छीः .... यार पता नहीं किस मिट्टी के इंसान बनते है आजकल, खासकर वो जो नेता कहलाते है। समझ नहीं आता, क्या हो गया है हमारे देश के इंसानों को, जिनमें इंसानियत बाकी ही नहीं रही। ऐसा लगता है चारों तरफ "अंधेर नगरी चौपट राजा वाला" हिसाब फैला हुआ है। अरे भला क्या बिगाड़ा था उन मासूम बच्चों ने किसी राज नेता का जो उसने अपनी गंदी और घिनौनी राजनीति की रोटियाँ सेंकने के लिए उन मासूम बच्चों की चिता सजा डाली। क्या मिला किसी को ऐसा घिनौना काम करके कि बच्चों को मिड डे मील के नाम पर खाने के बजाए मौत परोस दी गयी। क्या ऐसा करने वाले लोगों के अंदर उनकी अंतर आत्मा वास नहीं करती या उसे भी बेच खाया है उन्होंने, कि उनके अंदर से चित्कार नहीं उठती, उनकी अंतर आत्मा उन्हें धिक्कारती तक नहीं, ऐसा शर्मनाक काम करने के बाद उन्हें नींद कैसे आ जाती है। यह बात मेरी समझ से परे है।
बच्चे तो बच्चे होते हैं फिर गरीब के हों या अमीर के इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। मगर इन्हीं मासूम बच्चों में यदि किसी बड़े नेता या राजनेता का बच्चा भी मरा होता तो शायद इन्हें एहसास होता कि मौत क्या होती है। दुख क्या होता है। कैसा लगता है, जब एक माँ के मुंह से बद्दुआ निकलती है। जिसने भी यह किया, उसे तो मौत जैसी सरल सज़ा के बजाए ऐसी कोई सज़ा मिलनी चाहिए कि वो ज़िंदा रहकर भी मौत की भीख मांगे। मगर सज़ा दे कौन ? प्रशासन और सरकार तो चिकना घड़ा है उन्हें कभी किसी बात से आज तक कोई फर्क नहीं पड़ा तो अब क्या पड़ेगा। फिर चाहे वो केदारनाथ का हादसा हो या पिछले कई और ऐसे मामले, सरकार ने तो जैसे नियम ही बना लिया है कहीं भी कोई भी हादसा हो तो बस समितियां बनाकर मुआवज़े की घोषणा कर दो और ज्यादा हल्ला हो तो नौकरी देने की बात कह दो अपना काम ख़त्म।
फिर चाहे मरने वाले के परिजन ताउम्र उस कभी न मिलने वाले मुआवज़े और अपने उस प्रिय व्यक्ति की याद में घुलते रहें, मरते रहे, उन्हें उनके दुख दर्द से कोई वास्ता नहीं, क्यूँ नहीं सोच पाते वह लोग एक आम इंसान की तरह की इन मुआवजों से एक माँ की उजड़ी हुई गोद फिर से हरी नहीं हो सकती। एक पिता के बुढ़ापे का सहारा और किसी के घर का चश्में चिराग फिर दुबारा रोशन नहीं हो सकता। फिर किसी बहन को राखी बांधने के लिए उसका भाई और किसी भाई को राखी बँधवाने के लिए उसकी बहन नहीं मिल सकती। कुल मिलाकर कहने का मतलब यह कि दुनिया की कोई ताकत और कोई भी सहूलियत उस दुख और उस दर्द की पूर्ति नहीं कर सकती जो उस परिवार के लिए स्वयं किसी आपदा से कम नहीं। जिसमें उन्होने अपने अपनों को हमेशा के लिए खो दिया वो भी किसी और कि गलती की वजह से, सरकार और प्रशासन पर भरोसा और विश्वास करने का यह नतीजा दिया है सरकार ने ? वाह रे राजनीति ....
लेकिन राजनेताओं को गालियां देने का भी क्या फायदा हम खुद भी तो उतने ही असंवेदन शील हो गए हैं इसलिए हर बार चुनाव आने पर एक बार की हुई गलती को बार-बार दौहराते है और कुछ महान लोग तो वोट ही नहीं देते यह सोचकर कि क्या करना है वोट देकर जहां ऊपर से नीचे तक सभी भ्रष्ट है। मगर कोई यह नहीं सोचता कि राजनीति यदि गंदी है तो उसकी साफ सफ़ाई करने का काम भी तो हमारा ही है। सिर्फ यह सोचकर बैठ जाना कि सभी भ्रष्ट है चाहे जिसकी सरकार बने हमें क्या, हम तो जैसे जीते आए हैं वैसे ही ज़िंदगी गुज़ार देंगे। ऐसा सोचने से ना तो देश का भला होने वाला है और ना हीं देशवासियों का, क्यूंकि फिर इसी रवैये के चलते ऐसी ही भ्रष्ट और बेकार सरकार बनती है और ऐसा ही सब कुछ हमारी आँखों के सामने घटता रहता है जिसे देखकर, पढ़कर या सुनकर हम सिर्फ अफसोस ज़ाहीर करने की औपचारिकता निभा देते हैं और यदि स्वयं हमारे साथ ऐसा कुछ हो जाये तो सिवाए सरकार को कोसने के हम कुछ नहीं कर पाते और कुछ दिनों बाद ज़िंदगी फिर उसी ढर्रे पर चलने लगती है।
अरे जिस देश में स्वयं वहाँ की जनता ऐसी हो, सरकार और प्रशासन ऐसे हों उस देश को भला बाहरी दुश्मनों की क्या जरूरत है जब घर के भेदी ही लंका ढाने को आमादा है।
इस मामले की सम्पूर्ण जानकारी आप इस लिंक पर पढ़ सकते है। अब तो मरने वाले बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हो चुकी है यह खबर पुरानी है। साथ ही आप मेरा यह आलेख NBT नव भारत टाइम्स पर भी पढ़ सकते है http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/ek-nazar-idhar-bhi/entry/%E0%A4%AC-%E0%A4%B9%E0%A4%A6-%E0%A4%B6%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%A8-%E0%A4%95?fb_action_ids=10201533466478958&fb_action_types=og.recommends&fb_source=timeline_og&action_object_map=%7B%2210201533466478958%22%3A160964357424685%7D&action_type_map=%7B%2210201533466478958%22%3A%22og.recommends%22%7D&action_ref_map=%5B%5D
http://www.samaylive.com/regional-news-in-hindi/bihar-news-in-hindi/218304/bihar-patna-get-mide-21-children-died-70-unconscious.html
हे भगवान, कितना दुखद..
ReplyDeleteचुनाव प्रक्रिया ही कौन सी ठीक होती है .... यहाँ तक की वोटों की गिनती मेन फेर बादल हो जाता है .... जांच चलती रहती है .... न जाने कितनी तृष्णा है लोगों में जो बच्चों की मौत पर भी राजनीति करते हैं ...
ReplyDeleteसब ओर दुख हैं चूर-चूर हैं प्राण
ReplyDeleteतब भी हो रहा है भारत निर्माण
पल्लवी जी गर इनकी नाक होती तो तब शर्म आती, निर्लजों से ऐसी उम्मीद रखना ही व्यर्थ है !
ReplyDelete"लेकिन राजनेताओं को गालियां देने का भी क्या फायदा हम खुद भी तो उतने ही असंवेदन शील हो गए हैं इसलिए हर बार चुनाव आने पर एक बार की हुई गलती को बार-बार दौहराते है और कुछ महान लोग तो वोट ही नहीं देते यह सोचकर कि क्या करना है वोट देकर जहां ऊपर से नीचे तक सभी भ्रष्ट है। मगर कोई यह नहीं सोचता कि राजनीति यदि गंदी है तो उसकी साफ सफ़ाई करने का काम भी तो हमारा ही है। " - Agreed
सबने संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर ली हैं ... प्रशासन, नेता, जनता ... पता नहीं कौन से समय का इंतज़ार कर रहे हैं सब ... या किस मसीहा के आने का इंतज़ार हो रहा है ...
ReplyDelete:-(
ReplyDeleteसारी संवेदनाएं मेर गयी हैं |बहुत सही लिखा है आपने |
ReplyDeleteआशा
संवेदनशील और मर्माहत करने वाली घटना त्वरित और कारगर उपाय ज़रूरी है
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने |संवेदनाएं मेर गयी हैं .संवेदनशील और मर्माहत करने वाली घटना
ReplyDeleteदेश में अंधेरगर्दी का वातावरण है !!
ReplyDeleteye NGO aur ye sarakari yojanayen sab apane hi logon ko labhanvit karne ke chochale hain . unehn achche ya bura se koi matlab nahin . ve bhi kisi aur ko kam paise men theka de dete hain aur vah apana profit nikalate hue kaam karte hain kyonki khane vale unake apane bachche to nahin hote hain .
ReplyDeleteसारा समाज ही संवेदना रहित हो चुका है फ़िर जनता हो या नेता. आपने बहुत ही मार्मिक सत्य लिखा है. देर सवेर शायद हमारा समाज फ़िर संवेदनशीलता की तरफ़ लौटेगा, यही आशा की जा सकती है.
ReplyDeleteरामराम.
आपने बहुत ही मार्मिक सत्य लिखा है.
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
आपकी संवेदना को सलाम। क्या इसे एक लापरवाही के कारण घटित हुई दुर्घटना नहीं माना जा सकता? कौन अधम होगा जो ऐसा जानबूझ कर करेगा?
ReplyDeleteआपकी संवेदना को सलाम।
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने .आज लोग संवेदना रहित हो चुके हैं
ReplyDeleteआज कल सभी न्यूज़ चेनल्स पर बस ये ही न्यूज़ दिखाई जा रही है ...जो हुआ बेहद शर्मनाक हैं ...गलती किसी की भी हो ...बच्चे तो मर गए :)
ReplyDeleteसटीक लेख ! संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है....
ReplyDeleteबहुत दुखद! :(
ReplyDeleteलापरवाही की भी हद होती है...! तेल खराब था तो उसे इस्तेमाल नहीं करना था, तेल की जाँच होनी चाहिए थी, फिर जहाँ से तेल आया..उसकी जाँच...इस तरह अगर पूरे मामले में सावधानी बरती गयी होती...तो शायद उन मासूम बच्चों का ऐसा दर्दनाक अंत ना होता.... :(( खाना बनाने वाली भी तो जान से गयी...! काश! थोड़ी सतर्कता बरती होती...
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(20-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
यहाँ खाने में हाइजीन सबसे बड़ी केजुअल्टी है। उस पर लापरवाही और भ्रष्टाचार मिलकर डर्टी कॉकटेल बना देते हैं। सड़ते अनाज़ की तस्वीरें देखकर सचमुच बड़ा दुःख होता है।
ReplyDeletedr.mahendrag का यह कमेंट एक बार पब्लिश हुआ था फिर जाने कहाँ गायब हो गया स्पैम में भी नहीं है इसलिए उनके नाम से आयी मेल के द्वारा, मैं उनका कमेंट यहाँ पोस्ट कर रही हूँ "बेहद शर्मनाक ....":
ReplyDeleteनेताओं के बच्चे इन स्कूलों में नहीं पढ़ते,रही संवेदना ? सत्ता में आकर इस से इंसान मुक्ति पा जाता है.जाना पहचाना , ,आजमाया फार्मुल्ला है जांच,मुवाअजा, नौकरी . कुछ नए नियम कानून बनाने का ढोंग,हेलिकोप्टर में बैठ कर दौरा घडियाली आंसू.किसी भी तरह की घटना हो प्राकर्तिक आपदा या मानव द्वारा आमंत्रित ,विपक्ष भी पीछे नहीं रहता,दो दिन गरिया कर, इस्तीफा मांग कर दौरा कर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है.जनता ही इन्हें चुनाव में सजा दे कुछ सिखा सकती है,पर धरम जाति , वर्ग विशेष के व्यूह में फंसी कुछ नहीं कर पाती ,खुद को ठगा महसूस करती है.यक्ष प्रशन वही है कि इसमें सुधार कैसे हो?
मिड डे मील योजना के अन्तर्गत यह पहला हदसा नहीं हुआ---इसके पहले भि बच्चों को कैई बार समूह में अस्पताल भेजा गया---पर वो सौभग्यशाली थे जो बच गये----लेकिन इस बार---मेरी समझ में नहीं आता कि कोई खद्दरधारी कभी जाकर स्कूलों में बंटने वाला खाना खाकर क्यों नहीं देखता----बहुत सामयिक लेख---जो मासूम बच्चों के प्रति आपकी संवेदनशीलता को सामने लाता है।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ।।।
ReplyDelete:(
ReplyDeleteआपके आलेख से कुछ पुरानी बातें मन में कौंध गईं.
ReplyDeleteहॉलीवुड की एक फिल्म में अफ़्रीकी मूल का एक पात्र खतरनाक असाइनमेंट दिए जाने पर अपने गोरे बॉस को कहता है, “मैं जानता हूँ पहले काला मरेगा.”
महाराष्ट्र में 24000 बच्चे कुपोषण से मर गए. एक सभ्य देश में काले नागरिक भूख से नहीं मरते, अलबत्ता कुपोषण से मर सकते हैं. कुपोषण से बचाने के लिए उन्हें ज़हर जैसा मिड डे मील देना और भी सरल तरीका है.
सभी जानते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार ने सबसे अधिक हानि किेसे पहुँचाई है.
अब क्योंकि पहले काले को ही मरना है सो अफ़सोस की कोई आवश्यकता नहीं. नेता लोग तो वोटों के लिए ही ऐसी घटनाओं की निंदा करते हैं. आपके आलेख की कैटेगरी अलग है जिसे 'इंसानियत' कहा जाता है.
अत्यंत दुखद एवँ हृदय विदारक घटना है जिसने हर सम्वेदना को झकझोर कर रख दिया है ! मिड डे मील योजना के लिये अक्षय पात्र जैसे बेहतर विकल्प मौजूद हैं लेकिन उन्हें अपनाने से शायद इसीलिये गुरेज़ है कि फिर नेताओं की अपनी कमाई कैसे होगी ! सड़े गले खाद्यान्न और विषाक्त तेल से गंदे स्थानों पर और गन्दगी से बने खाने को परोस कर बच्चों को मौत के मुँह में भेजा जाये इससे तो बेहतर है कि बच्चों को दो-दो केले और चार चार बिस्किट्स दे दिए जाएँ कम से कम कुछ तो स्वास्थ्य वर्धक उन्हें मिल सकेगा !
ReplyDeletebahut dukhad
ReplyDeleteऐसा ही सब कुछ हमारी आँखों के सामने घटता रहता है जिसे देखकर, पढ़कर या सुनकर हम सिर्फ अफसोस ज़ाहीर करने की औपचारिकता निभा देते हैं और यदि स्वयं हमारे साथ ऐसा कुछ हो जाये तो सिवाए सरकार को कोसने के हम कुछ नहीं कर पाते और कुछ दिनों बाद ज़िंदगी फिर उसी ढर्रे पर चलने लगती है।
ReplyDeleteसही कहा आपने ....यही है संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ....!!और हम भुगतते रहते हैं इसका परिणाम भी ...!!