यूं तो इस बार दिल्ली कांड के बाद नववर्ष मनाने का मन नहीं किया किन्तु फिर भी किसी के चले जाने से यह दुनिया भला कब रुकी है जो अब रुकेगी, वो कहते है न "द शो मस्ट गो ऑन" बस वही हाल है इसलिए आप सभी को मेरी ओर से "नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें"। नया साल शुरू हो चुका है दोस्तों, अब तो इस नए वर्ष में एक ही प्रार्थना है इस देश के देशवासियों से और सरकार से कि औरत को भी इंसान समझो उसके पास भी दिल है जिसमें अगर ममता है, प्यार है, तो उसे दर्द भी बहुत होता है, उसके पास भी दिमाग है जो सोचता है, वो भी एक इंसान है कोई मिट्टी की गुड़िया नहीं कि जिसका जब मन किया खेला और मन भर गया तो तोड़ दिया। इसलिए इस साल कुछ ऐसा करो कि अपने साथ-साथ अपनी माँ और बहन का सर भी गर्व से ऊपर कर सको, ना कि उनको इस कदर शर्मिंदा करो कि उनको अपने ही बेटे को बेटा या भाई को भाई कहने में शर्म महसूस हो। सरकार से गुजारिश है कि इस साल महिला उत्पीड़न के खिलाफ कोई ऐसा कानून पारित हो कि जिसका नाम मात्र सुनने से ही अपराधियों को पसीना आ जाये और वो ऐसा कुकर्म करने से पहले एक बार नहीं, दस बार नहीं, सौ या हजार बार भी नहीं, बल्कि ऐसा कुछ सोच भी न सके, तभी इंसाफ होगा। क्यूंकि अब बहुत हो चुका उस सुबह का इंतज़ार जिसके लिए यह कहा जाता है "हर रात की सुबह ज़रूर होती है"। मगर आज जो हालात है उनको देखते हुए तो यह ज़रा भी नहीं लगता कि इस रात की कभी कोई सुबह होगी।
खैर न जाने क्यूँ इस कांड का असर इतना हुआ कि उसको शब्दों में बता पाना संभव ही नहीं जबकि मैं तो उसे (दामिनी) को देश के और नागरिकों की तरह जानती भी नहीं थी, न मैंने कभी उसे देखा, मगर फिर भी उस एक हादसे ने जैसे मुझे अंदर से हिलाकर रख दिया। शायद इसलिए कि मैं भी एक औरत हूँ और यही एक रिश्ता काफी है उसका दर्द समझने के लिए। दिल्ली में मैं भी 4 साल रही हूँ मुझे दिल्ली बहुत पसंद थी। मगर अब ज़रा भी नहीं है, कल तक मैं सब से यही कहती थी कि दिल्ली दिल वालों का शहर है एक बार जाकर तो देखो, वहाँ के लोगों से मिलकर तो देखो, बहुत ही ज़िंदा दिल इंसान बसा करते हैं वहाँ, मगर मुझे क्या पता था कि अब इंसान नहीं शैतानो का वास है वहाँ, वैसे शायद यह तो होना ही था मेरी सोच के साथ क्यूंकि मैं तो दिल्ली को आज भी वही आठ साल पहले वाली दिल्ली समझ के चल रही थी। मगर अब हक़ीक़त कुछ और ही है। मेरी समझ से अकेली दिल्ली ही नहीं देश के हर इलाके का आज यही हाल है। खासकर महिलाओं के लिए तो अब कोई भी शहर, गाँव या कस्बा कुछ भी सुरक्षित नहीं रह गया।
ऐसे हालातों में किसी भी विषय पर कितनी भी गंभीरता से सोचने के पश्चात ऐसा महसूस होने लगता है कि यह सब बाते हैं और बातों से कुछ होने वाला नहीं क्यूंकि यदि महज़ बातों से लोगों का नज़रिया बदला जा सकता तो आज न जाने हमारा देश कहाँ होता। इस कांड के बाद तो यहाँ भी हालात यह हैं कि मेरी पहचान की कुछ भारतीय महिलाएं जो यहाँ पर हैं उन्होंने तो वापस भारत लौटने से ही इंकार कर दिया है, क्यूंकि उनके भी लड़कियाँ है और अब उनके हिसाब से लड़कियाँ भारत में सुरक्षित नहीं है। इसलिए वो वापस नहीं जाना चाहती। मगर हाँ इस कांड के बाद वो अपनी संतानों को आत्म सुरक्षा का कोई न कोई हुनर ज़रूर सीखना चाहती है। लेकिन इस समस्या से निपटने का भला यह तो कोई समाधान नहीं हुआ। उनकी बातों को सुनकर लगा जैसे इस विषय पर बात करना भी व्यर्थ है मगर क्या करें फिर भी लिखे बिना दिल भी तो नहीं मनता।
अपराधियों के दंड के लिए बहुत से लोगों से अपने सुझाव दिये। जिसे जहां अपने सुझाव देते बने उसने वहाँ दिये। किसी ने फेसबुक पर, तो किसी ने ब्लॉग पर, तो किसी ने पत्र लिखकर, कुल मिलाकर जिसको जो माध्यम मिला अपनी विचारों के मुताबिक उन अपराधियों को सजा दिलाने के लिए, उसने लिखने के लिए वही माध्यम चुन लिया। जब इन सब मामलों पर मैंने विचार किया तो मुझे ऐसा लगा कि इस सबके पीछे शायद दहशत ही सबसे बड़ा कारण है। कहने का तात्पर्य यह है कि शायद समाज में फैले कुछ असामाजिक तत्वों ने अपनी गंदी सोच के बल पर देश के आम नागरिकों में अपने कुकर्मों से दहशत फैला रखी है जिसके चलते देश की आम जनता डरी-डरी सी रहती है और महिलाओं को तो हमेशा से ही डरा धमका के रखा जाता रहा है। तो मेरे ख्याल से
"जहर को जहर ही काटता है"
वो कहते हैं न "जैसे को तैसा" वाली बात का ज़माना आ चुका है क्यूंकि "लातों के भूत बातों से नहीं मानते" इसलिए इन मामलों में भी हमारी पुलिस को चाहिए कि वह अपनी कुछ ट्रेंड महिला अधिकारियों की एक टोली या एक समूह कुछ भी कह लीजिये बनाकर उन जगहों या स्थान पर कुछ दिनों के लिए घूमना चाहिए जहां ऐसी वारदातें होने की सर्वाधिक संभावना हुआ करती है। हालांकी यह तो आज कल बस अड्डे जैसी सार्वजनिक स्थानो पर भी होने लगा है। मगर फिर भी जहां ज़रा भी ऐसा कुछ होने की भनक या आशंका मात्र भी लगे वहाँ उन महिला पुलिस अधिकारियों के समूह के द्वारा उन सन्देहास्पद लोगों के साथ कुछ ऐसा किया जाये कि वहाँ आसपास के लोगों में उस समहू को लेकर दहशत घर कर जाये, खासकर पुरुष वर्ग में फिर चाहे वो आम टॅक्सी वाला हो या ऑटो वाला हो या फिर बस में चढ़े हुए कुछ सन्देहास्पद लोग हो उनके साथ कुछ इस तरह का व्यवहार होना चाहिए ताकि वह लोग भी डर के मारे देर रात गए घर से बहार निकलने से पहले सौ बार सोचने पर मजबूर हो जाये और साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखा जाये कि वो महिला अधिकारी उस वक्त आम भेस भूषा में हों ना कि वर्दी में। मुझे ऐसा लगता हैं 4-5 केस भी यदि ऐसे हो गए तो आगे के लिए रास्ते खुल सकते है।
तो हो सकता है इस तरह के कारनामों या बोले तो ऑपरेशन करने से लोगों में कुछ अक्ल आए और वह महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने से पहले कुछ दहशत महसूस कर सके। जिसके चलते इस तरह के अपराधों में कुछ हद तक कमी लायी जा सके और कानून पर लोगों का भरोसा फिर से वापस आसके। यह मात्र एक प्रयास होगा "परिवर्तन के सोपान की तरफ" यह मात्र मेरा एक सुझाव है। जिस पर तर्क वितर्क हो सकता है आप सभी को क्या लगता है। क्या वाकई यह नुस्खा काम करेगा या नहीं...??? आप भी अपने सुझाव दीजिये क्यूंकि बीते कल में जाकर तो हम सुधार कर नहीं सकते। लेकिन अपने आने वाले कल और वर्तमान को तो इन्हीं छोटो मोटी कोशिशों के जरिये सुधारने और संवारने का प्रयत्न तो कर ही सकते है आगे भगवान की मर्जी। क्यूंकि पहले तो ऐसी नहीं थी यह दुनिया तो अब भला ऐसा क्या हो गया है जो इतने असंवेदनशील होते चले जा रहे है हम ? कि इंसान को इंसान तक समझने में नाकाम है हम, दिनों दिन हैवानियात इंसानियत पर हावी होती जा रही है और हम मूक दर्शक बने बस सब कुछ होते देखे जा रहे है आखिर क्यूँ ??? कहाँ सुधार की जरूरत है ?? आप सभी को क्या लगता है क्या आप उपरोक्त कथन में लिखे मेरे सुझाव से सहमत हैं?
अच्चा आलेख!
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो। सुधार की गुजांइश तो पिछले ६६ साला राज ने निगल ली है। हिन्दुस्थान को हाथ नहीं अब हथौड़े की जरुरत है।
ReplyDeleteजीवन रुकता नहीं और चलने के लिए शुभकामनाओं की ज़रूरत है - शुभकामनायें
ReplyDeleteअछे संकल्प जीवन को दिशा देंगे
किसी के चले जाने से यह दुनिया भला कब रुकी है जो अब रुकेगी, वो कहते है न "द शो मस्ट गो ऑन"
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteजैसे मौसम बदलने के लिये फ़ूलों का खिलना जरूरी नहीं
ReplyDeleteवैसे ही तेवर बदलने के लिये ज़ख्मों का मिलना जरूरी नहीं
बस इतना याद रख ले गर ये आदमी कि ज़िन्दगी में
सोच बदलने के लिये क्रांतियों का होना जरूरी नहीं
बस इक जज़्बा ऐसा होना चाहिये
कि इंसान तो क्या पत्थर भी पिघलना चाहिये
कुछ ट्रेंड महिला अधिकारियों
ReplyDeletein this country even the lady police officers are raped there are many cases , if you search google you will know
this suggestion will never work here
in india woman are just bodies nothing more
achchha likha hai Pallvi ji...
ReplyDeletesundar aalekh, bahut sudhar kii jarurat hai is desh main
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteनब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.
प्रभावी लेखन,
ReplyDeleteजारी रहें,
बधाई !!!
आर्यावर्त परिवार
"हर रात की सुबह ज़रूर होती है
ReplyDeleteज़रूर होती है
हर रात की सुबह
mere blog pat aap zaroor aaye--hum humkhyal hein--
दिल्ली वाले तो दिल वाले ही थे , ये तो बाहर वालों ने दूषित कर डाला।
ReplyDeleteसडकों को महफूज़ रखने के लिए पुलिस को मुस्तैद होना पड़ेगा।
विचारणीय लेख।
जब तक अपराधियों के मन में क़ानून और व्यवस्था का डर नहीं होगा, यह सब चलता रहेगा. ज़रुरत है कठोर और त्वरित न्याय की...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteजो हाथ से निकल चुके हैं उनके लिए तो दंड की व्यवस्था जरूरी है और मेरे ख्याल से दंड जो उन्हें जीवन भर सालता रहे। बाकी आने वाली पीढी को घर के माहौल में सुसंस्कृत बनाने की बात भी होनी चाहिए ताकि नयी पौध इन अपराधों से दूर रहे।
ReplyDeleteसुबह निश्चय ही आयेगी, पर काली रात की प्रतीक्षा के बाद..
ReplyDeleteकानून कड़े करने के साथ साथ और भी बहुत सारे कदम समाज और सरकारों को मिलकर उठाने होंगे तभी सुधार हो सकता है !!
ReplyDelete♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
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असामाजिक तत्वों ने अपनी गंदी सोच के बल पर देश के आम नागरिकों में अपने कुकर्मों से दहशत फैला रखी है जिसके चलते देश की आम जनता डरी-डरी सी रहती है
जनता के जागने का समय है अब ...
ढुलमुल , लच्चर , घोर अवसरवादी और भ्रष्टतम शासन व्यवस्था के कारण गुंडे आतंकी अपराधी और भ्रष्टाचारी बेखौफ़ हैं ।
सबसे बड़ी बात यह है कि संसद और विधानसभाओं में कितने बलात्कारियों / अपराधियों को संरक्षण दे कर सत्ता का हिस्सा बना कर हमारे सिर पर थोपा हुआ है !!
# वक़्त रहते अच्छी तरह जान लेना ज़रूरी है कि अपने स्वार्थों के लिए जनता को खतरे में डाल कर किस-किस राजनीतिक दल ने अपराधियों को सुरक्षा संरक्षण देकर सत्ता का हिस्सा बना रखा है !
आदरणीया पल्लवी जी
विचारों को उद्वेलित करने वाला और कुछ-कुछ दिशा दिखलाता आलेख है आपका !
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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अपने बहुमूल्य समय में से कुछ पल निकाल पाएं तो इस लिंक पर पूरी रचना पढ़-सुन कर प्रतिक्रिया देने पधारिएगा ...
हमें ही हल निकालना है अपनी मुश्किलात का
जवाब के लिए किसी सवाल को तलाश लो
लहू रहे न सर्द अब उबाल को तलाश लो
दबी जो राख में हृदय की ज्वाल को तलाश लो
महिला उत्पीड़न के खिलाफ कोई ऐसा कानून पारित हो कि जिसका नाम मात्र सुनने से ही अपराधियों को पसीना आ जाये और वो ऐसा कुकर्म करने से पहले एक बार नहीं, दस बार नहीं, सौ या हजार बार भी नहीं, बल्कि ऐसा कुछ सोच भी न सके, तभी इंसाफ होगा। क्यूंकि अब बहुत हो चुका उस सुबह का इंतज़ार जिसके लिए यह कहा जाता है "हर रात की सुबह ज़रूर होती है"। मगर आज जो हालात है उनको देखते हुए तो यह ज़रा भी नहीं लगता कि इस रात की कभी कोई सुबह होगी।
ReplyDeleteपर मेरा ये मानना है कि ऐसे कानून के आते ही लड़को और आदमियों का जीवन और नर्क हो जाएगा, बेकसूर भी इस के तहत लपेटे में आने की पूरी गुंजाइश है ,जैसे ही हम पहले भी दहेज विरोधी कानून में हम देख ही चुके है ..कितने ही बेकसूर परिवार इसकी आहुति चढ़ चुके हैं .....घर के घर बरबाद हो चुके है ....अब तो बेटे वालो के लिए मुश्किलें ओर भी बहुत बढ़ने वाली है .........बाकि सब ऊपर वाला जाने :(
सही सलाक ...अच्छा लेख !
ReplyDeleteआभार !
अच्छी सलाह,इन्तजार करे कोई तो हल निकलेगा,,
ReplyDeleterecent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
satik...sahi...aalekh
ReplyDeleteआपके अनुभव सकारात्मक विचार पल्लवों का सर्जन करने वाले हैं.
ReplyDeleteअच्छे लेख के लिए और आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार पल्लवी जी.
आपको और आपके परिवार को मेरी तरफ से भी बहुत बहुत शुभकामनाएँ.
देश से भागने से काम नहीं चलेगा, आइए सब मिलकर देश बनाएं।
ReplyDeleteबिलकुल सत्य व् एकदम सही बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की #
ReplyDeleteनए साल की बहुत बहुत मुबारकबाद......मैं तो यही कहूँगा की कानून सख्त होना चाहिए इसके आलावा लोगों को स्वयं की मानसिकता भी बदलनी होगी ।
ReplyDeleteअच्छा लेख....आपके सकारात्मक बिलकुल सत्य है
ReplyDelete.......नयी उम्मीदों के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ !!
@ ऐसे कानून के आते ही लड़को और आदमियों का जीवन और नर्क हो जाएगा, बेकसूर भी इस के तहत लपेटे में आने की पूरी गुंजाइश है ,जैसे ही हम पहले भी दहेज विरोधी कानून में हम देख ही चुके है ..कितने ही बेकसूर परिवार इसकी आहुति चढ़ चुके हैं .....घर के घर बरबाद हो चुके है ....
आदरणीया अंजु (अनु) जी
एक नारी होने के उपरांत भी आपने पुरुष की पीड़ा को स्वर दिया ...
आपके ईमानदार मानव को प्रणाम !
आपकी न्यायप्रिय मानवीयता को नमन !
अच्छा लेख है |असल में क़ानून तो कई होते हैं पर उनके तोड़ भी लोग निकाल लेटे है और हादसे होते रहते हैं |
ReplyDeleteआशा
आपको नव वर्ष के लिए हार्दिक शुभकामनाएं |
ReplyDeleteपुराने राजाओं की तरह प्रशासन को भी मौके बेमौके गुप्त रूप से कानून व्यवस्था की स्थिति का पता लगते रहना चाहिए मगर ....??
ReplyDeleteअच्छे सुझाव है !
नववर्ष की शुभकामनाएँ!
सार्थक भाव लिए भावपूर्ण आलेख..
ReplyDeleteनिश्चित रूप से कुछ अपराधियों को दी गयी सजा अनगिनत दूषित मानसिकता वालों के लिए सबक का काम करेगी ....पर प्रशासनिक रवैये को सुधारना असंभव सा ही लगता है अब तो
ReplyDeleteमाफ कीजिये मैं आपके कथन का तात्पर्य नहीं समझी क्या कहना चाहती है आप ??
ReplyDeleteअच्छा आलेख पल्लवी जी !
ReplyDelete"नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !" :-)
अंजू जी ने भी सही कहा... कि 'दहेज विरोधी' क़ानून की तरह इसकी लपेट में निर्दोष भी आ सकते हैं !
मगर... ये भी ज़रूरी है कि कुछ तो ऐसा क़ानून होना चाहिए जिससे ऐसे अपराधियों को वो सज़ा मिले, जिसे देखने-सुनने के बाद कोई ऐसा जुर्म करने की सोचे भी ना ! हर बात पर स्त्री ही सलीब पर क्यूँ चढ़ती रहती है..??? सच है! इस देश में स्त्रियों के दिल में, उसके घरवालों के दिल में, डर समाया हुआ है.. और ये आज से नहीं, काफ़ी समय से है ! किसी स्त्री या लड़की से पूछकर देखिए ...! और जब तक ऐसी शर्मनाक हरक़तों पर रोक नहीं लगेगी, अपराधियों को दंड नहीं मिलेगा ... ये डर जाने वाला नहीं !
इसी केस में देख लीजिये ... उसके बाद से भी लगातार जुर्म हुए जा रहे हैं ... ! लोगों की मानसिकता, कानून में कुछ बदलाव .... बहुत ज़रूरी हैं !
~सादर!!!
सुझाव तो सार्थक हैं .... पर अंजु जी की बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी है .... यहाँ डर नहीं है किसी को भी .... रिश्वत दे कर भी अपराधी छूट जाते हैं । देखना है कि सरकार क्या कदम उठाती है और कैसा कानून बनाती है ।
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