यूं तो दुनिया का हर इंसान, इंसान ही है। मगर फिर भी मुझे अलग-अलग देश के लोगों से मिलना, उनकी बातें सुनना, उनके विचार जानना हमेशा से एक नया सा अनुभव लगता है। यह जानते हुए भी कि सामने वाला व्यक्ति भी मेरी तरह एक आम इंसान ही है, इसलिए उसकी सोच भी मेरी ही तरह हो सकती है। उसमें कोई आश्चर्य करने जैसी बात नहीं है। मगर फिर भी जाने क्यूँ, मेरी जब भी किसी अलग देश के देशवासी से बात होती है, तो मुझे जानकार बड़ा आश्चर्य सा होता ही कि वो भी वैसा ही सोचता है जैसा हम सोचते है अभी हाल ही में मेरे बेटे के जन्मदिन पर उसके एक दोस्त की माँ से मेरी बात हुई। वह लोग श्रीलंका से है अर्थात श्रीलंकन है। तभी बातों ही बातों में शादी को लेकर उनके विचार भी मुझे कुछ अपने विचारों से मिलते जुलते से लगे। उनका कहना था कि आजकल शादी ब्याह के रिश्ते महज़ एक वस्तु की तरह हो गए हैं और उससे ज्यादा कुछ भी नहीं, महिलाएं आत्मनिर्भर हुई हैं तब से सबने सिर्फ अपने बारे में सोचना शुरु कर दिया है। जब की पहले शायद संयुक्त परिवार को जोड़े रखने के पीछे सबसे बड़ा योगदान या यूं कहें की भूमिका केवल महिलाओं की ही हुआ करती थी। जो अब पहले की तुलना में काफी कम हो गयी है। यह बात सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्यूंकि इसके पहले मुझे यह जानकारी नहीं थी की विदेशों में भी संयुक्त परिवार का चलन रहा था कभी, उदहारण के तौर पर उन्होने कहा कि पहले जब हमारे घर में कभी टीवी बिगड़ जाता था या हमारा कोई कपड़ा फट जाता था तो हम उसको ठीक करवाकर या स्वयं खुद ठीक करके दुबारा इस्तेमाल करने लायक बना लिया करते थे मगर आज के दौर में ऐसा नहीं है अब तो अगर कुछ भी खराब हो जाता है तो लोग उसे फेंक कर नया लाना ज्यादा पसंद करते है। खासकर यहाँ, क्यूंकि यहाँ चीज़ें ठीक करवाना, नयी चीज़ें खरीदने से कहीं ज्यादा महंगा पड़ता है। इसलिए ज्यादातर लोग खराब हुई चीज़ को फेंक कर नयी लेना पसंद करते हैं फिर चाहे वो घर का फर्नीचर हो या कपड़े।
ठीक वही हाल यहाँ शादियों का भी है फटाफट शादी, बच्चे और फिर तलाक सब कुछ इतनी जल्दी और आसानी से हो जाता है कि समय का पता ही नहीं चलता, शायद ऐसा उन्होंने इसलिए कहा था क्यूंकि वह स्वयं तलाकशुदा थी। दूसरी ओर मेरे बेटे के एक और दोस्त की बहन बैठी थी, जो देखने में बच्चे की माँ लग रही थी जब की उसकी उम्र महज़ 22-23 साल ही थी उसका कहना था कि अरे यही तो सही उम्र है शादी की, मेरा बस चले तो मैं अभी कर लूँ :) यह सब सुनकर मुझे थोड़ा अजीब लगा। अब इस बात पर आप मुझे रूढ़िवादी विचारधारा रखने वालों की श्रेणी में रख सकते हैं। मगर शादी को लेकर तो कम से कम मेरी ऐसी सोच ज़रा भी नहीं है कि घर के अन्य समान की तरह यदि शादी में किसी भी कारणवश कोई दरार पड़ने की संभावना नज़र आ रही हो, तो मैं उसे बजाए जोड़ने की कोशिश करने के तलाक लेना ज्यादा सही समझूँ। हालांकी शायद ही कोई ऐसा सोचता हो क्यूंकि कोई भी व्यक्ति भला क्यूँ चाहेगा कि परिवार बढ़ने के बाद किसी के भी जीवन में तलाक की नौबत आए। मगर उसका जैसा कहना था और जो अभी पिछले दो चार सालों में मैंने अपने आसपास के दोस्तों और रिशतेदारों को देखते हुए जो कुछ भी अनुभव किया, उसको मद्देनज़र रखते हुए मुझे तो यही अनुभव हुआ कि शादी को लेकर अब लोगों में सब्र या संयम नाम की चीज़ बहुत कम होती जा रही है। ज़रा-ज़रा सी बातों पर लोगों का अहम आहत हो जाता है तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती और लोग तलाक के निष्कर्ष तक पहुँच जाते है।
कई बार तो वहज वाजिब लगती है। क्यूंकि वो कहते है न "जिस तन लागे वो मन जाने" क्यूंकि कई बार तलाक मुक्ति का मार्ग भी बन जाता है। मगर अधिकतर किस्सों में जो मैंने अब तक केवल देखे सुने हैं उनमें तो ऐसा लगता है कि शायद समस्या इतनी गंभीर भी नहीं थी कि इतना बड़ा कदम उठाया जाये। वैसे मुझे ऐसा लगता है कि ऐसे हालातों में लोगों को आपस में बैठकर गंभीरता से उस विषय पर बात करने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। जिसे लेकर तलाक के बारे में सोचा जा रहा होता है। खासकर तब जब उनके बीच उनकी संतान भी हो, क्यूंकि तलाक के अधिकांश मामलों में यदि कोई सबसे ज्यादा भुगतता है तो वह बच्चा ही होता है और बहुत हद तक यह बात भी सही लगती है कि ऐसी बहुत कम समस्याएँ होंगी जिन्हें बात करके हल नहीं किया जासकता। बस ज़रूर है पूरी ईमानदारी के साथ उस बात पर गंभीरता से सोच विचार करने कि उस प बात करने कि जो शायद लोग कर नहीं पाते। उस महिला के केस में भी हमें उस बच्चे को देखकर बार बार यही महसूस हो रहा था कि इतना अच्छा और शालीन बच्चा बेचार ज़िंदगी भर अपने पिता के उस प्यार के लिए तरसता रहेगा जिसका वो हकदार है। फिर चाहे गलती माता या पिता किसी की भी रही हो, मगर उसे उसका वो हक मिल नहीं सकता। :( इसलिए मेरी समझ से चाहे देश हो या विदेश तलाक जैसे गंभीर मसलों पर निर्णय बहुत सोच समझ कर लिया जाना चाहिए। आप सबकी क्या राय है ?
ठीक वही हाल यहाँ शादियों का भी है फटाफट शादी, बच्चे और फिर तलाक सब कुछ इतनी जल्दी और आसानी से हो जाता है कि समय का पता ही नहीं चलता, शायद ऐसा उन्होंने इसलिए कहा था क्यूंकि वह स्वयं तलाकशुदा थी। दूसरी ओर मेरे बेटे के एक और दोस्त की बहन बैठी थी, जो देखने में बच्चे की माँ लग रही थी जब की उसकी उम्र महज़ 22-23 साल ही थी उसका कहना था कि अरे यही तो सही उम्र है शादी की, मेरा बस चले तो मैं अभी कर लूँ :) यह सब सुनकर मुझे थोड़ा अजीब लगा। अब इस बात पर आप मुझे रूढ़िवादी विचारधारा रखने वालों की श्रेणी में रख सकते हैं। मगर शादी को लेकर तो कम से कम मेरी ऐसी सोच ज़रा भी नहीं है कि घर के अन्य समान की तरह यदि शादी में किसी भी कारणवश कोई दरार पड़ने की संभावना नज़र आ रही हो, तो मैं उसे बजाए जोड़ने की कोशिश करने के तलाक लेना ज्यादा सही समझूँ। हालांकी शायद ही कोई ऐसा सोचता हो क्यूंकि कोई भी व्यक्ति भला क्यूँ चाहेगा कि परिवार बढ़ने के बाद किसी के भी जीवन में तलाक की नौबत आए। मगर उसका जैसा कहना था और जो अभी पिछले दो चार सालों में मैंने अपने आसपास के दोस्तों और रिशतेदारों को देखते हुए जो कुछ भी अनुभव किया, उसको मद्देनज़र रखते हुए मुझे तो यही अनुभव हुआ कि शादी को लेकर अब लोगों में सब्र या संयम नाम की चीज़ बहुत कम होती जा रही है। ज़रा-ज़रा सी बातों पर लोगों का अहम आहत हो जाता है तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती और लोग तलाक के निष्कर्ष तक पहुँच जाते है।
कई बार तो वहज वाजिब लगती है। क्यूंकि वो कहते है न "जिस तन लागे वो मन जाने" क्यूंकि कई बार तलाक मुक्ति का मार्ग भी बन जाता है। मगर अधिकतर किस्सों में जो मैंने अब तक केवल देखे सुने हैं उनमें तो ऐसा लगता है कि शायद समस्या इतनी गंभीर भी नहीं थी कि इतना बड़ा कदम उठाया जाये। वैसे मुझे ऐसा लगता है कि ऐसे हालातों में लोगों को आपस में बैठकर गंभीरता से उस विषय पर बात करने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। जिसे लेकर तलाक के बारे में सोचा जा रहा होता है। खासकर तब जब उनके बीच उनकी संतान भी हो, क्यूंकि तलाक के अधिकांश मामलों में यदि कोई सबसे ज्यादा भुगतता है तो वह बच्चा ही होता है और बहुत हद तक यह बात भी सही लगती है कि ऐसी बहुत कम समस्याएँ होंगी जिन्हें बात करके हल नहीं किया जासकता। बस ज़रूर है पूरी ईमानदारी के साथ उस बात पर गंभीरता से सोच विचार करने कि उस प बात करने कि जो शायद लोग कर नहीं पाते। उस महिला के केस में भी हमें उस बच्चे को देखकर बार बार यही महसूस हो रहा था कि इतना अच्छा और शालीन बच्चा बेचार ज़िंदगी भर अपने पिता के उस प्यार के लिए तरसता रहेगा जिसका वो हकदार है। फिर चाहे गलती माता या पिता किसी की भी रही हो, मगर उसे उसका वो हक मिल नहीं सकता। :( इसलिए मेरी समझ से चाहे देश हो या विदेश तलाक जैसे गंभीर मसलों पर निर्णय बहुत सोच समझ कर लिया जाना चाहिए। आप सबकी क्या राय है ?
तलाक एक ऐसी समस्या है कि इससे किसी का भला नहीं होता नातो पति पत्नी का नाही बच्चों का इसलिए मेरा तो यह विचार है कि तलाक से दूर ही रहा जाए तो जीवन अधिक अच्छा होगा | यह जरूर है कि थोड़ी समझ् दारी और धैर्य की आवश्यकता होती है शादी को बनाए रखने के लिए |
ReplyDeleteआशा
सोच पर इतने सारे संशय के,संभावनाओं के,रातोंरात अमीर बन् जाने के परदे पर गए कि घर बालू का हो गया,रिश्ते मुट्ठी में पड़े रेत की तरह हो गए .............. अब शादी पॅकेज से होती है और सामनेवाला अच्छा होगा या बुरा - उससे पहले अपनी अहमियत की लकीर गाढ़ी करना .
ReplyDeleteइसलिए मेरी समझ से चाहे देश हो या विदेश तलाक जैसे गंभीर मसलों पर निर्णय बहुत सोच समझ कर लिया जाना चाहिए।
ReplyDeleteसही कहा आपने ...
नवयुग का नया परिवेश बिगड़ने लगा है!
ReplyDelete"जिस तन लागे वो मन जाने"
ReplyDeleteचिंतनशील विचारनीय प्रस्तुति हेतु आभार ...
पश्चिम में शादी के मामले में लोगों में सहनशीलता ख़त्म होती जा रही है . इसका खामियाजा बच्चों को ही भुगतना पड़ता है। शुक्र है , यहाँ अभी पति पत्नि में इतनी दूरियां नहीं आती कि तलाक लेना पड़े। हालाँकि नई पीढ़ी में पश्चिमी प्रभाव नज़र आने लगा है।
ReplyDeleteपति पत्नी के बीच मतभेदों को समझ बूझ कर सुलझाया जा सकता है...तलाक का बच्चों के जीवन पर बहुत कटु प्रभाव पड़ता है..बहुत सारगर्भित आलेख...
ReplyDeleteइन निर्णयों पर समाज का प्रभाव बहुत अधिक होता है, स्वतन्त्रता यदि अधिक हो जाये तो व्यक्तिवादी हो जाते हैं व्यवहार..
ReplyDeleteमैं भी डॉ दराल की बातों से सहमत हूँ
ReplyDeleteहर जगह बदलाव हुआ है और उसका असर यहाँ भारत में भी देखने को मिलता है पर अभी यहाँ उसकी % कम है
स्वतंत्र हो जाने के मायने अब कुछ और ही जाने लगे हैं ...... इसमें देश या विदेश का कोई अंतर नहीं है .....
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट .....
ReplyDeleteप्रेरख आलेख !!
ReplyDeleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
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उसका जैसा कहना था और जो अभी पिछले दो चार सालों में मैंने अपने आसपास के दोस्तों और रिशतेदारों को देखते हुए जो कुछ भी अनुभव किया, उसको मद्देनज़र रखते हुए मुझे तो यही अनुभव हुआ कि शादी को लेकर अब लोगों में सब्र या संयम नाम की चीज़ बहुत कम होती जा रही है। ज़रा-ज़रा सी बातों पर लोगों का अहम आहत हो जाता है तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती और लोग तलाक के निष्कर्ष तक पहुँच जाते है। सही कह रही है ...पल्लवी आप ...अब धैर्य नहीं ...कल का विचार नहीं ..जो है वो ये पल है जीवन का वो अगर आनंद नहीं देता तो छोडो ....आजकल लोग न तो आगा न ही पीछा सोचते है ....उसी का प्रणाम है ये तत्काल फैसले ,जो दर्द और विसंगत जीवन के अलावा कुछ नहीं देते ....
ReplyDeleteजरा जरा सी बात में अहम् का आहत होना ही इसका कारण है ...फिर कोई भी एडजस्ट नहीं करना चाहता ...जिंदगी कोई पकी-पकाई थाली तो नहीं ...जो आगे परोस दी जाए ...फिर हम जो अपनी अगली पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करेंगे ..वो उनके संस्कारों में उतर जायेगी ...कुण्ठा , फ्रस्ट्रेशन , अवसाद ...उपजने में देर नहीं लगती ...
ReplyDeletebehtreen lekh likha hai ji aapne, sach me ab bahut badal gaya hai jamana**********
ReplyDeleteशादी ओर फिर तलाक दोनों का ही इरने सोच समझ कर होना चाहिए ... अगर आपस में नहीं बन रही तो शुरुआत में ही बच्चे न हों इसका फैंसला कर लेने चाहिए ... जहाँ तक हो समस्या को बातचीत कर के सुलझाने का प्रयास होना चाहिए ... कुछ सब्र दोनों ओर से होना चाहिए ...
ReplyDeleteविचारणीय उम्दा प्रस्तुति,,,
ReplyDeleterecent post: मातृभूमि,
सटीक विषय है .........बात रिश्तों की है तो अब व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लोग ज्यादा महत्त्व देने लगे हैं........कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं होता.......जबकि जिंदगी का दूसरा नाम ही समझौता है......सार्थक लेख ।
ReplyDeleteवक़्त मिले तो जज़्बात पर भी आयें ।
सर्वप्रथम स्वयं को समझने की जरुरत होनी चाहिए। क्योंकि हम दुनिया में अकेले आते हैं और यहां से भी अकेले ही जाते हैं। परिवार, पति/पत्नी, बच्चे किसी के भी जीवन में द्वितीय कारक हैं। इनसे जुड़ने से पूर्व स्वयं से जुड़ना होगा। आधुनिक व्यक्तिवाद के समय में यह कठिन जान पड़ता है।
ReplyDeleteतलाक जैसे गंभीर मसलों पर निर्णय बहुत सोच समझ कर लिया जाना चाहिए।
ReplyDeleteसही कहा आपने .
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteश्रीलंका भारत का ही हिस्सा रहा है,अंग्रेजों ने हमारे टुकडे किये हैं। परिवार व्यवस्था तो सारी दुनिया में रही है। लेकिन अब विदेशों में व्यक्तिवाद हावी होगया है।
ReplyDeleteमेरी नजर में तलाक समस्या का हल नहीं होता ,,,
ReplyDeleteतलाक के परिणामस्वरूप और कई समस्याएँ आ खड़ी होती हैं,,,,
जहाँ तक सम्भव हो , कोशिश होनी चाहिए कि तलाक की स्थिति ही ना आये ,,,
आप देख सकती हैं कि पहले के ज़माने में ( ज्यादा पीछे जाने की जरुरत नहीं है , बस 30-35 साल पीछे चले जाइए )
पति-पत्नी में अनबन होती थी, लेकिन तलाक ना के बराबर
वो लड़ते थे मगर समय के साथ एक-दुसरे के लिए प्रेम कहीं न कही, धीरे धीरे ही सही, बढ़ता रहता था ,,, और कुछ सालों बाद ऐसा लगता कि अगर वो तलाक ले लेते तो शायद अच्छा नहीं होता
मगर आज तो स्थिति बिलकुल विपरीत है,,,,
शादी को लेकर अब लोगों में सब्र या संयम नाम की चीज़ बहुत कम होती जा रही है.....sahi kaha ,isiliye talak zyada hone lage hain.
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