कल समाचार पत्र में एक खबर देखी थी चितौड़ के विषय में आपने भी देखी हो शायद, देखी इसलिए कहा क्यूंकि वहाँ एक वीडियो था जिसमें एक गाइड के द्वारा चितौड़ के किले का इतिहास बताया जा रहा था। मेवाड़ की पूर्व राजधानी चितौड़ आज भी अपने दामन में इतिहास की अमर कहानी समेटे हुए सैलानियों को अपनी और आकर्षित कर रहा है। वैसे तो वह सम्पूर्ण जानकारी या यूं कहिए कि वहाँ उस गाइड के द्वारा दी गई जानकारी सभी ने पहले स्कूल में पढ़ी है लेकिन उस गाइड ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से वहाँ के गौरवपूर्ण इतिहास को लोगों के सामने रखा। सच बहुत ही गौरवशाली रहा है हमारा इतिहास, जिसे पढ़कर देख सुनकर सर गर्व से ऊंचा हो जाता है, कि हम उस देश के वासी हैं जहां जगह-जगह का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उस वीडियो का लिंक नीचे दे रही हूँ।
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=-pTrmsJoOys
लेकिन तब भी, उस वीडियो को देखने के बाद दो बातें ज़हन में घूमती रही, कि आखिर क्यूँ हमारे यहाँ हमारी सरकार हमारे इस गौरवपूर्ण एतिहासिक इमारतों को विदेशों की तरह सजह कर नहीं रख पाती। क्यूँ विदेशों में जाने अंजाने खंडहर भी पर्यटकों के अहम आकर्षण का कारण बने रहते हैं और क्यूँ हमारे यहाँ जाने पहचाने स्थल भी खंडर में तब्दील होते जा रहे हैं। जैसे मानो उस खंडर होती इमारतों की दीवारें राहगीरों से कह रही हो, कि आओ देशवासियों खत्म होने से पहले एक नज़र देख लो हमें और जानलो हमारा वह सम्मान जनक इतिहास जो अब थोड़े ही दिनों का मेहमान हो चला है। जो अब नजर आयेगा शायद केवल बच्चों की किताबों के पन्नो पर, इससे पहले कि ख़त्म हो जाये हमारा अस्तित्व, एक बार जान लो हमें, पहचान लो हमें।
दूसरी बात जब उस गाइड ने चितौड़ का इतिहास बताते हुए, वहाँ हुए तीन जौहर (एक तरह का सामूहिक आत्मदाह) की कहानी सुनाई तो सच में मेरी आंखे नम हो गई थी। सदियों से हर महायुद्ध का कारण स्त्री ही क्यूँ रही है। बस यही सवाल घूमता रहा मेरे अंदर क्यूँ हमेशा हर वक्त चाहे इतिहास हो या वर्तमान, स्त्री को ही दोषी दिखाता आया है यह समाज। क्यूँ ? महाभारत और रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथ भी गवाह हैं इस बात के और चितौड़ में रानियों के द्वारा किए हुये जौहर भी, कि हर महायुद्ध के पीछे कारण रही है केवल स्त्री और खासकर यहाँ जब हम चितौड़ की बात कर रहे हैं तो वहाँ तीन बार मुगल शासकों के हमलों के कारण वहाँ की रानियों को मुग़ल शासकों की गन्दी नज़र से खुद को बचाने के लिए करना पड़े वो जौहर।
वह स्थान जहां रानी पद्मिनी ने लगया था अपना जौहर |
पहला जौहर जब अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को हासिल करने के लिए आक्रमण किया तब रानी पद्मिनी ने जौहर जलाया, दूसरा जौहर जब गुजरात के बहादुर शाह ने आक्रमण किया तब राणा सांगा की रानी कर्णावती ने खुद को बचाने के लिए जौहर जलाया वो भी उन्हें अपने एक साल के बच्चे को छोड़कर जलना था, तब उन्होंने अपने एक साल के बेटे उदय सिंह को अपनी एक दायी (जिसका नाम था पन्ना दायी नाम सुना होगा आप सभी ने उनका) उनको को दे दिया, उस के बाद रानी खुद तो जल गई मगर उस दायी ने अपनी वफादारी निभाते हुए रानी के उस बेटे को एक आम के टोकरे में रखकर दूर भिजवा दिया और उस वक्त वहाँ के ही एक गद्दार सेनापति बनवीर सिंह के मन में आया कि क्यूँ न राजकुमार को भी ख़त्म कर मैं ही यहाँ का राजा बन जाऊं तब उस पन्ना दायी ने राजकुमार को बचाने की खातिर वहाँ अपने बेटे चंदन सिंह को खड़ा कर दिया और तब बनवीर सिंह ने उसे राजकुमार समझ कर उसके टुकड़े कर दिये। बहुत बड़ा दिल चाहिए ऐसी वफादारी के लिए भी, ज़रा सोचिए केवल उस राजकुमार को बचाने के लिए एक माँ ने स्वयं अपने बेटे को कटवा दिया। तब कहीं जाकर उस राजकुमार के रूप में हमें मिले महाराजा उदय सिंह जैसे राजा जिन्होंने आज के उदयपुर की स्थापना की । फिर तीसरा जौहर अकबर के आक्रमण के समय जलाया गया।
आज लोग राजाओं को जानते हैं मगर इन वीरांगनाओं के बारे में कितनों को पता है ? शायद इसलिए चितौड़ का इतिहास खींचता है अपनी ओर, क्यूंकि चितौड़ के किले ने अपने आँगन में यह जलते हुए जौहर तीन बार देखे हैं मगर सवाल यह उठता है कब तक दूसरे की करनी का फल भुगतती रहेगी स्त्रियाँ यह तो इतिहास की बात थी। मगर आज तो उसे भी बुरा हाल है न जाने क्या चाहते हैं लोग, जो आज की तारीख में हमारे ही देश में सुरक्षित नहीं है स्त्रियाँ, इस बात का सबूत है दिनों दिन बढ़ती स्त्रियॉं के प्रति घटती घटनाएँ, जहां अब जरा भी महफूज़ नहीं है स्त्रियाँ। यहाँ तक कि छोटी-छोटी लड़कियां भी नहीं, कब कहाँ किस के साथ क्या घट जाये आज कल कोई भरोसा नहीं, एक तरफ भूर्ण हत्या जैसे मामलों में बढ़ता इज़ाफ़ा तो दूसरी तरफ आए दिन होता बलात्कार, छेड़छाड़, बसों में होती बदसलूकी, न जाने क्या-क्या। आखिर कहाँ जाएँ और क्या करें स्त्रियाँ, क्या आज के इतने आधुनिक दौर में भी पुरुषों की गंदी नज़र से खुद को बचाने के लिए जौहर लगाना होगा स्त्रियॉं को ?आखिर क्यूँ और कब तक ......
स्त्रियॉं को हमेशा ही शोषित होना पड़ा है .... हमेशा से पृरुष का वर्चस्व रहा है ... सार्थक मुद्दा उठाती अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सार्थक गंभीर आलेख ....!प्रभावी ढंग से कही आपने अपनी बात ...!!सोचने पर आमादा कर रही है ...!!
ReplyDeleteस्त्रियों का शोषण होता ही रहा हमेशा.पर अब वक्त जोहर का नहीं डट कर सामना करने का है.मुंह तोड़ जबाब देने का है.
ReplyDeleteस्थितियां सदैव विकट ही रही हैं .... और आज भी हैं...
ReplyDeleteसभ्यताओं के आधुनिकरण के बावजूद हालात में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं आया ...
ReplyDeleteसार्थक चिंतन !
चिन्तनीय स्थिति है। जब किसी वाह्य आक्रमणकारी का भय नहीं तो भी स्त्रियाँ क्यों असुरक्षित रहें?
ReplyDeleteस्त्रियों का शाश्वत सत्य- रहने को घर नहीं है, सारा जहाँ हमारा ... अपने पैरों पर खड़े हैं तो लोगों की लोलुप दृष्टि ... इस विषय पर कुछ कहना सुनना समय बिताने का मुहीम है - बस
ReplyDeleteachha lekh
ReplyDeleteअक्रान्ताओ से बचने के लिए राजपूतानियो का आन के लिए जोहर व्रत का महिमा मंडन होता रहा है जो की हमारी कमजोरी का प्रतीक है . जहाँ तक मुझे याद है उस सेनापति का नाम बनवीर था और जिस राजकुमार को पन्ना ने बचाया था वो कुंवर उदय सिंह थे , महाराणा प्रताप के पिताश्री. एक बार और चेक कर लीजियेगा .
ReplyDeleteबहुत सार्थक गंभीर आलेख
ReplyDeleteसार्थक गंभीर विषय पर बहुत अच्छी प्रस्तुति,....
ReplyDeleteRECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
आशीष जी आभार, आप की जानकारी सही है, मैंने सुधार कर दिया है।
ReplyDeleteमुग़लों के ज़माने में ऐसे अत्याचार तो होते ही थे . जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला हाल था .
ReplyDeleteमहिलाएं असुरक्षित तो अब भी हैं . लेकिन आधुनिक नारी में आत्म विश्वास भी है .
आपका कहना भी गलत नहीं है डॉ साहब मगर मुझे तो ऐसा लगता है जितनी तेज़ी से स्त्रियों में आत्म निर्भरता और आत्म विश्वास बढ़ा है उतनी ही तेज़ी से स्त्रियों के प्रति हो रहे आपराधों में भी वृद्धि हुई है।
ReplyDeleteबहुत गंभीर विषय है और देश को इस पर गंभीरता से विचार करना ही चाहिए. इस पीड़ा का सबसे बड़ा सत्य ये है की इस देश में अब चरित्र निर्माण नहीं होता और जब चरित्र ही नहीं होगा तो कैसे स्त्रियों को सम्मान होगा.
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण विषय पर आपने बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई है!...सुदर प्रस्तुति, आभार!
ReplyDeleteस्थिति सचमुच चिंतनीय है।
ReplyDeleteऐसा लगता है प्राचीन युग से लेकर आज तक स्त्रियों के प्रति पुरुषों की सोच यथावत बनी हुई है। फिर भी अब स्त्रियों के आत्मबल में वृद्धि हो रही है।
महत्वपूर्ण विषय पर आपने बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई है!
ReplyDeleteस्थिति सचमुच चिंतनीय है।
.......सुदर प्रस्तुति, आभार!.....
स्त्रिओं का सम्मान आज कल चिंता का विषय है. सच्चाई से मुँह मोडने से सच्चाई नहीं बदलती. आपकी चिंता आज हर स्त्री की चिंता है.
ReplyDeleteआपने महत्वपूर्ण विषय पर विचार रखे और गंभीर चिंतन के लिये जानकारी दी.
आभार.
तब से अब तक मुझे तो कोई बदलाव नहीं दिखता....ऊपरी तौर पर फर्क आया है......भीतर से इंसानी फितरत अब भी वही है...नारियाँ वहीँ की वहीँ है.......
ReplyDeleteसादर
अनु
कुछ तो बदलाव आया है पर पूर्ण रुप से स्त्रियां आज भी सुरक्षित नहीं है..विचा्रणीय गम्भीर आलेख....
ReplyDeleteबहुत ही विचारणीय आलेख....ऊपरी बदलाव ज़रूर आया है, लेकिन अधिकाँश स्त्रियों की दशा आज भी वही है...हमें समाज की सोच बदलने का प्रयास करना होगा...
ReplyDeleteस्त्रियों की असुरक्षा दिन ब दिन बढती जा रही है. कोई हल नहीं सूझता. जो स्त्रियाँ इतिहास के पन्नों में समा गई और जिनकी जौहर गाथा हम सूना करते हैं वो तो गिनती की हैं. लेकिन जिसको कोई नहीं जान पाया ऐसी हज़ारों स्त्रियाँ समाज के इस सोच के कारण बलि चढ गई और जिसका कही कोई जिक्र नहीं आ पता. अगर आ भी जाए तो क्या. हर हाल में ये दंश स्त्री ही झेलती है और सवाल मन में उठते हैं कि आखिर कब तक? जवाब नदारद... हर युग कि तरह. विचारनीये आलेख, बधाई.
ReplyDeleteas usual nice pallavi..... keep it up..
ReplyDeleteagar kabhi fursat mile to aap mere blog par jarur aana..
http://bhukjonhi.blogspot.in/
ऐतिहासिक तथ्यों के साथ आज के सन्दर्भ
ReplyDeleteआपने उपेक्षित हो रहे खंडहरों के भावों को भी शब्द दिये हैं यह अपनी धरोहर के प्रति उत्कट प्रेम को दर्शता है. विचारणीय आलेख.
ReplyDeleteहमारे देश की ये ऐतिहासिक धरोहरें अनेक गाथाएं अपने में समाहित किए हुए हैं पर पनी अज्ञानता और दुर्बुद्धि के कारण हम इनका विनाश करने पर तुले हुए हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी चित्रों के साथ आपने एक काल के इतिहास को साकार कर दिया।
कब कहाँ किस के साथ क्या घट जाये आज कल कोई भरोसा नहीं....ples visit my blogs www.sriramroy.blogspot.in
ReplyDeleteकिसी देश की रानी होने के बाद आक्रांता के हाथों अपमानित होने का भय, पराजय के बाद दीन-हीन स्थिति में पड़ने का भय, सती प्रथा के महिमामंडित होने संबंधी कथाएँ, ये सभी कारण हैं सती प्रथा के पीछे. मैंने सुना है जम्मू में वहाँ की ग़रीब हिंदू औरतें प्रभावशाली लोगों द्वारा पति को मारे जाने और अपमानित होने के डर से सती होती रही हैं. चूँकी वे ग़रीब थीं अतः उनकी देहुरियाँ तो बनी हैं लेकिन उनका कोई महिमा मंडन नहीं हुआ है.
ReplyDeleteमुख्य बात है कि महिलाओं के लिए ख़तरे बढ़े हैं. कम नहीं हुए हैं.
बहुत ही बढ़िया आलेख दिया है आपने.
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमाँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!
संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी
→ आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
आपका
सवाई सिंह{आगरा }
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteआज की स्थिति सचमुच चिंतनीय है।
ReplyDeleteMY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
those who have heart, their eyes will flow after reading this post.todays mother can do anything for her children upliftment...but we men ?..
ReplyDeleteIs baat pe Bhi gour Karne ki jaroorat hai ki itne gourav Shaali itihaas ko kyon bhulaaya ja raha hai aaj ...
ReplyDeleteSabhi chitr apni gaatha kah rahe hain ...