पिछले कुछ दिनों से लगातार देख रही हूँ BBC हिन्दी न्यूज़ पेज पर जो फेसबुक पर उपलब्ध है, वहाँ फ़िल्मी सितारों की पढ़ाई को लेकर काफी समाचार पढ़ने में आ रहे हैं। जैसे करिश्मा कपूर केवल पाँचवी पास है और सलमान आठवीं पास और अन्य कई फिल्मी सितारे ऐसे हैं जिन्होंने कभी कॉलेज का मुँह भी नहीं देखा वगैरा वगैरा। अब यह सब छपना स्कूल जाते बच्चों के लिए अच्छा है या बुरा यह तो मैं कह नहीं सकती। मगर यह सब पढ़कर मुझे अपने बचपन का एक किस्सा याद आ गया। मैं और मेरा चचेरा भाई जब हम छोटे थे तो अक्सर पढ़ाई को लेकर बातें हुआ करती थी। उन दिनों पढ़ाई में न मुझे कोई खास दिलचस्पी थी और ना उसे किन्तु मुझे बड़े होने के नाते उसे प्रोत्साहन देते रहना पड़ता था। तब वो अक्सर कहा करता था अरे दीदी क्या रखा है पढ़ाई लिखाई में "लालू प्रसाद यादव" को ही देख लो, वह कहाँ बहुत पढ़े लिखे हैं। मगर आज कितने बड़े नेता है और जम कर पैसा कमा रहे हैं वो अलग, अब शायद आपको लगे कि इतने छोटे बच्चे ने आखिर लालू जी का ही उदाहरण क्यूँ दिया, तो मैं आपको बताती चलूँ कि वो इसलिए क्यूंकि उन दिनों मेरे चाचा जी को राजनीति में जाने का भूत सवार था जिसके चलते घर में सारा-सारा दिन वही माहौल रहा करता था। केवल राजनीति ही राजनीति की बातें, नेताओं की बातें तो यह उस ही का प्रभाव था जिसके चलते उस छोटे से बच्चे ने भी अपना मन बना लिया था राजनीति में जाने का और यह कहना शुरू कर दिया था कि मुझे नहीं पढ़ना, मैं तो बड़ा होकर लालू जी जैसा नेता बन जाऊंगा फिर मैं भी खुश और पापा भी खुश ...:-)
खैर यह तो बचपन की बात थी, आज वही छोटा सा बच्चा अब बड़ा हो चुका है और स्टेट बैंक में बैंगलूर में पी.ओ के पद पर नौकरी कर रहा है मगर जब यह फ़िल्मी सितारों वाली बातें और बचपन का यह किस्सा दिमाग में एक साथ टकराये, तो दिमाग में एक बात घूम गयी कि क्या पढ़ाई केवल पैसा कमाने के लिए की जाती है या हम स्वयं अपने बच्चों को केवल इसलिए शिक्षा प्राप्त करवाते हैं कि हम आगे चलकर उसके जीवन में केवल उसकी पे-स्लिप देखकर उसकी काबलियत का अंदाज़ा लगा सकें या फिर वह खुद अपनी काबलियत को अपनी पे-स्लिप के आधार पर तौल सके कि वह कितने पानी में है अर्थात यदि वह अगर अच्छा खासा कमा पा रहा है तो वह अपने जीवन में सफल है और यदि नहीं कमा पा रहा है तो असफल है। फिर भले ही वह कितना भी शिक्षित क्यूँ ना हो। मेरी इस बात से शायद कोई सहमत ना हो, मगर मेरी नज़र में तो वास्तविकता शायद यही है। क्यूंकि इस ही के आधार पर भावी जीवन निर्भर करता है, शादी भी इसी आधार पर होती है। मुझे आज भी अच्छे से याद है मेरी शादी के वक्त मुझसे मेरे माता पिता ने पूछा ज़रूर था कि तुमको लड़का पसंद है या नहीं मगर मम्मी ने धीरे से यह भी कहा था कि लड़कों की कमाई देखी जाती है शक्ल सूरत सब बाद में आती है :) यह तो मेरी किस्मत अच्छी थी जनाब, जो मेरे पतिदेव देखने में अच्छे खासे निकले :)
खैर बहुत हुई मस्ती, असल मुद्दा तो यह है कि आखिर खुद शिक्षित होते हुए भी शिक्षा को लेकर हमारी मानसिकता इतनी संकीर्ण क्यूँ है माना कि हर माता-पिता अपने बच्चे को एक काबिल और सफल इंसान के रूप में देखना चाहते है मगर उसका पैमाना उसकी कमाई क्यूँ उसके गुण क्यूँ नहीं ? मुझे तो ऐसा लगता है कि बढ़ती प्रतियोगिताओं और उसे से जुड़े आत्महत्या के कारणों के पीछे कहीं न कहीं यह भी एक मुख्य कारण है। जो ना केवल विद्यार्थियों बल्कि नौकरीपेशा लोगों में भी देखने को मिल रहा है। जाने क्यूँ मुझे ऐसा लगता है कि जो हमने अपने स्कूल में सीखा कि जो है जितना है उसमें ही संतोष करना सीखो और खुश रहो। या फिर सिर्फ इतना प्रसाय करो कि कबीर दास जी के दोहे के मुताबिक
"साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम्ब समाय
मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाये"
मगर आज कल तो जैसे यह बातें सिखायी ही नहीं जाती स्कूल में, आज कल तो बस यह सिखाया जाता है कि सफल वही है जो आगे जाकर ज्यादा से ज्यादा पैसा बना सके, नोट छाप सके क्यूँ क्यूंकि दुनिया केवल टोपर्स को याद रखती है जिसका नाम पहला लोग उसे ही याद रखते है दूसरे को नहीं, आज जो वातावरण है उसके अनुसार शायद यही ठीक हो क्यूंकि जो जमाने के साथ नहीं चलता वह पीछे रह जाता है और जो पीछे रह गया वो कितना भी काबिल और गुणी क्यूँ ना हो, कहलायेगा लूज़र ही, कभी-कभी जब गहराई में जाकर सोचती हूँ, तो बहुत अजब गज़ब सी महसूस होने लगती है यह दुनिया और इसके सिद्धांत, तब ऐसा लगने लगता है जैसे भगवान ने भी अब इंसान बनाना बंद कर दिया है। अब तो केवल पैसा कमाने के लिए रोबोट बनाए जाते है अब ज़मीन से जुड़े सीधे, सच्चे, सदा जीवन गुज़ारने वाले संवेदनशील लोग का युग जा चुका है अब केवल प्रेक्टिकल सोच वाले लोगों का युग है हम जैसे इमोशनल फूल्स का नहीं .... इसलिए शायद चमक दमक से भरी चकाचौंध से भरी इस दुनिया के फ़िल्मी सितारों की यह शिक्षा सम्बन्धी बाते भी लोगों तक यही संदेश पहुंचा रही है कि पढ़ाई लिखाई से कुछ नहीं होता कामयाब होने के और भी कई तरीके है। बस उसके लिए कुछ भी कर गुज़रने का जज़्बा होना चाहिए, फिर चाहे वो नैतिक हो या अनैतिक आज की तारीख में सफल वही है जिसका नाम हो गया हो, वो कहते हैं ना
"कुछ लोगों का नाम उनके काम से होता है ,और कुछ का बदनाम होकर"
बस इस ही नसीहत पर चलते है आज महानगरों के अधिकाश लोग मुझे तो ऐसा ही लगता है आपका क्या ख़याल है ....?
पढाई का अपना महत्त्व है। लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि सिर्फ पढ़े लिखे ही सफल होते हैं। धीरुभाई अम्बानी कुछ ज्यादा पढ़ा नहीं था। सचिन भी दस तक ही पढ़ा है।
ReplyDeleteअपने गुणों से भी मनुष्य जिंदगी में सफल होता है।
फिर भी अब फकीरी का ज़माना नहीं रहा। आरामदायक जीवन के लिए पैसा ज़रूरी है। हालाँकि जीवन सुखी भी हो , यह ज़रूरी नहीं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteदो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
मैं अपनी बात करूँगा मैं कम पढ़ा-लिखा हूँ और आज के जमाने में मुझे इस की कमी
ReplyDeleteबहुत महसूस होती है पर सिर्फ अच्छे शब्दों के लिए....अच्छा लिखने के लिए न की अच्छे-बुरे
के एहसासों को महसूस करने के लिए !
आजकल या हमेशा से पढाई का सबन्ध अपने अच्छे-बुरे ज्ञान के लिए होना जरूरी रहा है ..
और यह ठीक भी है (यह मेरी सोच है )
आभार !
मघ्यर्वा की एक ही पूंजी है, शिक्षा.
ReplyDeleteबड़ा विषय लिया और उसके विषय में जो भी लिखा वह आज का सत्य है , सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि उसके घर वाले भी ऐसा ही सोचते हैं . उसकी के स्थान पर उसको शिक्षा के उस क्षेत्र में डालना चाहते हैं जहाँ पॅकेज अच्छा मिले और आज कल तो ये चलन है की सबसे पहले बच्चे का पॅकेज पूछा जाता है। बल्कि मैंने तो ऐसे लोगों को भी देखा है जो अपने बच्चे को ऐसी शिक्षा देते हैं। इस पोस्ट में बड़ी कमाई है बस तुम वहां तक पहुँचो फिर कमाई के रस्ते मैं बताऊंगा . जब हमारी मानसिकता ही ऐसी है तो फिर हम अपने बच्चे को इंसानियत के पाठ को कैसे पढ़ा सकते हैं? पैसा अहम् है लेकिन उससे अहम् है मन की शांति - 99 के फेर में पड़ने वाला कभी भी शांत नहीं रह सकता है। उसको पैसे बनाने के फेर में नींद नहीं आती है। चाहे वह व्यापारी हो, नौकरी वाला हो . लेकिन पैसे को प्रमुखता न देने वाले भी हैं इस दुनियां में। सुख उसमें है कि इंसान जितना अर्जित करे उसको परिवार के साथ हंसी ख़ुशी के साथ एन्जॉय कर सके। न कि पैसे घर में फ़ेंक कर खुद उसी के लिए भटकता रहे
ReplyDeleteआभार ....
ReplyDeleteशिक्षा अपनी पूंजी है और इसका अपना महत्व है,,,
ReplyDeleterecent post : तड़प,,,
ज्ञान और सफलता दोनों अलग पहलू है . बड़े बड़े ज्ञानी चप्पल घिसते पाए जाते है . और अंगूठा छाप लक्ष्मी पुत्र कहलाये जाते है.
ReplyDeleteजिस प्रकार पैसा कमाना ही योग्यता का मानक नहीं है उसी प्रकार शिक्षा की डिग्रियाँ बटोर लेना ही सफलता का पैमाना भी नहीं है। पोन्टी चढ्ढा ने बहुत पैसा कमाया लेकिन उसके जैसी योग्यता शायद कोई अपने बच्चों में न देखना चाहे। कबीरदास जी के पास कोई डिग्री या किसी गुरुकुल की शिक्षा नहीं थी लेकिन उनकी पूजा बड़े-बड़े विद्वान करते हैं। सदाचार और उच्च विचार का हमेशा सम्मान होता है। इसके लिए न पैसा अनिवार्य है न बड़ी डिग्रियाँ। अच्छे मूल्यों का विकास और परिपालन ही व्यक्तित्व को आकर्षक और गरिमापूर्ण बनाता है।
ReplyDeleteपहले तो मैं यह बता दूं कि लालू प्रसाद एलएलबी हैं। आजकल हम नेताओं पर अनावश्यक अशिक्षित होने का आरोप जड़ देते हैं, यह ठीक नहीं है। वैसे भी वर्तमान शिक्षा केवल रोजगारोन्मुखी है, इस शिक्षा से व्यक्ति ज्ञानवान नहीं बनता। इसलिए यदि कोई भी कलाकार डिग्री लेने में अपना समय बर्बाद करे, उस से ज्यादा अच्छा है कि वह उस विधा का अनुभव प्राप्त करे। क्या संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकारी आदि में पारंगत होना शिक्षा नहीं है? केवल किसने कौन सी डिग्री ली है, इसी से व्यक्ति महान समझा जाएगा? हिन्दी पढ़ने वाला बेवकूफ् और अंग्रेजी पढ़ने वाला बुद्धिमान, यह सोच यही से आयी है। देश में रहनेवाला मूर्ख और विदेश जाने वाला होशियार। इसलिए डिग्रियों से व्यक्ति की महानता को नहीं तौला जा सकता। ये डिग्रियां तो सौ साल पुरानी है, पूर्व में तो केवल ज्ञान ही था।
ReplyDeleteविद्या से जितना चाहे पैसा अर्जित किया जा सकता है और गुण तो वो देती ही है मगर बिना विद्या के इंसान का कोई मोल नहीं क्योंकि पैसा गुणों की कसौटी कभी नही बन सकता । और किसी भी इंसान का आकलन उसके गुणों और कर्मों से हीकिया जा सकता है ना कि पैसे से।
ReplyDeleteपल्लवी जी लक्ष्मी पढ़े -लिखे लोगों के पास नहीं रहती हैं |अच्छी जानकारी देने के लिए आभार |
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत पसंद आई हमें !:)
ReplyDeleteआजकल के बच्चे ? आजकल के बच्चे समझते हैं Brand name ! कोई भी चीज़ ख़रीदो तो पहले Brand देखेंगे, जो कि ग़लत है ! मुझे खुद अपने बेटे की इस बात का बुरा लगता है, जो अब बड़ा हो रहा है ! ग़लती उसकी नहीं है, आजकल अपने आस-पास हो ही यही सब रहा है ! जब भी वो कोई ऐसी बात करता है, मैं उसे तुरंत टोकती हूँ, तुम अपने Brand का सोचो.... -तुम्हें भी पढ़ाई-लिखाई ठीक से कर के अपना सही Brand बनाना है कि नहीं ? मगर, मेरे इस टोकने की वजह ये नहीं कि उसे सिर्फ़ पैसे कमाने के लिए पढ़ना है.. बल्कि ये है कि बेसिक एजुकेशन ज़रूरी है ! और जहाँ तक हो सके अच्छे नंबर लाकर ! टॉपर होना ज़रूरी नहीं ! उसके बाद जिस भी क्षेत्र में चाहे वो आगे बढ़ सकता है ! आगे उसके गुण उसे ले जाएँगे और पैसे भी उन्हीं गुणों के अनुसार मिल जायेंगे !
और देखा जाये, तो पैसा भी कुछ हद तक ज़रूरी ही है... आजकल की लाइफस्टाइल देखते हुए ! मगर एक बात अपनी जगह सही है, और वो ये... पैसा कमाने में उसी हद तक जुटना चाहिए, जितना ज़रूरी हो और सही ढंग से हो ...नहीं तो सिर्फ़ 'पैसा और स्टाइल' ही रह जाता है... 'लाइफ' बीच में से गायब हो जाती है...!
माफ़ कीजिएगा! हमने तो इतना बड़ा लेक्चर दे दिया....:( क्या करें, रहा ही नहीं गया !
~सादर!!!
जी बिलकुल ठीक कहा आपने इस जानकारी के लिए आभार ,मगर यह बचपन की बात थी तब हमें यानी मुझे और उसे हम दोनों को ही लालू जी की शिक्षा के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। और मैंने भी यही कहने का प्रयास किया है कि व्यक्ति की नैतिक शिक्षा अनिवार्य है। बाकी कोई बड़ी डिग्री मिले न मिले वो चलेगा मगर पैसा भी इतना ज़रूरी नहीं की इंसान रोबोट ही बन जाये मेरी नज़र में तो जो व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में फ़ेल हो जाता है वह भी शिक्षित ही कहलाता है उसे आप अशिक्षित की श्रेणी में नहीं रख सकते। मेरी नज़र में शिक्षा का या शिक्षित होने का या यूं कहिए की सफल होने का डिग्री से कोई संबंध नहीं...
ReplyDeleteआभार....अनीता जी, इसे अच्छी और क्या बात हो सकती है कि आपको मेरा लिखा पसंद आया :) रही बात लेक्चर की तो मैं उसे लेक्चर की श्रेणी में नहीं रखती। क्यूंकि अपने विचार खुल के रखना ही तो यह बताता है कि आपने लिखे गए विषय को कितनी गंभीरता से लिया और आप की टिप्पणी भी यह बता रही है कि आपने भी मेरी तरह इस बात का अनुभव किया है। तभी आप अपने विचार यहाँ खुलकर रख सकी और यही मैं चाहती हूँ।
ReplyDeleteशिक्षा सबको समाहित करने को प्रेरित करती है..
ReplyDeleteआज के लाइफ स्टाइल को देखते हुये लोगों का रुझान पैसे पर अधिक है .... आज के बच्चे शिक्षित हो कर नोट कमाने वाली मशीन बन कर रह गए हैं ... शिक्षा का असली उद्देश्य ही खत्म होता जा रहा है .... विचारणीय लेख
ReplyDeleteपढाई का महत्व हैं किन्तु यदि आपकी रूचि इसमें नही हैं तो भी आप बहुत सफल हों सकते हैं ......गहरी आकांक्षा और किसी भी फील्ड में बेहतर करने कि तमन्ना मुख्य हैं
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