पाकिस्तान को लेकर आज हर हिन्दुस्तानी के दिलो दिमाग में एक अलग तरह की छवि बनी हुई है जिसे शायद हर कोई बुरी नज़र से ही देखता है और अब तो दुनिया के सबसे बड़े देश की नज़र में भी पाकिस्तान ही सबसे बुरा है क्यूंकि वहाँ आतंकवादियों को पनाह दी जाती है जमाने भर के आंतकवादियों की मूल जड़ पाकिस्तान में ही पायी जाती है लेकिन इन सब बातों के बावज़ूद भी क्या वाकई हर पाकिस्तानी बुरा होता है ? ना कम से कम यहाँ आने के बाद तो मैं इस बात को नहीं मानती हाँ यूं तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच आई दूरियाँ कभी मिट नहीं सकती। यह एक ऐसी दरार है जो कभी भर नहीं सकती। मगर तब भी हिदुस्तान से बाहर रहने पर पता चलता है कि यह दरार शायद उतनी बड़ी या गहरी भी नहीं कि भरी ना जा सके, मगर शायद हम ही लोग कहीं अंदर-ही अंदर ऐसा कुछ चाहते है कि यह दरार भर ही नहीं पाती। आखिर क्यूँ ? तो इस सवाल के जवाब में कुछ लोगों का यह मानना होगा कि यह सब सियासत की कारिस्तानियों की वजह से है। असल में आम जनता या आम आदमी तो एकता बनाए रखना चाहता है।
लेकिन यह राजनीति और उसे जुड़े कुछ भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं की वजह से यह दो देशों के बीच की खाई बजाय कम होने के दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। कुछ हद तक यह बात सही भी है, क्यूंकि अधिकतर मामलों में पाकिस्तानियों की वजह से ही हमारे यहाँ के मासूम और बेगुनाह लोगों की मौतें हुई है फिर चाहे वो बावरी मस्जिद वाला किस्सा हो या मुंबई अग्नि कांड सब मानती हूँ मैं, लेकिन क्या इस सब में पाकिस्तानियों ने अपने अपनों को नहीं खोया ? ज़रूर खोया होगा और शायद वहाँ के बाशिंदों के दिलो दिमाग में भी हम हिंदुस्तानियों के प्रति ऐसी ही भावनाएं भी होंगी लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि हर पाकिस्तानी बुरा है इस सब में भला वहाँ की आम जनता का क्या दोष है जो हम बजाय आतंकवाद से नफरत करने के पूरे देशवासियों से नफरत करते हैं। कुछ लोग तो पाकिस्तान के नाम तक से नफरत करते हैं जिसके चलते वह केवल गड़े मुरदों को उखाड़-उखाड़ कर ही अपने क्रोध की ज्वाला को हवा देते रहते है। आखिर क्यूँ ?
जबकि होना तो यह चाहिए कि आने वाली नयी पीढ़ियों को पूराने ज़ख्मो को भूलकर एक नयी शुरुआत करनी चाहिए क्यूंकि जो होना था वह तो हो चुका, अब अतीत में जाकर तो उस सब को सुधारा नहीं जा सकता है। इसलिए अब नए एवं सुखद भविषय की कल्पना करते हुए हमें इन दोनों मुल्कों के बीच एक नयी शुरुआत करनी चाहिए। यहाँ शायद कुछ लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे क्यूंकि "जिस तन लागे वो मन जाने" वाली बात भी यहाँ लागू होती है जिन्होंने इस बंटवारे को सहा है वह कभी चाहकर भी शायद इस नयी शुरुआत के विषय में सोच ही नहीं सकते और यही वजह है कि ऐसा हो नहीं पाता क्यूंकि पाकिस्तानियों को लगता है कि हिन्दुस्तानी भरोसे के काबिल नहीं और हिंदुस्तानियों को लगता है कि हमें तो जब भी प्रयास किया, अधिकतर मामलों में धोखा ही खाया हम भला कैसे विश्वास कर लें कि यह मुल्क दुबारा हमारे साथ गद्दारी नहीं करेगा क्यूंकि आये दिन होते फसादात और हादसे इस बात के गवाह हैं कि हिदुस्तान में फैले आतंकवाद के पीछे सिर्फ-और-सिर्फ पाकिस्तान का ही हाथ है। इतना ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में फैले आतंकवाद के पीछे केवल पाकिस्तान का हाथ यह बात भी कुछ हद तक सही भी है। क्यूंकि कई सारे प्रमाण है जो यह बातें सिद्ध करते हैं मगर क्या यह सब वहाँ कि आम जनता ने किया ? नहीं यह सब किया अपने मतलब के लिए सियासत के लालची लोगों ने, और बदनाम हो गया सारा देश
लेकिन हम कितने ऐसे पाकिस्तानियों से मिले हैं जो वहाँ के हालात का सही ब्यौरा हमें दे सके। वहाँ के लोग किस के लिए क्या महसूस करते हैं यह बता सके। हम सिर्फ उसी पर यकीन करते है जो टीवी पर देखते हैं या समाचार पत्रों में पढ़ते हैं। मगर यहाँ रहने के बाद और पाकिस्तानी लोगों से मिलने के बाद मुझे ऐसा नहीं लगता कि वहाँ के बाशिंदों में केवल हम हिंदुस्तानियों के प्रति नफरत के अलावा और कुछ है ही नहीं, बल्कि यदि मैं सच कहूँ तो मुझे तो यहाँ रहे रहे पाकिस्तानियों में बड़ी आत्ममियता नज़र आयी, ऐसा लगा ही नहीं कि यह किसी दूसरे देश के बाशिंदे है वह भी उस देश के जिस देश से जाने अंजाने सिर्फ कही सुनी बातों के आधार पर ही हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा नफरत करता है। उनके यहाँ भी शायद हम हिंदुस्तानियों को लेकर ऐसी ही सोच हो जिसका हमें पता नहीं, मगर क्या यह ठीक है यहाँ मैं आप सबको एक बात और बताती चलूँ कि मैं किसी देश का पक्ष या विपक्ष लेकर नहीं चल रही हूँ मगर हाँ एक पाकिस्तानी महिला से मिलने के बाद मुझे जो अनुभव हुआ है उसे आप सबके साथ सांझा करने की कोशिश कर रही हूँ। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मैं भोपाल की रहने वाली हूँ लिहाज़ा मेरा मुस्लिम भाइयों के बीच रहना बहुत हुआ है। लेकिन पाकिस्तानियों से मैं यहीं आकर मिली इसके पहले केवल उस देश के बारे में किताबों और फिल्मों में ही देखा सुना और पढ़ा था। कभी किसी से मुलाक़ात नहीं हुई थी इसलिए एक अलग ही छवि थी मेरे मन में उन्हें लेकर।
लेकिन जब यहाँ रहकर उनसे मुलाक़ात हुई, तो मुझे एक बड़ा ही सुखद अनुभव हुआ, और लगा कितना गलत सोचती थी मैं, हुआ यूं कि मुझे डॉ के क्लीनिक जाना था अपना रजिस्ट्रेशन करवाने ताकि जब जरूरत पड़े तो आसानी से एपोइंटमेंट मिल सके। उसी सिलसिले में मेरी मुलाक़ात हुई डॉ. फातिमा से जिनकी उम्र महज़ 21-22 साल की होगी। वैसे तो वह स्वयं डॉ हैं और एक डॉ का तो पेशा ही ऐसा होता है कि उसे हर किसी व्यक्ति से बड़े ही नर्म दिली से पेश आना होता है। मगर फिर भी उन मौहतरमा का स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगा। उनसे बात करते वक्त मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं बरसों बाद अपने ही कॉलेज की किसी दोस्त से मिल रही हूँ। एक मिनट के लिए भी मुझे ऐसा नहीं लगा कि वह एक डॉ.है और मैं उसके पास साधारण जांच के लिए आयी हूँ या वह किसी ऐसे देश से ताल्लुक रखती है जिस देश से मेरे देश के लगभग ज़्यादातर लोग केवल नाम से ही नफरत किया करते है। लेकिन उसका अपनापन देखकर मुझे मन ही मन बहुत खली यह बात कि इस देश में भी तो अपने ही लोग हैं यहाँ भी तो हिंदुस्तानियों जैसे हम आप जैसे इंसान ही रहते हैं। इनकी रगों में भी तो कहीं न कहीं हिंदुस्तान का ही खून बहता है फिर क्यूँ हम लोग बेवजह वहाँ की आम जनता से भी इतनी नफरत करते हैं। जिन्होंने हमारा कभी कुछ नहीं बिगाड़ा लेकिन उनका क़ुसूर केवल इतना है कि वह पाकिस्तान में रहते हैं और वहाँ की आवाम का हिस्सा है। यह तो भला कोई कारण ना हुआ किसी इंसान से नफरत करने का तब यह एहसास होता है, कि वाक़ई
"गेहूँ के साथ घुन पिसना किसे कहते हैं"
या
"एक मछ्ली सारे तालाब को कैसे गंदा साबित करवा देती है"
इस सबके चलते कम से कम यहाँ एक बात मुझे बहुत अच्छी लगती है कि यहाँ कई सारे अलग-अलग देशों से आए लोग यहाँ एक परिवार की तरह काम करते हैं यहाँ हिंदुस्तान पाकिस्तान का भेद भाव देखने को नहीं मिलेगा आपको, न ही किसी और देश का किसी और देश से, यहाँ सब एक ही श्रेणी में गिने जाते हैं और अब तो गोरे काले का फर्क भी उतना नहीं रहा। मगर हाँ है ज़रूर, इसमें भी कोई दो राय नहीं है। मगर आमतौर पर आपको महसूस नहीं होगा, मगर अपने हाँ तो जाति मतभेद ही इतने हैं कि यह सब तो वहाँ रहकर दूर की बातें ही नज़र आती हैं। हम आपस में ही लड़-लड़कर मरे जाते हैं जिसका फायदा यह बाहर के लोग उठा ले जाते है। खैर अंत में तो मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि एक मछ्ली के गंदा होने की वजह से से सारे तालाब को गंदा ना समझे, हालांकी यहाँ एक और कहावत भी लागू होती है कि "हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती" अर्थात "आप एक कपड़े के टुकड़े से पूरे थान का अनुमान नहीं लगा सकते" मगर फिर भी मैं यह ज़रूर कहना चाहूंगी कि पाकिस्तान में रहने वाले भी अपने ही हैं और यकीन मानिए बहुत आत्मीयता और प्यार है उनके मन में भी जरूरत है बस वो अँग्रेजी की कहावत के अनुसार "आइस ब्रेक" करने की...उस डॉ से मिलकर तो मुझे यही अनुभव हुआ। इस विषय में आपका क्या खयाल है ?
हर देश, हर प्रान्त और हर कौम में अच्छे और बुरे दोनोौं तरह के लोग होते हैं!
ReplyDeleteयहाँ ,वहाँ या कहीं भी ..हर तरह के लोग होते हैं.
ReplyDeleteगुलशन में फूलों के साथ कांटे भी उगते हैं
ReplyDeleteफूल हाथों को पैर काँटों को नसीब होते हैं
सही कहा ...हर जगह हर तरह के लोग मिलते है .....जब अपने ही हाथ की पाँच उंगलियाँ बराबर नहीं है तो एक देश के लोग सब एक से कैसे हो सकते है .....
ReplyDeleteबेहतर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबेहतर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteहम आपसे सहमत हैं, हर इंसान अमन और चैन चाहता है।
ReplyDeleteहर इंसान में अच्छाई होती है। हमें अच्छी बातों से वास्ता रखना चाहिए।
ReplyDeleteएक अच्छा आलेख लिखा है आपने।
हर देश में अच्छे और बुरे दोनो तरह के लोग होते हैं!बेहतरीन पोस्ट...
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
लेकिन अच्छे लोगों की चलती कहाँ है ??
ReplyDeleteजब राजनीति में शुचिता न रहे तो लोगों की मानसिकता भी दूषित रहेगी।
ReplyDeleteसमूह में लोगों के व्यवहार में बहुत अंतर हो जाता है , वर्ना व्यक्तिगत तौर पर हर इंसान अलग ही होता है !
ReplyDeleteइन्सान तो कहीं का भी बुरा नहीं होता बस हालात असर डालते हैं
ReplyDeleteसच है हर जगह अच्छे और बुरे दोनों लोग होते है .................प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बधाई
ReplyDeleteआतंकवाद राजनीति की देन है। राजनीति करने वालों के सामने केवल अपने हित होते हैं। अपने हित पूरे करने के लिए वे दरार पैदा करते हैं। पाकिस्तान को आतंकवादियों का अड्डा बनाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश ही है। इसी राजनीति की वजह से हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ। विदेश में हिंद-पाक के वासियों को एक नाम ‘देसी‘ से ही जाना जाता है। राजनीति से हटकर जब भी आप किसी इंसान से मिलेंगी तो वह आप को अपने ही जैसा एक इंसान नज़र आएगा। जब राजनेताओं को लगेगा कि उनका फ़ायदा दरार को भरने में है तो वे इस दरार को एक हफ़ते में भर देंगे। उन्हें ये बात दोनों देशों की जनता ही बता सकती है। आज यूरोप एक है तो फिर एशिया एक क्यों नहीं हो सकता ?
ReplyDeleteसब कुछ हो सकता है सिर्फ़ एक ‘विज़न‘ को लेकर चलने की ज़रूरत है।
हर देश की आम जनता शांति चाहती है .... व्यक्तिगत विशेषताएँ अलग होती हैं .... पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी के बीच की मित्रता का अच्छा उदाहरण .... आ अब लौट चलें पिक्चर में भी देखने को मिला था ... सार्थक लेख ...
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूँ ... सार्थकता लिये सशक्त आलेख
ReplyDeleteआपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ . किसी भी जगह की हर चीज उतनी बुरी नहीं होती जीतनी की हम समझते हैं। वैसे ही पाकिस्तान भी है
ReplyDeleteहम पाकिस्तान की ही बात क्यों करें? ये बात तो हमारे अपने देश में भी है . यहाँ के रहने वाले कितने आतंकवादी घटनाओं से जुड़े होते हैं भले ही वे इस देश में रह रहे हैं लेकिन मन से वे पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं। मैं मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में रहती हूँ लेकिन अभी तक तो मुझे नहीं लगता है कि हर इंसान ऐसी भावनाएं रखता है। हम चाहे जिस धर्म के हों इन्सानियाथर इंसान के अन्दर होती है और हैवानिअत भी। इसके लिए पहल होनी चाहिए लेकिन राजनीति ऐसा होने नहीं देगी।
बहुत ही सुन्दर यथार्थ परक पोस्ट |मीडिया ,मुल्ला और सियासत दोनों ही देशों को वैचारिक रूप से अलग -थलग कर देते हैं |
ReplyDeleteकिसी भी देश के अधिकांश नागरिक अच्छे होते हैं। विशेष रुप से मेहनत कर के अपना पेट पालने वाले।
ReplyDeleteगंभीर एवं सशक्त लेख....बात एकदम सत्य
ReplyDeleteपरन्तु सब सुधर जाएगा तो हमारे ''राजनेता'' unemployed हो जायेंगे....
रेखा जी की बातो से सहमत हूँ इंसान कभी बुरा नहीं होता बुरी होती हैं उसकी भावनाएं आज पाकिस्तान की पूरी राजनीती भारत विरोध पर ही निर्भर करती है । वहां की सेना हमेशा अपना शासन चाहती है जब तक युद्ध का भय नहीं पैदा करेगी तब तक उसे नैतिक समर्थन नहीं प्राप्त होगा और इसी सूत्र पर पाकिस्तानी राजनेता भी कार्य करते हैं । इंशान दोषी नहीं होता वहां की दोष पूर्ण शिक्षा प्रणाली व अज्ञानता ही दोनों देशों की प्रगति में बाधक है ।
ReplyDeleteआम आदमी तो यहाँ भी आम है ,वहां भी.
ReplyDeleteखुरापातें तो खास आदमी ही किया करते हैं.
विषय बहुत अच्छा चुना भाषा भी बहुत सुंदर है और लेख व् रिपोर्ताज लिखने चाहिए आपको ख़ास क्र रिपोर्ताज लम्बे लम्बे इंग्लैंड में है अभी वह के बारे लिखे .....बहुत अच लगा पल्लवी
ReplyDeleteसार्थक आलेख !!
ReplyDeleteबहुत दिनों तक मैं भी उलझन में रही इस सवाल से .... लेकिन .... बहुत लोगो से बात करने और T.V देखने के बाद मेरे भी विचार यही बने कि सभी पाकिस्तानी बुरा नहीं होता....
इंसान कभी बुरा नहीं होता बुरी होती हैं उसकी भावनाएं !!
आम जनता को उनकी सरकारें जो दिशा देंगी, वही अख्तियार करते चले जाएंगे.. वही यहाँ हो रहा है..
ReplyDeleteयूट्यूब में पाकिस्तान के भारत संबंधी वीडियो मैंने देखे हैं आपके लेख से इस बात की तस्दीक होती है।
ReplyDeleteउम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteदेश या सरहद इंसान को नहीं बाँटती.......कोई भी पहले इन्सान होता है फिर चाहे कितने ही टुकड़ों में बाँट लो उसको ।
ReplyDeleteबहुत सटीक लेख |
ReplyDeleteआशा
आप सभी मित्रों एवं पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनाए रखें...आभार
ReplyDeleteसादर आमंत्रण,
ReplyDeleteआपका ब्लॉग 'हिंदी चिट्ठा संकलक' पर नहीं है,
कृपया इसे शामिल कीजिए - http://goo.gl/7mRhq
सही विचार हैं आपके।
ReplyDeleteअच्छे लोग सभी जगह होते हैं।
धूप है तो छाँव भी है , फूल भी है खार भी है
ReplyDeleteसिर्फ नफरत ही नहीं है,इस जहां में प्यार भी है |
सुंदर चिंतन...
पल्लवी जी, अच्छा लगा पढ़कर ! आपकी सोच भी काफ़ी कुछ मेरे जैसी ही है ! :)
ReplyDeleteमुझे भी ये बात बहुत खलती है जब किसी धर्म के नाम पर या देश के नाम पर लोग एक आम, साधारण इंसान को भूल जाते हैं ! भूल जाते हैं कि सबसे पहले हम इंसान हैं... उसके बाद कुछ और ! किसी दूसरे देश को क्या बुरा-भला कहें, यहाँ तो अपने ही देश में लोग लड़-झगड़ रहे हैं ! लोगों को चाहिये कि ये धुँध साफ़ करें .. और इन सब बातों से थोडा ऊपर उठकर देखें और सोचें !
~सादर!!!
बिलकुल!!मेरी एक दोस्त है जो लन्दन में रहती थी, वो अपनी एक सहेली के बड़े किस्से सुनाया करती थी जो पाकिस्तान की रहनेवाली थी और लन्दन में उसके पड़ोस में रहती थी..
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