दोस्ती क्या है एक इन्द्रधनुष के रंगो सा रिश्ता, या फिर एक खुले आसमान सा रिश्ता, पंछियों के मधुर कलरव सा रिशता, झगड़ा करके फिर खुद ही रोने का रिश्ता, पूजा की थाली में रखे दीपक की लौ सा पावन रिश्ता या फिर भगवान के चरणों में चढ़े फूलों सा रिश्ता, कभी अल्हड़ नदी सा मनचला रिश्ता, तो कभी बहती हवा सा बहकता सा रिश्ता, या फिर फूलों की सुंगंध सा महकता रिश्ता, कभी अर्पण का रिश्ता तो कभी तर्पण का रिश्ता.. यानि कुल मिलाकर रिश्ता एक रूप अनेक, :-) दोस्ती के इस एक रिश्ते में न जाने कितने रंग छिपे हैं ज़िंदगी के, तभी तो है यह दोस्ती है एक प्यार सा बंधन। फिर भी कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि एक लड़का और एक लड़की कभी अच्छे दोस्त नहीं हो सकते। यदि उनमें दोस्ती है भी तो आगे जाकर उनकी यह दोस्ती प्यार में बदल ही जाती है। काफी मामलों में यह देखा भी गया है और रही सही कसर पूरा कर देतीं है, हमारी यह फिल्में जो एक तरफ दोस्ती जैसे पाक साफ रिश्ते को कभी बड़ी खूबसूरती से हमारे सामने लाती हैं "जय और वीरू" के रूप में तो कभी यही फिल्में "कुछ-कुछ होता है" के रूप में यह कहती नज़र आती है कि यदि कोई आपका अच्छा दोस्त नहीं बन सकता तो आप उससे प्यार कर ही नहीं सकते क्यूंकि प्यार दोस्ती है।
सच है प्यार दोस्ती है मगर प्यार का भी तो केवल एक ही रूप नहीं होता ना, यहाँ इन फिल्मों का उदाहरण मैंने इसलिए नहीं दिया कि मुझे लड़के या लड़की कि दोस्ती पर कोई सवाल जवाब करना है मेरा मतलब यहाँ सिर्फ दोस्ती से है फिर चाहे वो लड़के लड़की हो या लड़कों-लड़कों की हो या फिर दो सहेलियों की बात केवल दोस्ती की है। इसलिए मुझे तो आज तक यह बात न कभी सच लगी थी, ना लगी है और ना कभी लगेगी। मेरी नज़र में दोस्ती जैसे रिश्ते को कभी शब्दों में ढाल कर व्यक्त नहीं किया जा सकता। क्यूंकि दोस्ती में जो एहसास जो जज़्बात आप महसूस करते हैं वही एहसास कोई अगला व्यक्ति तभी महसूस कर सकता है जब उसने भी अपने जीवन में कोई सच्चा दोस्त बनाया हो, या पाया हो। क्यूंकि दोस्त वो है जो ज़िंदगी के हर मोड़ पर आपका साथ दे फिर चाहे आप थोड़ा बहुत गलत ही क्यूँ ना हो वैसे तो दोस्त का काम है आपका सही मार्ग दर्शन करना। लेकिन कई बार सोचने वाली बात यह हो जाती है कि आपके दोस्त का मानसिक स्तर भी तो वही है जो आपका है तभी तो आप एक दूसरे के पक्के दोस्त बन पाते हैं फिर यदि आप खुद सही और गलत का फैसला नहीं कर पा रहे हैं तो वह भला कहाँ से करेगा ऐसे हालातों में कई बार ऐसा भी तो होता है जब सारी दुनिया एक तरफ हो जाती है और आप खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं ऐसे में यदि आपका साथ कोई देता है तो वो होते हैं दोस्त, जो यह कहते हैं तू कर यार, जो होगा वो सब साथ मिलकर देखेंगे मतलब जीवन में हर कदम पूरे विश्वास के साथ आपके पीछे खड़े रहने वाला आपका अपना दोस्त जो आपकी खुशी में खुश और आपके गम में दुखी भी होता है।
तभी तो दोस्ती या दोस्त एक ऐसा शब्द जिसके ज़हन में आते ही आपके होंठों पर स्वतः ही एक मधुर मुस्कान आ जाती है। शायद इसलिए दुनिया में दोस्ती से अच्छा और सच्चा दूजा कोई रिश्ता नहीं क्यूंकि बाकी रिश्ते तो हमें विरासत में मिलते हैं मगर दोस्त हम खुद चुनते है। वैसे यह बात काफी घिसी पिटी सी लगती है। मगर सच तो यही है और मुझे यह रिश्ता बहुत पसंद है क्यूंकि इसमें कोई लड़के-लड़की का भेद भाव नहीं होता। अगर कुछ होता है तो वो है सिर्फ दोस्ती आपसी समझ जो एक सच्चे और अच्छे दोस्त की सबसे पहली निशानी होती है और सबसे अहम बात तो यह होती है कि दोस्ती वो रिश्ता है जिसे कभी जबर्दस्ती नहीं निभाया जा सकता। खैर अच्छे दोस्त तो फिर भी बहुत आसानी से मिल जाते है इस दुनिया में, मगर सच्चा दोस्त बहुत ही किस्मत वालों को बड़े नसीब से मिल पाता है। दोस्त इसलिए कहा क्यूंकि सच्चा दोस्त केवल एक ही व्यक्ति हो सकता है क्यूंकि दोस्तों के समूह के नाम पर भले ही आपके गिने चुने दोस्त हों मगर उन सब में से भी कोई एक ऐसा ज़रूर होता है जिसे आप बाकी सभी दोस्तों की तुलना में अपने आप से ज्यादा करीब महसूस करते है।
आप भी सोच रहे होंगे आज तो friend ship day भी नहीं है फिर क्यूँ मुझे दोस्ती या दोस्तों याद आ रही है। मगर याद पर भला किसका बस चला है याद का क्या है वो तो कभी भी किसी भी वक्त आ सकती है। मेरे भी कुछ दोस्त हैं जिन्हें न जाने क्यूँ आज मैं बहुत याद कर रही हूँ। वैसे कहने को तो मेरे भी बहुत दोस्त ऐसे हैं जिन्हें मैं अपना करीबी मानती हूँ। लेकिन लोग कहते हैं कि आपका बहुत अच्छा दोस्त बनाना तो बहुत ही आसान है क्यूंकि आप बहुत ही आसानी से लोगों में हिल मिल जाती है। हो सकता है यहाँ आपको लगे कि मैं अपनी तारीफ खुद ही कर रही हूँ यानि "अपने मुंह मियां मिट्ठू" लेकिन वास्तविकता यह है कि लोगों को शायद लगता हो कि वो मेरे करीबी दोस्त बन गए हैं या मैं उनको अपना करीबी दोस्त समझने लगी हूँ। मगर मेरे करीबी दोस्त तो मेरे दिल के करीब है वो आज भी 3-4 ही हैं, जिन्हें मैं यहाँ रहकर बहुत मिस (Miss) करती हूँ।
जिनमें से मेरा एक ओर दोस्त है शिव कहने को वह मेरे भईया का दोस्त है मगर उससे मेरी दोस्ती ज्यादा अच्छी है। यूं तो वो मुझसे 7-8 साल बड़ा है लेकिन फिर भी हमारे बीच की आपसी समझ बहुत पक्की है इसलिए मैंने कभी उन्हें बड़े होने के नाते वो सम्मान ही नहीं दिया जो देना चाहिए था, बल्कि हमें कभी यह उम्र का फासला महसूस ही नहीं हुआ, उनको कई बार मैंने कहा तुम्हारी उम्र शादी लायक हो गयी है। न्यू मार्केट आ जाना, न्यू मार्केट यानि भोपाल का ऐसा बाज़ार जो, भोपाल चाहे जितना पुराना हो जाये मगर वहाँ का यह न्यू मार्किट कभी ओल्ड नहीं होता। खैर जैसा मैंने कहा कि मैं उनको वहाँ बुलाया करती थी यह कहकर कि वहाँ जो आइसक्रीम पार्लर है न, वहाँ मिलना एक से एक लड़कियां आती हैं वहाँ जिसे भी पसंद करोगे अपन सीधा उसके घर पर धावा बोल देंगे, तो वो कहता था हाँ मुझे पता है वहाँ सब "प्लग पाने" बोले तो मनचले लोग ही आते है एक वही जगह मिली ही तुझे लड़की पसंद करवाने के लिये। ऐसे कामों में बड़ा दिमाग चलता है तेरा, तो मैं हमेशा यही कहती थी चलो इसका मतलब कम से कम मुझ में दिमाग तो है तुझ में तो वो भी नहीं है। हा हा हा :-)
एक दोस्त और है मेरा संजीव कहने को वो मेरे देवर का दोस्त हैं और हम कभी आज तक आमने-सामने मिले भी नहीं है मगर फिर भी जब मेरी उससे पहली बार फोन पर बात हुई तो उसने मुझसे कहा यार आप कहाँ थे भाभी। आपको तो हमारे साथ कॉलेज में होना चाहिए था बहुत जमती अपनी, आपसे बात करके ऐसा लगा जैसे हमारे दिमाग को तो जंग ही लग गयी थी, बहुत दिनों बाद कोई ऐसा मिला है। खैर देर आए दुरुस्त आए याद रखिएगा बहुत जमने वाली है अपनी....:) बहुत अखरता है कभी-कभी यह सब कुछ मुझे, बहुत कमी महसूस होती इस अपनेपन की क्यूंकि शायद इस मामले में मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हूँ।
वह भी शायद इसलिए कि यहाँ रहकर कई बार ऐसा होता है मेरे साथ कि दिल के अंदर मन के किसी कोने में बहुत सारी ऐसी बातों का जमावड़ा एकत्रित हो जाता है, जिसे हम सार्वजनिक रूप से बांटने के बजाये केवल अपने उस खास दोस्त के साथ ही बांटना चाहते है। भले ही वह कितनी भी साधारण बातें ही क्यूँ न हो। कई बार ऐसा लगता है जैसे दिल एक डायरी हो और उस पर वो बातें जिन्हें हम अपने उस खास दोस्त के साथ बांटना चाहते है अपने आप ही किसी ऑटोमैटिक टाइप रायटर की तरह दिल के कागज़ पर छपती चली जाती है और हर बार हम यही सोचते है की इस बार वो जब मिलेगा / मिलेगी न तो उसे यह बताना है। ऐसा सोचते-सोचते न जाने कितनी बातें उस दिल के कागज़ पर उतर जाती है कुछ को तो हम खुद भी भूल जाते है और कुछ याद रह जाती है ठीक उस गीत की चंद पंक्तियों की तरह
आते जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पर
कभी-कभी इत्तफ़ाक से कितने अंजान लोग मिल जाते है
उनमें से कुछ लोग भूल जाते हैं
कुछ याद रह जाते हैं ...
यक़ीनन आप लोगों के साथ भी कई बार ऐसा ही होता होगा है ना, खैर मज़े की बात तो यह है कि जब वो दोस्त हमें मिलता है तो उस वक्त तो जैसे समय को दो और एक्सट्रा पंख लग जाते है और पलक झपकते ही वक्त का पंछी उड़ जाता है। खासकर तब, मुझे अक्सर ऐसा महसूस होता है कि जैसे किसी ने दिल की किताब से वो बातों का पन्ना गायब ही कर दिया हो और हम उन बातों को छोड़कर गड़े मुर्दे ही उखड़ते चले जाते है या फिर इधर-उधर की जाने कहाँ-कहाँ की बात कर लिया करते हैं अपने उस दोस्त के साथ मगर जो सोचकर रखी हुई बातें होती है उन में से शायद ही कुछ बातें ऐसी होती है जो हम वास्तव में उसके साथ बांटना चाहते थे और फिर उस दोस्त के जाने के बाद जब फिर याद आता है वो हर एक पल जो हमें उसके साथ गुज़रा तो लगता है अरे यह तो बताया ही नहीं उसे यही तो सबसे खास बात थी जो उसे कहनी थी और उस वक्त भी हम खुद को कभी पहले दोष नहीं देते, आदत के मुताबिक :-) यही निकलता है मुंह से, कि देखा गधे/गधी के चक्कर में मैं भी भूल गयी कि मुझे क्या कुछ कहना था उससे, नालायक कहीं का/की उल्लू की दुम :-) इस शब्दों के लिए माफी चाहूंगी मगर करीब दोस्त के लिए अक्सर ऐसे ही शब्दों का प्रयोग हो जाता है। कई बार तो इसे भी ज्यादा ....मगर उन सब का प्रयोग करना यहाँ उचित नहीं :)
मगर उस हर दिल अजीज़ से मुलाक़ात के बाद जब उस मुलाक़ात कर हर लम्हा दिमाग में किसी फिल्म की तरह चलता है। तब बहुत याद आते हैं वो हसीन लम्हे जो उसके साथ गुज़ारे थे कभी जैसे उस तीखे समोसे पर डली खट्टी चटनी जिसको एक ही प्लेट में खाने की ज़िद भी रहा करती थी और फिर समोसे और चटनी का बटवारा और केंटीन की चाय और कॉफी जिसे बातों के चक्कर में हमेशा ठंडा कर दिया जाता था और जब कॉलेज ख़तम हो गये तो CCD (कैफ़ कॉफी डे) में मिलना तय रहता था और यदि वो न मिली तो कोई सा भी आइसक्रीम पार्लर भी चलता था या फिर वो गली के नुक्कड़ पर बिकती कुल्फी का ठेला सच कहूँ त उसी में सबसे ज्यादा मज़ा आता था, उन दिनों दोस्तों के साथ खाने पीने का मज़ा ही कुछ और होता था। अब तो बस सब यादें हैं। मगर दोस्त आज भी वही है और हमेशा वही रहेंगे।
मगर उस हर दिल अजीज़ से मुलाक़ात के बाद जब उस मुलाक़ात कर हर लम्हा दिमाग में किसी फिल्म की तरह चलता है। तब बहुत याद आते हैं वो हसीन लम्हे जो उसके साथ गुज़ारे थे कभी जैसे उस तीखे समोसे पर डली खट्टी चटनी जिसको एक ही प्लेट में खाने की ज़िद भी रहा करती थी और फिर समोसे और चटनी का बटवारा और केंटीन की चाय और कॉफी जिसे बातों के चक्कर में हमेशा ठंडा कर दिया जाता था और जब कॉलेज ख़तम हो गये तो CCD (कैफ़ कॉफी डे) में मिलना तय रहता था और यदि वो न मिली तो कोई सा भी आइसक्रीम पार्लर भी चलता था या फिर वो गली के नुक्कड़ पर बिकती कुल्फी का ठेला सच कहूँ त उसी में सबसे ज्यादा मज़ा आता था, उन दिनों दोस्तों के साथ खाने पीने का मज़ा ही कुछ और होता था। अब तो बस सब यादें हैं। मगर दोस्त आज भी वही है और हमेशा वही रहेंगे।
यूँ तो आज के इस आधुनिक युग में दोस्तों से जुड़े रहने के बहुत सारे उपाए और सुविधाएं है। मगर साथ में आमने सामने बैठकर उस खास दोस्त से मिलना, घंटो बतियाना बात-बात में उसे एक चपत लगा देना कभी-कभी तो पूरी-पूरी रात जागते हुए बातें करना बातें करते -करते ही सो जाना, सुबह नाशते के लिए झगड़ा एक ही प्लेट से खाना भी है मगर पसंद अलग-अलग भी रखनी है यह सब मैं इसलिए बता रही हूँ क्यूंकि मेरी एक दोस्त है सारिका उर्फ स्वीटी जो अक्सर पहले मुझसे मिलने आने के बाद मेरे घर ही रुक जाया करती थी तब भी यही होता था जो उपरोक्त कथन में मैंने लिखा है। मगर अब उसकी भी शादी हो चुकी है जिस की वजह से अब हमारा साथ रहना संभव नहीं हो पाता इसलिए हम कुछ घंटों के लिए ही मिल पाते हैं और वो मिलना मुझे ऐसा लगता है जैसे "ऊंट के मुंह में जीरा" फिर भी शुक्र इस बात का है कि वो आज भी भोपाल में ही रहती है। जिससे मैं आसानी से उससे मिल पाती हूँ। वरना अलग से मिलने जाना बहुत मुश्किल होजाता है खासकर जब ,जब साल में एक बार इंडिया आना हो इस मामले में मुझे मेरी मम्मी की एक बात बहुत सही लगती है उसका कहना है कि बहने तो फिर भी शादी के बाद नाते रिशतेदारों की शादी ब्याह या तीज त्यौहार पर मिल ही लिया करती हैं।मगर दोस्त बहुत कम मिल पाते हैं।
शायद इसलिए मुझे जब भी कभी उसकी याद आती है तो एक टीस सी उठती है कि यह देश की दूरियाँ वास्तव में कितनी दूरियाँ ले आती है इंसान के जीवन में घर परिवार तो छूट ही जाता है साथ ही छूट जाते है वो यार दोस्त जिनके बिना सांस लेना भी मुनासिब नहीं था कभी, यूँ तो आज भी फोन पर घंटो बतिया सकते है हम, और बतियाते भी हैं। मगर उसमें वो मज़ा नहीं जो हमें चाहिये और यह सब सोचने पर बस एक ही गीत है जो मेरे ज़हन में आता है।
दिये जलते हैं, फूल खिलते है
बड़ी मुश्किल से मगर, दुनिया में दोस्त मिलते है
जब जिस वक्त किसी का यार जुदा होता है
कुछ ना पूछो यारों दिल का हाल बुरा होता है
दिल में यादों के जैसे दीप जलते हैं.....
जब जिस वक्त किसी का यार जुदा होता है
कुछ ना पूछो यारों दिल का हाल बुरा होता है
दिल में यादों के जैसे दीप जलते हैं.....
सच ही कहते हैं लोग आदमी नाते रिशतेदारों के बिना एक बार ज़िंदा रह सकता है मगर दोस्तों के बिना नहीं दोस्तों की ज़रूरत तो हर कदम पर पड़ती है हाँ यह बात अलग है कि कुछ दिल के करीब होते हैं तो कुछ सिर्फ कहने के लिए। मगर हमारी ज़िंदगी में आने वाला हर इंसान हमें कुछ न कुछ ज़रूर सिखा जाता है इसलिए दुनिया के सभी दोस्तों को और दोस्ती के इस पावन रिश्ते को मेरा सलाम .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteगणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Do ajnavi jab ek ho jaate hain dost ban jaate hain. koi mujhe samjhe aur main bhi use samjhoon aise mein anand ki anubhuti hona swabhavik hai jaroori bhi hai. mera bhi dosti ko salaam aur aapki rachna ko salaam
ReplyDeleteदोस्त दोस्त होता है..उसका स्त्री या पुरुष होना कोई मायने नहीं रखता..बहुत सार्थक आलेख..
ReplyDeleteदोस्ती दोस्त तो जब चाहे याद आ सकते हैं, एक अनमोल आशीष है दोस्ती- उम्र से परे,स्त्री-पुरुष की छवि से परे
ReplyDeleteऐसे दोस्त मुश्किल से मिलते जो दोस्ती का हक अदा करे,,,सार्थक प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT P0ST फिर मिलने का
Beautiful post on friendship.
ReplyDeleteदोस्ती बड़े काम की शै है लेकिन दाना हकीम बुज़ुर्ग कह गए हैं कि जो आज दोस्त है वह कल दुश्मन भी हो सकता है लिहाज़ा कोई भी बात बताने से पहले यह ज़रूर देख लेना कि अगर वह कल को दुश्मन हो गया तो क्या होगा ?
ReplyDeleteयानि उसे अपने इतने गहरे राज़ न दो कि कल को दुश्मन होने के बाद वह जीना हराम ही कर दे।
आजकल एमएमएस बनाकर ब्लैकमेल करने कोई दुश्मन नहीं आता बल्कि दोस्त ही आते हैं।
दोस्तों से ख़बरदार रहने का दौर आज पहले से कहीं ज़्यादा है।
अमृता प्रीतम का लड़का अपनी दोस्तों के अश्लील वीडियो बनाया करता था। उसे उसके किसी दोस्त ने ही मार दिया।
दोस्ती का रिश्ता वही जानते हैं जिन्हें दोस्त मिलते हैं। आपको शुभकामनाएं, अच्छे दोस्त मिलने के लिए।
ReplyDeleteअछि पोस्ट है.
ReplyDeleteअपने जीवन में कोई सच्चा दोस्त बनाया हो, या पाया हो। क्यूंकि दोस्त वो है जो ज़िंदगी के हर मोड़ पर आपका साथ दे फिर चाहे आप थोड़ा बहुत गलत ही क्यूँ ना हो
ReplyDeleteबिल्कुल सही ... दोस्ती पर बहुत ही अच्छा लिखा है ... आभार
ऐसे दोस्त मुश्किल से मिलते
ReplyDeleteआजकल रिश्ते भी काकटेली हो गएं हैं.
ReplyDeleteआपने दोस्ती के रिश्ते को बखूबी निखारा है,
अपनी लेखनी से.
जब कुछ नहीं सूझता है, मित्र ही दिखता है। बहुत ही सुन्दर आलेख..
ReplyDeleteसुन्दर व्याख्या....लेकिन आत्म केन्द्रीयता के इस दौर में एक दुर्लभ अवधारणा
ReplyDeleteखूबसूरत सोच ...खूबसूरत लेख ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा पोस्ट को पढकर..........
ReplyDeleteखूबसूरत लेख .............
हर शर्त हर बंधन से परे होती है दोस्ती..
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट.
सही कहा आपने दोस्तों के बिना जिंदगी अधूरी है।
ReplyDeleteदोस्ती पर बहुत सार्थक आलेख.स्मृतियों और अनुभवों के उल्लेख ने इसे और भी रोचक बना दिया है.
ReplyDeleteबहुत ही भाव भरी पोस्ट। दोस्त मनुष्य इतर प्राणी भी हो जाते हैं। जैसे मेरी बालकॉनी में रोज़ आने वाले कौए से मेरी दोस्ती हो गई है। जिस दिन वो नहीं आता, उस दिन लगता है कुछ मिस कर रहा हूं।
ReplyDeleteब्लॉग जगत ने भी कई अविस्मरणीय दोस्त दिए हैं।
दोस्ती इत्तेफ़ाक है. हर खुशी इत्तेफ़ाक है. बढ़िया पोस्ट.
ReplyDelete:) :)बहुत ही प्यारी सी पोस्ट है....
ReplyDeleteदोस्तों की बातें किसी की भी हो पढ़कर हमेशा अच्छा लगता है...और अपने दोस्त याद आने लगते हैं,
उनके साथ बीताए समय याद आने लगते हैं!
अच्छा वैसे, 'नालायक कहीं का' सुनने का तो मैं आदी हो गया था :)
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