उत्तराखंड की आपदा और गंदी राजनीति एवं लूटमार की खबरों से मन पहले ही बहुत दुखी है। ऊपर से रोज़ ही कहीं न कहीं किसी न किसी के मुंह से यही सुनने में आता है कि उनका कोई अपना अब भी वहाँ फंसा हुआ है। लोग इस कदर दुखी और परेशान है कि उनके दुख को शब्दो में बांधकर लिख पाना भी संभव नहीं, वहीं दूसरी और लोगों ने अपने मन को कुछ इस तरह भी समझाना शुरू कर दिया है कि फलां तारीख तक देखते है यदि अपने उन खोये हुए परिजनों की कोई ख़बर मिलती है, तो ठीक है। वरना समझ लेंगे कि अब वह अपने अंतिम सफर पर जा चुके है। सुनने में बहुत अजीब लगता है ना !!! मगर यही सच है। मैं जानती हूँ एक ऐसे परिवार को जिनके घर से दो लोग अपने बच्चों को अपने रिशतेदारों के पास छोड़कर केदारनाथ की चार धाम की यात्रा पर निकले थे। मगर अब तक उनका कोई अता पता नहीं है, कोई ख़बर नहीं है। अन्य परिजनों के साथ बच्चे बहुत दुखी और परेशान है। एक ऐसी खामोशी से ग्रस्त जिसका तोड़ असंभव सा नज़र आ रहा है। जो चले गए उनकी सोच का तो पता नहीं, लेकिन जो जीवित है जिन्हें सेना के जवानो ने अपनी जान पर खेल कर बचाया उनके लिए तो वर्दी में स्वयं भगवान ही आए थे। उनकी नज़र से देखो तो बात सच ही लगती है।
ऐसे न जाने कितने हजारों, लाखों लोगों ने अपने परिवार और अपने अपनों को खोया होगा। मगर फिर भी लोग, एवं हमारे तथा कथित नेतागण अपनी छिछोरी हरकतें और गंदी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे है। लाशों पर से सोने के आभूषण उतारे जा रहे हैं। पैसा लूटा जा रहा है, खाने-पीने की चीजों के दाम बजाय ऐसी स्थिति में घटने के चार गुना बढ़ गए है। इस तरह की चोरी चकारी की वारदातें और ख़बरे सुनने के बाद ऐसा लगता है, जैसे लाशों पर भी अपनी-अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं लोग, जब जिसको जहां जैसा मौका मिल रहा है, वह उस मौके का भरपूर फायदा उठा रहा है। फिर भी हमारी सेना और उसके वीर जवानों ने जो सहायता की और कर रहे हैं। उसके लिए उनका जितना भी आभार माना जाये वो कम है और उनको जितने भी सेल्युट किए जाएँ वो भी बहुत कम हैं और दूसरी तरफ लोगों को ऐसे हालातों में भी दूसरों पर आरोप प्रत्यारोप लगाने से चैन नहीं मिल रहा है जिसे देखो एक दूसरे पर दोषारोपण करने पर आमादा है। लेकिन मदद के लिए बढ़े हुए हाथों को सराहने हेतु दोषारोपण करने वालों की तुलना में सराहने वालों की संख्या बहुत कम है।
मैं किसी राजनीतिक पार्टी विशेष की तरफ नहीं हूँ। मेरे लिए कोंग्रेज़ या भाजपा दोनों ही एक समान है। लेकिन मैं फिर भी उन लोग से यह पूछना चाहती हूँ और यह कहना भी चाहती हूँ, कि ऐसा तो नहीं है कि सरकार कुछ कर ही नहीं रही है। हाँ यह माना कि जितनी मात्रा में पीड़ितों को सहायता पहुंचनी चाहिए या मिलनी चाहिए उतनी मात्रा में नहीं पहुँच पा रही है। अब उसके पीछे कारण गंदी राजनीति हो या कालाबाज़ारी लेकिन फिर भी पहुँच तो रही है, राहत कार्य अब भी जारी है। ज़रा सोचिए अगर जितना मिल रहा है वह भी न मिल पाता तो क्या होता ? लेकिन उन धर्म के ठेकेदारों का क्या, वह क्यूँ ऐसी आपदा और आपातकालीन स्थिति में भी आगे बढ़कर वहाँ फंसे तीर्थ यात्रियों की मदद के लिए आगे नहीं आते। फिर चाहे वो शिर्डी के मंदीर के ट्रस्ट हों, या तिरुपति बालाजी के ट्रस्ट, या और अन्य बड़े मंदिरों के ट्रस्ट क्यूँ नहीं आगे बढ़कर वहाँ फंसे तीर्थ यात्रियों के प्रति कुछ करते। जबकि वहाँ तो सोने के मुकुट और लाखों करोड़ों का चढ़ावा आए दिन चढ़ाया जाता है। क्यूंकि सवाल यह उठता है जब बाबा राम देव इतना कुछ कर रहे हैं तो उनसे क्यूँ कोई कुछ नहीं सीखना चाहता। मेरी और से बाबा राम देव और उनके ट्रस्ट को प्रणाम जिन्होंने वहाँ फंसे लोगों को हिंदुस्तानियों और इन्सानों की नज़र से देखा और उनकी जान बचाने के लिए राहत कार्य हेतु अपनी और से सम्पूर्ण योगदान दिया। आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने भी आगे बढ़कर वहाँ फंसे लोगों की भरपूर मदद की और अब भी कर रहे हैं। उनकी भी जितनी सराहना की जाये वह बहुत कम है।
लेकिन बाकियों का क्या, अरे जो धर्म आपदा के समय और ऐसी आपातकालीन स्थिति में भी एक जुट होकर अपने ही धर्म के बंदों के साथ इंसानियत नहीं दिखा सकता। तो क्या फायदा ऐसे धर्म को मानने से वहाँ विराजमान भगवान के नाम पर लाखों करोड़ों का चढ़ावा चढ़ाने से, जो वक्त और ज़रूरत पढ़ने पर भक्तों के ही काम न आ सके।
जागो इंसान जागो, अब भी सबक लो, कि इस धरती पर यदि ईश्वर हैं तो वह है आपका अपना पर्यावरण। आपकी अपनी प्रकृति, यदि उसे खुश रखोगे तो बदले में खुद भी सुख ही पाओगे। लेकिन उसके साथ बुरा करोगे या छेड़-छाड़ करोगे तो नतीजा सबके सामने है। अरे खुद ही सोचो आपका लगाया एक पौधा आपको बदले में कितना कुछ देता है। फिर चाहे वो किसी भी चीज़ का क्यूँ न हो। जैसे आप एक मुट्ठी गेंहू उगाकर देखिये कुछ ही दिनों बाद वही गेहूं आपको वापस मिल जाएगा और उसकी घाँस मात्र से शारीरिक विकार दूर करने की औषधि तक मिल जाती है। मगर पत्थर की मूरत पर करोड़ों का चढ़ावा चढ़ाने से आपको क्या मिला ? न मन का चैन, ना आत्मा की शांति। फिर क्यूँ अंधीभक्ति में लीन हम वह सब वही कार्य किए जाते हैं, जिस से हमें केवल नुकसान है। क्यूँ आखिर क्यूँ ??? खुली आँखों से सच्चाई नहीं देखना चाहते हम ??
मैं यह नहीं कहती कि ईश्वर को मत मानो, या आस्था रखना व्यर्थ है। बिलकुल नहीं, मैं खुद ईश्वर को मानती हूँ। रोज़ पूजा भी करती हूँ मगर हमेशा कुछ न कुछ मांगने के लिए नहीं, बल्कि अपने बेटे को कुछ अच्छे संस्कार देने के लिए। मेरे लिए पूजा मन की शांति है। अपने आप से मिलने की एक जगह जहां खुद का आत्म चिंतन सा होता है और कई बार अपने अंदर उमड़ रहे कुछ बेचैन सवालों के जवाब भी, मैं वहाँ पा लेती हूँ। ईश्वर है ऐसा मेरा विश्वास था और आज भी है, हमेशा रहेगा मगर ईश्वर हमेशा मांगते रहने के लिए नहीं है। यूं भी हम ईश्वर से प्यार नहीं करते केवल डरते हैं। इसलिए दिन रात उसके डर में जीते हैं और उस डर से उसके पास जाकर उसे ही चढ़ावे और प्रसाद की रिश्वत देते हैं। ताकि उसका प्रकोप कभी हम पर न पड़े क्यूँ ? क्या हमने कभी उसको अपना मानकर उसके आगे बिना किसी मतलब के प्यार से सिर झुकाया है? शायद नहीं, कभी नहीं। हमें हमेशा ईश्वर की याद भी तभी आती है, जब हम पर कोई संकट आता है। लेकिन तब भी हम उसे कोसने से बाज़ नहीं आते। इसलिए किसी अपने की मृत्यु के समय हम तेरह दिन तक घर में पूजा नहीं करते क्यूँ ? शायद अपना गुस्सा दिखने के लिए।
अरे जब हम अपना गुस्सा दिखा सकते हैं तो क्या हमारी करतूतों और कारिस्तानियों से तंग आकर उसे अधिकार नहीं है अपना गुस्सा दिखने का, मेरी नज़र में तो है और वही उसने किया, जो आज उत्तराखंड में आयी विपदा से जूझ रहे हैं हम सब, इस आपदा के लिए हम किसी एक को दोषी नहीं ठहरा सकते। इस के लिए सारी मानव जाति जिम्मेदार है। फिर चाहे वो आम इंसान हो या सरकार, प्रकृति के साथ खिलवाड़ सभी ने किया। नतीजा भी आज सबके सामने है। मगर फिर भी हम आज भी अपने किये का घड़ा दूसरों के सर पर फोड़कर खुद को झूठी तसल्ली दे रहे हैं।
अब भी वक्त है, अब भी यदि हम आपसी मत भेदों को भूलकर आगे नहीं बढ़े, तो एक दिन प्रलय के रूप में विनाश निश्चित है। जय हिन्द...
बिलकुल सही कह रही हैं आप ! उत्तराखंड में आई आपदा के लिये धर्म स्थानों की तिजोरियों के ताले खुलने चाहिये ! वह खजाना भी आम जनता की गाढ़ी कमाई से ही जमा हुआ है ! आज जब हज़ारों तीर्थयात्री संकट में हैं तो उस धन का सदुपयों उन्हें राहत देने के काम में किया जाना चाहिये ! एक बहुत ही विचारणीय एवँ सशक्त आलेख !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (01-07-2013) को प्रभु सुन लो गुज़ारिश : चर्चा मंच 1293 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पता नहीं, हम कब जागेंगे। बोलने से अधिक कर्म को महत्व देना है, यह कब सीखेंगे।
ReplyDeleteमैं भी आपकी बात से इत्तेफाक रखता हुं, पल्लवजी भारत के जाने माने मंदिर ट्रस्टों ने इस आपदा में पीडितों के लिए कोई हमदर्दी नहीं दिखाई है । जबकि उनके वहां चढ़ावे के रिकॉर्ड हर साल टुटते है । और बाबा रामदेव ने पीडितों की सहायता में जो योगदान दिया है वह सराहनीय है । ....पर सुनकर दु:ख होता है कि आम नागरिकों द्वारा अपने साथियों की मदद को लिए भेजी जा रही राहत सामग्री के वितरण में भी लापरवाही बरती जा रही है ।.. अभी भी वहां ऐसे कई गांव हैं जहां राहत सामग्री नहीं पहुंची है ।..
ReplyDeleteहम आपसी मत भेदों को भूलकर आगे नहीं बढ़े, तो एक दिन प्रलय के रूप में विनाश निश्चित है।
ReplyDeleteRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
इस आपदा के लिए यकीनन सब दोषी हैं ... इन्सान, प्राकृति ... पर इंसान सबसे ज्यादा ... स्थिति के बाद न संभालने के लिए भी सरकार, (मतलब इन्सान) ही दोषी है ...
ReplyDeleteकांग्रेस और बीजेपी एक नहीं हो सकते। एक देश को पैंसठ सालों से लूट रही है, केवल पांच साल के लिए यदि बीजेपी खम्भों के सहारे सत्ता में आ भी गई थी तो उसने बहुत कुछ किया। लेकिन जो लूट साठ सालों से मची हुई है और उसके कारण जो सामाजिक गन्दा ताना-बाना बना हुआ है, उसके लिए लोग बीजेपी को क्यों बीच में ले आते हैं। सालों की फैली सड़ांध को हटाने के लिए कांग्रेस से इतर बीजेपी या किसी दूसरी पार्टी को कम से कम १२० साल चाहिए भारत को पहली दुनिया का देश बनाने के लिए। रही लूटपाट की बात, महंगी चीजें बेचने की बात तो ये सब नेपाली, बांग्लादेशी और अल्पसंख्यक लोग हैं,जिन्होंने ऐसा किया है। क्या आपने यह खबर नहीं सुनी कि स्थानीय पहाड़ियों ने लोगों को अपने घरों में रखकर उनकी देवस्वरुप सेवा की और उन्हें मुसीबत के समय पर यह अहसास नहीं होने दिया कि वे जलप्रलय में फंसे हुए हैं। मीडिया ने भी इसका गाना नहीं गाया। रही बात आस्था और भगवान की तो आस्थामूलक नियमों को तो मानना ही पड़ेगा। चारधाम की यात्रा विधिविधान से होती है। यह आधुनिक गैजेट नहीं हैं कि पहले इसका या उसका उपयोग कर लो। जिन धर्मस्थलों को लोगों ने आमोद-प्रमोद स्थल बना दिया हो तो ऐसा ही होगा। इस आपदा के घटने के पीछे धार्मिक कोण सबसे ज्यादा हैं। मैं तो इस पर लिखने के लिए अभी तक एकाग्र ही नहीं हो पाया हूँ,क्योंकि आपदा के दौरान उत्तराखण्ड में रहते हुए जो कुछ मैंने महसूस किया अभी उसका अनुभव कई दिनों तक रहेगा। जब इससे उबरुंगा तब ही आप लोगों को आपदा के कारणों के नए कोणों से परिचित करा पाऊंगा।
ReplyDeleteविकेश जी मैंने पहले ही लिखा है कि मैं किसी पार्टी विशेष की तरफ नहीं हूँ, मेरे लिए दोनों ही बराबर है। मैं तो सिर्फ यह कहना चाह रही हूँ कि ऐसे तीर्थ स्थलों पर जाने से पहले लोगों को स्वयं अपनी सेहत ध्यान में रख कर निर्णय लेने कि भी जरूरत है। क्यूंकि वजह चाहे जो भी हो लोग भगदड़ में ज्यादा मारे जाते हैं इसमें प्रशासन कि क्या गलती। फिर भी लोग हर आपदा और समस्या के बाद गालियां प्रशासन को ही देते हैं। फिर उस समय भले ही सरकार किसी भी पार्टी की क्यूँ ना हो। लेकिन मेरा मानना यह है कि यह आपदा केवल प्रशासन या सरकार की गलतियों की वजह से नहीं आयी इसमें सब की गलती है, पूर्ण मानव जाति इसकी जिम्मेदार है क्यूंकि प्रकृति के साथ खिलवाड़ सभी ने किया है फिर चाहे वो आम इंसान हो या सरकार किसी एक के सर घड़ा फोड़कर हम अपनी गलतीयों से मुकर नहीं सकते। अभी और भी बहुत से बिन्दु हैं जिन पर प्रकाश डाला जाना अभी बाकी है। लेकिन एक ही आलेख में यह सब संभव ना हो पाने के कारण मैं वो सब अभी लिख नहीं पायी कोशिश करूंगी आगे कभी उन बिन्दुओं पर भी लिख सकूँ।
ReplyDeleteयहाँ कोई किसी को रास्ता नहीं देता ।
ReplyDeleteमुझको गिरा के संभल सको तो चलो ॥
बसीर भद्र
aj ke bharat ki tashvir kuchh aisi hi hai .Es tashvir ko prkriti hi theek kr sakti hai aur usne apna kary prarmbh krdiya hai ....agar ab bhi nahi jage to bahut der ho chuki hogi ..aabhar Pallvi ji .
धर्म निर्पेक्षता का नारा बुलंद करने बाले
ReplyDeleteआम आदमी का नाम लेने बाले
किसान पुत्र नेता
दलित की बेटी
सदी के महा नायक
क्रिकेट के भगबान
सत्यमेब जयते की घोष करने बाले
घूम घूम कर चैरिटी करने बाले सेलुलर सितारें
अरबों खरबों का ब्यापार करने बाले घराने
त्रासदी के इस समय में
पीड़ित लोगों को नजर
क्यों नहीं आ रहे .
raajnitik matbhedon ke karan, sirf ek dusre pe keechar uchhalne jaisa hi kaam rah gaya hai, jabki wastvikta ye hai ki uttrakhand me jo sthiti thi, us hisab se prashashan ne beshak sena ke sahyog se hi sahi, par bahut kaam kiya hai, aur bahut mehnat ki hai............fir bhi ye sahi hai ki sarkar ko aur mehnat ki jarurat hai... par koshish jo hui, wo kam nahi thi...
ReplyDeleteaaj bhi bhagwan se prarthna hai ki sab kuchh jald se jald sahi ho jaye.......
. .सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने .एकदम सही कहा आपने आभार मुसलमान हिन्दू से कभी अलग नहीं #
ReplyDeleteआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
आपदा में धर्म, जाति , लिंग, संप्रदाय, वर्ण, का भिन्नन किये बिना सहायता की जानी चाहिए किन्तु हर मौके पर हम ही कहाँ खरे उतर पाते है ये आपदा नियोजन की कमी का परिणाम है जिसके लिए अन्य सबसे ज्यादा तीर्थ यात्री स्वयं जिम्मेदार हैं बाद में बाकी सब किसी पर भी आरोप प्रत्यारोप गलत है .आपने बहुत बारीक बिन्दुओं पर सूक्ष्म प्रकाश डाला है आभार
ReplyDeleteहमारी एकजुटता की सारी बातें निरर्थक लगती हैं ये स्वार्थपरकता देखकर .....
ReplyDeleteसादर आभार...
ReplyDeleteकाश नेता एक आम आदमी बन कर कुछ सोच विचार कर सकें ..... ऐसी विपत्ति में धार्मिक संस्थाओं का भी योगदान देने का सुझाव बहुत अच्छा लगा ... सार्थक लेख ।
ReplyDeleteजहां जहां धर्मस्थल सरकार के नियंत्रण में हैं, वहां सुविधाएं कहीं ज्यादा हैं. बाकी जगह लोग इनकी कमाई बपौती की तरह प्रयोग करते हैं
ReplyDeleteसबसे बड़े दोषी हम लोग ही हैं इतनी बड़ी आपदा हुई लेकिन व्यवस्था को परिवर्तित किए जाने के लिए आवाज उठाये बगैर फेसबुक में व्यर्थ के पोस्ट डालने में लगे हैं। हम अपनी स्वार्थपरता में खोये रहते हैं कि हम पर कोई संकट नहीं आयेगा लेकिन कोई विपदा पीछे से इंतजार करती है। विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुंदर.सटीक.बधाई!
ReplyDeleteहम्म......काफी सही बातें लिखी है आपने.......ट्रस्ट के सामने न आने वाली बातों से मैं सहमत हूँ ......बात जब यहाँ आती है तो 'तथाकथित' धार्मिक लोग पीछे हट जाते हैं........ऐसे समय में किसी धर्म विशेष की नहीं हर 'इन्सान' का फ़र्ज़ है की वो ऐसे लोगों की मदद के लिए आगे आये।
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सटीक विश्लेषण...बड़े मंदिरों और मठों के पास अकूत धन है और उनका इस आपदा के समय आगे न आना सच में दुर्भाग्यपूर्ण है...
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