Tuesday, 30 July 2013

परिवर्तन...

कहते है परिवर्तन का नाम ही ज़िंदगी है सच ही तो है। यूं भी सब कुछ हमेशा एक सा कहाँ रहता है। फिर चाहे रिश्ते हों या इंसान या फिर सपने, सब कुछ वक्त के साथ बदल ही जाता है। जो नहीं बदलता, वक्त उसका वजूद रहने नहीं देता। पर कई बार ऐसा भी तो होता है कि हम ना चाहते हुए भी बदल ही जाते है। जैसे इंसान की काया वैसे तो आजकल अनगिनत प्रसाधन उपलब्ध है बाज़ार में अपनी काया को जैसे का तैसा दिखाने के लिए फिर चाहे वो सौंदर्य प्रसाधन हों या फिर कसरत करने के तरीके, सिर्फ इतना ही नहीं अब तो कपड़े भी ऐसे आते हैं कि आप अपनी बेडोल काया को सुडोल दिखा सकते है। खैर आज की तारीख में हर कोई सदा जवान लगना चाहता है। खूबसूरत दिखना चाहता है और हो भी क्यूँ न, खूबसूरत दिखने में भला बुराई ही क्या है। बस इतना ध्यान रखना है कि आप सुंदर दिखने के चक्कर में खुद को इतना भी न संवारलें कि आप हंसी का पात्र बन जाये।बस

खैर ऐसा ही कुछ अनुभव हुआ कल जब फेसबुक पर अपनी एक बहुत पुरानी सहेली से मुलाक़ात हुई। बहुत शौक था उसे तैयार होने का, सुंदर दिखने का, हमेशा एकदम टिपटॉप रहने का, मुझे आज भी याद है कि वो रात को भी सदा अपने बाल संवार कर और अपने माथे पर लगी हुई बिंदी को कायदे से वापस उसी स्थान पर लगा कर सोया करती थी जहां से उसने निकाली हो। ताकि अगले दिन सुबह सब जहां का तहां मिल जाये बिना ब्रुश किए तो वो बात तक नहीं करती थी किसी से, सर से लेकर पाँव तक हमेशा सजी सांवरी रहा करती थी वो, सुबह उठते ही उसका सबसे पहला काम हुआ करता था आईना देखना और बंदी लगाना :) चटक रंग बहुत पसंद थे उसे, हल्के रंग तो जैसे उसे हमेशा उदासी का एहसास कराते थे। खासकर नेल पोलिश के रंगों को लेकर तो बहुत ही चिंतित रहा करती थी वो, मेरी और उसकी पसंद हमेशा से अलग रही है, मगर फिर भी अब कपड़ों और रंगों के मामले में उस पर खासा असर दिखाई देता है मेरी पसंद का, अब उसे भी हल्के रंग पसंद आने लगे हैं।

लेकिन फिर भी वो एक रंग था कुछ मिक्स सा जो ना तो लाल में आता है और ना ही महरून में, उस रंग को मम्मी का रंग कहा करते थे हम हमेशा, क्यूंकि उसकी और मेरी मम्मी के अलावा और भी बहुतों की मम्मीयों को जाने क्यूँ हमेशा केवल वही रंग पसंद आता था। जितनी सुंदर थी वो उतना ही अच्छा उसका स्वभाव भी था। हर दिल अज़ीज़ थी वो, स्वभाव के मामले तो आज भी वैसी ही है वो :) लेकिन रंग रूप और काया की बात करूँ तो अब बहुत मोटी हो गयी है वो, दो बच्चे हैं उसके एक प्यारा सा, बहुत ही प्यारा सा बेटा और एक परी जैसी बेटी, मगर वो खुद एकदम बदल गयी है। शादी और बच्चों के बाद यूं भी एक औरत का कायकल्प हो ही जाता है। सब पहले जैसे नहीं रह पाते है। अक्सर लोग मोटे हो ही जाते है।

हालांकी अब तो सुपर वुमन ही नहीं,बल्कि सुपर मॉम का भी चलन हैं। फिर भी ऐसे परिवर्तनों को आने से बहुत कम ही लोग रोक पाते है। फिर चाहे वो एश्वर्या राय बच्चन ही क्यूँ न हो। भई अब हर कोई तो शिल्पा शेट्टी हो नहीं सकता ना...:) हाँ यह बात अलग है कि इन बड़े लोगों के पास सिवाए खुद पर ध्यान देने के और कोई दूजा काम नहीं होता है। इसलिए यह लोग जल्दी ही अपनी पुरानी काया पुनः पा लेते है। लेकिन आम इंसान के लिए यह संभव नहीं हो पाता है। उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जिस लड़की को कभी खुद से प्यार था आज उसे सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार और बच्चों से प्यार है। जो लड़की कॉलेज के दिनों में हमेशा यह कहकर ठहाका लगाया करती थी कि यार जब तक दो चार लड़के मरे नहीं लड़की पर, तो लड़की होने का फ़ायदा ही क्या, आज वो लड़की खुद का एक भी फोटो तक दिखाना नहीं चाहती है। कहती है, यार शादी के बाद सारे परिवर्तन केवल एक लड़की में ही क्यूँ आते है। लड़कों में तो एक भी परिवर्तन नहीं आता वो ज्यादा लंबे समय तक एक से दिखते हैं और हम ? पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाते-उठाते और रिश्तों का दायित्व निभाते -निभाते कब बदल जाते हैं पता ही नहीं चलता। यहाँ तक के कई बार यूं भी होता है कि खुद को आईने में देखकर भी कभी-कभी यकीन नहीं होता कि यह हम ही हैं। 

फिर भी हर परिवर्तन और ज़िंदगी में आने वाले हर पड़ाव को सर आँखों पर रखकर आगे बढ़ना सीख ही जाते है हम, शायद यही एक गुण है या यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि यही एक वह महत्वपूर्ण गुण है जो एक नारी को एक पुरुष से प्रथक करता है और शायद इन्हीं गुणो की वजह से एक माँ का दर्जा एक पिता के दर्जे से ज़रा ऊपर का होता है। जब बच्चे प्यार से गले लग कर कहते हैं "ममा आई लव यू"  तो जैसे खुद में आत्मविश्वास का संचार पाते हुए हम गर्व से यह डायलोग मारते हैं हम कि

 हम ही हम है तो क्या हम है 
तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो 

और भूल जाते है फिर खुद को एक बार कि इस 'मैं' के लिए एक स्त्री के जीवन में कोई स्थान ही नहीं होता।                     

35 comments:

  1. परिबर्तन संसार का नियम है
    ज्यों समय बदलता है ,मौसम बदलता है
    बचपन जबानी में और जबानी बृद्धा अबस्था में
    तब्दील हो जाती है
    समय के चक्र के साथ
    अपने बेगाने में रूपान्तरित हो जाते हैं
    अजबनी अपनेपन का अहसास करातें हैं
    कभी दुनिया पराई ब जालिम लगती है
    तो कभी रंगीनियों का साक्षात् प्रतिबिम्ब नजर आती है
    समय के इस चक्र में फँसा हुआ
    मैं अपने को पहचानने के लिए
    खुद से संपर्क स्थापित करना चाहता हूँ
    इसलिये दिन में दो बार
    और कभी कभी उससे अधिक बार
    आइनें में खुद को निहारता रहता हूँ
    जब मैनें खुद को सतही तौर पर
    जाननें की कोशिश की
    मैं खुद के अंत: सागर में तैरने लगता हूँ
    जब खुद को गहराई से जानने की
    तो असीम बिस्तार बाले अन्तासागर के गर्त में
    खुद को डूबा हुआ सा पाता हूँ
    अक्सर मेरे साथ ये होता है
    जो कहना चाहता हूँ ,बह कह नहीं पाता हूँ
    और जो कहता हूँ ,बह कहा मेरा नहीं लगता है
    मैं जो हूँ ,क्या बह नहीं हूँ
    और जो मैं नहीं हूँ ,क्या मैं बह हूँ
    ये विचार मेरे अंतर्मन में गूंजता रहता है
    अपने अंतर्मन की बेदना को अभिब्यक्त
    करने के लिए मैंने लेखनी का कागज से स्पर्श किया

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  2. सच कहा पल्लवी...
    शादी के बाद ,माँ बनने के बाद परिवर्तन तो होते हैं...वज़न भी बढ़ता ही है..हाँ अपनी सेहत के लिहाज से कंट्रोल किया जाय तो बहुत अच्छा है..अपना कॉन्फिडेंस बना रहता है...उम्र के लिहाज से रंग बेशक हलके पहनों मगर अपने भीतर की शोखी को न फीका पड़ने दिया जाय तो है मज़ा....
    :-)
    अनु

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  3. परिबर्तन तो संसार का नियम है ..बहुत सुन्दर और सटीक लिखा है पल्लवी

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  4. समय के साथ सब परिवर्तित होता है बिलकुल सहमत हूँ आप की बात से , और समय के साथ जीवन में हमारी सोच और जरूरते भी परिवर्तित हो जाती है जब हम कालेज जाते है तब हम पर कोई जिम्मेदारी नहीं होती है सो सारा समय खुद का ध्यान रखने में ही व्यतीत करते है , किन्तु विवाह के बाद जब हम पर ढेर साडी जिम्मेदारिय आ जाती है तो हमारा ध्यान खुद पर से हट जता है , पतले होने को कभी भी सुन्दरता से न जोड़े मोटा न होना स्वस्थ से रिश्ता रखता है , हम कहा सकते है की महिलाए परिवार का ध्यान ज्यादा रखती है और अपनी सेहत का कम , जो की गलत है , केवल बड़े लोग ही नहीं आज आम महिलाए भी इस भ्रान्ति को तोड़ रही है की बच्चे होने के बाद मोटे हो गए , वो भी अब अपनी सेहत का ध्यान रखती है , बच्चे के तुरंत बाद भले ही सब खा पी के वजन बढा ले ताकि बच्चे के लिए दूध पर्याप्त मात्र में हो लेकिन बाद में आम महिलाए भी अपनी काया वापस पा लेती है , आलसियों और खब्बुओ :) को आप इस श्रेणी से निकाल दीजिये , और हा महिलाओ के साथ पुरुष भी वजन बढ़ा लेते है साथ ही ये कहना भी गलत है की उच्च वर्ग की महिलाओ को बस अपना ही ख्याल होता है , यदि होता तो अपना इतना ऊँचा कैरियर आदि परिवार विवाह बच्चे के लिए नहीं छोड़ती :)

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  5. आम महिलाएं भी इस भ्रांति को तोड़ रही है, यह बात गलत नहीं है। सहमत हूँ आपकी बात से लेकिन फिर भी आज भी ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं जो ना चाहते हुए भी मोटी हो जाती है। कोई जानबूझ कर मोटा होना नहीं चाहता है। मगर बच्चे होने के बाद बदलाव आहि जाते हैं। जिसका कारण सिर्फ (खाना) ही नहीं होता और भी कई कारण होते हैं और मैंने यह नहीं कहा अंशुमाला जी की पुरुषों का वजन नहीं बढ़ता, :)बिलकुल बढ़ता है। लेकिन देर से बढ़ता है। ज़्यादातर मामलो में महिलाओं का ही वजन पहले बढ़ा हुआ देखा है मैंने, रही बात उच्च वर्ग की महिलाओं को बस अपना ही ख्याल रहता है वाली बात, तो मुझे वो बात गलत नहीं लगती इसलिए मैंने लिखी। क्यूंकि वह अपना परिवार और ऊँचा कैरियार बरकरार रखने के लिए ही खुद पर एक आम महिला की तुलना में ज्यादा ध्यान देती हैं। क्यूंकि यदि वो ऐसा नहीं करेंगी तो सबसे पहला असर उनके कैरियर पर ही पड़ेगा। खासकर मॉडल और अभिनेत्रीयां इनका उदाहरण मैंने इसलिए दिया क्यूंकि मेरा ऐसा मानना है कि ज्यादातर लोग इन से प्रभावित होते हैं और इन्हीं के जैसा दिखना चाहते हैं। बाकी तो सोच है अपनी-अपनी जैसे पसंद अपनी-अपनी और ख़्याल अपना-अपना :)

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  6. पल्लवी जी आपने सही कहा ," जो नहीं बदलता, वक्त उसका वजूद रहने नहीं देता। " वक्त के आगे किसी की नहीं चलती .परिवर्तन तो मृत्यु जैसा अटल है
    latest post हमारे नेताजी
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

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  7. यह सब इसपर निर्भर करता है के आपका खान पान कैसा है और आपने अपनी तंदरुस्ती और सुडौल बने रहने के लिए क्या क्या जातां किये हैं | कुछ आलस कर घर पर रह जाती हैं और खान पान में भी परहेज़ नहीं करती हैं इसलिए वज़न का बढ़ना, बेडौल हो जाता आदि नतीजे होते हैं | मुझे लगता है के यह सब अपने हाथ में है के हमें अपने शरीर को और मस्तिष्क को किस प्रकार हैंडल करना है और चुस्त दुरुस्त रखना है | इसका माँ बन्ने या डिलीवरी आदि से कोई लेना देना नहीं है |

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  8. परिवर्तन को यथारीप स्वीकार कर लेना भला है, समय अपना प्रभाव तो छोड़ता ही है।

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  9. aap ne sahi kaha parivartan hota hai par usaka bhi maja hai ..................

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  10. शादी और बच्चों के बाद परिवर्तन पुरुष और स्त्री दोनों में ही आता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अपने बारे में ध्यान देना बिल्कुल ही छोड़ दिया जाए..अपने शरीर पर ध्यान देना भी बहुत ज़रूरी है...

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  11. परिवर्तन पर ही सारी सृष्टि टिकी है. प्रभावशाली कथ्य.

    रामराम.

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  12. han , ye sahi hai ye parivartan hamesha hi aurat ko hi karna padata hai ki vah badal jati hai aur agar isa samaj men aur jeevan men aurat ko diye gaye sare daayitvon ko purn karna hai to badalana jaroori bhi hai . maan ke ghar aur pati ke ghar kee jimmedariyan aur rishte men jo parivartan aata hai usi par ghar , parivar aur rishton kee neenv tiki hai . isamen doosarn ko bho badalana chahie taki kisi ek ko na badalana pade.
    philm valon kee bat ham aam aadamiyon se bilkul alag hai .

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  13. bahut badiya likha hai......parivartan bhi jaruri hota hai aur us parivaratn me apane aapko jo dhal le vahi age bad sakata hai... Pallavi jo anubhav aapne likhe hai wo bahut ya u kahe ki sabhi ke sath hote hai. ek sarthak lekh... badhai aur shubhkamanaye :)

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  14. फिर भी हर परिवर्तन और ज़िंदगी में आने वाले हर पड़ाव को सर आँखों पर रखकर आगे बढ़ना सीख ही जाते है हम...
    सच

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  15. समय के साथ परिवर्तन आना स्वाभाविक है लेकिन शरीर पर भी ध्यान देना भी ज़रूरी है..,,

    RECENT POST: तेरी याद आ गई ...

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  16. बि‍ल्‍कुल सच कहा आपने.....

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  17. स्त्री स्वयं को सदैव ही दोयम दर्जे पर रखती है..... विशेषकर अपनी देखभाल के मामले में .....

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  18. यह सच है महिलाये परिवार को अपने से अधिक महत्व देती हैं,लेकिन थोड़े से प्रयत्न में ही वे अपने व्यक्तितव क भी सँभाले रख सकती है-विशेष रूप से मुटापे से बच सकती हैं.और रखना भी चाहिये, मोटा होना स्वस्थ होन का लक्षण नहीं है,जब कि उनके स्वस्थ सचेत रहने में ही परिवार और स्वयं उनका सुख है.सभी साधन सहज-प्राप्य हैं.

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  19. परिवर्तन एक शाश्वत सत्य है इसे तो हम नहीं रोक सकते और शादी बच्चे होने के बाद लगभग हम औरत के हेल्थ तो बढते ही है उसको रोकने के लिए बहुत सारा समय चाहिए जो ढेर सारी जिम्मेदारी में अपने लिए समय नहीं निकाल पाते अगर अपने फोकस में मोटापा को रखा जय तो कम किया जा सकता है लेकिन वही बात है कि हम माँ बन कर ही खुश हैं... और सब कुछ बाद में ........

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  20. बच्चों के मामले में स्त्रियाँ मैं का सर्वथा परित्याग करती है , कुछ गिने चुने अपवाद होंगे फिर भी !
    उम्र और समय के साथ स्त्री पुरुष दोनों में ही परिवर्तन आते हैं.

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  21. मन सुंदर तो सब सुंदर । आपने वैसे एकदम सटीक विश्लेषण किया है । अक्सर इस विषय पर महिलाओं को आपस में विमर्श करते देखा सुना है । विविध विषयों पर आपकी लेखनी बदस्तूर चल रही है और हम पढ पढ के आनंदित होते रहते हैं । शुभकामनाएं आपको

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  22. वक़्त के साथ प्राथमिकताएँ बदलती हैं , स्त्री के लिए पहले परिवार के सदस्यों की देख भाल की ज़िम्मेदारी होती है और अपनी सेहत की बात वो ताल देती है ....

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  23. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  24. अपने अनुभव के माध्यम से कई अहम् बातें कही हैं अपनी इस प्रस्तुति में...

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  25. जीवन परिवर्तन/चलने का नाम
    चलते रहो सुबह-शाम...........................अच्‍छा होता यदि आप पोस्‍ट पर अपनी सहेली का पहले और अब का चित्र लगाते!

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  26. मैं का स्थान हर किसी के जीवन में जरूर होना चाहिए ... अपने आप को पम्पर जरूर करना चाहिए ...
    आकी परिवर्तन तो आना ही है आता भी है ...

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  27. सार्थक लेख……अप्ने पर ध्यान देना भी ज़रूरी है….वैसे बात किसकी हो रही है :-)

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  28. गर्भावस्था के दौरान एक औरत के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं ,जो प्रसव के बाद हमारे शरीर पर असर डालते हैं
    फिर बच्चे की देखभाल का जिम्मा माँ के कन्धों पर होता है ....इस दौरान शरीर ही नहीं मन भी अपने प्रति उदासीन हो जाता है
    जब तक माँ अपनी जिंदगी में वापिस लौटती है तब तक काफी कुछ बदल चुका होता है ....योग साधना मोटापे को नियंत्रित करने के लिए
    कारगर नुस्खा है

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  29. सहमत हूँ तुम्हारी बात से ......फिर भी आजकल की माताएँ बच्चे होने के बाद बहुत ही जल्दी अपनी उस फिगर को वापिस पा लेती है जो शादी के वक्त थी ....भई हर तरह की ड्रेस भी तो पहननी है उन्हें :)

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  30. सोचा था मैंने भी था विकेश जी, मगर फिर बात दोस्ती की है जब वो नहीं चाहती तो मैं भला उसकी मर्ज़ी के बिना उसकी तस्वीर कैसे लगा सकती थी। इसलिए मैंने उसकी तस्वीर नहीं लगायी। :)

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  31. जिसकी आप सोच रहे हैं, उसकी नहीं हो रही है :-)

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  32. वक़्त कब बीत जाता हैं पता ही नही चलता परन्तु अब जागरूकता बढ़ गयी हैं .......एक सार्थक लेख

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