आज कहाँ से शुरुआत करूँ समझ नहीं आरहा है कहने को आज डॉक्टर्स डे है। मगर जब तक मेरी यह पोस्ट आप सबके समक्ष होगी तब तक यह दिन बीत चुका होगा। हमारे समाज में डॉक्टर को भगवान माना जाता है क्यूंकि किसी भी अन्य समस्या से झूझने के लिए सबसे पहली हमारी सेहत का ठीक होना ज़रूरी होता है और उसके लिए हमें जरूरत होती है एक अच्छे डॉक्टर की और इसलिए आज के दिन दुनिया के सभी नेक अच्छे और सच्चे डॉक्टर को मेरा सलाम। जाने क्यूँ मुझ से कोई भी बात कम शब्दों में नहीं कही जाती। इसलिए शायद मैं फ़ेसबुक जैसी सामाजिक साइट पर भी अप्डेटस नहीं लिख पाती :-)
खैर तब नहीं तो अब सही, वैसे नहीं तो ऐसे ही सही, मेरे मन की बात आप लोगों तक पहुँच ही जाएगी। तो हुआ यह कि मैंने कल अर्थात रविवार को एक फिल्म देखी जिसका नाम था "अंकुर अरोरा मर्डर केस" इस नाम से मुझे ऐसा लगा था कि शायद यह कोई मर्डर मिस्ट्री होगी। मगर ऐसा था नहीं यदि कम शब्दों में, मैं फिल्म के बारे में कहना चाहूँ तो बस इतना ही कह सकती हूँ कि यह फिल्म एक 8 साल के मासूम बच्चे अंकुर अरोरा के मामूली से अपेंडिस्क के ऑपरेशन के दौरान चिकित्सक अर्थात डॉक्टर की लापरवाही के कारण हुई मौत पर आधारित एक फिल्म है और पूरी फिल्म उसी बच्चे के इर्द गिर्द घूमती है कि किस तरह बच्चे के पेट में उठते दर्द को उसकी माँ एक साधारण सा दर्द समझ लेती हैं और समस्या बढ़ जाने क बाद जब डॉक्टर के पास जाती हैं और फिर किस तरह से डॉक्टर भी जांच के बाद बड़ी आसानी से मामूली ऑपरेशन की बात कह देता है और वह डॉक्टर की बात मानकर तैयार भी हो जाती है। क्यूंकि डॉक्टर का पेशा ही ऐसा है कि भगवान के बाद सीधा उसी का नाम आता है। इसलिए इस पेशे में यदि नाम है, मान है, सम्मान है, धन है, दौलात है, तो साथ में एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी भी है। जिसके चलते इस पेशे में किसी भी तरह ही लापरवाही नाकाबिले बरदाश्त होती है। क्यूंकि यहाँ बात एक जीवन से जुड़ जाती है। डॉक्टर की लापरवाही पर बनी यह कोई पहली फिल्म नहीं है इसे पहले भी इस तरह के विषय पर कई फिल्में बन चुकी है। लेकिन मुझे यह फिल्म ठीक ठाक लगी।
मगर इस सब के बावजूद भी चंद लोग सिर्फ पैसों की ख़ातिर इस सम्मान वाले सफ़ेद कोट पर भी बदनामी के दाग लगाने से बाज़ नहीं आते। जिसके चलते खुलेआम, इंसानी अंगों का व्यापार होता है, कन्या भूर्ण हत्यायें की जाती है, महिलाओं के गर्भाशय निकाल दिये जाते है और भी न जाने क्या-क्या होता है। हालांकी हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि डॉक्टर भी है तो एक इंसान ही और गलतियाँ सभी से हो सकती है। लेकिन लापरवाही और गलती के बीच में शायद एक बहुत ही बारीक सी लकीर होती है जिसे इंसान बड़ी आसानी से भूल जाता है। क्यूंकि गलती हो जाने के बाद यदि गलती मान ली जाये तो शायद एक बार सामने वाला आपको माफ भी कर सकता है। मगर गलती करके झूठ बोलकर उस गलती पर पर्दा डाला जाये तो वो गलती कभी माफी के लायक नहीं हो सकती।
बस यही दिखाया गया है इस फिल्म में कि किस तरह एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर अपने आप को भगवान समझने लगता है और उस दौरान अपने अहम में, जानते बूझते हुए भी खुद अपनी ही लापरवाही के कारण उस छोटे से बच्चे अंकुर की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर बैठता है और उसमें उस बच्चे अंकुर की जान चाली जाती है और फिर इस फिल्म की पूरी कहानी उस डॉक्टर को सजा कैसे दिलवाई जाये के बिन्दु पर घूमती है। मगर इस पूरी फिल्म के दौरान जो ध्यान देने वाली मुझे महसूस हुई वो यह थी कि किस तरह आज कल सभी लोगों को अपने अपने काम में रुचि कम और पैसा कमाने में रुचि ज्यादा है और किस तरह से लोग पैसों के पीछे भाग रहें है कि जिसके चलते कोई भी पहली सीढ़ी पर कदम रखे बिना ही आसमान छूना चाहता है। ईमानदारी जैसे किसी भी काम में बची ही नहीं है। फिर चाहे वो डॉक्टर हो या इंजीनियर, वकील हो या टीचर, नेता हो या बाबू, सब के सब आसान, छोटे तथा गलत रास्तों को अपनाते हुए कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते है। ईमान इतना सस्ता हो चला है कि कोई भी कभी-भी बड़ी सरलता से अपने ईमान को एक किनारे कर सिर्फ पैसा कमाने के लिए बड़ी ही आसानी से गलत रास्तों पर चल पड़ता है।
ध्यान देने वाली बात यह कि सिर्फ डॉक्टर का पेशा ही नहीं बल्कि हर पेशा अपने आप में एक खास तरह का महत्व रखता है और यदि सभी लोग अपने अपने कामों को ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से करने लगे तो शायद यह धरती स्वर्ग बन जाये। मगर यदि ऐसा हो गया, तो लोगों को अपने किए का फल कैसे मिलेगा शायद यही सोचकर ईश्वर ने इंसान को गलतियों का पुतला बनाया है कि वो कर्म कर-कर के सीखे। मगर चिकित्सकों के पेशे में कर-कर के सीखने की गुंजाइश ही नहीं होती। खासकर लापरवाही करके सीखने की तो बिलकुल ही नहीं क्यूंकि वहाँ उनसे एक जीवन जुड़ा होता है। मगर हमारे देश में कुछ भी हो जाये डॉक्टर को सजा तक नहीं होती है। जबकि विदेशों में ऐसा नहीं है यहाँ डॉक्टर की डिग्री जाना मतलब बहुत आसान बात है। क्यूंकि किसी भी दूसरे इंसान की ज़िंदगी से खेलने का हक़ किसी को नहीं फिर चाहे वो खुद कोई डॉक्टर ही क्यूँ ना हो। यदि आपको याद हो तो यह बात आमीर खान के प्रोग्राम "सत्यमेव जयते" में भी दिखाई और बतायी गयी थी कि कन्या भूर्ण हत्या को लेकर कोरिया जैसे देश में कितने सारे बड़े और नामी गिरामी डॉक्टर्स की डिग्रीयां रद्द कर दी गयी थी। जबकि अपने यहाँ कन्या भूर्ण हत्या एक खेल बन गया है। स्टिंग ऑपरेशन के बावजूद सामने आए डॉक्टर आज भी इज्ज़त की आराम तलब ज़िंदगी जी रहे हैं। मैं यह नहीं कहती कि जो कुछ भी इस प्रोग्राम में दिखाया गया वो सब सौ प्रतिशत सच ही है। लेकिन इतना ज़रूर मानती हूँ कि जब आग लगती है तभी धुआँ उठता है। लेकिन हाय रे किस्मत अच्छे हों या बुरे, जब तबीयत खराब होती है तो जाना उनके ही पास पड़ता है।
मगर इस फिल्म में भी डॉक्टर को केवल सज़ा ही सुनाई गई जबकि अंदर से लग रहा था कि ऐसे डॉक्टर की तो डिग्री ही ले लेनी चाहिए। मुझे तो यह फिल्म देखकर ऐसा ही लगा बाकी पसंद और नज़रिया तो सभी का अपना-अपना होता है। अब यदि आपको मिले यह फिल्म तो आप भी देखें और फिर फैसला करें।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (09-07-2013) को मंगलवारीय चर्चा--1301--आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत.में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हाँ ये फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है...ऐसा कह रहे हैं लोग...मैंने फिल्म नहीं देखि है, सिर्फ इसका ट्रेलर देखा है..और सोचा था ये फिल्म देखूंगा...लेकिन नहीं देख पाया..बहुत कम स्क्रीन्स में रिलीज हुई थी ये फिल्म! देखूंगा अब जब इसकी डी.वी.डी निकलेगी!
ReplyDeletedoctors are now becoming merchants .they are selling there soul for money .really sad but true .now they are not second GOD
ReplyDeleteअब यहाँ भी डॉक्टर की लापरवाही से हुए नुकसान के लिए सज़ा का प्रावधान है और दिल्ली में तो फोलो भी हो रहा है।बेशक इस प्रोफेशन में लापरवाही के लिए कोई जगह नहीं है।
ReplyDeleteपैसे के लालच में कुछ डॉक्टर्स अवश्य गलत काम कर इस नोबल प्रोफेशन को बदनाम कर रहे हैं। लेकिन देखा जाये तो यह हमारे समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का ही विस्तार है क्योंकि डॉक्टर्स भी इसी समाज के सदस्य हैं। फिर भी एक डॉक्टर के लिए रोगी का स्वास्थ्य ही सर्वोपरि होना चाहिए।
डॉ खुदा नहीं लेकिन खुदा से कम भी नहीं इन्हें समाज में प्रथम पंक्ति का दर्जा मिला है जिसका ख्याल रखना ज़रूरी है फिल्म समाज का दर्पण है
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeletekahani ke hisab se to dekhna banta hai...
ReplyDeletewaise Doctor mareejo ke liye bhagwan jaise hi hote hain
par kuchh logo ke karan ye pesha bhi daagdaar ho gaya...
bahut behtareen aalekh ..
सच कहा पल्लवी......भ्रष्टाचार कोई भी करे गलत है मगर डॉक्टर के लालची होने से मासूमों की जाने जाती हैं जो मोरली एकदम गलत है..खुद भी महसूस किया है डॉक्टर्स की लापरवाही का नतीजा....मेरी तो हिम्मत ही नहीं है अंकुर अरोरा मर्डर केस देखने की :-( बहुत लाचारी लगती है.
ReplyDelete~अनु~
डॉ दराल साहब से सहमत हूँ , हर समाज में अच्छे बुरे सब लोग मौजूद हैं , डॉ भी अछूते नहीं हैं ..
ReplyDeleteमगर डॉक्टरों में बेईमानी से पैसा कमाना वीभत्सता की श्रेणी में आ जाता है और वाकई भयावह है , आज लगभग ८० प्रतिशत अनावश्यक होते हैं अगर इस पर भरोसा न हो तो २० साल पहले और आज के आंकड़े देख लिए जाएँ ..
बच्चे पैदा होने तक को इन्होने कृत्रिम बना दिया यह सबसे बड़ा मज़ाक है !
पहले गाँव में १० १० बच्चे साधारण डिलीवरी द्वारा होते थे और आज ...
चर्चा और विवरण के लिए यहाँ जगह काम पड़ जायेगी ..
फिलहाल भाई गिरीश पंकज की एक रचना जो डाक्टर दिवस पर उन्होंने लिखी थी दे रहा हूँ
धरती के भगवान् डॉक्टर
हों अच्छे इंसान डॉक्टर
हमको जीवन दान दिया है
है तेरा अहसान डॉक्टर
ऊपरवाले का मानव को
धरती पर वरदान डॉक्टर
जिसके आने से दिल खुश हो
हैं ऐसे मेहमान डॉक्टर
कम सदा ऐसे ही करना
हो तेरा गुणगान डॉक्टर
धंधा गन्दा ना हो जाये
रखते इसका ध्यान डॉक्टर
लालच में गर फंस जाये तो
बन जाते शैतान डॉक्टर
अब इस रचना का दूसरा पक्ष भी पढ़ें जो मैंने इसी मौके पर लिखा था ..
भाई गिरीश पंकज से क्षमायाचना सहित ...
कम पैसे दे,निकल न जाए
इसका रखते, ध्यान डाक्टर
पैसे बचा कर, ले न जाए
और बीमारी खोजें डाक्टर !
बिना जरूरत पेट फाड़कर
किडनी गायब करें डाक्टर
बिना सर्जरी निकल न जाए
पूरा करते, काम डाक्टर !
बीमारी की बात बाद में
पहले पूंछे, काम डाक्टर
मामूली से , पेट दर्द में
पहले भरती करें डाक्टर
ऊँगली कुचली,लेकिन सर
का एम्आरआई कराय डाक्टर
वाह...दोनों ही रचनायें अपने आप में सटीक और लजावाब है।
ReplyDeleteहर जगह यही हाल है........बस नोच खसोट मची पड़ी है......अब डॉक्टर भी कसी हो गएँ हैं........इंसानी जिंदगी की कोई कीमत नहीं बची ......अच्छा लेख।
ReplyDeleteअच्छी फिल्म समीक्षा .... डॉक्टर का पेशा ऐसा है कि उनकी लापरवाही से जान जा सकती है .... कम से कम ज़िंदगी से खिलवाड़ न करें ...
ReplyDeleteन जाने क्यों एक चुटकुला याद आ गया ... शायद कहीं एफ बी पर ही पढ़ा था ---
रोगी ( नर्स से ) तुमने मेरा दिल चुरा लिया ....
नर्स ( रोगी से ) झूठ है ये हमने तो किडनी चुराई है ।
आज सभी पैसे कमाने की दौड़ में लगे हुए हैं...लेकिन डॉक्टर जिसे भगवान मानते हैं अगर वे भी मानव जीवन से खिलवाड़ करें तो दुःख होता है...
ReplyDeleteइतने बुरे भी नहीं हैं !
ReplyDeleteरोगी को भी चाहिए कि सिस्टर से दिल न लगाये ! :)
ReplyDeleteAj ka dactor yamraj ka chola pahanane laga hai ......vakai bahut khatarnak sthiti hai .....agar bahut shakht kanoon nahi banaya gya to yah insan paison ki moh me bahut hi bhayavah paristhiti utpann kr dega .....prabhavshali lekh ke liye aabhar Pallvi ji .
ReplyDeleteहमारी हिंदी मूवीस,हमारे ही समाज का ही आईना है ....जब पैसे देकर ...या पेपर में नक़ल मार कर कोई भी डॉ बन सकता है तो ऐसा होना लाज़मी है ...आने वाला वक्त और भी खतरनाक होगा ...ये हम सब जानते हैं :((
ReplyDeleteव्यावसायिकता की सोच ने जिम्मेदारी का भाव ही खो दिया है | यह हर क्षेत्र में हुआ है, चिकित्सा में भी
ReplyDeleteजी पल्लवी जी ,आप की समीक्षा एक दम सटीक है .....मैंने ये फिल्म दो दिन पहले ही देखी टोरंटो में ...पर मज़े की बात ये कि ये डी.व्.डी. गलती से किसी और फिल्म के बदले आ गयी थी ...पर देख कर बहुत अच्छा लगा ..कभी-कबार ऐसी फिल्म
ReplyDeleteदेखने का चांस मिलता है ...पर मेरे ख्याल से सज़ा कम है ..क्यों कि गलती छुपाने की कोशिश की गई ....गलती तो किसी से भी हो सकती है ...आखिर डोक्टर भी एक मनुष्य है | मैं तो पिक्चर देखने की सिफारिश करूँगा |
खुश रहें!
जिन्दगी के बदले जिन्दगी की सजा भी कम रहती ...बात फिल्म की भी बात है उस समाज की जिसमे ऐसी शिक्षा व्यवस्था है और प्रबंधक केवल पैसों के बारे में सोचता है।
ReplyDeleteपधारिये और बताईये निशब्द
आज जिन्दगी के सामने पैसा बड़ा होगया है..अच्छी फिल्म समीक्षा .
ReplyDeleteपिक्चर की बात तो रहने दीजिए। लेकिन डॉक्टर कोई अलग सामाजिक इकाई नहीं है। उसे इसी समाज में रहकर अपनी पढ़ाई,प्रेक्टिस,पेशा करना पड़ता है। अच्छे-बुरे प्रभाव उस पर भी पड़ते हैं। जरुरत सरकारी समन्वय की है कि वह कैसे इस महत्वपूर्ण पेशे और इसके कर्ताओं यानि कि डॉक्टर्स को भगवान के समकक्ष लाकर स्थापित करे। अच्छे डॉक्टर्स की कमी नहीं है समाज में। पर इस कलिकाल में अच्छाई के बजाय बुराई का ज्यादा मण्डन-खण्डन हो रहा है।
ReplyDeleteआपकी बात से थोड़ी सहमति है यह बात सच है कि अच्छे डॉक्टर्स की भी कमी नहीं है समाज में, किन्तु बुरे भी बहुत हैं। जिन्हों ने इंसान की ज़िंदगी को केवल पैसा कमाने के लिए इस्तेमाल किया है। यह दुनिया ही ऐसी है "विकेश जी" यहाँ यदि भगवान है तो शैतान भी है। तभी तो संतुलन बन पाता है और रही बात फिल्म की तो उसकी बात को भला कैसे रहने दें हमने तो लिखा ही फिल्म के बारे में है :-)
ReplyDeleteयदि सेवाभाव अक्षुण्ण बना रहे तो इससे उत्कृष्ट कोई कार्य नहीं।
ReplyDeleteफिल्म देखि नहीं ... पर जैसा आपने कहा ये एक बड़ा विषय है और न सिर्फ डाक्टर बल्कि सभी को समझना होगा की उनके छोटे से लाभ के लिए कहीं दूसरे का बड़ा नुक्सान तो नहीं हो रहा ... समाज के विशिष्ट व्यक्तियों को तो ये सोच और भी जरूरी है ...
ReplyDeleteआपने बहुत ही अच्छा कर्म कर रही हैं, परम तत्व आपको आयुषमति करे| ऊँ तत् सत |
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