सबसे पहले तो मेरी ओर से आप सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
लो जी फिर आ गया एक और दिवस यानी महिला दिवस वैसे तो फरवरी का पूरा महिना कोई न कोई दिवस मनाने में ही निकल जाता है। शुक्र है मार्च में भी एक दिवस आता है, जो हर वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। वैसे देखा जाये तो वक्त बदला युग बदले और उसके साथ बहुत कुछ बदल गया। क्यूंकि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है और यदि बात की जाये महिलाओं की तो बात ही क्या, आख़िर जब एक नारी देश चला सकती है। तो क्या कुछ नहीं कर सकती। आज महिलाओं ने भी बहुत हर क्षेत्र में बहुत तरक्की कर ली है और खुद को साबित कर दिखाया है,कि हम किसी से कम नहीं, फिर चाहे वो इंदिरा गांधी हो या आज हमारे देश की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ देश और समाज की उन्नति के लिए महिलाओं का योगदान किसी भी नज़रिये कम रहा हो। जिसका प्रमाण है यह चहरे। जिनके योगदान को किसी भी नज़रिये से अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन यह कहना भी शायद गलत नहीं होगा, कि हमारे समाज में ऐसे चेहरों की भी कोई कमी नहीं है। जो दिन रात समाज सेवा करते हैं, मगर कभी सामने नहीं आ पाते।
लेकिन यदि इस विषय में गौर से सोचा जाये तो क्या हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति में कोई खासा परिवर्तन हुआ है? इस बात को लेकर कभी मन कहता है हाँ, तो दूजे ही पल मन कहता है ना। देखा जाये तो यह परिवर्तन आया तो है, मगर वर्गों में बटकर रह गया। जैसे निम्न वर्ग की बात की जाये तो वहाँ महिलाओं की स्थिति आज भी वैसी की वैसी ही है जैसे पहले हुआ करती थी। बल्कि कई इलाके तो ऐसे हैं, जहां आज भी वहाँ रहने वाली महिलाओं की स्थिति बद से भी बदतर है। जहां प्रगति या जागरूकता किस चिड़िया का नाम है, लोग आज भी नहीं जानते। जहां जीवन यापन हेतु आज भी महिलाओं का शोषण किया जाता है। जहां भूख और गरीबी के चलते देह व्यापार जैसी समस्यायें मुंह बाये खड़ी रहती है। जहां आज भी यह सोच है,कि महिला पुरुष की अर्धांगिनी नहीं उसके पैर की जूती है। जिसे वह जब चाहे, जैसे चाहे उसकी मर्ज़ी जाने बिना उसका इस्तेमाल कर सकता है। जहां कुछ मुट्ठी भर लोग अपने आपको दबंग दिखने के लिए महिलों के साथ दुरव्यवहार किया करते हैं। आख़िर क्या कारण हो सकता है ऐसी संक्रीर्ण मानसिकता ? भूख, गरीबी, लाचारी या फिर शिक्षा का अभाव ?
अब यदि बात की जाये दूसरे वर्ग की तो वह है हमारा मध्यम वर्ग जहां महिलाओं की उन्नति काफी हद तक हुई है, इसमें कोई दो राय नहीं है। तब ही अधिकांश जगहों पर और लगभग सभी मध्यम वर्गीय परिवारों में महिलाओं को घर से बाहर निकलकर नौकरी करते देखा जा सकता है। मगर वहाँ भी दहेज प्रथा जैसी कुप्रथाओं से महिलाओं को आज़ादी अब तक नहीं मिल पायी है। पढ़ी लिखी कामकाजी बेटी के होते हुए भी उसके परिवार वालों को विवाह के वक्त दहेज देना ही पड़ता है। इतना ही नहीं काम के दौरान भी उन महिलाओं को बहुत कुछ सुनना और सहना पड़ता है। क्यूंकि यदि महिला सीधी सादी है, किन्तु एक ही जगह पुरूषों के साथ काम करने की वजह से उसे अपनी सहकर्मी पुरुषों के साथ काम करने के लिए, मित्रवत सम्बन्ध बनाने के लिए भी बहुत सोच समझ कर कदम उठाना होता है। क्यूंकि यदि वह पुरूषों की तरह व्यवहार करे तो लोग उसे बोल्ड, बिंदास और आधुनिक या फिर चरित्रहीन होने का खिताब दे डालते है और यदि वह अपने सहकर्मियों के साथ स्त्रियोचित व्यवहार करे तो भी उसे कमजोर, ढोंगी या नाटकीय करार दे दिया जाता है अर्थात दोनों ही सूरतों में महिलाओं को ही लोग गलत ठहराते है। तो क्या यह है उन्नति की परिभाषा ?
अब यदि हम बात करें तीसरे वर्ग की तो अब बारी है उच्च वर्ग की तो वहाँ महिलाएं जो भी करती है, तो वह केवल खुद के लिए करती हैं। उनके द्वारा किए गए किसी भी कार्य का संबंध न तो समाज से होता है और न ही उनके परिवार से, वास्तविकता यही होती है, कि वो कहावत है न "बैठा बनिया क्या करे सैर तराजू तोले"वैसा ही कुछ हाल यह उच्च वर्गीय महिलों का भी है। मैं यह तो नहीं कहती, कि सभी एक से होते हैं। मगर इतना ज़रूर कहना चाहूंगी, कि अधिकांश ऐसा ही होता है। केवल दिखावा....समाज सुधारक के नाम पर जितने भी कार्य यह उच्च वर्ग की महिलों के द्वारा किए जाते है, वह महज़ एक दिखावे से ज्यादा और कुछ नहीं होते ताकि उनकी सोसाइटी में उनका रुतबा बना रहे। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए जहां तक मेरी सोच और समझ कहती है इसे तो परिवर्तन या प्रगति का नाम नहीं दिया जा सकता। तो आख़िर बदलाव आया कहाँ ? और क्या बदला जो जैसा तब था,वह आज भी तो वैसा ही है कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि आज से अच्छी महिलाओं की स्थिति तो रामायण और महाभारत के जमाने में हुआ करती थी शायद, जहां शिक्षा के नाम पर बालक एवं बालिकाओं का सही और एक सी शिक्षा प्रदान की जाती थी। साथ ही उनके अपने कुछ अधिकार भी हुआ करते थे। जो सर्वमान्य हुआ करते थे। आज के युग में स्त्री के पास अधिकार तो बहुत हैं। मगर उसका पालन कर पाने की क्षमता बहुत ही कम महिलाओं में देखने को मिलती है। या यूं कहिए साधारण तौर पर घर की महिलाओं को उनके उस अधिकार का पालन करने ही नहीं दिया जाता। कभी समाज के नाम पर तो कभी के परिवार की इज्ज़त के नाम पर उनके पैरों में बेड़ियाँ डाल दी जाती है।
अंततः तीनों वर्गों को ध्यान में रखते हुए कहा जाये तो यही निष्कर्ष निकलता है कि महिलाओं की उन्नति तो हुई है मगर बहुत कम, अभी भी बहुत कुछ होना और बहुत कुछ पाना बाकी है। जिसके लिए बहुत सारे महत्वपूर्ण प्रयास जो हो भी रहे हैं, उनका जारी रहना बहुत ज़रूरी है। जैसे सबसे पहला और महत्वपूर्ण प्रयास जो कि मेरी नज़र में है वह है शिक्षा, क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो लोगों की सोच में कुछ हद तक परिवर्तन ला सकता है। दूसरा भूर्ण हत्या को रोक कर बेटी बचाओ अभियान का समर्थन, और तीसरा दहेज प्रथा का खात्मा क्यूंकि जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी, देश नहीं बदलेगा और देश को बदलने के लिए शुरुवात हमको हमारे घरों से करनी होगी, इसलिए अपनी सोच को बदलिये। स्त्री का सम्मान कीजिये क्यूंकि यदि एक स्त्री किसी घर को स्वर्ग बना सकती है, तो वही स्त्री उसी घर को नरक भी बना सकती है।इसलिए अपनी सोच में बदलाव लाइये यदि पुरूषों से वंश चलता है तो उसके वंश को जन्म भी एक स्त्री ही देती है, जब वही नहीं होगी तो वंश आगे बढ़ेगा कैसे ? यदि बेटा घर का कुलदीपक है तो बेटी भी घर की इज्ज़त है यदि इज्ज़त ही नहीं तो दीपक का क्या लाभ???? ज़रा सोचिए क्यूंकि जब तक आप अपनी सोच नहीं बदलेंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता। जय हिन्द .....
सार्थक विचार ....सोच बदले तो सब बदले...... शुभकामनायें
ReplyDeleteसोच का ही तो सारा खेल है ..
ReplyDeleteसोच पूरी तरह बदलने में अभी थोडा वक्त और लगेगा ।
ReplyDeleteमहिला दिवस पर सार्थक चिंतन ।
आज होली भी है ।
होली की अनंत शुभकामनायें पल्लवी जी ।
सार्थक चिंतन बहुत सुंदर प्रस्तुति,
ReplyDeleteहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि
...रंग रंगीली होली आई,
बहुत होना अभी शेष है, महिला दिवस की बधाईयाँ..
ReplyDelete"बैठा बनिया क्या करे सैर तराजू तोले"
ReplyDeleteआपकी निराली और सार्थक सोच के लिए आभार.
काश! महिलाओं का इतना सम्मान और परिवार-समाज में स्थान
हो कि हर दिवस ही महिला दिवस बन जाए.
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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ReplyDeleteआदरणीया पल्लवी जी,
विचारणीय विषय उठाया आपने
बहरहाल , महिला दिवस और होली पर भी मेरी ओर से मंगलकामनाएं स्वीकार करें
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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अच्छी पोस्ट!
ReplyDeleteमहिला दिवस की बधाईयाँ..
होली मुबारक!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति| महिला दिवस की बधाईयाँ|
ReplyDeletesoch badalne ka intzaaar karna hoga.......... par kab tak!!
ReplyDeletebehtareen.. yatharthparak aalekh!!
holi ki badhai..
तथ्यापूरक लेख , वास्तविक रचना , स्त्री की दशा को उजागर करती शाशाक्त प्रस्तुति दी है आपने बधाई
ReplyDeleteमहिलाओं की प्रगति पुरुष के सापेक्ष ही मापी जाती है। महिलाओं का जो थोड़ा सशक्तिकरण हुआ है,उसमें भी पुरुषों का योगदान है। पुरूषों को और अधिक प्रोत्साहित किए जाने की ज़रूरत है।
ReplyDeleteबढ़िया आलेख।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे की महिलाओं की उन्नति कम हुयी है पर अगर कारण खोजेंगी तो मूल में स्त्री ही ज्यादा जिम्मेवार है इसके लिए .. ऐसा नहीं है की पुरुष नहीं है ... अपर अगर स्त्री स्त्री का सम्मान करे तो आईटी व्यवस्था में तेज़ी से बदलाव संभव है ...
ReplyDeleteआपको होली की शुभ कामनाएं ...
@आज के युग में स्त्री के पास अधिकार तो बहुत हैं। मगर उसका पालन कर पाने की क्षमता बहुत ही कम महिलाओं में देखने को मिलती है। या यूं कहिए साधारण तौर पर घर की महिलाओं को उनके उस अधिकार का पालन करने ही नहीं दिया जाता। कभी समाज के नाम पर तो कभी के परिवार की इज्जत के नाम पर उनके पैरों में बेड़ियाँ डाल दी जाती है।
ReplyDeleteआपके विचारों से सहमत हूं।
sunder .....sahi kaha aapne waqt badal gaya ....par nari ki wah sthiti nahi badli . aapki har baat se sahamat hoon mai..........ek simit varg tak hi tarakki hai baki bahut kuch badalna baki hai .
ReplyDeletebadhai .....abhar is post ke liye .
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपके विचारों से सहमत हूँ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति,
ReplyDeleteपल्लवी जी,बहुत दिनों से मेरे पोस्ट पर नही आई,...
जब कि मै आपका नियमित पाठक हूँ,...आइये
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteभारत सबसे अधिक शिक्षा दर केरल में है और वहाँ मातृप्रधान समाज है. खानदान पत्नी के नाम से चलता है और संपत्ति पत्नी के नाम में होती है. लेकिन वहाँ भी पति का थप्पड़ पत्नी की ताक में रहता है. यह पुरुष श्रेष्ठता वाले समाज की विकृति ही है. सुंदर आलेख.
ReplyDeleteOnly hardly ever will machines fail to pay even the minimum out over the course 우리카지노 of several pulls
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