आजकल हमारे समाज में लोगों के अंदर संवेदनहीनता दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है जिसकी पराकाष्ठा है यह दिल्ली में हुआ उस मासूम सी लड़की का सामूहिक बलात्कार, आज शायद सभी के पास एक ही विषय हो लिखने के लिए और वह है दिल्ली की बस में हुआ एक लड़की का सामूहिक बलात्कार, आज हर जगह यही खबर है। छोटे से छोटे समाचार पत्र पत्रिकाओं से लेकर बीबीसी तक, सुबह-सुबह यह सब पढ़कर मन खिन्न हो जाता है कभी-कभी कि आखिर कहाँ जा रहे हैं हम...क्या यही है एक प्रगतिशील देश जहां लोगों के मन से समवेदनायें लगभग मर चुकी है। ऐसा लगता है जैसे लोग संवेदना नाम के शब्द को बिलकुल भूल ही गए हैं और रह गया है केवल एक मात्र शब्द 'वासना' जिसके चलते यह बलात्कार जैसे गंभीर मामले भी बहुत ही आम हो गये है। महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं है ना महानगरो में और न ही गाँव कस्बों में, ना रास्ते चलते, न घरों में, फिर क्या दिल्ली, क्या मुंबई, कहीं आपसी रिश्तों को ही तार-तार किया जा रहा है, तो कहीं घरेलू हिंसा के नाम पर स्त्रियॉं को प्रताड़ित किया जा रहा है। कहीं लगातार भूर्ण हत्यायों में होते हिजाफ़े सामने आ रहे हैं, तो कहीं अपने ही घर की स्त्री को लोग वेश्यावृति की आग में झौंक रहे हैं। यहाँ तक की महिलाओं का रास्ते पर शांति से चलना भी मोहाल हो गया है। क्यूंकि कानून तो हैं मगर इस मामलों में कभी कोई कार्यवाही होती ही नहीं, क्या यही है एक प्रगति की और अग्रसर होते देश की छवि? जहां लोग यह कहते नहीं थकते थे कि "मेरा भारत महान"। आज कहाँ खो गयी है इस महान देश की महानता जहां कभी नारी को देवी माना जाता था।
इन सब सवालों के जवाब शायद आज हम में से किसी के पास नहीं, लेकिन क्या इस समस्या का कोई हल नहीं ? आखिर इस सबके लिए कौन जिम्मेदार हैं ?? कहीं ना कहीं शायद हम ही क्यूंकि देखा जाये तो हर अभिभावक अपने बच्चे को अपनी ओर से अच्छे ही संस्कार देना चाहते हैं। लेकिन समाज में फैले कुछ असामाजिक तत्व कुछ लोगों पर ऐसा असर करते हैं कि वह लोग अपनी संवेदनाओं और संस्कारों को ताक पर रखकर अपनी दिशा ही भटक जाते हैं और ऐसा कुकर्म कर बैठते है। अब सवाल यह उठता है कि इस समस्या का हल क्या है सरकार से इन मामलों में किसी भी तरह कि कोई उम्मीद रखना लगभग व्यर्थ समय गंवाने जैसा क्रम बनता जा रहा है। क्यूंकि सरकार ज्यादा से ज्यादा क्या करेगी, बस इतना ही कि इन मामलों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का आश्वासन देकर पीड़ित को उसके दर्द के साथ छोड़ देगी मरने के लिए, इससे ज्यादा और कुछ नहीं होना है और यदि हुआ भी तो कोई एक नया कानून सामने आयेगा बस और जैसा के हमारे देश में आज तक होता आया है एक बार फिर दौहराया जाएगा "पैसा फेंको तमाशा देखो" का खेल, क्यूंकि हमारे यहाँ तो ऐसे लोग कानून को अपनी जेब में लिए घूमते हैं। वैसे कहना तो नहीं चाहिए लेकिन फिर भी आज हमारे यहाँ कि कानून व्यवस्था बिलकुल एक वैश्या की तरह हो गयी है। जिसे सरे आम दाम देकर कोई भी खरीद सकता है बस पैसा होना चाहिए। क्यूंकि यहाँ तो कानून के रखवाले खुद भी इसी घिनौने अपराध में लिप्त पाये जाते हैं। आम आदमी के लिए कोई सहारा ही नहीं बचा है न पुलिस न कानून जो देखो भ्रष्टाचार में लिप्त है। कानून की हिफाजत करने वाले खुद ही अपने हाथों कानून को बेचने में लगे हैं।
मेरी समझ से तो ऐसे हालातों से लड़ने के लिए एक बार फिर "नारी" को रानी लक्ष्मी बाई का रूप धारण करना ही होगा तभी कुछ हो सकता है या फिर एक बार फिर इन दरिंदों को उनकी औकात दिखाने के लिए फिर किसी को दुर्गा या काली का अवतार लेना ही होगा। मैं जानती हूँ कहना बहुत आसान है और करना उतना ही मुश्किल मेरी यह बात किसी प्रवचन से कम नहीं, यह भी मैं मानती हूँ। लेकिन सच तो यही है जब तक ऐसे अपराधियों को मौका-ए-वारदात पर ही सबक नहीं मिलेगा तब तक इस तरह के अपराधों में दिन प्रति दिन वृद्धि होती ही रहेगी और यह तभी संभव है शायद जब स्कूलों में पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ आत्म सुरक्षा सिखाने का विषय भी अनिवार्य हो और सभी अभिभावक अपनी-अपनी बेटियों को वो सिखाने के लिए जागरूक हों साथ ही अपने बेटों को भी सख़्ती के साथ यह बात सिखाना भी ज़रूर है कि औरत भी एक इंसान है उसे भी दर्द होता है, तकलीफ होती है, इसलिए उसे भी एक इंसान समझो और उसके साथ भी सदा इंसानियत का व्यवहार करो, यह तो भविष्य में किए जा सकने वाले उपाय हैं। क्यूंकि भूतकाल में जाकर तो हम की गई भूलों को सुधार नहीं सकते। मगर हाँ वर्तमान में इतना तो होना ही चाहिए कि अपने देश की कानून व्यवस्था में सुधार हो, कोई ऐसा केस या उदाहरण सामने आए जिसको देखते हुए आम जनता खासकर महिलाएं कानून पर या कानून के रखवालों पर भरोसा कर सके। अतः जब तक लोग कानून से डरेंगे नहीं तब तक यह सब होता ही रहेगा।
हालांकी इस तरह के मामलों में कई महिलाओं का कहना है कि हमने कानून की सहायता लेकर लड़ने की पूरी कोशिश की लेकिन बजाय ऐसे अपराधियों को सजा देने के, उल्टा हमें ही कानूनी चक्करों में ना फँसने की सलाह देते हुए केस वापस लेने की सलाह दी जाती है और जो लोग आखिरी दम तक लड़ने का बीड़ा उठाते हैं। उन्हें ना सिर्फ सामाजिक तौर पर बल्कि मानसिक तौर पर भी इस सबका भारी खामियाजा भुगतना पड़ता है। इसलिए लोग डर जाते हैं और इस तरह के अधिकतर मामले सामने ही नहीं आ पाते, इस सब को देखते हुए मुझे तो ऐसा लगता है कि इस तरह के घिनौने अपराध करने वाले अपराधियों के लिए तो फांसी जैसी सज़ा भी बहुत ही मामूली है, इन्हे तो कोई ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति की तरह यह भी सारी ज़िंदगी उसी आग में जलें। तभी सही मायने में इंसाफ होगा। इन मामलों में तो मुझे ऐसा ही महसूस होता है आपका क्या विचार है....
इस वेह्शियाना हरकत के लिए सजाये-मौत एक आसान मुक्ति सी है ..
ReplyDeleteसारी आदमज़ात पर ये कलंक है :-((
बहुत कठिन है इस देश में इन्साफ के लिए लड़ना......इन समस्याओं कि जड़ें बहुत गहरी हैं और आज भी इस देश में इन पर बात करने को कोई तैयार नहीं है ।
ReplyDeleteइतना कुछ बोला जा रहा है और बोला जा चुका है कि ऐसा लगने लगा है कि हम किसी बहुत ही आंतकवादी देश के हिस्सेदार है ...समस्या अपने ही घरों से शुरू हो रही है उस पर पहले विचार करने कि और खुद को बदलने की जरुरत है ....सरकार और कानून १०० करोड़ से ऊपर की जनसंख्या वाले देश में हर किसी पर अपना शिकंजा कैसे कसे ....सोचने और विचार करने का मुद्दा है और ये ही सही समय है मिल कर कदम उठाने का
ReplyDeleteआज जरूरत इस बात की है कि अब हर ऐसे अपराध पर इतनी ही तीव्र और तीखी प्रतिक्रिया दी जाए । हर बलात्कारी को सख्त से सख्त सज़ा , जो दूसरों के लिए नज़ीर साबित हो , दी जाए और ऐसा तब तक किया जब तक इस बदबूदार होती मानसिकता से हमेशा के लिए समाज को छुटकारा न मिल जाए । किसी कानून , किसी पुलिस , किसी दोस्त , किसी अन्य ..किसी को भी अपनी सुरक्षा और इज़्ज़त बचाने के मोहताज़ हो जाने के रूप में नहीं देखना है , यही समय है निकालिए अपने भीतर के आग को बाहर और जल जाने दीजीए सब कुछ
ReplyDeleteआपने बहुत सही मुद्दा उठाया है अब आवश्यकता है कड़े कानून्की और सामाजिक व्यस्था की जिससे मारी हुई सम्वेदनाए जाग्रत हो सकें |
ReplyDeleteकैसी सोच अपनी है ,किधर हम जा रहें यारों
ReplyDeleteगर कोई देखना चाहें बतन मेरे बो आ जाये
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
sabse jaruri hai.. hamare desh ki kanun vyavastha ka kathor hona.... aur iske liye sansad ko soch badalni hogi.. naari ko sirf devi mat samjho.. usko uss tarah se ijjat bhi do...apne desh me nari ya to devi hai ya bhogya..ye soch badalni hogi. tabhi kuchh sambhav hai.. logo ko pahle se pata hona chahiye... ki is apradh ke liye saja aisee hai ki rooh kanp jaye...!!
ReplyDeletekash hamara desh aise apradh ko zero tolerence me rakhe...
संकेत इतने कठोर हों कि दुष्कर्मी दस बार सोचें।
ReplyDeleteआज जरूरत इस बात की है कि हर बलात्कारी को सख्त से सख्त सज़ा दी जाए....
ReplyDeleteहर ऐसे अपराध पर इतनी ही तीव्र और तीखी प्रतिक्रिया दी जाए ।
ऐसा तब तक किया जब तक इस बदबूदार होती मानसिकता से हमेशा के लिए समाज को छुटकारा न मिल जाए ।
कहना तो नहीं चाहिए लेकिन फिर भी आज हमारे यहाँ कि कानून व्यवस्था बिलकुल एक वैश्या की तरह हो गयी है। जिसे सरे आम दाम देकर कोई भी खरीद सकता है बस पैसा होना चाहिए। क्यूंकि यहाँ तो कानून के रखवाले खुद भी इसी घिनौने अपराध में लिप्त पाये जाते हैं। आम आदमी के लिए कोई सहारा ही नहीं बचा है न पुलिस न कानून जो देखो भ्रष्टाचार में लिप्त है। कानून की हिफाजत करने वाले खुद ही अपने हाथों कानून को बेचने में लगे हैं।
यही समय है दोस्त सुरक्षा और इज़्ज़त बचाने के लिए अपना सब कुछ लज़ाने नहीं दीजीए..........
मेरी समझ से तो ऐसे हालातों से लड़ने के लिए एक बार फिर "नारी" को रानी लक्ष्मी बाई का रूप धारण करना ही होगा तभी कुछ हो सकता है या फिर एक बार फिर इन दरिंदों को उनकी औकात दिखाने के लिए फिर किसी को दुर्गा या काली का अवतार लेना ही होगा।
https://www.facebook.com/aiswc
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 26/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteइन्सान सिर्फ एक ही डर से डरता है -- मौत के डर से ।
ReplyDeleteबलात्कार को रोकने के लिए इसमें कोई रियायत नहीं होनी चाहिए।
बढ़िया लेखन, बधाई !!
ReplyDeleteबढ़िया लेखन, बधाई !!
ReplyDeleteकठोर कानून और उनका उतनी ही सख्ती से पालन हो ....
ReplyDeleteआज जरूरी है सबसे पहले महिला को ही सक्षम बनाना वो भी मानसिक और शारीरिक रूप से भी ताकि ऐसा वक्त आने पर मुकाबला कर सके और सामने वाले के हौसले भी पस्त हो सकें क्योंकि बलात्कारी यही सोच कर इस कार्य को अंजाम देता है कि अबला है, कमजोर है उस पर काबू पाना आसान होगा।
ReplyDeleteदूसरी बात ऐसे लोगों को सिर्फ़ फ़ांसी देने से कुछ नही होगा ऐसे लोगों को जनता के सामने डाल देना चाहिये जनता खुद न्याय कर देगी शायद उसका हश्र देखकर दूसरे लोग ऐसा कुकर्म करने से पहले 100 बार सोचेंगे।यहाँ तक कि वो ज़िन्दा भी रहे और हर पल मरता भी रहे ऐसी सज़ा मिलनी चाहिये तब जाकर समझ आये कि एक स्त्री की अस्मत से खेलना क्या होता है।
तीसरी बात सभी मर्द एक जैसे नहीं हैं हम सब जानते हैं और ऐसी घटनाओं से वो भी उतना ही आहत होते हैं इसलिये सबको मिलजुलकर सम्मिलित प्रयास करना चाहिये जहाँ भी ऐसी कोई घटना देखे तो आँख मूंदकर ना निकल जाये क्योंकि वक्त का नही पता कल किसके साथ क्या हो आज हम एकजुट होंगे तो उन वहशियों को एक संदेश जायेगा वरना देखिये चाहे मैट्रो हो या बस वहाँ कौन सी महिलायें सुरक्षित हैं वहाँ भी उनके साथ बदतमीज़ी होती है और हम मूकदर्शक बने देखते रहते हैं यदि वहीं से आवाज़ उठानी शुरु कर दें तो शायद ये दिन ना देखना पडे।
चौथी बात हमारी न्याय व्यवस्था और कानून इतने सख्त होने चाहियें कि पीडित को जल्द से जल्द न्याय मिल सके ना कि तारीखों मे उलझा रहे और मानसिक तनाव से गुजरे ये तो उसके साथ दोहरा अन्याय ही हुआ ना।
आज मीडिया के माध्यम से फ़ैलती अश्लीलता ने ऐसे कार्यों मे इज़ाफ़ा ही किया है जिसका नतीज़ा स्त्री भुगत रही है । क्या जरूरी है स्त्री को प्रोडक्ट की तरह दिखाना या सैक्स सीन दिखाना फिर चाहे विज्ञापन हों या सीरियल जब तक इन पर लगाम नहीं लगेगी ऐसी घटनायें होती रहेंगी क्योंकि कुछ लोग सही और गलत मे फ़र्क ही नही कर पाते और जो देखते हैं वैसा ही समझ कर गलत कार्य की ओर अग्रसर हो जाते हैं जो समाज के लिये बेहद घातक है जिसका दुष्परिणाम हमारे सामने है।
और सबसे जरूरी चीज़ हमें अपने घरों से शुरुआत करनी चाहिये अपने बच्चों को सही संस्कार देने की , औरत की इज़्ज़त करने की जब तक ऐसा नही होगा आगे आने वाला वक्त और खराब होगा । अब ये हम पर है कि हम अपने समाज को क्या देना चाहते हैं और कैसा बनाना चाहते हैं
जब तक ऐसे जरूरी कदम नही उठाये जायेंगे तब तक किसी बहस का कोई परिणाम नहीं निकलने वाला।
आभार...वंदना जी, बहुत ही सटीक और सार्थक टिप्पणी दी है आपने इस विषय पर, आज समाज को एक होने की सबसे ज्यादा अवश्यकता है मामला चाहे कोई भी हो जब तक स्त्री और पुरुष साथ मिलकर एक सोच के साथ आगे नहीं बढ़ेंगे तब तक एक स्वस्थ समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्यूंकि वह भी तो हमारे समाज का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बिलकुल, अगर यह हो गया तो एक उम्मीद की किरण तो दिखाई देती है कि भविष्य में कम से कम यह घिनौना काम करने से पहले लोग 100 बार सोचेंगे तो सही...
ReplyDeleteआभार ....
ReplyDeleteशुक्रिया यशोदा जी...
ReplyDeleteक्या कहना चाहते है आप ? खुलकर कहिए केवल मेरा लिखा यहाँ कॉपी पेस्ट करने से या किसी और का लिखा लिखने से कोई फायदा नहीं...इस सिलसिले में आपको जो भी कहना है कृपया अपने विचार अपने शब्दों में लिखें तो ज्यादा अच्छा होगा... धन्यवाद
ReplyDeleteजिस दिन यह घटना हुई थी, उसके बाद मैंने फेसबुक पर इस संबंध में लिखा था,
ReplyDelete''देश के तकरीबन हर शहर में तकरीबन हर दिन एक न एक लडकी बलात्कार का शिकार होती है..... कहीं गैंग रेप होते हैं तो कहीं शरीर से नहीं, आंखो से बलात्कार की घटनाएं होती हैं..... महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं निरंतर हो रही हैं.... गांव में होने वाली इस तरह की घटनाएं पुलिस थानों तक दबकर रह जाती हैं या फिर अखबार में सिंगल कॉलम की जगह ही पाती हैं, पर देश की राजधानी में घटित इस घटना ने सबको झकझोर दिया। आम तौर पर बेवजह के हंगामे में उलझे रहने वाली संसद ने भी इस मुददे पर गुस्सा जाहिर किया और बलात्कारियों को फांसी की सजा दिए जाने की वकालत की.....
बलात्कार.... नारी प्रताडना... कन्या भ्रूण हत्या.... दहेज हत्या.....
हे भगवान हम कहां जा रहे हैं....... ''
दिल्ली की एक घटना ने एक नई बहस को जन्म दिया है, बलात्कार की घटनाओं को लेकर गुस्सा चरम पर है.... बलात्कारियों को फांसी की सजा दिए जाने की मांग उठ रही है तो कहीं ऐसे लोगों को रासायनिक रूप से नपुंसक बना देने की बात की जा रही है......
मेरा कहना है कि हत्या पर फांसी तक का प्रावधान हमारे देश में है फिर भी हत्यायें कम नहीं हो रहीं... बलात्कार के लिए भी उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान हमारी कानून व्यवस्था में है, फिर भी.....
जरूरत है सोच बदलने की और यह हम कर सकते हैं, हम सब कर सकते हैं, बस इस वक्त इस तरह के घृणित कृत्य को लेकर जो गुस्सा देश में उबल रहा है, वह और मुददों की तरह क्षणिक न हो.... फिर शायद सब कुछ ठीक हो जाए... फिर कोई बेटी इस तरह के कृत्य की शिकार न हो...... फिर शर्मिंदगी का यह माहौल पैदा न हो.....
दुआ कीजिए... अब बस!
इस विचारोत्तेजक आलेख में प्रस्तुत आपके विचारों से सहमत हूं।
ReplyDeleteदुर्गा बन, काली बन, बस मिस यूनिवर्स मत बन।
ReplyDeleteखुद हमारे गृह सचिव व् पुलिस अधिकारी उन अपराधियों के लिए उम्र कैद मांग रहे हैं ,शायद उनकी कोई बेटी नहीं होगी इसी लिए इतने असंवेदन शील बन रहे हैं आग किसी के घर में लगी हो तो दूसरा यही सोचता है अरे मैं क्यूँ जाऊं बुझाने ,अरे ये आग तो घर घर में लगी है सभी की माँ बहन बेटियाँ हैं ,उम्र कैद में क्या हमें नहीं पता कुछ सालों बाद ये कुत्ते फिर बाहर आयेंगे फिर हड्डियां तलाशेंगे एक बलात्कार की भी वो सजा दस बीस करेंगे तो भी वही सजा ,और जेल में भी अपनी सुविधाएं मिल जुल कर बना लेते हैं तो क्या सजा हुई ,इनको तो उसी तरह टार्चर करके मौत के घात उतरना चाहिए ,सरे आम फांसी दे सर्कार इन्हें ,जब कुत्ता पागल हो जाता है तो क्या उन्हें शूट नहीं किया जाता ?ये तो रही इन अपराधियों की सजा की बात ,दूसरा बदलाव हमे घरों में बच्चों की परवरिश में लाना है पहले हम लड्के लड़कियों को घर में सबके सुबह सुबह चरण स्पर्श सिखाया जाता था ,आज के वक़्त में जो ऐसा करता है उसे पुराने विचारो का कहकर उपहास बनाते हैं ,फिर नारियों का, बड़ों का सम्मान बच्चों के दिलों में कहाँ से आएगा ?शिक्षण संस्थानों में सेक्स शिक्षा पर अक्सर बाते होती हैं ,अरे पहले सब संस्थानों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य करो ,इसके अतिरिक्त जो हमारे समाज में गन्दी सोच पैदा कर रही हैं वो हैं पोर्न फिल्मे उन पर बैन क्यूँ नहीं लगते घर घर में ,साइबर कैफे पर इंटरनेट से बच्चे कौन सी साईट देखते हैं कभी सोचा ?? क्यूँ अपने देश में इन साईट पर बैन नहीं ??वैसे इन घटनाओं को जो अंजाम देते हैं उनमे बेरोजगार ,अनाथ ,गुंडे प्रवार्तियों लोग ज्यादा शामिल हैं उन्हें तो कानून का कोई डर खौफ है ही नहीं ,स्त्रियों को भी निडर होना पड़ेगा आत्म रक्षा के लिए चाहे कोई अस्त्र ही साथ में लेकर चलना पड़े अगर सरकार नारियों की सुरक्षा नहीं कर सकती तो उन्हें अस्त्र रखने की इजाजत दे ।---बहुत अच्छा आलेख लिखा है आपने आज इस वक़्त इस मुद्दे पर विचारों के आदान प्रदान की आवश्यकता है।
ReplyDeleteआपने आज के समय का ज्वलंत मुद्दा उठाया है,
ReplyDeleteन जाने हमारे समाज की युवा पीढ़ी कहा जा रही है, न जाने वो कैसे लोग है, न जाने उनके अंदर कैसी कलुषित मानसिकता है, ............हमें अपनी सोच बदलनी होगी खास तौर से युवा वर्ग की ............
खरी बातें लिखती हैं,फिर भी
ReplyDeleteपूरी तरह सहमत हूँ।
ReplyDeleteजिन न्यूज़ चैनलों पर दिल्ली गैंग रेप की खबर दिखायी जा रही थी उनपर एक विज्ञापन ऐसा भी लगातार चल रहा था जिसे समाज मौन स्वीकृति देने लगा है ... रूपा गारमेंट्स का। जिसमें 'अलानी स्वाहा, फलानी स्वाहा'. वेदमंत्रों में 'स्वाहा' के महात्म्य को जहाँ बिगाड़कर रख दिया गया हो वहाँ स्त्री का भोग्या के अलावा कौन सा दूसरा रूप उभरता है। इस जैसे ही न जाने कितने विज्ञापन हैं जो ऎसी मार्मिक खबरों की हवा निकालते चलते हैं।
ReplyDeleteआपने इस संवेदनशील विषय के इतने सारे पक्षों पर अपनी राय रखी। सचमुच हमारी कोशिशें जमीनी स्तर पर रंग लाएंगी। फिर भी इस क्रम को खत्म नहीं करना है नहीं तो यह भी सच है कि हमारी स्मृतियाँ काफी अल्पकालीन होती हैं।
ReplyDeleteपुरुष होने पे लज्जा आती है ... ये घिनोने काम गन्दी पुरुष मानसिकता की उपज हैं ...
ReplyDeleteसहमत हूं आपके विचारों से पूर्णतः ...
सहमत हूँ !!
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ReplyDeleteआजाद देश है ,यहाँ अपनी बात बताने की आजादी है, लेकिन सब अपनी दामन बचाकर बात करते हैं. आपने बड़ी हिम्मत से जिन मुद्दों को उठाया है उसका समाधान ,यदि इच्छा शक्ति हो तो निकाला जा सकता है ,
१.यह सर्व विदित है कि ये सब कमजोर कानून एवं कानून व्यवस्था के कारण है और इसके मूल में हैं भ्रष्ट राजनीतिज्ञ जो अपने वोट बैंक के चक्कर में सिस्टम को सुधारना नहीं चाहते ,इसलिए पुराने राजनीतिज्ञ जो भ्रष्ट हैं उसे जाति, धर्म से ऊपर उठकर व्होट न दे
2: जो जन आन्दोलन शुरू हुआ है उसे शांति पूर्ण ढंग से तबतक चलनी चाहिए जबतक सरकार कानून में संसोधन कर संसद के दोनों सदनों से पास करा के राष्ट्रपति से हस्ताक्षर न करा ले ,आश्वासन पर भरोषा न करे.
३.कानून में बदलाव के लिए सरकार ने सलाह मागी है ,सलाह जस्टिस वर्मा को भेज सकते हैं ईमेल; जस्टिस .वर्मा @निक .इन
४ सभी नागरिकों सुझाव देना चाहिए कि "रेप "को रेअरेस्त् ऑफ़ रेयर " केटेगरी में रखे
५ संसद पर नजर रखे ,कौन सांसद इस बिल का बिरोध करे है ,उसको इलेक्शन में जितने न दें..
अन्ना हजारे जी की आन्दोलन को समाप्त करने केलिए कुछ मंत्री प्रयत्नशील है ,जनता उसे धूल चटाए .पोस्ट
: "जागो कुम्भ कर्णों" , "गांधारी के राज में नारी "
'"क्या दामिनी को न्याय मिलेगी ?"
http://kpk-vichar.blogspot.in
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteशायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
सही लिखा है आपने ..अब तो हर एक को अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं तैयार रहना होगा ..on the spot.
ReplyDeleteसार्थक लेख ...बिल्कुल सही लिखा आपने कि कई महिलाओं का कहना है कि हमने कानून की सहायता लेकर लड़ने की पूरी कोशिश की लेकिन बजाय ऐसे अपराधियों को सजा देने के, उल्टा हमें ही कानूनी चक्करों में ना फँसने की सलाह देते हुए केस वापस लेने की सलाह दी जाती है और जो लोग आखिरी दम तक लड़ने का बीड़ा उठाते हैं। उन्हें ना सिर्फ सामाजिक तौर पर बल्कि मानसिक तौर पर भी इस सबका भारी खामियाजा भुगतना पड़ता है।
ReplyDeleteबिल्कुल यही होता है ....
ReplyDeleteयही वो कड़वा सच है जो लोगो की हिम्मत तोड़ देता है...इसे सुधारने के लिए अवाज को औऱ उंचा करना होगा..कहीं तो कुछ तो हो असर......पर देखिए बहरों कानों को अवाज कब सुनाई देती है।
नव वर्ष की शुभकानाएं
ReplyDeleteसहमत हूं आपके विचारों से पूर्णतः
कानून में बदलाव ज़रूरी है ताकि कठोर सज़ा का प्रावधान हो. अपराधी को मिलने वाली सज़ा का खौफ़ अपराध के नियंत्रण में कारगार होगा.
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