महक या ख़ुशबू एक ऐसा शब्द या एक ऐसा एहसास जो मन मंदिर के अंदर से गुज़रता हुआ अंतर आत्मा में विलीन होता हुआ सा महसूस होता है। मुझे ख़ुशबू बहुत पसंद है फिर चाहे वो किसी इत्र की ख़ुशबू हो, या फिर मंदिर में जलने वाली किसी अगरबत्ती या धूप की ख़ुशबू हो, या फिर किसी मज़ार पर जलने वाले लोबान की ख़ुशबू या फिर चाहे वो हवन सामाग्री की ही ख़ुशबू क्यूँ न हो, मुझे महका-महका सा माहौल बहुत पसंद आता है। भीनी-भीनी सी दूर से आती सुगंध में जैसे मन को एक आसीम शांति का आभास होता है मुझे, यहाँ तक कि मेरे जीवन में कुछ ख़ुशबू ऐसी भी हैं, जिसका मेरे जीवन में किसी न किसी याद से एक नाता सा जुड़ा है। जैसे बचपन जुड़ा है चंदन और मोगरे की महक से, तो कॉलेज की ज़िंदगी और यादें जुड़ी है विको टर्मरिक और पॉंन्डस टेल्कम पाउडर की ख़ुशबू से जिसमें कहीं हल्की सी महक हिमानी टेल्कम पाउडर की भी शामिल है। जिसे याद करते ही मेरा मन मुझे सीधे परीक्षा हाल में ले जाता हैं। जहां आस पास बैठे सभी लोग के पास से उन दिनों यह गिनी चुनी ख़ुशबुओं की महक ही आया करती थी।
चंदन और मोगरा मुझे इसलिए प्यारा है क्यूंकि बचपन में मेरे नाना जी पूजन करते वक्त अक्सर हम बच्चों से चंदन घिसवाया करते थे और पूजा ख़त्म होने के पश्चात सभी को चंदन का टीका भी लगाया करते थे और केवल महज़ उस एक चंदन के टीके के लालच में सभी मामा मौसी के बच्चों में होड़ सी रहा करती थी। कौन पहले जाकर चंदन घिसेगा और किसे सबसे ज्यादा चंदन लगाने को मिलगा कि सब सुबह से शाम तक महक सकें। इसलिए शायद आज भी मेरे घर में असली चंदन न सही मगर विको टर्मरिक क्रीम ज़रूर मिल जाएगा आपको, मगर किसी सौंदर्य प्रसाधन की दृष्टि से नहीं, बल्कि बस कुछ महकी हुई सी यादों को याद करने के लिए और एक दवा के रूप में जो जलने, कटने, या छिलने पर लगाने के काम आती है। यानि एक antiseptic cream के रूप में,
वैसे सौदर्य प्रसाधन की दृष्टि से में यहाँ एक बात बताना चाहूंगी यूं तो चंदन से अच्छी पूरे विश्व में कोई सुगंध नहीं है और चूंकि यह मस्तिष्क ठंडा रखता है, इसलिए औषधि के रूप में भी मस्तिष्क को ठंडा रखने वाली इसे अच्छी कोई बूटी नहीं, किन्तु यदि आप इसे एक सौदर्य बढ़ाने वाले प्रसाधन के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं तो याद रखें शुष्क अर्थात रूखी सुखी त्वचा वाले व्यक्ति कभी इसके पाउडर का सीधा प्रयोग अपनी त्वचा पर ना करें इसे हमेशा किसी नमी युक्त पढ़ार्थ के साथ ही प्रयोग करें, वरना आपकी शुष्क त्वचा और भी रूखी हो सकती है।
अब बात आती है मोगरे के फूलों की, यूं तो दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फूल गुलाब का है। जिसे लोग अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में नहाने के पानी से लेकर, गुलकंद के रूप में खाने और गुलाबी कपड़ों और प्रसाधनों को इस्तमाल कर गुलाब जैसा दिखने और महकने की ख्वाइश भी रखते है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि पूरी दुनिया में सभी लड़कियों को केवल गुलाब का ही फूल सबसे ज्यादा पसंद आता है। जबकि मैं उन में से नहीं हूँ :) मुझे गुलाब से ज्यादा पसंद है मोगरा ,राजनीगंधा, और लेवेंडर की ख़ुशबू। मोगरा मुझे इसलिए पसंद है क्यूँकि यह मेरे घर के आँगन में ही लगा था गर्मियों की हर रात मेरे घर का आँगन हमेशा मोगरे के फूलों से महकता था और हम लोग हर रात उस पौधे से माफी मांगते और रात में ही सारे फूल तोड़ कर पानी में डालकर रख लिया करते थे और मम्मी हर सुबह उन फूलों को शिवजी पर चढ़ाया दिया करती थी। क्यूंकि ऐसा माना जाता है न कि शिवजी को सफ़ेद चीज़ें बहुत अधिक प्रिय होती हैं और इसलिए मैं और मेरी मम्मी दोनों ही शिवजी को बहुत मानते हैं
खैर उन दिनों रात को ही मोगरे के फूल तोड लेने के पीछे भी एक कारण था। वो यह कि सुबह कितनी भी जल्दी उठो फूल चोरी हो ही जाया करते थे। जिसके चलते हमारे ही घर के गृह देवता को हमारे ही आँगन के फूल ही नहीं मिल पाते थे इसलिए मजबूरी में हमे वो सारे फूल रात में ही तोड़ने पड़ते थे। मगर सुबह शिवजी को वह फूल अर्पण करने के बाद जो पानी बचा होता था, जिसमें रात भर वो फूल भिगो के रखे गए होते थे उस पानी को अपने नहाने वाले पानी में शुमार करने में मुझे बड़ा मज़ा आता था हालांकी उस ज़रा से पानी से महक शायद नाम चार की भी ना आती हो मगर उस पानी को इस्तमाल करने से मन को एक महकने का भ्रम और एक प्रकार का संतोष ज़रूर मिला करता था, खैर यह सब ख़ुशबू में डूबे रहने की दिवानगी थी और कुछ नहीं। उन दिनों हमारे घर में एक छोटी सी कृष्ण जी की चंदन की लकड़ी से बनी प्रतिमा भी थी जो कुछ देर पानी में डालने से पूरा पानी चंदन की ख़ुशबू से महका दिया करती थी। हमारे पूरे घर में शायद ख़ुशबू के लिए ऐसा पागल पन सिर्फ मुझे ही था।
ख़ुशबू से संबन्धित एक और बात बताऊँ आपको, जिसे पढ़कर शायद आप मुझे पागल समझे :-) मगर ख़ुशबू के मामले में, ज़रा ऐसी ही हूँ मैं :-) मुझे कोई भी इत्र या पेरफ्यूम शरीर से ज्यादा कपड़ों पर लगाने और डालने में मज़ा आता है जैसे दुपट्टे या साड़ी के पल्लू पर, गले और कलाई पर तो मैं बस नाम के लिए लगाया करती हूँ। इन सब बातों के अलावा एक बात और मुझे इन ख़ुशबुओं के अलावा कुछ ऐसी चीजों की महक भी पसंद है जो शायद ख़ुशबुओं के शब्दकोश में नहीं पायी जाती। जैसे मुझे कभी-कभी पेट्रोल, बूट पोलिश की महक भी बुरी नहीं लगती और यदि खाने पीने की बात करें तो मुझे कॉफी पाउडर की सुगंध बेहद पसंद है। आज भी कॉफी बनाने से पहले में एक बार कॉफी को सूँघती ज़रूर हूँ और मसालों में घर के बने गरम मसाले की ख़ुशबू भी मुझे बेहद पसंद है।
मगर इन सब ख़ुशबुओं से परे भी इंसान के जीवन में कुछ एक ख़ुशबू ऐसी भी होती हैं, जिनको कोई नाम नहीं दिया जा सकता, बस केवल महसूस किया जा सकता है। जैसे पहले-पहले प्यार की ख़ुशबू, किसी खास के जिस्म की वो ख़ुशबू जो आपके अंतस में उसकी पहचान बन के बस जाती है। जिसे सिर्फ आप महसूस कर सकते हो दूसरा और कोई नहीं....यह सब पढ़कर लग रहा है ना आपको की मैं एकदम पागल हूँ। मगर क्या करूँ जब बात ख़ुशबू की हो रही हो तो इन सभी ख़ुशबुओं का ज़िक्र न करना इस महक शब्द के साथ नाइंसाफ़ी होगी मेरे लिए, आपके जीवन में भी आपकी यादों से जुड़ी कई सारी ऐसी ही ख़ुशबू होंगी जिनको आज भी सूंघने पर आप यादों के काफिलों में खो जाते होंगे। है ना ? तो आज आप भी अपनी टिप्पणियों में मेरे साथ सांझा कीजिये अपने-अपने जीवन की महक। धन्यवाद.... :-)
मोगरे की खुशबू का ,नही कोई जबाब
ReplyDeleteदुनिया को भाये महक,सुन्दर फूल गुलाब,,,,,
RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
बड़ी ही सुगन्धमयी पोस्ट...
ReplyDeleteबेहतरीन. सादर.
ReplyDeleteइस पोस्ट की ख़ुश्बू से मन तर हो गया है। पोस्ट में कुछ खास है जो हमें बार-बार यादों की गलियों में ले जाता है और हमें इस पोस्ट की बातों के बीच अपने पसंद नापसंद को चुनने पर विवश करता है। इतनी सारी खुशबू पसंद है कि कोई एक सोच न पाया। हां बेला के फूल शाम को अपने बिस्तर पर रखने की आदत थी। उसकी ख़ुशबू बहुत भाती थी।
ReplyDeleteअरे इतनी सारे ब्लॉग के बीच इस पोस्ट ने तो बिल्कुल चन्दन और मोगरे की खुशबू से महका दिया. मन खिल उठा.
ReplyDeleteअपनी पसंद सांझा करने के लिए आभार सर... :)
ReplyDeleteशुक्रिया :)
ReplyDeleteapki post ne to chandan or Mogare ki khushaboo de di ... badhiya prastuti ...abhaar
ReplyDeleteजी सचमुच , खुशबू मन मष्तिष्क को बहुत शांति प्रदान करती है .
ReplyDeleteलेकिन --
विकास की ये कैसी इन्तहा हो गई
खो गई है खुशबू गुलाबों की !
सुन्दर , सुगन्धित पोस्ट .
बेहतरीन पोस्ट |बधाई |
ReplyDeleteआशा
महकी महकी सी सुगंधित पोस्ट .... मोगरा और हर सिंगार के फूलों की खुशबू गुलाब से ज्यादा पसंद आती है मुझे .... बाकी एक खास बात ....मैं कोई भी कौसमैटिक प्रयोग नहीं करती पर परफ्यूम्स बहुत पसंद हैं ... और मेरे पास कलेक्शन भी ज़बरदस्त है :):)
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 03-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-991 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
मोहतरमा बात ख़ुश्बू की चली है तो दूर तलक जाएगी।
ReplyDeleteदूर तलक जाएगी तो बात याद आएगी भाड़ की।
हमारे पड़ोस में एक भाड़भूजा भाड़ झोंकता था।
जब वह चने भूनता था तो उसकी ख़ुश्बू से हमारी नाक के साथ हमारी तोंद भी महक जाती थी और हमारे गांव में जब कोल्हू चलता था तो गुड़ शक्कर की ताज़ा ख़ुश्बू के क्या कहने !!!
दरअसल हमें खाने पीने की चीज़ों की ख़ुश्बू बहुत पसंद है। हमारी बेगम की पसंद भी हमसे बहुत मिलती जुलती है। उन्हें ख़रबूज़े की ख़ुश्बू पसंद है।
सीज़न में हम रात को अपना गधा गंगा किनारे छोड़ देते हैं। ख़ुद खाने के बाद एक ख़रबूज़ा हमारी बेगम के लिए मुंह में दबा लाता है।
शेख़चिल्ली को फूटे अंडों की ख़ुश्बू पसंद है।
मगर इंसान कैसी चीज़ है कि ख़ुश्बूदार चीज़ों के बदले में दुनिया में बदबू फैलाता है ?
यह बात समझ से परे है।
मन को महकाती पोस्ट.....
ReplyDeleteखुशबू से लबरेज़.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारीपरक पोस्ट
ReplyDeleteNice post.
ReplyDeleteनख्ले जां को ख़ूं पिलाया उम्र भर
शाख़े हस्ती आज भी जाने क्यूं ज़र्द है
हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्यधारा को संवारने के लिए बहुत सुन्दर चर्चा सजाई है.
शुक्रिया।
महकती हुई पोस्ट :-)
ReplyDeleteकई नई जानकारी के साथ भीनी भीनी खुसबू लिए सुंदर परस्तुति. :-)
ReplyDeleteखुशबू .खुशबू .खुशबू और सिर्फ खुशबू ...मन महक उठा
ReplyDeleteपल्लवी जी बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट |कविताओं खासकर नवगीतों में भी चंदन और मोगरे के फूलों का गीतकारों ने खूब चित्रण किया है |खुशबू से महक उठा मन |मेरी ओर से एक मोगरे का फूल आपके लिए |
ReplyDeleteखुशबू .खुशबू .खुशबू और सिर्फ खुशबू ...मन महक उठा
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
खुशबू का चित्रण बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है.
ReplyDeleteकोई खुशबू आपकी नाक-नज़र से बची नहीं रही. बधाई :)) आजकल बाज़ार में जो डीऑडरेंट मिल रहे हैं उनसे कई लोगों को अस्थमा हो रहा है. शायद प्राकृतिक इत्र सुरक्षित हों. सोचता हूँ कि फूलों की खुशबू ही बेहतर है जो बाग़ में मिलती है. सुबह अपने आँगन से कुछ महिलाओं को फूल तोड़ते देखता हूँ तो गुस्सा आता है. एक और अजीब सी खुशबू मेंहदी हसन की एक ग़ज़ल में थी- "फूल ही फूल खिल उठे मेरे पैमाने में." खुशबुओं की यह कॉकटेल कुछ हज़म नहीं हुई. क्या कंबीनेशन है!! मेरा दिल ऐसी खुशबू पर उलटा सा मुँह बनाता है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सुगंधित पोस्ट.
तमाम पुष्पों अथवा वानस्पतिक खुशबूओं के सिवा प्रत्येक मनुष्य की अपनी गंध भी होती है जिसे उसके प्रियजन महसूस कर सकते है ... धूप और बारिश की खुशबू भी कहा कम होती है !
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है !
खुशबूदार पोस्ट :):)
ReplyDeleteNice n refreshing :)
ReplyDeleteमहकी सी सुगंधित पोस्ट
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