खुद अपनी बेटी की भावनाओं को भी बहुत दुख पहुंचाया है। जबकि आपको तो इस बात पर गर्व होना चाहिए था, कि आपकी बेटी ने अपने रंग रूप को कभी अपनी कमजोरी नहीं माना। लेकिन आज आप की इस हरकत ने उसे यह महसूस करा दिया, कि उसके पास रंगरूप नहीं है, मतलब उसमें कोई कमी है।

अभी बहस जारी है, कि बीच में यह मुआ ब्रेक आ गया, यह सब देख सुनकर जैसे अचानक यह कार्यक्रम रोचक लगने लगा था और पूरा देखने की इच्छा होने लगी, कि आखिर इस बहस का क्या अंत होता है। जैसे तैसे ब्रेक ख़त्म हुआ, तो देखा कि लड़की ने जूरी सदस्यों के सामने कहा, मुझे भी इस विषय में बहुत कुछ कहना है। जूरी ने इजाज़त दी उसने कहना शुरू किया। मैं यह नहीं कहती कि मेरे पापा ने जो किया वो सही किया या गलत किया। मगर जिस तरह के आरोप आज उन पर यहाँ लगाये जा रहे हैं, वह सरासर गलत हैं। क्यूंकि यदि आप ग़ौर करें जैसा कि इन्होंने खुद ही कहा, कि सगाई होने तक मेरे माता पिता ने मुझे इनसे मिलने तक नहीं दिया। बात भी नहीं हुई हमारी यदि ऐसा ही था तो, इन्होनें सगाई के लिए हाँ क्यूँ की और रोके के नाम पर मेरे पापा से 2 लाख रूपये क्यूँ लिए? रही बात धोखे की, तो मैंने माना कि मेरे पापा ने मेरा ऐसा फोटो लगाकर गलती की, तो क्या इन्होंने कोई गलती नहीं की, मेरी इन से चैट पर बहुत बार बात हुई, लेकिन यह बात मेरे माता पिता को पता नहीं थी। तभी मैंने इन्हे सारी सच्चाई बता दी थी, कि जैसा मेरा फोटो आपने वहाँ मेरे प्रोफ़ाइल में देखा है मैं वैसी बिलकुल नहीं हूँ। मैं आपको अपना एक साधारण सा फोटो मेल के द्वारा भेज रही हूँ, उसे देखने के बाद ही आप तय कीजिये। मगर लड़के ने इस बात से भी साफ इंकार कर दिया, कि ना ही मैंने कभी इनसे बात की है और ना ही मुझे इनका कोई फोटो मिला।

इतना ही नहीं वहाँ उस फोटोग्राफर को भी बुलवाया और पूछा गया कि क्या अपने यह फोटो किसी के कहने पर ऐसी खींची थी या कोई और कारण था। उसने भी कबूला हाँ यह फोटो मैंने ही खींची है और मेरे यहाँ शादी के लिए इस तरह के खूबसूरत फोटो खिंचवाने के लिए लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं और इस तरह की फोटो बनाने के लिए पैसा भी बहुत लगता है। इसलिए हम बगैर किसी की इजाज़त के ऐसी तस्वीरे नहीं बनाते। सच्चाई जानने के उदेश्य से लड़की का कंप्यूटर चैक किया गया। वहाँ से उसकी चैट हिस्ट्री मिली जहां इस बात का प्रमाण था, कि उसने लड़के से बात की है और वह उसे सारी हकीकत पहले ही बता चुकी है, यहाँ तक की उसके मेल बॉक्स में सेंट आइटम में जाकर वो मेल भी देख ली गई जिसमें उसने मनीष को अर्थात लड़के को अपना साधारण फोटो भेजा था। यह गज़ब भी कम नहीं था उधर यह भी खुलासा हो गया कि मनीष की सगाई रोशनी के साथ होने से दो दिन पहले किसी और लड़की के साथ भी हो चुकी है। थोड़ी देर बस यही सब चला और बात हाथापाई तक पहुँच गई किसी तरह दोनों पक्षों को शांत कराया गया और जूरी से अपना फैसला सुनाने को कहा गया।  नतिजन फैसला यह हुआ कि दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जगह गलत है इसलिए इन दोनों का यह रिश्ता नहीं होना चाहिए।

दोनों को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया और प्रोग्राम ख़त्म हो गया। मगर अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ गया क्या आज के युग में भी रंगरूप पढ़ाई लिखाई और आंतरिक गुणों से ज्यादा महत्व रखता है ? लड़की यदि सुंदर है रूपवती है मगर गुण नाम की कोई चीज़ उसमें नहीं है, तभी क्या ऐसी लड़की को आप महज़ उसकी सुंदरता के बल पर अपने घर की लक्ष्मी बनाना पसंद करेंगे और यदि किसी लड़की के पास रूपरंग नहीं मगर गुणों की खान है तो क्या आप उसे महज़ इसलिए ठुकरा देंगे कि वो सुंदर नहीं है? देखने में अच्छी नहीं है।अगर ऐसा है भी तो इसमें उस लड़की का क्या दोष भगवान ने सभी को बनाया है कोई गोरा है, तो कोई काला मगर जब उसने भेद नहीं किया तो हम-आप भला भेद भाव करने वाले कौन होते है। अहम बात है लड़का लड़की की आपसी सोच का मिलना आपकी और उस परिवार की सोच का मिलना। क्यूंकि शादी सिर्फ दो इंसानो का मिलन नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन भी है। भगवान श्री कृष्ण का रंग भी तो सावला है, उसे तो हम उसके रंगरूप के आधार पर नहीं पूजते, तो फिर इन्सानों में यह भेद भाव क्यूँ? किस लिए ? अफसोस तो इस बात का होता है, कि इस विषय को लेकर भी पिसती बेचारी लड़कियाँ ही हैं, क्यूंकि वो कहते है ना कि अपने देश में

"लड़का खुद भले ही काला भूत ही क्यूँ ना हो 
मगर लड़की उसको हमेशा 
गोरी सुंदर नार नवेली ही चाहिए"

आख़िर ऐसा क्यूँ और कब तक ? कम से कम आज के युग में तो जहां एक ओर लड़कियों को भी यह अधिकार खुलकर मिल गया है, कि अरेंज मैरेज ही क्यूँ ना हो, वह वहाँ भी अपनी पसंद के अनुसार अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकती है। वहीं दूसरी ओर आज भी कुछ परिवार अब भी इस स्तर पर आकर क्यूँ नहीं सोच पाते क्या इतनी मजबूत हैं समाज की यह बेड़ियाँ ,जो अभिभावकों को अपने बच्चों की खुशी तक देखने नहीं देना चाहती ??? मेरा मानना तो यह है, कि रंग सवाला होना किसी के सुंदर न होने का कोई प्रमाण नहीं है। बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जिनका रंग भले ही सावला हो मगर स्वभाव और नैन नक्श इतने सुंदर होते हैं, कि देखते ही बनते हैं। ठीक ऐसा गोरे लोगों के साथ भी होता है, सिर्फ रंग गोरा होना खूबसूरती का प्रमाण नहीं रंग के साथ दिल भी खूबसूरत होना चाहिए। मगर अफसोस कि यह जानते हुए भी कि बाहरी खूबसूरती तो वक्त के साथ एक न एक दिन ढल ही जाएगी मगर आंतरिक सुंदरता कभी नहीं ढलती, फिर भी लोग आज के इस आधुनिक युग में भी दिल को कम और बाहरी खूबसूरती को ज्यादा देखते हैं। 

अब आप की बारी है, अब आप सब जूरी के सदस्य बन जाइए और अपने विचारों से बताइये, कि आप सबकी क्या राय है ? :-)

36 comments:

  1. समाज को सोच बदलने में बहुत लंबा समय लगता ही है

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  2. पाँच लाख प्रतिवर्ष है, पाँच फूट दस इंच ।
    शक्लो-सूरत क्या कहें, दोष रहित खूब टंच ।
    दोष रहित खूब टंच, गुणागर बधू चाहिए ।
    गौर-वर्ण, ग्रेजुएट, नौकरी तभी आइये ।
    झेलू मैं भी दंश, टी सी एस में बिटिया ।
    किन्तु साँवला रंग, खड़ी कर देता खटिया ।।

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  3. समय सबसे बड़ा सुधारक है, पर बड़ा धीरे धीरे अपना काम करता है वह।

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  4. पीढ़ियों से संचित मानसिकता बदलने में कुछ समय ,और प्रयास की आवश्यकता होती है.अल्पशिक्षित और चेतना-क्षीण समाज से एकदम कैसे यह आशा कर सकती हैं?

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  5. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. आमना-सामना ने कोई विषय तो दिया आपको लिखने के वास्ते :-)))
    बाकी ये समाज की जागरूकता है -कब जागे ? कुछ कहना बेकार, कौन सुनता है |
    अच्छी सोच ,अच्छे लेख के लिए ..
    बधाई !

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  7. समाज की कुछ तो बदली है .. कुछ धीरे धीरे बदलेगी .. बढिया प्रस्‍तुति !!

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  8. पल्लवी सी अफ़सोस , सच्चाई तो यही है . गोरी चमड़ी का आकर्षण हमारे देश में आज भी उतना ही मौजूद है जितना अंग्रेजों के ज़माने में हुआ करता था .
    अरेंज्ड मेरिज में मात पिता और लव मेरिज में लड़का --गोरी लड़की से ही आकर्षित होते हैं .
    हालाँकि लड़की के गुणों का बहरी सुन्दरता से कोइ मुकाबला नहीं हो सकता .

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  9. बहुत दुःख होता है जब लडकी के बाह्य रूप को ही परखा जाता है जब कि उसके अन्य गुणों को अनदेखा कर दिया जाता है...लेकिन धीरे धीरे इस में सोच में बदलाव आ रहा है...बहुत सार्थक आलेख..

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  10. सचमुच में चमड़ी का रंग अभी भी इन्सान के अन्य गुण-रंग पर भारी पड़ता है . दुर्भाग्शाली . उम्मीद है मानसिकता बदलेगी .

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  11. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्पिणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  12. जूरी की राय तो निष्पक्ष ही होगी ... धोखा दोनों तरफ से हुआ ... हांलांकि लड़की ने अपनी तरफ से बात स्पष्ट कर दी थी ... इस लिए रोके के 2 लाख वापस करने के साथ ही लड़के वालों पर कुछ और जुर्माना लगाना चाहिए था क्यों की दो दिन पहले ही दूसरी जगह भी सगाई कर चुका था ....

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  13. इस प्रोग्राम के शुरू में ही लिखा आता हैं की ये कहानियों पर आधारित हैं
    जिस एपीसोड की आप बात कर रही हैं उसमे जो लड़की का पिता बना हैं वो और भी कई सीरियल में आता हैं जैसे कुछ तो लोग कहेगे इत्यादि


    पूरा सीरियल हैं सब पात्र हैं इसको उसी तरह ले जैसे आप बालिका बधू , ना आना इस देश लाडो इत्यादि
    ये रियल्टी शो नहीं हैं और वैसे तो रियल्टी शो भी सब स्क्रिप्ट के साथ ही होते हैं

    दिखायी हुई समस्या सब आम हैं और लोग देख कर भूल जाते हैं .
    सब अपने अन्दर बदलाव लाये तभी आयेगा

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  14. "लड़का खुद भले ही काला भूत ही क्यूँ ना हो
    मगर लड़की उसको हमेशा
    गोरी सुंदर नार नवेली ही चाहिए" chayan ke ghere mein ladki hi hoti hai , ladki kee pasand gaun hoti hai . murkh abhivavkon ne isi baat ko jivandaan diya hai

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  15. मेरे ख्याल से इस गोरे-काले के भेद को बदलना नामुमकिन सा है क्योंकि यह विश्वभर में व्याप्त है..
    इसका प्रभाव हर जगह और हर समाज में पड़ा है और ऐसे सोच के दुषपरिणाम हर जगह देखने को मिलते हैं..

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  16. ऐसे कार्यक्रमों से घर का माहौल भी खराब होता है। न जाने कौन लोग और क्यों देखते हैं!

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  17. :):) हो गए कीड़े शांत ? वैसे ती यह प्रोग्राम जैसा कि रचना जी ने कहा कहानियों पर है.पर हमारे समाज में ऐसे किस्से मिल जाते हैं.दुर्भाग्य है. यूँ मुझे नही लगता कि यहाँ परेशानी लड़की की सुंदरता को लेकर थी.वह तो बस मुद्दा बना दिया गया.असली कारण तो पैसा रहा होगा.
    जाने कब बदलेगी मानसिकता.

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  18. main bhi dekhta hoon ye programme... par pata nahi kyon, mujhe laga jaise saare hero - heroin hain.......:)

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  19. samay ke saath sath sab badal jayega

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  20. किसी भी चैनल पर प्रसारित होने वाले अधिकाँश प्रोग्राम महज मनोरंजन हेतु परोसे जाते हैं, मुश्किल तब पैदा होती जब हम इन्हें अपने जीवन या फिर अपने घर-परिवार में अप्लाय करने की चेष्ठा करने लगते हैं, बहारहाल ! बहू यदि चाँद का टुकड़ा चाहिये तो जवाई भी तो खाते-पीते घर का चाहिए....हालाँकि कुछ लोगों का कहना है की सामाजिक सोच में बदलाव आ रहें है लेकिन किस दिशा में.................... ? अपने आस-पास की गतिबिधियों पर गौर करें तो समझ में आता है की " आज के इस भौतिक युग में चरित्र पर पैसा हावी है और मन की सुन्दरता मलिन हो चुकी है बाहरी चकाचौंध में.........
    उपरोक्त सार्थक आलेख..हेतु आभार स्वीकार कीजियेगा........

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  21. LADKA jua na khele 1 karod
    daru na piye 1karod
    randibaj na ho 1karod
    aise ladake se bahan beti byahi ja sakati hai.
    basarte di gai janakari sahi ho.
    galat jankari yane KAGAJ KI NAW kab tak chalayenge.
    bas yahi mapdand LADAKI ke liye
    1 ladaki wishwa sundari nahin. 2 ladaki 14 warsha ki nahin. 3 ladaki ke pita ya ristedar ke pas itana dhan nahin ki usake bal par sab kucha kharidkar awagun ko bachaya ja sake.
    4 aur wah kisi mahan pad par karyarat nahin.

    ISHWAR NE AAPAKO JAISA BANAYA HAI AAP APANI YOGYATA
    USAKE SATH SIDHDHHA KAREN.AAJ TAK MAINE KABHI AISA NAHIN PAYA KI AALU KA BORA KHULA AUR AALU KAHIN BACHA GAYA .BAS HUM USAKA SHI MOL NAHIN LAGA PATE .
    BADE HI GARV KE SATH SAMASTA KAMI BESI KI JANKARI KE SATH RISTA TAY KAREN SADAIW KAMAYABI MILATI HAI.
    AAPAKE SUNDAR SARTHAK LEKH KE LIYE MERA ABHIWADAN SWIKAR KAREN.

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  22. इस तरह के कार्यक्रम देख कर न सिर्फ समय खराब होता है बल्कि सोच भी. :)

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  23. tv program bhi samaj me ho rahi ghatnaon ke prtiroop hote hain .......han thodi si kalpnikata ho sakati hai ....dheere dheere sb kuchh badal jayaega bs prateeksha kijiye ...achhe post ke liye badhai.

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  24. mahendra parihar22 March 2012 at 23:53

    likhne k liye aapke pass vishay na ho aisa ho hi nahin sakta,jahana se logo ki soch khatm hoti wahan se aapki soch shuru hoti hai

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  25. आपके विचार परिपक्व और उचित हैं। मैं इनका समर्थन करता हूं।

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  26. बेहरीन विषय, सटीक विवेचना

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  27. इस तरह के कार्यक्रम मात्र समय की बर्बादी है .

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  28. सही और सटीक विचारणीय पोस्ट..

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  29. यह प्रोग्राम तो नहीं देखा पर इसके विषय में अखबारों में पढ़ा था... कुछ विवाद हो गया था इस प्रोग्राम में आई एक लड़की ने कहा कि उसे बताया गया कि ये एक सीरियल है....और उसने उसमे काम किया...जबकि जब यह प्रोग्राम प्रसारित हुआ तो इसे रियलिटी शो का नाम दे दिया गया.

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  30. ओह हो...ऐसा क्या मैंने भी यह प्रोग्राम पहली बार ही देखा था इसलिए इसमें उठाये गए विषय के बारे मेन लिखे बिना नहीं रह सकी,फिलहाल मेरी पोस्ट पर आने के लिए आभार ...

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  31. गुणों पर भारी हैं रंग रूप..... वैसे इन कार्यक्रमों का उद्देश्य तो बस टीआरपी बटोरना है...

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  32. बढ़िया , इसीलिए मैंने दो तीन सालों टी वी देखना ही बंद कर दिया है ..

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  33. ऐसे कार्यक्रमों से तो कुछ होने वाला नहीं सिवाए टी आर पी बढ़ने के ... लेकिन ये विषय संजीदा है ...
    विवाहिक रिश्तों में ये किसी भी रिश्ते में सबसे पहली बात तो होती है इमानदारी ... आपसी विश्वास ... और जहां पैसा हावी हो जाता है चाहे किसी भी तरह से हो तो उसमें इमानदारी तो रह नहीं पाती ...

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  34. सहमत हूँ..सांवले रंग की लड़कियां भी बेहद खूबसूरत होती हैं, ये तो मैं मानता हूँ और जानता भी हूँ...वैसे हाल फ़िलहाल के कुछ एक्सपीरिएंस से मैं तो एकदम ये मानता हूँ की आजतक बेतुकी बातों के चक्कर में लोग पड़े हुए हैं...और बेतुके रस्मो-रिवाज के चक्कर में लोग बंधे हैं...
    मैं टी.वी तो बिलकुल भी नहीं देखता...आपके द्वारा ही ऐसे प्रोग्राम के बारे में जानकारी मिलती रहती है!

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  35. सीरियल देखने की अपेक्षा आपका ब्लॉग पढ़ना अधिक जानकारी देता है :)) टीवी सीरियलों में जो देखा है उससे नहीं लगता कि ये इस स्वतंत्र देश को कोई दिशा देने का कार्य कर रहे हैं. ये सड़ी-गली परंपराओं को ढोते नज़र आते हैं. कुछ लोग इसे मनोरंजन मानते हैं जो अधिकतर हज़म नहीं होता.

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