आज कल सभी समाचार पत्र जैसे खून से रंगे हुए दिखाई देते हैं कहीं कुछ अच्छा हो ही नहीं रहा हो जैसे और यदि हो भी रहा हो तो उसे देखकर भी मन नहीं करता उस खबर को पढ़ने का, यह सब देखकर पढ़कर और टीवी पर सुनकर ऐसा लग रहा है कि माया कलेंडर गलत नहीं था। दुनिया खत्म हो ही गयी है, अब कसर ही क्या बची है दुनिया के ख़त्म होने में, क्यूंकि मानव कहे जाने वाले प्राणी के अंदर से मानवता तो अब लगभग खत्म हो ही गयी है। जिसका साक्षात प्रमाण पहले दिल्ली की "दामिनी" और अब हमारे देश की सुरक्षा सीमा पर तैनात जवानो की निर्मम हत्या। इस सबसे तो अच्छा था दुनिया वैसी ही खत्म हो जाती। हालांकी यह कोई नयी घटनाएँ नहीं है। पहले भी न जाने कितनी बार ऐसा हो चुका है, मगर अब एक के बाद एक लगातार अमानवीय घटनाओं का यूं रोज़ ही सामने आना जैसे पहले से ही भारी मन को और भी भारी किए जा रहा है ऐसा महसूस होने लगा है जैसे अंदर ही अंदर दम घुट रहा है चारों ओर बस एक ही तरह की खून से लबरेज़ खबरें है।
अब तो जैसे उम्मीद की कोई किरण भी नज़र नहीं आती मगर फिर भी न जाने किस उम्मीद पर दुनिया कायम है कि जिसके बल पर बस जिये जा रहे है हम, यूं लग रहा है जैसे रेत के महल बनाने की बेबुनियाद कोशिश तो कर रहे है हम,मगर हर रोज़ कोई न कोई बड़े हादसे की एक लहर आकर मिटा जाती है हमारे एक नव निर्माण समाज का महल जो एक सपना सा लगता है मगर कोशिश तब भी जारी है जैसे ताश के पत्तों से बने घर को मिटाने के लिए हवा का एक झोंका ही काफी होता है ठीक उसी तरह रोज़ हमारी उम्मीदों के महल को ध्वस्त करने के लिए एक हादसा ही काफी है, कभी-कभी मन करता है काश हमारी कल्पनाओं में भी इतनी शक्ति भर देता भगवान कि बच्चों की चित्रकारी की तरह हम सब कुछ मिटाकर अपने मुताबिक एक नए सिरे से शुरुकर पाते, इस देश का एक नव निर्माण जहां हर तरफ सुकून होता, शांति होती हर चेहरा खिला होता गुलाब की तरह, जहां हर व्यक्ति सुरक्षित होता, जहां न कोई लिंग भेद होता, सब समान रूप से एक साथ एक सी ज़िंदगी बसर करते न कोई अमीर होता न कोई गरीब होता। काश मेरा देश एक खूबसूरत तस्वीर होता....मगर यह है ख़्वाबों ख़यालों की बातें कभी टूट कर चीज़ कोई जुड़ी है ?
एक तरफ एक अंजान, देश की बेटी के लिए पूरा देश लड़ रहा है और दूसरी तरफ अपने ही देश का एक भाग दूसरा देश बेवजह ही हमारे देश के जवानो पर सितम कर रहा है। देश की सुरक्षा सीमा पर यह जवानो के कत्ले आम वाली खबर पढ़कर एक बार को यह ख़याल भी आया मेरे मन में कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पाकिस्तान सदा हमारा ध्यान अपनी और केन्द्रित रखना चाहता है। इसलिए उसने ऐसा किया, क्यूंकि अभी हमारा देश "दामिनी" को न्याय दिलाने में व्यस्त था। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी यह खबर ज़ोर पकड़ चुकी थी और यह बात पाकिस्तान से देखी नहीं गयी कि हिंदुस्तान ने आपसी झगड़ों को भूलकर भला किसी और मुद्दे को इतनी तूल कैसे दे दी इसलिए उसने हमारा ध्यान अपनी और खींचने के लिए ऐसी घिनौनी, शर्मनाक एवं अमानवीय हरकत की?? मुझे तो यही लगता है अब इस विषय पर आपका क्या विचार है क्या यही सत्य है ?
bilku vanchhit prastuti pallvi ji ........vartman me desh bahut buri sthitiyon se gujar rha hai ......aisa lagata hai jaise desh ka sampoorn astittv hi khatre me hai ....bhagwan desh ke nagarikon ko sadbudhi de bs yhi dua karata hun
ReplyDeleteभौतिकता और आधुनिकता की हवस ने समाज का ताना बाना बिखेर कर रख दिया। आज लोग संस्कारों को छोड़ कर सिर धन के पीछे भाग रहे हैं। हमारे मनिषियों ने समाज के संचालन के 5 यम और 5 नियम बनाए हैं और उनके तोड़ने वाले की लिए दंड का निर्धारण भी किया है। लेकिन वर्तमान व्यवस्था में ये विलुप्त हो गए। जिसके कारण समाज में अराजकता बढ रही है।
ReplyDeleteअसंयम हमेशा झगड़े की जड़ होत है। अगर मनुष्य हो या कोई देश संयमित व्यवहार करे तो झगड़े लड़ाई एवं विवाद का प्रश्न ही नहीं उठता।
सार्थक आलेख के लिए शुभकामनाए
हो सकता है ऐसा भी ।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा मुद्दे पर अपने विचार रखे |बहुत अच्छा सम्प्रेषण |आजकल संवेदनाएं मर गयी हैं सिर्फ स्वार्थ भर रह गया है |पूरा का पूरा पेपर ऐसे ही समाचारों से भरा होता है |
ReplyDeleteआशा
Meaning full presentation. Nice article.
ReplyDeleteबदलाव तो होगा, जरुर होगा, पर कब होगा ये तय नहीं है
ReplyDeleteपुराने दिन लौट नहीं सकते,पर अच्छे दिन फिर से जरुर दस्तक देंगे,ये तो विश्वास है
विचारनीय मुद्दे पर आपने सार्थक लेख लिखा है। कुछ ऐसे प्रश्न है जिसपर चिंतन ज़रूरी है।
ReplyDeletesaarthak lekh hai aapka.........
ReplyDeletesarthak aalekh
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (23-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
बदलाव तो होना ही है पर कब होगा पता नही उम्मीद पर ही दुनिया कायम है..सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteSateek aur samyik udgaar
ReplyDeleteहो सकता है ...होना भी चाहिए....... बढ़िया लगा लेख ....
ReplyDeleteउम्मीद पर दुनिया कायम है!
ReplyDeleteसमसामयिक प्रस्तुति के लिए बधाई ........आपका लेख विचारनीय है पर अब यहाँ चिंतनशील लोग बचे ही कितने है .........और जो है वो अनोदालन कर रहे है
ReplyDelete................
मानव खत्म हो सकता है,लेकिन मानवता कभी खत्म नहीं होती।
ReplyDeleteमैं भी आपके अनुभवों से पीड़ित हूं। माया कलेण्डर की बता तो कब की सच हो गई है। बहुत भावपूर्ण विचार प्रवाह।
ReplyDeleteआभार....
ReplyDeleteआप सभी पाठकों एवं मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें आभार .....
ReplyDeleteपाकिस्तान में भी चुनाव होने हैं, इसलिए वो ऐसी हरकते अब करता ही रहेगा। सावधान तो हमें रहना होगा।
ReplyDeleteसभी दिक्कतों के बाद भी हिंदुस्तान आज अपने दम पर, धीरे धीरे ही सही पर आगे बढ़ता जा रहा है, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान इसके विपरीत लगभग पूरी तरह से पूरे विश्व पर निर्भर है ... केवल इसी खुन्नस मे १९४७ से लगातार वो कुछ न कुछ हरकत कर हमारा और बाकी विश्व का ध्यान अपने ओर किए रखता है !
ReplyDeleteवो जो स्वयं विलुप्तता मे चला गया - ब्लॉग बुलेटिन नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को समर्पित आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आपका सदैव स्वागत है।
ReplyDeleteजघन्य कृत्यों का कोई भी कारण कैसे हो सकता है भला?
ReplyDeleteसार्थक आलेख लिखने के लिए शुभकामनाए,,,,,
ReplyDeleterecent post: गुलामी का असर,,,
विचारणीय लेख ....
ReplyDeleteआप की मनचाही हसीं तस्वीर के लिए ....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
बच्चों की चित्रकारी की तरह सब कुछ मिटाकर सब अच्छा बना लेते...काश!
ReplyDeleteनक़्शे बदलते रहते हैं ... बड़े से बड़े आए ओर चले गए ... बदलाव की प्रक्रिया सतत है .. रहेगी ..
ReplyDelete