कोई बता सकता है क्या मुझे कि इस दुनिया का सबसे मुश्किल काम क्या है ? :) है कोई जवाब किसी महानुभाव के पास ? मैं बताऊँ इस दुनिया मैं यदि सबसे मुश्किल कोई काम है तो वो है परवरिश, जिसमें लगभग रोज़ नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है कभी-कभी तो कुछ ऐसी चुनौतियाँ सामने होती हैं जिस पर हँसी भी बहुत आती है और समस्या भी बहुत गंभीर लगती है, ऐसे मैं पहले खुद को तैयार करना ही मुश्किल हो जाता है कि क्या करें और कैसे करें कि बच्चों को बात भी समझ में आ जाए और उन्हें बुरा भी न लगे जैसे वो कहते हैं ना "साँप भी मर जाये औ लाठी भी न टूटे"। जाने क्यूँ लोग लड़कियों को लेकर चिंता किया करते हैं मुझे तो लड़के की ज्यादा चिंता रहती है इसलिए नहीं कि वो मेरा बेटा है, क्यूंकि यह तो एक बात है ही मगर इसलिए भी कि कई ऐसे मामले हैं जिसमें लड़कियां बिना समझाये भी ज्यादा समझदारी दिखा देती है और लड़कों को हर बात बिठाकर समझनी पड़ती है। :)
खैर इन मामलों में मुझे ऐसा लगता है कि आजकल जो हालात है उनमें पहले ही एक अच्छी और सही परवरिश देना, दिनों दिन कठिन होता चला जा रहा है। क्यूंकि ज़माना शायद तेज़ी से बदल रहा है और हमारी रफ्तार धीमी है ऊपर से यह मीडिया और फिल्मों के आइटम गीत रही सही कसर पूरी कर रहे हैं। आप को जानकार शायद हँसी आए कि यहाँ के कुछ बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद "फेविकॉल की करीना" को देखकर उसी की तरह डांस करने की कोशिश कर रहे है और उसके मुंह से जो शब्द निकलते हैं वो गाने के नहीं बल्कि कुछ और ही होते है जैसे i am sexy, i am cool यह देखने मैं तो बहुत ही हास्यस्पद बात है मगर है उतनी ही गंभीर क्यूंकि यदि उन्हें रोका जाये तो बात बिगड़ सकती है अभी जो वो सामने कर रहें है वही वो छुप-छुप कर करने लगेंगे। ऐसे में भला क्या किया जा सकता है तो अब एक ही विकल्प नज़र आता है वह है सही और गलत के फर्क को उन्हें समझाना जो देखने और सुनने में बहुत आसान लगता है। मगर है उतना ही कठिन क्यूंकि आपकी एक बात के कहने मात्र की देर होती है कि बच्चों के हज़ार सवाल तैयार खड़े होते है आप पर हमला बोलने के लिए। कई बार तो ऐसे सवाल होते जिनका जवाब खुद आपके पास भी नहीं होता। जैसे "सेक्सी" का मतलब क्या होता है और जब हीरो हीरोइन को प्यार करता है तो वो उसको "किस्स" क्यूँ करता है इत्यादि ...
अब ऐसे में भला कोई कैसे समझाये कि यह शीला की जवानी और मुन्नी का झंडू बाम या फिर करीना का फेफ़िकॉल अभी तेरी समझ से बाहर कि बातें है बेटा, तेरे लिए अभी कार्टून ही काफी है मगर किस या चुंबन जैसी चीज़ें तो अब कार्टून्स तक में दिखाई जाने लगी है और इस बात को यदि यह कहकर समझा भी दो कि बेटा दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं और हर जगह, हर व्यक्ति का अपना प्यार जताने का या दिखाने का अपना एक अलग तरीका होता है यहाँ के लोगों का यही तरीका है। हम लोग भी तो आपको ऐसे ही रोज़ सुबह आपके माथे पर आपको चूमकर उठाते है और रही बात "सेक्सी" शब्द की तो उसका मतलब तो है "प्रीट्टी" मगर यह शब्द बड़े लोगों के लिए हैं बच्चों के लिए नहीं तो जवाब आता है हाँ तो फिर यह टीवी वाले अंकल-आंटी और स्टेशन पर बड़े बॉय्ज़ एंड गर्ल्स सिर्फ होंठों पर ही क्यूँ किस्स करते हैं एक दूसरे को, अब इस सवाल का मैं क्या जवाब दूँ, एक बार टीवी पर तो फिर भी रोक लगायी जा सकता है। मगर बाहर की दुनिया का मैं क्या करूँ यहाँ तो खुले आम सड़कों पर यह सब होता है अब उसकी आँखें तो बंद नहीं की जा सकती और ना ही उसके सवालों को रोका जा सकता है आप लोगों को क्या लगता है इन बातों है कोई जवाब आपके पास ?
यह सब देखकर और सोचकर लगता है कि यहाँ रहना भी ठीक है या नहीं अभी यह हाल है तो जाने आगे क्या होगा। फिर थोड़ी देर में ऐसा भी लगता है कि अब तो इंडिया में भी यही हाल है, तो कहीं भी रहो इन बातों का सामना तो करना ही है। फिर दूजे ही पल ऐसा भी लगता है कि यह समस्या केवल मेरी है या यहाँ रहने वाले सभी लोग ऐसा ही महसूस करते हैं कि आजकल के बच्चों का बचपन बहुत जल्दी खत्म हो रहा है बच्चे वक्त से पहले बड़े हो रहे है। मामला परवरिश का है इसलिए इस विषय तर्क वितर्क संभव है यह ज़रूरी नहीं कि मेरे विचार आपसे मेल खाते हों लेकिन जब तर्क की बात आती है तो कुछ लोग इसे समार्ट की श्रेणी में रखते हैं, उनके मुताबिक आज की जनरेशन बहुत स्मार्ट है। हम तो गधे थे इस उम्र में, मगर मैं यहाँ इस तर्क पर कहना चाहूंगी कि हम गधे नहीं थे मासूम थे, क्यूंकि ऐसे प्रश्नों की ओर हमारा ध्यान कभी जाता ही नहीं था।
हम तो अपने दोस्तों सहेलियों और खेल खिलौनो में ही मग्न और खुश रहा करते थे। वह भी शायद इसलिए कि तब हमे यह सब यूं खुले आम देखने को मिलता ही नहीं था जो हमारे दिमाग में ऐसे सवाल आते, क्यूंकि शायद उन दिनों हमारी किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त करने की दुनिया बहुत सीमित हुआ करती थी। जिसकी आज भरमार है। यहाँ कुछ लोग का कहना हैं कि तब हम डर के मारे अपने माता पिता से अपने मन की बात नहीं कर पाते थे, जितना कि आज कल के बच्चे कर लेते हैं जो कि एक बहुत ही अच्छी बात है। सही है मगर क्या ऐसा नहीं है कि ऐसी बाते हमारे दिमाग में भी शायद 16 -17 साल में ही आना शुरू होती थी। 8-10 साल कि उम्र में नहीं, मुझे नहीं लगता कि इस तरह कि बातें हम में से शायद ही किसी के मन में आयी हों। औरों का तो पता नहीं मगर कम से कम मेरा अनुभव तो यही है।
हम तो अपने दोस्तों सहेलियों और खेल खिलौनो में ही मग्न और खुश रहा करते थे। वह भी शायद इसलिए कि तब हमे यह सब यूं खुले आम देखने को मिलता ही नहीं था जो हमारे दिमाग में ऐसे सवाल आते, क्यूंकि शायद उन दिनों हमारी किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त करने की दुनिया बहुत सीमित हुआ करती थी। जिसकी आज भरमार है। यहाँ कुछ लोग का कहना हैं कि तब हम डर के मारे अपने माता पिता से अपने मन की बात नहीं कर पाते थे, जितना कि आज कल के बच्चे कर लेते हैं जो कि एक बहुत ही अच्छी बात है। सही है मगर क्या ऐसा नहीं है कि ऐसी बाते हमारे दिमाग में भी शायद 16 -17 साल में ही आना शुरू होती थी। 8-10 साल कि उम्र में नहीं, मुझे नहीं लगता कि इस तरह कि बातें हम में से शायद ही किसी के मन में आयी हों। औरों का तो पता नहीं मगर कम से कम मेरा अनुभव तो यही है।
केख बहुत अच्छा लिखा है |मुझे भी लगता है आज के समय में बच्चों को पालना सबसे कठिन कार्य है |वे अपनी उम्र से बहुत पहले बड़े हो जाते हैं |
ReplyDeleteआशा
परवरिश बहुत मुश्किल है..सही कहा.
ReplyDelete*सोनी पर एक सीरियल आता है"परवरिश" वो देखा करो :).
तन्त्र ने तो सेक्स को बेचना है, उसे बच्चों की परवाह कहां है। सचमुच आज बच्चों का समुचित लालन-पालन बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है।
ReplyDeleteअति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteनग्नता का माहौल और परवरिश - किस क़िससे बचाइये ....... ओह .... बहुत मुश्किल काम है परवरिश
ReplyDeleteअच्छी परिवरिस देना बड़ी जिम्मेदारी पूर्ण कठिन कार्य है,,,भावपूर्ण लेख,,,
ReplyDeleterecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteवाकई परवरिश बहुत मुश्किल है क्योंकि जो सोचा भी नहीं था वह आज टीवी और स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है और फिर तब इतने गजेट्स कहाँ थे जो हम कुछ देख या सुन पते और न ही हमारी मान के पास इतना समय होता था कि वे हमें इसा बारे में समझती फिर भी आज इसा मुश्किल काम को संभल कर नहीं किया गया तो फिर अंजाम किस रूप में सामने आएगा कुछ घटनाएँ इस बात की साक्षी हैं
ReplyDeleteआच्छा आलेख है!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया ||
दसवीं की परीक्षा चल रही थी-
ReplyDeleteमेरे सुपुत्र शिवा और सुपुत्री मनु दोनों एक ही क्लास में थे-
बेटे की शिकायत थी-
मनु तो बार बार उठकर बाथरूम जाती है-
पढने में मन नहीं लगा रही है-
पर उसकी माँ जानती थी कि-
शिकायत का कोई कारण नहीं होना चाहिए-
pallaviji har maa ke men ki bat likh di hai aapne, bahut hi achcha lekh...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteपल्लवी जी,
ReplyDeleteआज के परिप्रेक्ष्य में यह विषय बडे महत्व का है । अब, जबकि परिवार बहुत ही छोटी इकाई में बट गये है और माता पिता भी अपने अपने काम में मशरूफ हो गए है, बेटों को संस्कार देने का दायित्व अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो गया है । संस्कारों का विध्वंस हमारे सिनेमा और अन्य मीडिया ने किया है जो शायद मानता है कि उच्छ्रंखलता देश की ज़रुरत है । प्रसिद्ध सिनेकर्मी महेश भट्ट का नाम यूं तो बुद्धिजीवियों में शुमार है लेकिन कृतित्व से गैरजिम्मेदारानापन स्पष्ट झलकता है । ऐसे और भी अनेक नाम हैं जो अपने कृतित्व से आत्ममुग्ध है ; परन्तु संस्कारों को विनष्ट करने में लगे हैं ।
सरकार भी संस्कारों के प्रति चैतन्य नहीं है । सेंसर बोर्ड और राष्ट्रीय महिला आयोग भी नारी स्वातंत्र्य के नाम पर उच्छ्रंखलता के पक्षधर हैं .। गीत, विज्ञापन , फिल्मे आदि सभी प्रभावी तंत्र किशोर मन को प्रभावित कर रहे हैं और हम,, निरुपाय से, अपनी नवोदित पीढी को पथभ्रमित होते हुए देखने के लिए विवश हैं ।
बच्चे अपने स्वाभाविक रुझान के कारण उच्छ्रंखल न हो जाए , ये अलग बात है । बस अब यही एक आस है ।
बच्चों को सीधी सी राह पर चलते रहने देना बड़ा कठिन कार्य है..
ReplyDeleteबहुत सही बात कही है आपने . विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी
ReplyDeleteयकीनन कठिन है..... बहुत कठिन
ReplyDeleteपल्लवी जी बहुत प्रभावशाली लेख लिखा है आपने , कुछ लोग का कहना हैं कि तब हम डर के मारे अपने माता पिता से अपने मन की बात नहीं कर पाते थे, जितना कि आज कल के बच्चे कर लेते हैं जो कि एक बहुत ही अच्छी बात है। ..........
ReplyDeleteमेरा भी एक बच्चा है .............अभी एक साल ४ महीने का , .................बहुत पापड़ बेलने पड़ते है ..............
अभी आगे आगे देखता हु होता है क्या ....................
आपके इस बेहतरीन लेख सकुच मादा मिले शायद ....................शुक्रिया
badhiyaa aalekh
ReplyDeleteबढिया आलेख
ReplyDeleteprabhavshali...
ReplyDeleteek sarthak aalekh..
हर मां-बाप की ख्वाइश रहती है कि बच्चा जल्दी से बड़ा हो जाए, वर्तमान दौर इसी को पूरा कर रहा है। अब पांच साल का जवान होगा बच्चा नहीं। याने जवानी बहुत लम्बी चलेगी।
ReplyDeleteऐसे सवालों के जवाब देना वाकई कठिन है .... लेकिन हर माँ किसी न किसी तरह समझा ही देती है बच्चों को । बढ़िया लेख ।
ReplyDeleteबेहतरीन लेख, बहुत प्रभावशाली
ReplyDeletebahut achcha likhe.....
ReplyDeleteबच्चो की उपयुक्त परवरिश , आजकल की सबसे बड़ी चुनौती है और इस चुनौती को बाधा रही आजकल की खुली अर्धनग्न आबोहवा . विचारपरक आलेख .
ReplyDeletebahut khoob likha aapne
ReplyDeleteबढ़िया . मै इस बात को शिद्दत से महसूस कर सकता हूँ ...
ReplyDeleteपूर्णतः सहमत...उत्तम आलेख!!
ReplyDeleteतू भी बदल फलक की ज़माना बदल गया :-(
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने ... उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteयही तो बदलाव की प्रक्रिया है ... हम ऐसा ही क्यों मानें की हमारे मन में १६-१७ साल की उम्र में आई बातें अब ९-१० सालों में नहीं आनी चाहियें ...
ReplyDeleteपरवरिश आसान नहीं ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
परिवर्तन का स्वागत हैं, लेकिन देखकर समझ कर। समस्या ये हैं की अब सारा बाज़ार हैं और नेतृत्व नपुंसक।
ReplyDeleteख़ुशी इस बात की हैं, की आपके मेरे जैसे सोचने वाले बचे हैं। जंग जारी हैं, जागते रहो।