तुलना एक ऐसा शब्द है जो हर पल हमारे आस पास घूमता हुआ सा दिखाई देता है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ा एक अहम शब्द है तुलना, फिर चाहे वो घर की मामूली से मामूली चीज़ ही क्यूँ ना हो, नए पुराने में तुलना होती है चाहे वो कपड़े हों या बर्तन हो या फिर बाज़ार में रोज़ नए आते समान। खासकर यदि हम मोबाइल फोन की बात करें, तो आजकल लगभग हर घर में यह तुलना दिन रात चला करती है। कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि हर उम्र के व्यक्ति की अपनी जरूरतों और सोच के आधार पर किसी न किसी चीज़ को लेकर अपने दिमाग में कोई न कोई तुलना चलती ही रहती है। यदि बच्चों की बात करें तो लड़कों में फोन और गाड़ियों को लेकर, लड़कियों में फ़ैशन को लेकर, महिलाओं में घर से संबन्धित समान को लेकर, बुज़ुर्गों में जमाने को लेकर...अर्थात हर एक व्यक्ति का दिमाग किसी न किसी चीज़ की किसी अन्य चीज़ से तुलना करने में ही उलझा रहता है। यहाँ तक तो बात समझ में आती है।
लेकिन काम को लेकर तुलना करना क्या ठीक है। क्यूंकि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, इसलिए उस काम को करने वाला व्यक्ति भी उस काम को करने के कारण छोटा या बड़ा नहीं हो जाता। जैसे अपने ही घर का काम करने से कोई काम वाली बाई नहीं बन जाता अर्थात नौकर नहीं कहलाता और आप सब ने भी अभी "कौन बनेगा करोड़ पति" में भी देखा होगा कि अच्छा खासा पढ़ा लिखा इंसान सब्जी बेचने के लिए मजबूर है, या इससे पहले भी एक चाय वाला आया था वो भी अच्छा खासा शिक्षित व्यक्ति था। मगर चूंकि उसके पिता चाय का ठेला लगाया करते थे जिसके चलते उसे अपने दोस्तों के बीच कई बार शर्मिंदगी का एहसास दिलाया गया।
यहाँ मैं कहना चाहूंगी कि कुछ लोग कभी-कभी मजबूरी में विवश होकर काम करते है क्यूंकि यदि वो काम नहीं करेंगे तो उनका जीवन नहीं चलेगा। मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि वह व्यक्ति छोटा हो गया और उस सम्मान का अधिकारी नहीं रहा, जो एक अन्य मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाले व्यक्ति का होता है। ठीक इसी तरह कुछ लोग काम केवल अपना समय व्यतीत करने के लिए करते हैं क्यूंकि उनका घर में मन नहीं लगता खासकर महिलाएं। मैं यह नहीं कहती कि काम करना या नौकरी करना बुरा है बल्कि यह तो बहुत अच्छी बात है हर व्यक्ति को आत्म निर्भर होना चाहिए, खासकर महिलाओं को। न ही मैं ऐसा सोचती हूँ कि नौकरी केवल पैसा कमाने के लिए की जाती है। किसी भी महिला के नौकरी करने के पीछे उसके निजी कारण हो सकते हैं। कोई शौक से करता है, तो कोई मजबूरी में, दूसरा पैसे किसे बुरे लगते हैं, इसलिए शायद कुछ लोग अपने शौक के लिए काम करते हैं क्यूंकि उन्हें वो काम करने में मज़ा आता है और ऐसे लोगों के लिए उस काम के बदले में मिलने वाला पैसा मायने नहीं रखता। क्यूंकि उनको उस काम में मज़ा आता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी है जो केवल अपने अहम को संतुष्ट करने के लिए काम करते हैं। क्या यह सही है ? नहीं....मेरी नज़र में तो यह ज़रा भी सही नहीं है। अपने अहम को संतुष्ट करने के लिए खुद की किसी अन्य व्यक्ति से तुलना करना और महज़ उस तुलना के लिए कोई भी काम करना सिर्फ यह दिखाने के लिए कि हम किसी से काम नहीं और ना ही हम किसी पर निर्भर हैं। खासकर पति पर तो ज़रा भी नहीं, आमतौर पर मैंने यह सोच ज्यादातर महिलाओं में ही देखी है। ना सिर्फ अपने दोस्तों में बल्कि अपने ही परिवार में भी मैं कुछ ऐसी ही सोच वाली महिलाओं को देख रही हूँ, जो सिर्फ इसलिए नौकरी कर रही है क्यूंकि वो खुद को किसी भी स्तर पर कम नहीं दिखाना चाहती। नाम यह की घर में रहकर करें क्या, बोर हो जाते हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि हमें भी हमारे अभिभावकों ने शिक्षा दिलवाई है, तो क्या घर में बैठे रहने के लिए, ऐसे तो हमारी सारी पढ़ाई बर्बाद हो जाएगी इसलिए हम काम करते है।
अब घर में रहने से पढ़ाई लिखाई बर्बाद हो जाती यह बात मेरी समझ के तो बाहर है। लेकिन उनको नौकरी सिर्फ इसलिए करना है क्यूंकि पति देव काम करते हैं तो हम भी करेंगे। हम क्यूँ पीछे रहे और धोंस सहे जबकि पति भले ही धौंस नहीं देते हो, मगर हम मन में यही सोचते हैं जिसके चलते आज कल महिलाए कोई भी छोटे मोटे काम करने को राज़ी है। जिसमें न तो उनकी रुचि है और ना ही उनका मन और यदि कुछ है भी, तो वह है केवल अपने अहम की संतुष्टि उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं, यहाँ तक कि पैसा भी ज्यादा नहीं है और तो और दिन और समय भी ऐसा रहता है जब पति और बच्चे दोनों घर में रहते हैं और ना चाहते हुए भी आपको बाहर काम पर मौजूद रहना पड़ता है। ऐसा काम करने से भला क्या फायदा, उदाहरण के तौर पर किसी भी रेस्टोरेन्ट, होटल या फिर पिज्जा हट में बैरे की नौकरी करना या फिर शॉपिंग मौल में काउंटर पर बैठना इत्यादि....इन सभी कामों में शिफ्ट बदलती है और यह ज्यादातर शनिवार और इतवार को करने होते हैं क्यूंकि सप्ताह अंत के कारण इन दो दिनों में बाज़ार में अत्यधिक भीड़ हुआ करती है। हालांकी यह कोई बुरे काम नहीं है। यहाँ के लगभग आधे से ज्यादा विद्यार्थी यही काम करते हैं जिसे पार्ट टाइम जॉब कहा जाता है। लेकिन मेरे कहने का मतलब यहाँ यह नहीं है कि यह काम करने लायाक नहीं है, इसलिए नहीं करने चाहिए या इन कामों को करने में कोई बुराई है, इसलिए यह काम नहीं करने चाहिए। ना बिलकुल नहीं!!!
बल्कि मेरे कहने का तो केवल इतना मतलब है कि यदि आपकी कोई मजबूरी नहीं है और पैसा कमाना भी आपका मक़सद नहीं है तो काम वो करना चाहिए जिसे करने में आपको मज़ा आए, करने को यह सभी काम भी बुरे नहीं है लेकिन इन कामों को करने में मज़ा शायद ही किसी को आता हो और यूं भी आमतौर पर ऐसे काम ज्यादातर वही लोग करते हैं जिनकी मजबूरी है जिनके लिए काम करना उनका शौक नहीं, उनकी विवशता है क्यूंकि यदि वो काम नहीं करेंगे तो "जी" नहीं सकेंगे। आपने यदि शाहरुख खान की फिल्म "जब तक है जान" देखी होगी तो उसमें भी यही दिखाया गया है कि उसको अपने जीवन यापन के लिए यहाँ लंदन में क्या कुछ नहीं करना पड़ता जब जाकर वो थोड़ा कुछ कमा पाता है। खैर हम यहाँ फिल्म की बात नहीं कर रहे हैं। हम यहाँ बात कर रहे हैं काम को लेकर खुद की तुलना करने की जैसा मैंने उपरोक्त कथन में भी कहा कि यदि आपको पैसे की कमी नहीं है या जरूरत नहीं और आपकी शिक्षा भी अच्छी ख़ासी है तो फिर आपको अपनी रुचि और अपनी डिग्री के आधार पर अपने काम का चयन करना चाहिए ना कि महज़ यह दिखाने के लिए आप किसी पर निर्भर नहीं है फिर चाहे वो आपके परिवार के अन्य सदस्य के साथ-साथ आपके पति ही क्यूँ ना हो आप वो काम करें जिसमें आपकी कोई रुचि नहीं है मेरी नज़र में तो यह केवल अपने अहम को समझाने वाली बात है। इसे ज्यादा और कुछ नहीं इसलिए मैं ऐसे काम करने में दिलचस्पी नहीं रखती।
वरना यहाँ करने को तो मैं भी कुछ भी कर सकती हूँ यहाँ कौन आ रहा है मुझे देखने कि मैं क्या काम करती हूँ क्या नहीं, लेकिन मुझे शुरू से ही नौकरी की चाह नहीं रही कभी, इसलिए मैंने कभी काम करने के विषय में सोचा ही नहीं जबकि यहाँ "वुमन सेंटर" में भी मैं बतौर एक वोलेंटियर के रूप में काम कर सकती हूँ। जहां मुझे लोगों को अर्थात महिलाओं को रोज़मर्रा से जुड़ी आम चीज़ें सिखाना है जैसे इंटरनेट कैसे चलाते हैं ऑनलाइन शॉपिंग कैसे की जाती हैं वगैरा-वगैरा। लेकिन मैंने किया नहीं इसलिए नहीं कि मुझे पैसा नहीं मिलेगा बल्कि इसलिए कि मुझे पैसा कमाने कि चाह ही नहीं है। क्यूंकि मुझे उस काम में रुचि ही नहीं है। वरना देखा जाये तो पैसा तो मुझे ब्लॉग लेखन में भी नहीं मिलता। मगर फिर भी मुझे ब्लॉग लिखना पसंद है और सिर्फ इसलिए मैं लिखती हूँ। तो कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि काम वो करना चाहिए जिसे करने में आपकी रुचि हो न कि वो जो महज़ पैसा कमाने और खुद को आत्मनिर्भर दिखाने के लिए जबरन करना पड़े। काम में तुलना करना ठीक नहीं। इस विषय में मेरी तो यही राय है आप का क्या ख़्याल है ?
बिल्कुल सही बात कही आपने पल्लवी जी ! One should be in love with his job ! तभी वो अपने किसी भी काम के साथ न्याय कर पायेगा !
ReplyDelete~सादर !!!
आपसे सहमति..
ReplyDeleteअपनी रूचि को महत्व देने की इच्छा ही लिखने की ओर ले आई और मैं भी इस में बहुत खुश हूँ :)
ReplyDeleteसार्थक लेख
सहमत हूँ .... बाकी , सारी बातें तो आप स्पष्ट लिख चुकी हैं !!
ReplyDeleteशत प्रतिशत सहमत.
ReplyDeleteआजकल स्त्री पुरुष दोनों के लिए काम करना एक आवश्यकता बन गया है। गृहणी बन कर रहना एक लग्जरी सा है। हालाँकि घर चलाने में एक गृहणी का योगदान भी कम नहीं है।
ReplyDeleteयदि ज़रुरत न हो और अपना वश चले तो हम भी घर बैठकर आराम से रहना चाहेंगे। :)
सही कहा आपने, आपसे सहमत.
ReplyDeleteयदि काम करना घर चलाने की मजबूरी हो तो काम करना चाहिए,,वैसे घर सम्हालना भी सबसे बड़ा योगदान है,,,
ReplyDeleteबहुत उम्दा आलेख लिखा पल्लवी जी ,,,, बधाई।
recent post हमको रखवालो ने लूटा
बेहतर लेखन !!
ReplyDeleteजिसमें आनन्द आये वह कार्य तो बहुत लोग ढूढ़ ही नहीं पाते हैं।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 17-12-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1082 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
जो महिलाएं काम करती हैं उनसे भी इस बारे में पूछा जाए .... काम यदि ऐसा मिल जाए जिसमें रुचि हो और मज़ा आए तो सोने पर सुहागा .... यानि की काम का काम और साथ में धन लाभ भी ...
ReplyDeleteनौकरी करने के लिये एक काबलियत की आवश्यकता होती हैं , विदेशो में भारतीये महिला , काबिल होते हुए भी अपनी क़ाबलियत के अनुसार नौकरी इस लिये नहीं कर पाती हैं क्युकी उनके पति किस वीजा पर वहाँ गये हैं ये उस पर निर्भर होता हैं . यानी एक पत्नी को नौकरी करनी हैं या नहीं ये पति के वीजा पर निर्भर हैं { वहाँ ये स्पाउस के लिये कहा जाता हैं यानी अगर कोई पत्नी पहले आयी हैं और नौकरी कर रही हैं तो ये उसके वीजा पर निर्भर हैं की पति को नौकरी मिलेगी या नहीं } इस लिये वहाँ आप को बहुत सी महिला उन जगह नौकरी करती मिलती हैं जो पार्ट टाइम जॉब होती हैं और कयी बार इललीगल भी
ReplyDeleteआपने सही कहा तुलना करना गलत हैं लेकिन आप ने ये गलत समझा हैं की नौकरी करना केवल पुरुष के अधिकार क्षेत्र मे आता हैं . आप ने लिंग विभाजित वर्गीकरण खुद कर दिया हैं काम का यानी पुरुष का काम और स्त्री का काम . लिंग विभाजन के आधार पर काम का वर्गीकरण करना गलत हैं .
क्या आप कोई कानून बता सकती हैं जहां ये लिखा हो पुरुष और स्त्री बराबर नहीं हैं और काम का आधार लिंग आधारित हैं
नौकरी करना , पैसा कमाना इत्यादि अपनी इच्छा और जरुरत से होता हैं . बराबर तो स्त्री पुरुष हैं ही इस लिये किसी स्त्री को भी बराबर बनने की लालसा नहीं रहती हैं वो महाजा अपने बराबर होने के अधिकार को नौकरी करने में प्रयोग करती हैं .
जो पत्नी बन कर भी नौकरी करती हैं वो अपने घर में आर्थिक सहयोग भी देती हैं .
बस ऐसी ही है जिंदगी ....हम चाहते कुछ है करते कुछ है और होता कुछ है .........आपका लेख पढने के बाद अब मुझे भी लग रहा है की अगर मई अपनी पसंद के हिसाब से ही काम करता तो आज कुछ और होता .............पर क्या करें .जिम्मेदारियां करने नहीं देती ..........जो हम चाहते है ..........और पैसा पैसा पैसा ..............बस यही सबकुछ होता जा रहा है ..........दिन रत काम -------और सिर्फ काम ......बेहतरीन लेख के लिए बधाई
ReplyDeleteप्रत्येक व्यक्ति की अपनी जरुरत और सुविधा के अनुसार कार्य करना चाहिए !
ReplyDeleteदुनिया मे सभी तरह के लोग हैं तो सोच भी तो भिन्न होगी ही …………वैसे काम तभी करना चाहिये जब आपकी रुचि हो या कोई मजबूरी …………अब हम हाउसवाइफ़ हैं तो क्या किसी से कम हैं ये तो सोच की ही बात है बस :)
ReplyDeleteबहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको. बहुत उम्दा आलेख लिखा पल्लवी जी ,,,, बधाई।
ReplyDeleteसार्थक और सारगर्भित आलेख
ReplyDeleteसही कहा आपने...काम अपनी रूचि के अनुसार करना चाहिए..मगर सिर्फ महिला हैं इस खातिर घर में नहीं बैठना चाहिए। घर संभालने के साथ ही समयानुसार कुछ काम जरूर करना चाहिए।
ReplyDeleteआपका आलेख मुझे बेहद एक तरफ़ा और भ्रमित लगा, वो भी इस कदर आप पहले वाक्य में जो बात कहती है उसे अगले वाक्य में खुद गलत साबित कर देती है .. आपका ये लेख मुझे टी वि सीरियल और फिल्मो से प्रेरित लग रहा है . वैसे आपका कहना भी ठीक है आपका ब्लॉग ही है "मेरे अनुभव"
ReplyDeleteनौकरी करना या नहीं करना, समाज की मानसिकता पर निर्भर करता है। पूर्व में कार्यविभाजन था इसलिए कठिनाई नहीं थी लेकिन धीरे धीरे इसीकारण पुरुषों में स्वामीत्व ने घर कर लिया। महिलाओं को दोयम दर्जा मिलने लगा। आज विवाह क्षणभंगुर है, इसलिए महिला को अपने पैर पर खड़े रहना आवश्यक हो गया है।
ReplyDeleteसही और सटीक विषय ।
ReplyDeleteबिलकुल ठीक रश्मि जी आपसे सहमत हूँ मगर बस कुछ भी कर लेना चाहिए मैं इस पक्ष में नहीं हूँ।
ReplyDeleteहो सकता है सोनल जी, कि मेरा यह आलेख भ्रमित हो। लेकिन यह फिल्मों या टीवी सीरियल से प्रभावित या प्रेरित ज़रा भी नहीं है। बाक़ी तो आपने खुद ही लिखा है कि यह "मेरे अनुभव है" तो जैसा मैंने देखा और देख रही हूँ उसके आधार पर मैंने वो लिखा जो मुझे समझ आया। बाक़ी तो अपना-अपना नज़रिया है इसलिए मत भेद स्वाभाविक हैं। :) लेकिन आप मेरे ब्लॉग पर आयीं मुझे अच्छा लगा धन्यवाद...
ReplyDeleteदूजों की कर चाकरी, मत होना बदनाम।
ReplyDeleteभड़कीली छवि देखकर, जग जाता है काम।
सारा दिन हम रहते हैं बिजी फिर भी सब कहते हैं हाउस वाइफ बन जाना हैं इज़ी ...........सराहनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteमहिला के घरेलू कामों को हमारे यहाँ कम महत्तव दिया जाता है बल्कि महत्तव दिया ही नहीं जाता इसीलिए महिलाओं को लगता होगा कि हमें भी कुछ करना चाहिए।वो दूसरो को दिखाने के लिए ही नहीं बल्कि आत्मसंतुष्टि के लिए भी ।हम समाज में रहते हैं दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते है इससे हमें फर्क पड़ना ही है ।हमें चाहिए कि हम गृहणी के काम को भी महत्तव दें ताकि उनमें आपस में एक नकारात्मक तुलना घटें ।वैसे नौकरी करने न करने के पीछे सबके कारण अलग अलग होते है।अब लड़कियाँ पढ़ाई के दौरान ही यह सोचने लगती हैं कि उन्हें आगे क्या करना है।यह अच्छी बात है।
ReplyDeleteआपकी बहुत सी बातों से सहमत हूँ, बहुत सी बातों से असहमत । लिखने जाऊंगी तो पूरा आलेख बन जाएगा। जो टिपण्णी में उचित नहीं लगता कई लोगों को । इसलिए बस हाजिरी लगा रही हूँ ।
ReplyDeleteसार्थक और सारगर्भित आलेख
ReplyDeleteहम सब की जीवन जीने की अपनी चॉइस होती है फिर हम निर्णय लेने के बाद तुलना क्यों करने लगते हैं। यदि हमने चॉइस नहीं की, ईश्वर ने परिस्थितियाँ बनाई तो भी तुलना क्यों करें ईश्वर ने जो हमारे लिए रखा है वो हमारा अपना है हम तुलना न करें, उस सुख के संतोष में रहें। पोस्ट भी अच्छी है और इस पर होने वाली बहस भी। एक निगेटिव टिप्पणी पर आपका रूख मुझे बहुत अच्छा लगा, ऐसे मौके पर असंतुलित होने अथवा नकारात्मक रूप से रियेक्ट करने का खतरा बनता है लेकिन स्वस्थ बहस चाहने वाले किसी निष्पक्ष ब्लागर के लिए यह उचित नहीं होता और आपने भी ब्लागर धर्म पूरी तरह से निभाया।
ReplyDeletevolunteering का idea अच्छा है, इससे जीवन का सामाजिक पक्ष भी संतुलित किया जा सकता है और किसी के काम आने का आत्मसंतोष तो अतुलनीय होगा ही, जो आमतौर पर पैसा कमाने की व्यस्तता में भुला ही दिया जाता है। बाकी अगर एक ग्रहणी के सामाजिक उत्तरदायित्वों की चर्चा भी कर दी होती तो आपका लेख और भी बेहतर लगता .
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